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संक्षिप्त हिंदी व्याकरण ( संशोधित संस्करण )

कामताप्रसाद गुरु

प्रका के नागरीप्रचारिणी सभा, कार्शों

#“&४/६-»८७२२५०८६७४८/२४८२४ ८८4०७ ७८२८८ 6४८6 सोलहवीं बार ; १०००० प्रतियाँ ; संचत्‌ २०१३ वि० मूल्य १॥)

&८६-७८६७८६०८६५८६०८६०८६५८६०८६००८६:०८६०८६५९८६०:८६०

सुद्रक--« महताब राय नागरी मुद्रण, कोशी

प्रथम संस्करण की भूमिका

पुस्तक “हिंदी-व्याकरण” का संक्षिप्त संस्करण है | इसकी रचना का प्रयोजन यह है कि हिंदी भोर अंगरेजी की उच्च कक्षार्थों के विद्या- थियो को हिंदी व्याकरण की उपयुक्त पाख्य पुस्तक उपलब्ध हो सके इस ग्रंथ में संक्षेपतया प्रायः वे सन्च व्याकरण-विपय रखे गये हैं जो बड़े व्याकरण में हैं; पर विवाद-ग्रस्त त्रिया ओर उनका विवेचन निकाल दिया गया है। मुख्य विषय से संत्रंध रखनेवाली सूक्ष्म बातें भी इस पुस्तक में नहीं छाई गई | अपवाद भी यथासंभव कम रखे गए हैं। इस संक्षेप का फारण यह है कि व्याकरण विपयक विस्तृत अथवा सूक्ष्म वाद-विवाद बहुधा अपक्य बुद्धि वाले विद्याथियों की योग्यता के बाहर के विपय हैं तथापि मूछ विषय का विवेचन अधिकांश में रीति से किया गया है कि विद्यार्थियो को नियम कंठ करने के स्थान में विचार करने का अवसरर मिले |

' इस विषय फी जो दो-चार पुस्तके इस समय पाठ्शालाओ में प्रच- छित हैं उनके दोषो से इस पुस्तक फो मुक्त रखने का भरसक प्रयत्न किया गया है; अर्थात्‌ यह चेंष्टा फी गई है कि ग्रंथ में विषय की कमी, क्रम फा अभाव और भाषा फी अस्पष्टता रहे | इस प्रयल में हमें कहां तक सफलता प्राप्त हुई है, इसका निर्णय अध्यांपफ और विद्यार्थी ही कर सकते हैं। यदि कोई सजन इस पुस्तक के दोषों फी सूचना देगे तो उस पर धन्यवादपूर्वक विचार किया जायगा और उसके अनुसार अगले संस्करण में आवश्यक परिवर्तत कर दिया जायगा ,

कामतात्रसाद गुरु

संशोधित संस्करण की भूमिका

लगभग बीस बंप के उपयोग के पश्चात्‌ इस पुस्तक के नये संस्करण की आवश्यकता प्रतीत हुई है | इस संह्करण में सचसे मुख्य ओर उपयोगी परिवर्तन यह फिया गया है कि विपय की विवेचना अधिकाशव में “शिक्षापद्धति? के अनुसार फी गई है | इससे मलविपय में कुछ फर्मी हो गई है; पर साथ ही कुछ नये भोर आवश्यक विपय भी जोड़ दिये गये हैं | उदाहरणों की संख्या भी बढ़ा दी गई है ओर प्रायः प्रत्येक पाठ के अंत में अभ्यास दे दिये गए हैं| संक्षेप के विचार से कुछ त्रिपय सारणी के रूप में लिखे गए हैं जोर एफ स्थान में भक्ति के द्वारा विपय समझाया गया है। ययासंभव टाइप की मिन्नता से मुख्य ओर गोणविषयों का अंतर सूचित फरने का प्रयत्न किया गया है। जाश्षा है कि पूर्वोक्त परिवर्तन, परिवद्धन और संशोधन से यह नवीन संस्करण प्रवेशिका-परीक्षाथियों को अधिक उपयोगी सिद्ध होगा | पुस्तक में छंद रस अर अलंकार का समावेश नहीं किया गया, क्योकि ये विपय

व्याकरण से नहीं प्रत्युत साहित्य से संबंध रखते हैं जो एक अलूण विषय है।

जन्नलपुर अश्षय तृतीया सं० २००६ | - कामताग्रसाद गुरु

पहछा पाठ

दुसरा ,,

पहछा पाठ दूसरा तीसरा चौथा याँचवॉँ -छठवॉ.

93

93

73

33

हि

विषय-सची

पहला अध्याय

भाषा ओर व्याकरण

वाक्य शब्द और अक्षर व्याकरण और उनके विभाग

दूसरा अध्याय

वर्ण-विचार

वर्णमाला

स्वरों के भेद व्यंजनों के भेद संयुक्त अक्षर अक्षरों का उच्चारण

संधि

च्छ

श्र

/? ही

पहला पाठ दूधधा » तीसरा ,; चोथा ,, पॉचवों ,, 'छठवों ,, सातवां ,, आठवों ,, नवों. , दसवाँ ,,

पहला पाठ दूसरा

तीसरा चोंथा पॉचवों

79 99 92 49

छठवाँ ,,

संतों ,,

( २१ )

तोसरा अध्याय शब्द-विचार

शब्द सेद

संज्ञा के भेद

क्रिया के भेद

सर्वनाम के भेद

विशेषण के भेद

क्रिया-विशेषण के भेद

संबंध-सूचक के भेद

समुच्चयय-चोधघक के भेद

विस्मयादि-बोघक के भेद

एक शब्द के अनेफ शब्द-भेद चोथा अध्याय

शब्द-साधन

विकारी और अविकारी शब्द

संज्ञा का लिंग

संज्ञा का वचन

संज्ञा के कारक

संज्ञा की कारक रचना

सवनाम की कारक रचना

विशेषण का रूपांतर

९०४ 5१०६ १५५,

आठवों पाठ नवाँ. $ दवा ,, ग्यारहवों ,, बारहवाँ ,, तेरइवॉ ,, चोदहवाँ ,, पंद्रहवों ,,

पहला पाठ

दूसरा »

' तीसरा चोथा पॉचवाँ छठवॉ

7) 99 7)

9

पहला पाठ

दस है 2

)

( )

क्रिया का वाच्य ! क्रिया फा अर्थ क्रिया के फाल क्रिया के पुरुष, लिंग ओर[वचन कदंत्त क्रिया के काल रचना प्रेरणाथक क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ

पाँचवाँ अध्याय

शब्द-रचना उपसग कुदंत ( अन्य शब्द ) तद्धित समास पुनरुक्त ओर अनुकरण-वाचक

हिंदी भाषा का संक्षिप्त इतिहास छठवाँ अध्याय ' वाक्य-विन्यास

फारकों के अथ

फालो के अथ

इ्छ

' १२०

श्र्‌रे ११४ १२७ १३१ १३७ १४४ १५६

१६७ १७९१ १७४ श्द्रे श्व्यरे १६९५

श्द६ १९

(

पृष्ठ तीसरा पाठ शब्दों का अन्वय २०३ चौथा ,, शब्दों का क्रम २०७ पॉँचवाँ .,, शब्दों का छोप २०६ सातवाँ अध्याय वाक्य-एथक्करणु पहला पाठ वाक्य, उपवाक्य और वाक्यांश २१० दूसरा ,, साधारण वाक्य... २१२ तीसरा ,, संयुक्त वाक्य २१६ चौथा ,, मिश्र वाक्य श्स्श् पॉचवों ,, मिश्वि वाक्य २२७ छठवों ,, संकुचित वाक्य हर श्स्द सांतिवोँ ,, संक्तित्त वाक्य २३१

आँठवोँ अध्याय विराम-चिह परिशिष्ट--कविता की भाषा का संक्षिप्त व्याकरण २३६

संक्षिप्त हिदी व्याकरण

पहला अध्याय भाषा और व्याकरण पहला पाठ वाक्य, शब्द और अच्चर

र--मनुष्य विचार-शील प्राणी और संधति अथवा सूचना के छिए अपने विचार फो बोलकर या लिखकर दूसरों पर प्रकट फरता है। बह दूसरों के विचार भी सुना करता है। इन विचारों को पूर्णता तथा सष्टता से प्रकट करने का साधन भाषा है। कुछ विचार इशारों (संकेतों ) से भी प्रकट किए. जा सकते हैँ पर वे बहुधा अपूर्ण और स्पष्ट रहते हैं। भाषा अनेक पूर्ण और स्पष्ट विचारों के मेल से बनती

ओर प्रत्येक पूर्ण विचार में कई भावनाएँ रहती हैं। प्रत्येक पूर्ण विचार को वाक्य और प्रत्येक भावना फो शब्द कहते हैं।

२--वाक्य में कम से कम दो शब्द अवश्य होने चाहिएँ नहीं तो

पूरा बिचार प्रकट नहीं हो सकता | “राम आया” “तुम चछो” “वे

आवेंगे”, ये दो-दो शब्दों के वाक्य .हैं और इनसे एक एक परा विचार

प्रकट होता है | जहाँ एक ही शब्द से परा विचार ॥प्रकट हुआ दीखता

“हा दूसरा शब्द लुप्.( छिपा ) रहता है, जैसे प्रणाम 5 प्रणाम है क्या-क्या है ? चलछो-नुम चलो |

( )

३--अपने विचार प्रकट करते समय हम या तो कोई समाचार सुनाते हैँ या प्रशन पछते है अथवा किसी से कुछ प्राथना करते है

इतना ही नहीं, हम इच्छा अथवा जाश्चय भी प्रकट करते है इस

प्रकार हमारे विचार कई रूप घारण करते हैं और उनके अनुतार वाक्या के भी कई भेद होते हैं

अर्थ के अनसार वाक्य मुख्यतः पॉच प्रकार के होते हैं

(१ ) विधानाथंक वाक्य के द्वारा हम दूसरे को किसी बात की स्वीकृति वा निषेध फी सूचना देते हैं, जैसे, आम मीठा है। फल रात की पानी गिरा | भेरा भाई काशी से जावेगा हम वहाँ नहीं थे घर में कोई नहीं है

(२) प्रशनाथक वाक्य के द्वारा प्रश्न किया जाता है, जैते राम

हाँ है ? क्‍या तुम मेरे साथ चलोगे मोहन कच भाया था )

(३ ) आज्ञाथक वाक्य से आज्ञा, अनुमति अथवा प्रार्थना का त्रोध दाता दे, जैसे, जाओ मुझे भाने दीजिए

(४७ ) इच्छात्रीधथक वाक्य से इच्छा, आशीवाद अथवा श्ञाप का त्राध होता हे, जैसे नाथ | मेरा बेटा ,सुझे मिछ जावें। ईश्वर उसका भत्ता करें | अन्यायी का नाश हो !

(५ ) विस्मयादि-बोधक वाक्य विस्मय, हर्ष, शोक आदि भाव सूचित करता ईद; जैसे, यह चित्र कितना सुंदर हे | भाई तुम मुझे कई वर्षों में मिले दो ! वह मित्र के जिना रहेगा !

४-वाक्य के साथंफ खण्ड करने से शब्द मिलते हैं। यदि शब्द 5 भी खण्द करें तो हर्मं एक वा अधिक छोटी से छोटी ध्वनि मिलेगी, जैसे, जानी? में जक जा + जो, मोहन? में + जो + ह+न

$ हजरकोर ... खन्‍न-डई श््डू | ली कक !

| प्रत्येक छोटी से छोटी ध्वनि को अक्षर कहते हैं एज वा आंधिक अक्षर के मेल से शब्द बनता दै। जैसे, न, नहीं

कार भाप बाक्‍यों से, वाक्य शब्दों से मोर शब्द

र्श बड़

करा ध्ञ

हे. जय

+

हलक लो

प्‌

न्‍ये

है ] स्वयं स्व्म्स्यूं बट हि. के है कज्न्जी हि हि |)! 2५

तल

( रे)

फिसी भी भाषा का अध्ययन करने के लिए हमें उसके शब्दों ओर

वार्क्यों के रूपों तथा जर्थों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए | अभ्यास

१--नीचे लिखे वाक्यों के शब्दों को अलग लिखो---

पानी चरसता है | गाय घास नहीं खाती थी। क्या उसका भाई कूल आयेगा ! प्रेमलता कैसी अच्छी लड़की है ! इंश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी है। आत्मा अमर है। सच बोलना धर्म फा काय है। राजा ने ' अकाल में प्रजा का पालन किया होगा | हिंदुस्तान बहुत बड़ा देश है। हमें अपने देश की उन्नति करना चाहिए |

२--नीचे लिखे शब्दों का उपयोग फरके एक-एक प्रकार का वाक्य . बनाओ--

दूध, हवा, गाना, ईश्वर, प्रेम, साइस, बड़ा, गया, भोजन, विद्या, कैसे, हाय ! हु

, ३--नीचे लिखे शब्दों के अक्षर फो अलग-अलग लिखों--

पानी, हवा, भोजन, साइस, दूध, गाना |

४--नीचे लिखे अक्षरों से अछग-अभलग शब्द बनाओभों और उसका उपयोग एक-एक वाक्यो में $करो--

न, म, आा, ई, क, छ, म, ऊ, भ, |

दूसरा पाठ

व्याकरण ओर उसके विभाग --किसी भाषा के अक्षरों, शब्दों और वाक्यो के रूपों मौर अर्थों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए. इमें उस माषा का व्याकरण पढ़ना चाहिए. | व्याकरण वह विद्या हैं जिससे हम भाषा--अर्थात्‌ अक्षर, शब्द और ,वाक्य--की शुद्धता के नियम सीखते हैं। प्रत्येक भाषा का व्याकरण होता है और उसमें उस भाषा फी झुद्धता के नियम दिए.

[

करी

ज्न्च्प कु 9०२3 छा बीवी“ यही अउना डा ला 5७-क अत, ०० पिया सो दसर भाषा घीख हक रहते हैं | वाद इंदछध सी सातु-भाया के ठद्दा कोई दुसरां भाया छाल कक कक च्ज्यु से ली अहम निकल 420.

चाह हां इन उस लादा का व्याकरण सांखना चाहइए |

कक भा 37 नकल अर द्ुडठ झओोर बज ब्द्वां प्लदा

६०-च्चछाएा के सुड--सलक्ष जद आभार दाक्वब-- कहां अंलका>शकंलरा 2 विवेचन शक 2. चप2० कक. जल मन अर 3०] ख्य है. दाग गए ह् चेद्खन करने के छिए व्याक्रम का छघुख्य दान विन कए गई ए--

( ) वाक््य-विन्यास--ब्याकरण परस्पर सदंब कोर उनसे वाक्य बनाने

दूसरा >ध्याय : बण विचार पहला पाठ

| वणमाला/ ७--किसी भाषा के अक्षरों के समूह को वुमाला कहते हैं हिंदी वर्णमाला में नीचे लिखे ४४ अक्षर हैं-- .. स्वर अं, भा, ३, इ, उ, ऊ, ०५ ऐं, भो, आओ ये ग्यारह अक्षर# स्वर कहलाते हैं; क्योकि इनका उच्चारण सॉस के द्वारा स्वतंत्रता से होता है। ( उच्चारण करके देखो ) व्यज़न क, ख, ग। घ, | च, छ, ज, झ, | ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, | प, फ, बे; भ, मै य; र, ले, व, शे, पष, स, हू इन तैंतीस अक्षरों फो व्यंजन कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण साँस के साथ स्वतंत्रता से नहीं होता ओर इनके उच्चारण में स्वर की सहायता ली जाती है . जब हम 'क! का उच्चारण करते हैँ तब साँस बाहर निफालने के पहले हमें गले को कुछ दबाना पड़ता है ओर/फिर सॉस के साथ “अर? का उच्चारण

[

/*# संस्कृत वर्णमाला में एक और स्वर हैं जो हिंदी में नही आता।

( ५६ )

करना पड़ता है। इसी प्रकार 'ठ? के उच्चारण में दोनो ओठ मिलाकर खोलने पड़ते हैं। और फिर “अ' का उच्चारण कर सॉस को नाकसे निकालना पड़ता है। (“कम”) शब्द में दोनों का (उच्चारण करके देखो |)

८--इनके सिचा अनुस्वार ( *) मर विसर्ग (४) नाम के दो व्यंजन और है. नजिनका उच्चारण क्रमशः आये मूं और आधेद के समान होता है ओर जो किसी भी स्वर के पीछे जाते हैं; जैसे 'संतार? और “दुःख में

९--जब फिसी स्वर का उच्चारण नासिका से होता है तब उसके ऊपर अनुनासिक-चिह्न ( ) छगाया जाता है, जिसे चंद्रविदु भी कहते है; जैसे, हँसना? और “गाँव” में।

व्यंजनों मे 5, ज; कभी शब्दों के आदि में नहीं आते |

१०--जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं मिला रहता तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा ( _) कर देते हूं जिसे इत्त कहते हैं ओर वह व्यंजन' हलंत कहत्थता है, जैसे पुनर , उत्‌

११--नीचे छिंखे अक्षरों के दो-दो रूप पाए जाते हैं; जैसे, अर; झ, झा; ण) णु | किसी अक्षर के नाम के साथ” पकार!' जोड़ देने से वही अक्षर समझा जाता है, जैसे, अफार-भ, मकारच्न्म |

अभ्याक्त

१--नीचे लिखे शब्दो में स्वर मौर व्यंजन बताओ---

आग, नार, ईश, ऐन, औषध, कंस, छः, उदय, ततूपर, भैवर, ऊँट, भॉँच |

दसरा! पाठ खरों के भेद १२--भ, इ, और हस्व स्वर कहलाते हैं, क्योकि इनके उच्चारण में सत्रसे कम समय छगता है। भा, और ऊ, को दीघ स्वर कहते हैं, क्योकि इनका उच्चारण करने में हृस्व स्वर से वूना समय लगता है और हस्व स्वरो के मेछ से बनते है, जैसे...

( 9)

अकभन्यथा इ+इज-ई उक+डउठनजऊक। १३--ए, ऐ, ओर संयुक्त स्वर कहलाते हैं, क्योकि ये दो भिन्न-मिन्न ख्रो के मेल से बनते हैं; जैसे, 'ए>भ+इ, ऐन्भ+ए ओज्मभ-+उ, ओऔर्भ+ओ “अं संयुक्त स्व॒रो का उच्चारण भी दी स्वरों के समान दूने समय में होता दे और सवर्ण स्वर कहलाते हैं, क्योकि इन दोनों का उच्चारण एक ही प्रकार से होता है। इसी प्रकार और ई, और ऊ, तथा . और में प्रत्येक जोड़ा सबर्ण है। औभौर ऐ. तथा यो और सवर्ण स्वर नहीं है, क्योंकि ये भिन्न-भिन्न स्परों के मेल से बने हैं इसी प्रकार और ई; और ऊ; अथवा ओर असवण् हैं। १४-“जिन स्व॒रों का उच्चारण नासिका से होता है, उन्हें सालु- 'नासिक और जिन ख्रों का उच्चारण सॉस के द्वारा स्वतंत्रता से होता है, उन्हे अनुनासिक कहते हैं; जैसे, “आँख! और ऊँटो तथा “आग ओर “ऊख! में | अभ्यास नीचे छिखे शब्दों में स्व॒रों के भेद बताओ-- अलछूग, अंवेरा, ऐसा, आम; ऊँट, आधा, ईश, ऋण, इंट, इतन', उतना, ओला | २---नीचे लिखे स्व॒रों के जोडे सवर्ण हैं या असवर्ण ! भौर भा; और ई, अ,और ऊ; ओर ए; ओोर ऐ; भो ओर भऔौ; और ओ; ओर ज् 0

( )?)

तीसरा पाठ व्यंजनों के भेद " १०७७“ से लेकर 'म? तक जो पचीस व्यंजन हैं उन्हें स्पश हक हैं क्योंकि उनके उच्चारण में जीम का कोई फोई भाग मुख्य के दूस' भागो को स्पर्श करता ( छता ) है। ( उच्चारण करके देखो )। १६०--स्पश व्यजनो के पाँच वर्ग किए गए. हैं _आओर प्रत्येक वग की नाम पहले क्षक्षर से रखा गया है; जैसे, ' कवर्ग--क, ख, गं। घ, | चवर्गं>-च, छ, ज, झ, ज। खर्ग--25, ठ, ड, ढ, तबरगं--त, थ, द, ध, पंबंग>->प, पं: कं भे १७--य* 'र? 'छ? और “व! को अंतस्थ व्यंजन कहते हैं क्योकि उनका उच्चारण स्वरों ओर व्यंजनों के बीछ का है | (उच्चारण करके देखो ।) “४५ १८--श) “'प), 'स), और #$! ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं क्योकि इनके उच्चारण में एक प्रकार की सुरसुराहट सी होती है। उच्चारण फरके देखे। | ) हे १६--प्रंत्येक वर्ग के पिछले तीन व्यंजन अंतस्थ मोर हु को धोष वर्ग कहते हैं, क्योकि इनके उच्चारण में एक प्रकार की झनझनाहट सुनाई पड़ती है। इन्हें झूदु व्यंजन कहते हैं | २०--प्रत्येक वग के -पहले दो अक्षर भोर श, ष, अघोष व्यंजन कदइलाते हैं क्योंकि इनके उच्चारण में एक प्रकार फी खरखराइट सी जान पड़ती है| इन्हें कठोर व्यंजन भी कहते हैं घोष--ग, थे, 5, हज, श, जे, ड, 6, णग, द, ध, वे, भे, म। य, र, छ, व, | अधीप-क, ख; च, छ; ट, ठ; त, थ; प, फ; व, थ, ।#५ २१--प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवोँ अक्षर और अतत्य अव्पप्राण कहछाते हैँ | क्योकि इनके उच्चारण में श्वास का

क्र

( )

. परिमाण साधारण रहता है | शेष-व्यंजन महाप्राण कहलाते हैं, क्योकि:

उनका उच्चारण करने में साँस अधिक प्रमाण में निकाली जाती है सूचना--सत्र स्वर घोष अव्पप्राण हैं। २२--प्रत्येक वर्ग के पाँचवें अक्षर, अर्थात्‌ “डर, 'ज्‌र, ण!, ओर 'म' को अनुनासिक व्यंजन कहते हैं, क्योकि इनका उच्चारण नासिक्का से होता है। इनके बदले इच्छानुसार अनुस्वार' लिखा जा

- सकता है; जेसे,

गद्भा? > 'गंगा?; पशञ्च!ः 5 पंच, “दण्ड” “दुड' प्सन्त? > 'संत', _

(क्रम्प्‌! 5: कप? |

वअभ्यास्त १--नीचे छिखे शव्दो में व्यंजनो के भेद बताओ-.. समर, लहर, शहर, वन, रावण, उदय; चपल, छाया, साहस; पुर्ष, उदास, खर, झरना, कंगाल, संमान |

चौथा पाठ संयुक्त अक्षर

(१) खरों का संयोग . व्यंजनों का उच्चारण स्रो के योग के बिना नहीं हो सकता;

इसलिये व्यंजनों में स्वर॒मिलाए, जाते हैं। व्यंजनों में मिलने के पहले

खरों का-रूप बदछ जाता है और इस. बदले रूप को मात्रा कहते हैं। प्रश्येक स्वर की मात्रा नीचे लिखी जाती है-... जैं, आा, इ, ्, उ, ऊ; कक, कू, ए. ञओ, ओो |

अल 5 0० को

डे

$

2 5५ २४--“अ? को अछग मात्रा नही है। उसके प्रिलने पर व्यंजन का हल चिह ( . ) निकल जाता है; जैते क्‌्+गभकन के, चू+भ-च।', २५--व्यंजनों में मात्राएँ मिलाने की रीति यह हे--.. हे फ़ का, फी, कु, कू, छ; क्‌, के, के, को, को र्‌

( १० )

४? सें 'उ” और 'ऊ' की मात्राएँ मिलाने से उनका रूप कुछ बदल जाता है; जैसे, 'हकना? ओर 'रूप? में

(२ ) व्यंजनों का संयोग

२६--जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं रहता तब्र वह अपने आगे आनेवाले व्यंजन में मिल जाता है; जैसे,

सत्‌ + कार-सत्कार, सम्‌ + बंघ-- संबंध ( संबंध ) |

सू०-हिंदी में बहुधा तीन व्यंजनों से अधिक एक साथ नहीं मिलते।

२७--जिन अक्षरों में पाई (।) रहती है उनकी पाई संयोग में गिर जाती है; जैसे, तू + थरूत्य, प्‌+यरूप्य, च्‌+ छ्ूूछ, तू-ः सू+य>त्स्य मत्स्य! में )

२८--७, छ, 2, ठ, ड, और संयोग आदि में भी पूरे लिखे जाते हैं ओर भागे आनेवाला व्यंजन इनके नीचे लिखा जाता है; जैपे,

- सक्छ??, “उछ्वास??, “पद्टी?, “गड़ी? और “चिह्न” में २६--जघ के पीछे कोई व्यंजन आता है तब वह उसके ऊपर “शक ) के रूप में छिखा जाता है; जैसे, “दुगु ण”, “निर्जन”, “धर्म!

में जब रकार किसी व्यंजन के पीछे आता है ततब्र उसके दो रूप होते हैं,

(१ ) पाइईवाले अश्षलरो के साथ इस (- ) रूप में मिलता है, जैसे, “चक्र? ?, “हस्व?, “बज?! में

(२) दूसरे व्यंजनो के साथ र_इस रूप (| ) में भाता है; जैसे, “राष्ट्र??, #पु'द्ध?? “कुच्छ में |

सू०--( १० के पश्चात्‌ अह्व ( स्वर ) भाने पर भी बह रेफ के रूप में आता है, जेसे नऋत्य' में

( हे ) ब्रजभापा में २+य का रथ द्वोता है; जैसे, “मारयो??, “हारयो”??, *घारदयो”? में | !

कई एक सपयुक्त व्यंजन दो-दो रूपो में छिखे जाते हैं, क--क क्क, कक, घ्‌ + व-प्व, छ, +ल-छ, श्‌ +- व>इव, श्र, कू+तमक्त, क्त और तू+त >त्त, त्त।

बन

११ )

रे र२०-क्ष,त्र ओर ज्ञ संयुक्त व्यंजन हैं। कू+प-क्ष; त+र-न्र जु+ज>ज। ये अक्षर भी दो-दो रूपो में छिखे हैं जाते हैं; जैसे, क्ञ॒ओर क्ष, त्रगौर ल; जञ्ञ कौर ज्ञ रणअजू,ण्‌,न्‌, अपने ही वर्ग के व्यंजनों के साथ मिल सकते हैं; जैसे, “गड़? “प्चञ्ञठ!?, “घण्टा?? “८ अन्त?, “दम्भ” | कुछ शब्दो में इस नियम का विरोध होता है; जैछे, #वाडमय??, मृण्मय!!, “धघन्वन्तरि??, “सम्राद??,, तुम्हे” ह। | २९--अंतस्थ अक्षरों के पहले, अनुनासिक व्यंजन के बदले अनु- सवार जाता है, जेसे, “संयम”? “संरक्षा??, “संल्य?? “किंवा?? रैरे है बहुघा दूसरे व्यंजनों में मिलता है; दूसरे व्यंजन ह? में | मिलते; जैसे ; “चिह्न, “असह्य”', “हत्व”, “प्रह्मद??, “बिहुल?? | ३४--दो महाप्राण व्यंजनों का उच्चारण एक साथ नहीं होता; , इसलिये संयोग में पहला अक्षर अव्पप्राण रहता है; जैछे, “रक्‍्खो?? “अच्छा??, “गट्ढः?, में २४--संयुक्त व्यंजनों में भी स्वरो की मात्राएँ जोड़ी जाती हैं; जैसे, ह, दवा, द्वि, 8 8. $ 5७% दें, दे; ढ्वो, हो.। |

अभ्यास : १--नीचे छिखे शब्दों में व्यंनन और स्वर मलछग-अरूग बताओ- दास, कवि, पुरुष, गति, भालू, जैता, कृष्ण, कौन ५. '२--नीचे छिखे शब्दों में संयुक्त व्यंजनों के खंड' करो कुत्ता, पत्थर, अन्न, मत्स्य, विद्यार्थी, स्रीत्व, ब्रह्म, नम्न, धर्म; मारथो, ईश्वर, क्लेश ््््ि ३--नीचे छिखे शब्द को शुद्ध करो--. हा गन्गा, चन्चछ, सण्त, कछूप, घण्टा, सम्मत, संसार, ठंड, चिह्न, . अझ्षण, गड़ढा।

१९: )

पाँचवा पाठ अरचों का उच्चारण

रजत इनकम थ.दा.०१० ०० पा; 2५१९ धार3४32७पभा+2७७७०ल्‍मा एक गए. ५४ ५भभाकाए५+वा० ७५ वाव९9५५३५श ७9५०4 +५५५५-५५४७७००ह ५! वछ्रशक७४3 ३3५७ भा ५७ फारतपन्‍य++»3+सकााका5/ मना आना पाक रथ + पका कम वाद काका

सक्षर उच्चारण स्थान सं अ, आ, कवग, ह, और: कुंठ कंख्य इ्ट, इं, जवगं, चमभोरश तालु तालव्य, ऋ, ट्वर्ग, ओर मूद्धा मद्धन्य (ताल का ऊररी भाग ) | तबगं, ओर दंत दंत्य उ, ओर पवर्ग ओष्ठ , | ओषछ्ठच ढ, अ, ण, ओर नासिका ! अनुनासिक ए्‌, ऐ, कंठ +ताल कंठ-ताल्व्य आओ, कंठ + ओष्ठ कंठोष्ख्य दंत + ऑंछ दंतोष्ख्य

२६--हिदी में अंत्य “अ? का उच्चारण बहुधा हलंत व्यंजन के- समान होता है; जेसे, (रण?, 'घधन?, “कमल? में | नीचें लिखी अवस्थाओं में अंत्य का उच्चारण पूरा होता है--

(१ ) यदि अकारांत शब्द का अंत्याक्षर संयुक्त हो जैसे, सत्य, इंद्र, गुरुत्व में | |

( र्‌ ) याद इ, ड;

वाऊ क़े भागे हों, जैठे, प्रिय, सीय, राजपत में |

( ) पद्म में जिस अकारात शब्द पर विश्राम नहीं होता, जैसे राम चल बन प्राण जाहीं | केहि सुब्र छागि रहत मर्न माही ।”

२७--दिन्दी में 'ए! ओर “ओों? का उच्चारण संस्कृत की अपेक्षा कुछ हस्व होता है; जैसे,

( १३ )

संस्कृत--ऐश्वयं, सदैव, कोतुक, पौत्र |

हिंदी-- ऐसा, केसा, फोन, चों या

श्णय--ड? और “ढ? का एक एक उच्चारण और है जो जीम का अग्रमाग उलट कर मूर्दधां पर लगाने से होता है; जैसे, बड़ और गढ़ में | इस उच्चारण को ट्िस्प्रष्ट कहते हैं ओर इसके लिये अक्षर के नीचे बिंदी लगाते हैं

उदूं और अँग्रेजी के प्रभाव में. 'ज” झोर “फ! के नीचे बिंदियाँ लगाकर इन अक्षरों का उच्चारण क्रमशः दंत-ताल्व्य और दंतोष्छ्य करते हैं; जेसे, ज़मीन, स्वेज़्, फुरसत और फ़ीस में |

३९--अनुस्वार ( ) ओर चंद्रबिंदु () के उच्चारण में यह अंतर है, कि अनुस्वार के उच्चारण में सॉस मुख ओर नासिका से निकलती है, पर चद्रबिंदु के उच्चारण में वह नाक से निकाली जाती है

जैसे 'हंसी? और 'हँसी?, “अंकुश! और “अंकुश? में

' ४०--विसग के उच्चारण मे साँस को कुछ झटका सा देकर मुँह से निकालते हैं यदि इसके बाद व्यजन जाता है तो इसके उच्चारण में प्रायः उस व्यंजन का उच्चारण होता है, जैठे, दुःख” और प्रातः- _ काल), में |

४१--हिंदी में 'ज्ञ! का उच्चारण “गयं? के सहृश होता है। महा- राष्ट्र लोग इसका उच्चारण “तं? के समान करते हैं। पर इसका शुद्ध उच्चारण 'ज्यः के सहश है

४१--संयुक्त व्यंजन के पूव आए हुए ह॒स्व स्वर का उच्चारण कुछ , झठके के साथ होता है, जैसे, सत्य, नष्ट, अंत में

हिंदी में मह, नह, हा आदि के पूर्व ऐसा उच्चारण नहीं होता; जैसे, तुम्हारा, उन्हें, करया, कह्या में

अम्याप्त

१--नीचे लिखे शब्दो के प्रत्येक अक्षर का अछग उच्चारण कर

उसका उच्चारण स्थान और भेद बताओों--

को,

बालक, फोन, अंतर देव, धन, बढ़ाई, बढ़ना, जहाज, फुरसत, संदेश, संदेशा; घनश्याम

समाचार जब्र छछमन पाए | ब्याकुंड बदन विलखि उठि धाए |

:. छठां पाठ

साथ राम + अवतार रामावतार अ-]- अनआा जगत्‌ -+ ईशजजगदीश त्‌+ई> दी मनः+-हर"०मनोहर :+इच्भोी-+-ह

४३--ऊपर लिखे शब्द संस्कृत भाषा के हैं। पर हिंदी में उनका प्रचार है। इन शब्दो के खंडो में पहले खंड का अंत्याक्षर दूसरे खंड के आद्यक्षर से मिल गया है ओर दोनों के मेल से एक भिन्न अक्षर बन गया है | संस्कृत में अक्षर के इस प्रकार के मेल को संधि कहते हैं

राम -)- अवतार-रामावतार अञ+कः अन्यआा

इंडश्वर+-इच्छा ईश्वरेच्छा अ+इनए

भानु + उदय » भानूदय उ+उनच्ऊक

४४--इन उदाहरणों में म+- मिलकर भा, अ+इ मिलकर

ए. ओर उ+ठ मिलकर हुआ है। ये सब्र अक्षर स्वर हैं, इसलिये इनके मेल को स्व॒र-संधि कहते हैं।

वाक्‌ +- ईश + वागीश क्‌+ईन्गी

जगतू + ईश-जगदीश त्‌+ई-दी

उत्‌ + चारण > उच्चारण त्‌+चान्चा * जगत ऊू नाथ » जगन्नाथ तूकनान्ना

'४४-०-इन उदाहरणो में अंत्य व्यजनों के साथ स्वर अथवा व्यंजन मिले हैं ओर उनके स्थान में भिन्न अक्षर हो गए हैं। जिस संधि में व्यंजन के साथ स्वर अथवा व्यंजन मिलता है उसे व्यंज़न-संधि फिट |

2॥/ /र

( १५ )

नि+ भाशा निराशा | दुः + उपयोग & दुरुपयोग

(5: -++- अबच्ूरा ( ;+-+-उच रू ) , निः:-- फल निष्फल प्राय+-- चित्तःप्राय थ्रित्त - (;++फ-ष्फ ) (:+ चिलश्नि )

४६--उपर के उदाहरण में विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन मिले हैं। ओर उनके स्थान में भिन्न अक्षर आाया है| विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मेल को विसर्ग संधि कहते हैं स्वर-पंधि १--विसगे

उदाहरण , संधि , नियम

राम + अवतार--रामवबतार | अ+भअच्भा | अफार वा आऊझार के राम भार -- रामाधार अ--आजूआ | परे अफकार वा आकार माया + अधीन--मायाधीन | आ+अच्ज्भा | हो तो उनके स्थान में माया + आचरण>-मायाचरण।/ आ+आजभा | आकार होता है।,

गिरि + इंद्र-गिरींद्र + इप्न्ई इवाई के परेइ वा गिरि + इंश-गिरीश -+ ई-ई रहे तो दोनो के स्थान ' ! मही-+इंद्र-महींद्र | ईकइऋई में होता है '_मही +ईंश>"महीश ई+ ई--ई भानु + उदय>-भानू्‌दय | .उ+ उच्ऊ वा के पश्चात्‌ लघु + ऊम्मि-लघूर्मि उ-+ऊच्ऊक |उ वा भावे तो वधू + उत्सव-वधूत्सव ऊं+उम्ज्ऊ | दोनों मिलकर हो भू +“ऊध्व-सभूर्थ्व भू+ऊच्च-्भूध्ध॑ (ऊ+ऊच्ऊ, /जातेहैं।.._. ... पितृ + ऋण पतृण ऋ+ कर |) ऋवाऋ के पश्चात्‌ वा हे | वा पितृण | ऋवा कक . आावे तो उनके स्थानम मातृ + ऋणन-मातृण विद वात होता है। हिंदी में ___... वा मातृण ऐसे शब्द कम आाते हैं| |. | ऐसे शब्द कम आते हैं।

_ सव्ण हस्व या दीघ स्वरों के मिलने से उनके स्थान में सवर्ण दीघ स्वर होता है | ऐसी संधि फो दीर्घ कहते हैं। |

उदाहरण

सुर -+ इंद्र-ससुरे द्र सुर + इंश-सुरेश महा + इंद्र-महेद्र महा -- ईश>-महेश

दर + उपकारन्यरोपकार | उ-ज अब था | मे उपकार>-परोपकार समुद्र + उर्मि-समसुद्रो मिं गंगा + उदकक्‍्ण्गंगोदक गंगा + उर्मि-शंगोमिं

सप्त + ऋषि-सप्तर्षि महा + ऋषि-महृ्षिं

ह्ल्ीण्ज तय तय तल लॉ: ऋनकअ स< >> ्ॉ्ट अअक्‍ जनइयकयल्च््े् इन नल>-न+_-««+«-म>-»-»- «०्-नञ-ञ-+ >+>--.०+न+म-->«+-०+>-+--+.नकरप»>»»नमम5

( १६ ) २--गुण

|... संधि

अ-+- ई-ए आ+इन्ण आ-+ ई+ अ+ उच््ो ञभ + ऊच्भो

अननीीनीन--....++«>

ञअ के इचण

नियम

भवा के परे वा हो तो दोनो के बदले होता है।

अवा ओआ के परे वा रहे तो दोनों मिल-

आ+उत्ज्यो | कर जो होते हैं।

'आ+-ऊच्च्ो

अ+ऋचरच्भर्‌ | यदि भवा के परे अ+ऋच्भर्‌ | वा रहे तो दोनोके

स्थान में उन नम आयाम मे सा होता

अवा जा के पश्चात्‌ वा भावे तो दोनों मिलकर, ए, बा आवें तो मो औौर जावे तो अर्‌ होता है। इस संधि का नाम

गुणसधि है।

मत+- एकता-मतैकता मत - ऐक्य"-मतैक्य सदा -- एव-सदैव _महा + ऐश्वर्य-महैश्वय बछ+भोवनजलोघ | अर 7र7-- दा + भोपधि-परहोषधि परम + ओंपघन्परमौषध

३-वबृद्धि अ-+ ए-ऐ. अ-+ ऐज्ऐ ५६ 2३०

, + ऐ-ऐ' + ओन्‍मों

334 220::0:00७७॥४१७१७३७३७७३७५७५'कक७क ५४६६, अा:ब्क काका, अवाजओ केपीछे ए.. वाएऐ आवे तो दोनों

के ब्रदले होता है |

“7

अवा ओआ के पश्चात्‌

आ+भोल्‍ज्मों | वा मौं रहे तो

अ+ जोंज्मों

दोनो के स्थान में भो

ग+++-+आाओोलली (बताहै।> + ओन्‍नओं | आता है।

( १७ )

अवा के पीछे वा रहे तो दोनो मिलकर ऐ. जोर जो वा भी आंवे तो होता है| यह संधि वृद्धि संधि कहलाती है।

5--यणा उदाहरण संधि नियम अति + अल्प अत्यल्प इ+अनन्‍्य्‌ बाई के पीछे कोई अति-- आचार/"अत्याचार | इ+जान््या भिन्न स्वर आवेतो प्रति-- उपकार > प्रत्युपफार | इ+उन््यु वाई के बदले य॒ नि+ऊननन्‍्न्‍यून.... | इकऊन्यू होता है जो अगले *प्रति-- एक > प्रत्येक इ+एचन्-ये स्वर में मिल जाता है

जाति + ऐक्य « जात्येक्य | इ+ ये दधि +मोदन दष्योदन | इ+मो बन यो ,मति + भोदाय्य 5 मत्यौदारय | इ+ मौं चन्यों

सु + अल्प स्वल्प उकभनन्‍न्वू्‌ यदि वा के परे सु+ आभआागत -> स्वागत उ+भाच्या . | भिन्न स्वर रहे तो अनु - इति > अन्विति ऊ+इनवि | वाऊके बदले व्‌ होता अनु -;; एघण अन्वेषण उ+एब वें है जो अगले स्वर में

गुरु+ ओदाय न्गुवोंदाय॑ | उ+ओ>वौ | मिलजाता है।

मातृ + अथ मात्रा ऋ--अनर्‌ यदि ऋवा के आगे पितृ+आाज्ञा८पित्राज्ञा. | ऋ+आनूरा कोई भिन्न स्वर हो तो :. कऋवा ऋकेबदलेर आता है जो अगले स्वर में. मिल जाता है

हुस्व वा दीर्घ ई, वा के परे कोई भिन्न स्वर रहे तो इवा फे बदले य, उ, वा के बदले व्‌ ओर वा के बदले र्‌ होता है ओर ये व्यंजन: भगले ख्वरों में मिल जाते हैं

( १८ ) ५--अयादि

ने + अनत्नयन | ए+अन्‍भ्य्‌ ए, और अ; भी के पीछे ने + अफञतायक | ऐ.+अच्भाय्‌ | कोई भी स्वर आावेतो के पौ+भनत्पावन | ओ+अन्‍ू्भव्‌ | स्थान में अय, के स्थान ' पो+अकल्यावक | औ+अच्भाव्‌ | में अव्‌ के स्थान में आय और के स्थान में आव्‌ होता दे

अभ्यास १--नीचे लिखे शब्दों फो स्वर-संधि के नियमानुसार जोड़ों--- घन + अभाव प्रथन + उत्तर. रवि+ उदय सु+ जागत रीति + अनुसार मन-- एकता. गें+अछक मातृ"भाशा अनु+ अय देव + ऋषि पो+इच्र भानु + उदय २--नीचे छिखे शब्दों में स्वर-संधि अछग करो-- सूर्योदय हस्ताक्षर तृपोदाय कवीश्वर सूर्यास्त गणेश प्रीत्यथ वधूत्सव स्मेश राजर्षि इत्यादि नायक व्यंज़न-संधि दिक्‌ + गज-दिग्गज .. पद्‌+ आननम्षडानन वाक्‌ + दान-वाग्दान षट्टू + रिपु-षड्धिषु अच्‌-+- अंत-भर्ज॑त अप्‌ + ज-अब्ज

अच्‌ +- आदि--अभजादि सुप + अंत--सुबंत

४६--क, च्‌, ८, तू; प्‌ के पर अनुनासिक को छोड़ कोई स्वर वा घोप व्यंजन हो तो उनके स्थान में क्रमशः वर्ग का तीसरा अक्षर होगा

( २६ )

वाक + सयच्लाइ्मय जगत्‌ + नाय”"जगजन्नाय घट सासलल्-पण्मास अप्‌ - मयशज्भ म्मय

ड४८--क, च, ८, तू , पूं, के आगे कोई अनुनासिक व्यंजन हो तो उसके स्थान में ऋमशः: वर्ग का पॉचवोँ अक्षर होगा |

उञे-मक नाक. धालभमकाा७क, ९0:व४००७कमाए,

सत्‌ +- आनंद सदानंद. सत्‌ + घरममज्सद्धम

जगत |- इंश-जगदीश भगवत्‌ + भक्ति > भगवद्धक्ति

भगवत्‌ + गीता-भगवद्वीता तत्‌ +रूप तद्गूप

उत्‌ + घाटनलउद्घाटन भविष्यत्‌ -- वाणी>-भविष्यद्वाणी

४९--त्‌ के पश्चात्‌ फोई स्रर या किसी वर्ग का तीखरा वा चौथा अक्षर मयथवा य, र, व; जावे तो तू के बदले द्‌ होगा |

सत्‌ -- चरित्र-सच्चरित्र तत्‌ + टीका तद्दीका महत्‌ + छाया महच्छाया बृहत्‌ +-डमरूप-यहडुमरू विपद्‌ + जाल | विपजञाल उत्‌ + छास"“उल्लास " ५०--त्‌ वा दू के परे चवर्ग हो तो उसके स्थान में चबर्ग, टवर्ग हो तो टवर्ग और हो तो छू होता है। उत्‌ + शिंए८उच्छिट उत्‌+ श्वास 5 उछवास_ तत्‌ + हितज-तद्धित उत्‌ +हार उद्धार प्श्-त् वा दु के पीछेश आवे तो त्‌ वा दू के बदले चू और के बदले होता है; और हो तो त्‌वाद्‌ के बदले दू और के स्थान में होता है आ+ छादन-आचछादन . 'परि + छेद परिच्छेद ' / १२....७ के पहले स्तर हो तो के बदले उछ, होता है

न्‍दरमकृममकककक २०००करमनाामन शाउल्‍रमाभाम,

२४ 3

अल्म्‌ + कार--अर्रंकार या सलझार

किम्‌ + चित्‌ - किंचित वा क्िश्वित्‌

सम्‌ + तोष-संतोष वा सन्तोप

स्वयम्‌ + भू स्वयंभू वा स्वयम्भृ

५३---म्‌ के परे व्यंजन हो तो के बदले अनुस्वार अथवा उसी बग का अनुनासिक व्यंजन होगा |

किम्‌-+-हा # किया स्यम्‌ + बर # स्वयंवर सम्‌ + योग > संयोग सम्‌-+- सार संसार सम्न + रक्षा > संरक्षा सम्‌+- हार संद्ार

५४--म्‌ से परे अंतस्थ वा ऊष्म वर्ण हो तो म्‌ के बदले अनुस्वार आता है।

भर-+-अन > भरण राम + भयन > रामायण भूष -- भन-भुषण नार + अयन>नारायण परि + मान परिमाण नर -- न--्ऋण

पुप--ऋ, रवा के पश्चात्‌ भावे ओर बीच में चाहे स्वर कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार अथवा य, व, रहे तो के स्थान में होता है।

है अर

अभि+सेक <- अभिषेक नि+सेघ

निषेध वि + समझविषम

सु + सुत्तन्छ॒षुत्त ५६--यदि किसी शब्द के आदि मे हो ओर उसके पहले भर वा को छोड़ कोई स्वर आवे तो वहुधा के स्थान में होता है इस नियम के कई अपवाद हैं; जैसे, अनुस्वार, विसर्ग, प्रस्थान भाकृष्‌ + त>भाकृष पप्‌ + य--षष्ठ तुष्‌ + तन्ज्तुष्ट पृष्‌+यत्इृषठ

( २१ )

५७--ष के पश्चात्‌ वा आने पर उनके स्थान में क्रमश;

टवा होता हे। अभ्यास

१---नीचे लिखे शब्दों की संधि अंग करो--

प्रतिच्छाया, सदुगुण, सच्चिदानंद, सदसद्विवेक, पुष्ट, निपिद्ध, मरण, संपूर्ण, संयम, वागीश, तब्लीन, अनुच्छेद

/ रे+निम्नलिखित शब्दों की संधि मिलाओ---

'उत्‌ +नति, शरत + चंद, सम + चय, अनु + छेद, सम +वाद,

घट + ऋतु, दिकू + मंडल, तुध-+-त, श्रीमत्‌+मागवत, सत्‌+साख्र विसग-संधि

नि: + चलझ्निशचल धनुल्‍+ टंकार>घनुष्टकार

नि; + छल-|निएछल मनः + तापन-मनस्ताप

५८--बिख्यगं के आगे वा हो तो विस के बदले श्‌ हो जाता है, वा ठहो तो ओर वा हो तो स॒ होता है|

दुः + शासनस-दःशासन वा दुश्शासन

नि: + संदेह>निःसंदेद वा निस्संदेह

५९--विसर्ग के पीछे श, वास हो ता विसर्ग जैधा का तैसा रहता है अथवा उसके बदले आगे का अक्षर हो जाता है

उप + कालछन-ठप+काल पयः +- पानल्‍ूपथ;पान

रज) + कण <रज;कण अब; पतन>-भव4परतन

६०--विधर्ग के पूर्व हो और पश्चात्‌ क, ओर प, हो तो विसर्ग में विकार नहीं होता

नि; + फपटर-निष्कपट निः+ फलरनिष्फल

दुः + कर्मरूदुष्कर्स दु; + प्रकृति-दुष्प्रकृति

है, 0

६१--यदि विसर्ग के पूर्व बा हो ओर उसके परें क,

अथवा प, हो तो विसग के स्थान में प्‌ द्दोता है।

-फकमारिकफम्बह-# जप उाखपया पका १कनजकनमबबनक.

यशःकदा यशोदा अध:+गतिल्-थवों गति तप + वनन्तपोवन तमः्गुग तमोगुण मन; + रथश्-मनोरथ तेज:;+मयस्ते जो मय

६२--विसर्ग के पहले हो और पीछे कोई धोपषब्यंजन, तो भः के बदले जो होता हैं।..

नि;+जन निर्जन नि; + आाशास्ननिराशज्षा दु; + गुण-दुगु दु। + उपयोगरदुदपयोग नि;+बरल-+निर्बल../ आशी; +वाद"भाशीवा

&६३--बिसगग के पहले अ; को छोड़ कर फोई दूसरा स्वर हो और पीछे कोई स्वर या घोप व्यंजन तो विसर्ग के स्थान में र्‌ होता है यदि के पश्चात्‌ जावे तो र॒ के पहले का स्वर दीर्घ हो नाता दे; जैसे नि; +- रबवलनीरव, नि; + रस--नी रस, नि; +- रोग><नीरोंग |

प्रातर + फाल्य्य्प्रात;काल अंतर + पुर-अंतःपुर

अंतर्‌ + करण>-जंतडकरण पुनर्‌ -- संस्कार->पुन संस्कार

&६४--अंत्य र्‌ के पश्चात्‌ अघोष व्यंजन भावे ता र्‌ के बदले विस होता है | |

असन्यातस

१--नीचे छिखे शब्दों की संधि अछग करो-+-

धनुविद्या, निश्चय, निस्तार, निष्काम, अधोगति, पयोधर, मनोबल, नीरोग, दुर्दिन, दुष्फम, तेजःपु/ज, अंतःस्वेद |

२--निम्नलिखित शब्दों की संधि मिलाओ--

नि;+- उत्तर, दुः+गम, तप + वन, पुनर्‌ +- संधि, निः+रस, नि; +- पाप, प्रायः + चित्त, अंतर + शक्ति,तेज; + पुज्ज, घनुः +- कोटि

तोसरा अध्याय शब्द-विचार

पहला पाठ

शब्द-भेद

काली गाय धास खाती दे | | तुम उस गाय को झट देखो गायके पास एककुचा अभी आया। | कुचे ने उसे देखा द्ोगा | क्या तुमने कुच्े की ओर देखा है? इंश्वर गाय को दुठ्ठ कुचे से बचावे |

६५०--ऊपर लिखे वाक्य दो से अधिक शब्द से बने हें। इनमें ८गाय” “घास”, “कुत्ता”, और “ईश्वर”, ऐसे शब्द हैं जो वस्तुओं के नाम सूचित करते हैं “गाय” एक प्राणी का नाम है “घास” एक पदार्थ का नाम दे,"“कुत्ता”एक प्राणी का नाम है ओर/ईश्वर”?'संसार के स्वामी का नाम है। वस्तु का नाम सूचित फरनेवाले शब्द को व्याकरण में संज्ञा कद्दते हैं।

स्मरण रहे कि जो पुस्तक तुम पढ़ते हो वह पुस्तक संज्ञा नहीं है, "किंतु उसका माम अर्थात्‌, पुस्तक” दब्द संज्ञा है।

६६---संज्ञा के सिवा वाक्य में एक ऐसे शब्द की आवश्यकता होती है जिसके द्वारा हम किसी वस्तु के विपय में कुछ कहते हैं। ऊपर के वाक्यों में “खाती है?” शब्द के द्वारा हम गाय के विषय में कुछ कहते हैं, “भाया? ओर “देखा होगा” शब्दों के द्वारा कुचे के विषय में कुछ कहते हैं और “बचावे” शब्द से ईइवर के विषय में कुछ कहते भर्थात्‌ विधान करते हैं।- किसी वस्तु के विषय में विधान

( २४ )

करनेवाले शब्द को क्रिया कहते हैं। इसलिके “खाती”? है, “जाया” और “बचावे” शब्द क्रियाएँ हैं। ऊपरवाले वाक्यों में “देखा है?! ओर “देखो” शुब्द भी क्रियाएँ हैं क्योंकि ये “तुम? अर्थात्‌ सुननेवाले मनुष्य के विषय में विधान करते हैं

वाक्य में संज्ञा और क्रिया मुख्य शब्द-भेंद हैं, क्योकि इनके बिना पूरा वाक्य नहीं बन सकता | दूसरे शब्द-मेद इन्हीं दोनों के सहायक रहते हैं। क्रिया कमी-कमी एक शब्द से बनती है, जेते, “आया” “देखो” औौर “बचावे” और कभी-कभी उसमें दा या अधिक शब्द हते हैं, “खाती हे??, और “देखा होगा?” |

६७--पहले वाक्य में “गाय” संज्ञा के साथ “काली” शब्द आया है, जो उसके अर्थ में कुछ विशेषता बताता है। इसी प्रकार “कुत्ता” संज्ञा के साथ “एक” शब्द आया है और वह उस सज्ञा के अथ में कुछ विशेषता प्रकट करता दहै। संज्ञा के अथ में विशेषता बतछानेवाक़े शब्द विशेषण कहलाते हैं। इसलिए “काठी? और “एक? शब्द विशेषण कहलाते हैं। इसलिए “कालछो” और “एक” शब्द विशेषण हूँ चोये वाक्य में “गाय * संज्ञा के साथ “उस”? शब्द भोर छठे वाक्य में “कुत्ता? सज्ञा के साथ “दुष्ट” शब्द आया है। ये शब्द भी विशेषण हैं, क्योकि ये क्रमशः “गाय” और “कुचे” की विशेषता बताते हैं |

विशेषण जिस संज्ञाया स्वनाम की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते हैं, जेसे, “दुए कुचा” वाक्यांश में “कुचा” विशेष्य है

क्य में “आया है?! क्रिया के साथ “अभी” शब्द « आया है जो उसके अर्थ में कुछ विशेषता बताता है | इसी प्रकार चौथे वाक्य में * देखो? के साथ “झट”शब्द आया है जोर वह उस क्रिया के अथ में कुछ विशेपता सूचित करता है। क्रिया के अर्थ मे विशेषता ब्रतलानेवाले शब्द को क्रिया-विशेषण कहते &। पर्वोक्त वाक्य में “झर्मा? और “झट? क्रिया-विशेषण हैं, क्योकि क्रमश; “ज्ाया है?? “देखा” क्रियाओं की विशेषता चताते हैं। जितत प्रकार का संबंध

( २५ )

विशेषण का उंज्ञा से है, उस प्रकार का संबंध क्रिया-विशेषण का क्रिया! से है। ६९--दूसरे वाक्यों में “पास? झब्द भी आया है जो “आया हे” क्रिया की विशेषता बताता है; परंतु वह क्रिया के साथ “गाय” शब्द का संबंध भी बताता है; इसलिये उसे संबंध-सूचऋ कहते हैं। इसी प्रकार तीसरे वाक्य में “और”? शब्द संबंध-सूचक हे, क्योंकि वह ७कुत्ता” संज्ञा संबंध “देखा है” क्रिया से जोड़ता दै। क्रिया के साथ संज्ञा (वा सबनाम ) का संबंध जोड़नेवाला शब्द संबंध-सूचक. फहलाता है। ७०--तीसरे ओर चौथे वाक्‍्यों मे “तुम” मोर पाँचवे वाक्य में: ४उस” शंब्द हैं, जो क्रमशः सुननेवाले मनुष्य के नाम और “गाय” संज्ञा के बदले आए हैं। ये शब्द संज्ञाओं के बदले जाये हैं; इसलिये इन्हें स्वंनास कहते हैं राम आया और कृष्ण गया ) राम आया, पर मोहन नहीं आया | यदि मोहन जाता तो श्याम जाता | गोपाल जायगा केशव जायगा | ७१--ऊपर लिखे उदाहरणों में दो-दो वाक्य एक साथ जाए हैं। ओर उनके साथ उन्हें मिलानेवाले शब्द भी हैं। “ओर” ध्पर” ध्यदि-तो” और “बा” ऊपरवाले वाक्यो को मिलछाते हैं। वाक्यों को मिलानेवाले शब्द समुचय-बोधक कहलाते हैं। समुच्चय-बोधक से मिले -हुए वाक्य उपवाकय कहलाते हैं। आह कैसा सुंदर बालक है | अरे ] कौन मर गया ? हाय | अब्च उस लड़की फो कोन पालेगा !

२--ऊपर लिखे वाक्यो में रेखांकित शब्द वाक्य के किसी शब से संबंध नहीं रखते और केवल विस्मय, आनंद, शोक आदि भतोविकार ' सूचित करते हैं। इन वाक्यो फो विस्मयादि-बोधक कहते हैं | ढ्ढे ल्‍

( २६ »)

ऊपर शब्दों के जो आठ भेद दिए गये हैं वें शब्द भ्रंद केइड हैं। यद्रपि भाषा में हजारों शब्द होते हैं तो भी उसका समावेश इस आठ शब्द-मेदो में होता है। शब्द-मेदों का ठीक ज्ञान होने पर हम उनके विपय की और बाते समझ सकते हैं

७) 45

शुब्द-भेदों का काय नीचे लिखे चित्र द्वारा स्पष्ट हो जायगा--+

कमल लिकी नल फल आया -| विश्मयादिलोषक_ विस्मयादि-बोधक |

5.८ जकाक>बव+»-359ज> बन» पाक» आा>५०५घ.४००का 42 का कमाएककार

समुच्यय-बीधक रन वाद्य

है! | 5

मन टला नन /विशेषण (० संज्ञा क्रिया >| क्रिया-विशेषण

का >यापरकनपा-वरपडर बा

उप: आकर पवफकाउ 4क००:ज-ह-अभा:क..-फ़र नारा वा360/2८ कक 2:0७: पकपा42५७७९य//४०४३+४०॥ाराना भा ३20"

....०++ | ।[ न्‍न्‍>-+ --- संवंध-सू चक के

लजज--+०ौज-+++++

8!

[७ 4 सबनाम की , अभ्यास्त

३-->मीचे लिखे वाक्यो में कारण समझा कर अरूग अछग शब्द भेद बताओ--

मोहन नाम का एक लड़का बड़ा नटखट था | बह्द अपने माता* पिता का कहना नहीं मानता था उसे *ऊधघम के सिवा ओर काम था कभी वह पुस्तके फाडता था और कमी कपड़े चीरता था। उसके पास दूसरे छड़के भी नहीं आते थे एक दिन शहर मे रामलीला, हुई | मोहन का पिता रामछीछा देखने गया पर वह छड़के को अपने साथ न॑

ले गया तब मोहन को बड़ा दःख हआ। उसने सन में कहा, हाथ |! मेने अपने ठुगु णो से पिता को अप्रसन्न कर दिया |

६]

कलकता बड़ा शहर है हिमालय ऊँचा पहाड़ है

दूसरा पाठ संज्ञा के भेद (8) ) सिद्धाथ' राजकुमार थे | गंगा पवित्र नदी है

. ७३--ऊपर छिखे वाक्‍्यों मे रेखाकित शब्द संज्ञाएँ हैं, क्योकि प्राणी वा पदाथ के नाम हैं। इनमे “कलकत्ता”, “हिमारूय?, “सिद्धार्थ? और “गंगा” ऐसी संज्ञाएँ हैं जो किसी एक ही ( विशेष ) प्राणी वा पदाथ का नाम सूचित करती हैं | हिमालय 'एक ही (विशेष) पहाड़ का नाम है, गंगा एक ही (विशेष ) नदी का नाम है और “सिद्धार्थ” एक ही ( विशेष पुरुष का नाम है )। जिस संज्ञा से किसी एक ही प्राणी'वा पदार्थ फा नाम सूचित होता है उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।

(२) ७४--ऊपर लिखे रेखाकित शब्द शहर, नदी, पहाड़ और राज- कुमार भी संझ्ञाएँ हैं; परन्तु इन संज्ञाओं से किसी विशेष प्राणी पदार्थ का बोध नहीं होता है। “शहर! संज्ञा बंबई, कलछफता, हूंदन, पेरिस आदि सब स्थानों का नाम सूचित करती है। इसी प्रकार “नदी?

: संज्ञा गंगा, जमुना, ब्रक्मपुत्र आदि सभी नदियों के लिये सकती है

जो संज्ञा एक जाति के सब प्राणियों या पदार्थों का नाम सूचित'करती हे वह. जातिवाचक संज्ञा कहल्यती है। |

व्यक्तिवताचक और जातिवाचक संज्ञाओं में मुख्य अंतर, यह है कि व्यक्तिवाचक संज्ञा अथहीन भोर भनिश्चित होती है; परन्तु जातिवाचक संज्ञा साथंक और निश्चित रहती है। यदि किसी स्थान का नाम #कलकत्ता” है तो इस नाम से उस स्थान का कोई गुण प्रकट नहीं

गे

( २८ )

होता परंतु यदि उस स्थान का नाम “शहर”? है तो इस नाम से उस

स्‍थान के गुणी मोर लक्षणों का बोध तुरंत,हों जाता है | “फलकता”? नाम

किसी समय बदछा जा सकता है; पर “शहर” शब्द के बदले कोई दूसरा

नाम नहीं रखा जा सकता

भछाई एक गुण है क्षत्रियों में साहस पाया जाता है

लड़कपन में आानद रहता हैं। रोगी की दशा सुधर जायगी

७५ --ऊपर ढछिखे उदाहरणों में “मछाई??, “लड़कपन”??, “आनंद “साहस? और “दशा? प्राणी या पदार्थ के नाम नहीं हैं; कितु गुण अथवा दशा के नाम हैं। प्राणी और पदाथ के समान गुण वा दक्षा भी एक वस्तु है जो पदार्थों में पाई जाती हैं, पर उनका ज्ञान इंद्वियों से नहीं किंतु केवल मन से होता है। गुण वा दया व्यापार का नाम सूचित करनेवाली सज्ञा को भाववाचक संज्ञा कहते हैं

अनेक भाववाचक संज्ञाएँ जातिवाचक संज्ञाओ, क्रियाओों और विशेषणो से चनती हैं; जेसे |

( ) जातिवाचक संज्ञा से--लड़कपन, मित्रता, चोरी, दासत्व | (२ ) क्रिया से--दोंड, बहाव, चढ़ाई, सजावट | (३ ) विशेषण से--मछाई, भोछापन, सरहृता; चिकनाहट |

(४) ड़ में घुसना कठिन है | सभा में विवाद होगा। वहाँ विद्यार्थियों का एक संध है। पिता कुटुँच का एक मुखिया होता है। ७६--ऊपर लिखे वाक्यो में रेखांकित शब्द अलूग-भछग प्राणियों या पदार्थों के नाम नहीं हैं, कितु उनके समहों के नाम हैं। प्राणियों

या पदार्थों के समूह का नाम सूचित करनेवाली संज्ञा को समूहवाचक संज्ञा कहते हैं

समृूहवाचक सज्ञा एक प्रकार की जातिवाचक संज्ञा है क्योंकि समूहों का भा कई जांतिया हाती हूं, जंसे, भीड़, सभा, संघ, कुटुंच। यह नाम

( २९५ ) अलग-भछग प्राणियों या (पदार्थों को नहीं दिया जा सकता, इसलिये समूहवाचक संज्ञा को एक अछग भेद मानते हैं . ( )

सोना कीमती धातु है पानी सवंत्र नहीं मिलता ||

हवा जीवन के लिये जरूरी है। बंगाल में धान होता है।

७७--ऊपर के वाक्यों में “सो ना??, “पानी” “हवा?! और “घान??, ऐसी वस्तुओं के नाम हैं जो केवल राशि वा ढेर के रूप में पाई जाती हैं| राशि वा ढेर के रूप में पाई जानेवाली वस्तु का नाम सूचित करने वाली संज्ञा द्रव्यवाचक-संज्ञा कहलाती है।

द्रव्यवाचकफ संज्ञा भी एक प्रकार की जातिवाचक संज्ञा है, क्योकि द्वव्यों की भी जातियों होती हैं। इस भेद को अलग मानने का कारण यह है कि द्वव्य के अछग-अछग खंड नहीं होते और उनके अलग- अलग नाम होते हैं

जब किसा अक्षर या शब्द का उपयोग अक्षर या शब्द के अथ में 'होता है तब वह व्यक्तिवाचक संज्ञा के समान आाता है; जैसे “समच्छा” विशेषण है। छेश्व में बार बार “वहाँ” जाया है। “क्‌? मे “आ? का मात्रा मिलने से “का? होता है। उनकी “वाह-बाह” हुईं | » जब व्यक्तिवाचक संज्ञा का उपयोग विशेष नाम के अनेक व्यक्तियों के लिये अथवा किसी व्यक्ति का असाधारण घमं सूचित करने के छिये 'किया जाता है तत्न व्यक्तिवाचक संजशा जातिवाचक हो जाती है; जैसे . भरतखंड में कई चंद्रगुत्त हो गए हैं। राममूर्ति कलियुग के भीम हैं यशोदा हमारे घर की लक्ष्मी है।

कुछ जातिवाचक संज्ञाओं का उपयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के समान होता है, जैसे पुरी<जगन्नाय, देवी-ढुर्गा, संवत्‌-विक्रमी संवत्‌ कभी कभी माववाचक संज्ञा का उपयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है; जैसे, हिंदुस्तान में कई पहिनावे प्रचलित हैं। शहर में कई चोरियाँ हुई हैं। संसार में घन सरीखा सुख नही है। हि

( ३०

अभ्यास 2.निम्नलिखित वाक्यों मे संज्ञान के शेद बताओ+-

काशी एक तीर्थ है। राम लक्ष्मण और सीता के साथ बन को

गए उन्होंने अनेक कष्ट सहे | राजा का संना हजारो श्ूर योद्धा थे

हत्यारा सजीव मृत्यु था। बात चींत से विनोद दाल में नमक के

समान होना खाहिए,। सिह में इतना बल होता दे कि वह पंजे की मार

से घोड़े को गिरा दता स्तान में कई रामनगर हैं। वह स्त्री

ककेयी है। विद्यार्थी अनेक परीक्षा में सफल हुआ। पद्चिनी सुंदरता की अवतार थी। यह बटना सन्‌ १६३० का है।

(आओ...

तीसरा पाठ क्रिया के मेद लड़का आया दे | नोफर जायगा। चिट्ठी आई थी | कुचा भाकता दे ८-पर्वोक्त वाक्यों में “आया है?, “जायगा??, “आई थी”; “मकवा ४” शब्द क्रियाएँ हैं, क्योकि इनके द्वारा कुछ वस्तुओं के विषय में विवान झिया गया है। इन क्रियाओं के करनेवाली की बांध कराने बाल शब्द ऋमश: “छड़का?, “नोकर??, “चिट्ठी ओऔर “कुचा” दे £ किट व्याकरण में “कर्ता” कहते हैं। क्रिया का कर्ता बहुधा संता नी है; पर फरमी-फर्मी सर्वनाम वा विशेषण भी होता दे जेसे--

संता+-कछड़का आया। सीकर गया | छड़का जावगा नअपनाम-य हु साया | हम गए | तम जानाशगा |

( ३१ )

लड़का दोड़ता है। | लड़का गेंद फेंकता है

कृचा भोंकता है। |. कुचा हड्डी चब्रातों है।

नोकर आएगा | ।. नोकर चिट्ठी छाएगा।

७६---ऊपरवाले वाक्यो में बाई! ओर “दोड़ता है”, “भोंकता है?” ओर “आएगा” ऐसी क्रियाएँ हैं जिनका फाय उनके कर्चाओं में ही समाप्त हो जाता है। उनका फल किसी दसरी वस्तु पर नहीं पड़ता ऐसी क्रियांओं फो जिसके काय का फछ केवल कर्चा पर पड़ता है, अकमक-क्रियाएँ कहते हैं पर दाहिनी ओर जो क्रियाएँ हैं--“फेकता है?” “चत्राता है?, “लछाएगा??--उनका काय केवछ कर्चाभों में ही समाप्त नहीं होता; उनका फल दूसरी वस्तु पर भी पड़ता है। “फेंकता है? क्रिया का कार्य “लड़का”कर्ता से निकलकर “गेद” संज्ञा पर पड़ता है | इसी प्रकार “चवाता है” क्रिया के कार्य का फल “कुचा” कर्चा से निकल “हड्डी? संज्ञा पर पड़ता है। इस प्रकार की क्रियाएँ जिनके व्या- पार का फल कर्चा से निकल कर किसी दूसरी वस्तु पर पड़ता है सकर्मक कियाएँ कहलाती हैं | जिस वस्तु पर सकमक क्रिया का फल पड़ता है उसे सूचित करनेवाले शब्द को के कहते हैं। ऊपर के वाक्यों में “फेकता है?” सकमक क्रिया का कम “गेंद? और “चबाता है?? सकर्मक क्रिया का कर्म “हड्डी” है | झ्कमंक क्रिया के साथ कर्म नहीं जाता |

८०--सकमक क्रिया का कम; कर्चा के समान संशा, ' सवनाम वां विशेषण होता है; जैसे, छड़की फूल तोड़ती है। में तुम्हें जानता हैं | भगवान दीन को पालछते हैं।

कर्ता के साथ कमी-कभमी “ने?” चिह्ु ओर कम के साथ कभी-कभी “को? चिह्न जाता है; जैसे, लड़के ने गेंद फेंकी | कुचे ने इड्डी को चब्राया मेंने लड़के को देखा या।

मोहन ने भाई क्रो फल दिया | पिता पुत्र को चित्र दिखाता है। लड़की माँ को कविता सुनाएगी नौकर गाय को पानी पिछाता था |

( 3२ )

८१--ऊपर के वाक्यो में “दिया”, “दिखाता है”, “सुनाएगी” और “पिछाता था” सकमंक क्रियाएँ. हैं. जिनके कर्म क्रमशः फल, “चित्र??, “कविता” और पानी हैं। इनके सिवा प्रत्येक क्रिया का एक-एक कर्म और है जिसपर उस क्रिया का फल पड़ता है। “दिया” क्रिया का दूसरा कर्म “माई को” “दिखाता है?” क्रिया का दूसरा कर्म “पुत्रको”?, “सुनाएगा” क्रिया का दूसरा कम “माँ को? जोर /पिंलाता था? क्रिया का दूसरा कम “गाय को” है | ऐसी क्रियाओं को जिनके साथ दो कर्म जाते हैं द्विकमेक क्रियाएँ कहते हैं। दो कर्मों में से एक क्रिया का अर्थ पूरा करने के लिये अत्यंत आवश्यक होता है ओर किसी पदार्थ का बोध कराता है। इस कम को मुख्य-कर्म कहते हैं | दूसरा कर्म किसी प्राणी का बोध कराता है और गोण-कमे कहलाता है। गौण फर्म के साथ सदेव “को” चिह्न रहता है।

अकमंक सकमक मेरा हाथ खुजछाता है , «में अपना हाथ खुजछाता हैँ लड़की पानी भरती है शं ४कुओँ चरसात में भरता है उसका मन ललचाता है। वह मुझको छलचाता है

८्२--कुछ क्रियाएँ अपने अथ के अनुसार कभी अकमंक और कभी सकमक होती हैं। ऐसी क्रिया को उदय-विवाद क्रियाएं कहते हैं।

मोहन विद्यार्थी है सोहन छेखक बनेगा

लड़का आल्सी निकला युधिष्ठिर धर्मराज कहलाते थे |

८३--ऊपर के वाक्यों मे “हे”, “बनेगा”, “<निकलछा?? और “कह- छाते थे!! ऐसी अकमक क्रियाएँ हैं जिनका अर्थ कभी कभी अकेले कर्चा ( वा उद्देश्य ) से पूरा नही होता | इसका अथ पूरा करने के छिये इनके

आएक्रिया के द्वारा जिसके विषय में विधान किया जाता है उसे सूचित करने- वाला शब्द उद्देश्य कहलाता है।

( रेरे )

साथ कर्ता से संबंध रखनेवाली कोई संज्ञा वा विशेषण छगाना पड़ता है जिसे उद्देश्यपूति कहते हैं॥ इस प्रकार की क्रियाओ फो अपूर अकसंक क्रियाएँ कहते हैं। ऊपर के पहले वाक्य में “हे? क्रिया की पूर्ति “विद्यार्यी?? संज्ञा है; और दूसरे वाक्य में “बनेगा” क्रिया की पूर्ति “लेखक? संज्ञा है, और तीसरे वाक्य में “निकला” क्रिया की पूर्ति “आलूसी” विशेषण है। चोथे वाक्य में “कहलाते थे” अपूर्ण अकर्मक क्रिया की पूर्ति “वमराज?? संज्ञा है।

राम श्याम को भाई मानता हैे। हम छड़की को , चतुर समझते हैं। राजा ने ब्राह्मण को मंत्री बनाया | नोकर काम पूरा करेगा

४--मानना, समझना, बनाना, करना आदि ऐसी सकमक क्रियाएँ हैं जिनका भथ अकेले कम से परा नद्दी होता | इन क्रियाओं का अथ परा करने के लिये इनके साथ कम से संबंध रखनेवाली संज्ञा या विशेषण छगाना पड़ता है जिसे कम पूति कहते हैं इस प्रकार की क्रियाएँ अपूर्ण सकमंक क्रियाएँ कहछाती हैं। ऊपर के पहले वाक्य में मानता है “अपर्ण सकर्मक क्रिया की “पर्ति?” “भाई?” संज्ञा है ओर कर्म में “समझते हैं” की पूर्ति “चतुर” विशेषण है। तीसरे वाक्य “मंत्री” संज्ञा कर्मपूर्ति है और चोथे वाक्य में “पुरा” विशेषण कमे- पूर्ति है। | ८५--किसी किसी अकर्मक और किसी कसी सकमक क्रिया के साथ उसी क्रिया से बनी हुई भाववाचक संज्ञा कर्म होकर आती है, जैते सिपाही कई-लड़ाइयाॉँ लड़ा | छड़का कई खेल खेलता. है पक्षी अनोखी घोली बोलते हैं। ऐसी क्रियाओं को स्जातीय क्रियाएँ ओर उनके कर्मों फो सज्जातीय कम कहते हैं | अभ्यास १--निम्नलिखित वाक्यों में क्रियाओं भेद बताओ-- . ,' नौकर कोठा झाड़ता है| छड़की सड़क पर खेलती है। गुरु ने शिष्य -

डे

(३४ )

को कविता सिखाई | जंगल में से एक बाघ निकला | समय त्रदछता दे | बह अपना नाम बदलता दे। छड़का चोर निकला | मरा एक भांश है ब्याम मेरा साथी दे। में गोपाछ की सच्चा समझता हें। सोचो सु निंदिया प्यारे ठलन | सडक पर पानी बहता दे। वहाँ बिनरली गिरी गाडी. कब्र आएगी ? पानी के बहाव से पत्थर त्रिसता हँ। नॉकर ने मालिक फो मांग बताया माँ ने बच्चे को खेछता पाया |

हि

संज्ञा ओर सकमक क्रिया की साधारण व्याख्या वाक्य--गुरु मोहन को कविता सिखाता हे गुरु--संज्ञा, व्यक्तिवाचक “सिखाता हे” क्रिया का कर्ता मोहन फो--संज्ञा, व्यक्तिवाचक ““सिखाता है” द्विकर्मक क्रिया गोण कम |

कविता--संज्ञा भाववाचक, “सिखाता दे” द्विक्मक क्रिया का मुख्य कर्म

सिखाता है--द्विकमक क्रिया, कर्ता “गुरु” मुख्य कम “कविता”? गोण कम “मोहन को? | अभ्यास

१--पिछले अभ्यास के वाक्यों में संज्ञा और क्रिया की साधारण आख्या करो |

रो चौथा पाठ सबनाम के भेद

राम ने कहा कि में कल जाऊँगा | मोहन ने गोपाछ से पूछा कि तुम कब जाओगे। पिता ने छड़के से कह्दा कि तू यहाँ बैठ लड़के ने पिता से पूछा कि आप कब आए ? राजा ने मंत्री से फहा कि हम बाहर जायैंगे |

( ३२५ )

८६--ऊपर लिखे वाक्यों में रेखांकित शब्द सवनाम हैं, क्योकि

/ ये संज्ञाओं के बदले में आये हैं | सवनाम के उपयोग से संज्ञा फो बार-

|

बार नहीं कहना पड़ता | यूदि पहले वाक्य में “मै? का उपयोग किया जाय तो वाक्य फो इस प्रकार छिखना पड़ता--राम ने कहा कि रास जायगा दूसरे वाक्य में “तु्र” छाया जाता तो वाक्य इस प्रकार होता--मोहन ने गोपाल से पुछा कि गोपाल्न कब जायगा ? ये वाक्य तो स्पष्ट ही, हैं ओर कर्ण-मघुर ही

८७--ऊपर के वाक्य में “में” ओर (हम? बोलनेवालो के नामों के बदले ओर “तू”, श्तुम”? और “जाप” सुननेवालो के नामो के बदले आए. हैं। जो सवनाम बोलनेवाले अथवा सुननेवाले के नाम के बदले भाता है उसे पुरुषवाचक सवंनाम कहते हैं। बोलनेवाले के नाम के बदले आनेवाले “मै? और "हम? सर्वनामों को उचम पुरुष और सुननेवाले के नाम के बदले जानेवाले “'तू?” “तुम”? और “आप”? सब-

नामों को सध्यस पुरुष कहते हैं। इन्हें छोड़कर शेष सबवनाम अन्य

पुरुष कहलाते हैं। सत्र संज्ञाएँ भी अन्य पुरुष में रहती हैं।

जत्र बोलनेवाला ( वक्ता ) अपने विषय में नम्नता से बोलता है तब वह “मै” का उपयोग करता है, जेसे में इसके विषय में कुछ नहीं जानता। में आपसे फिर कभी निवेदन करूँगा।

कभी-कभी वक्ता अपने - विषय में बोलनेके लिये “हम? का उपयोग कर देता है, जेसे, हम यह बात नहीं जानते। हम उनके यहाँ कभी नहीं गए |

संपादक, लेखक और बड़े अधिकारी अपने लिये बहुघा “हम” का उपयोग करते हैं; जेसे, हम इस बात को नहीं मानते। हम यह बात पहले छिख चुके हैं

अपने कुटुंब, देश वा मनुष्य जाति के विषय में बोलने के लिये भी वक्ता “हम का उपयोग करता है, जैसे, हम जबलपुर में रहते हैं। हम दूसरो का मुँह ताकते- हैं हम हवा के' बिना नही जी सकते |

( रे५ )

सुननेवाले के लिये “तू?” का उपयोग करना निरादर समझा जाता है; इसलिये अपने से छोटे मनुष्य के लिए भी “तुम? का उपयोग किया जाता है| “तू”? बहुधा ईश्वर, छोटे बच्चें ओर घनिष्ठ मित्र के लिये आता है; जैसे, हे ईश्वर | तू मेरी रक्षा कर बच्चे इधर आ। मित्र, वूँ कल क्यो नहीं भाया

“हम? के साथ “तू” के बदले बहुधा “तुम? छाया जाता है, जैसे हम ओर तुम वहाँ चलेंगे | “आप” का उपयोग बड़ों के आदर के लिये ध्तुम” के बदले होता है, पर शिक्षित छोग बहुधा बराबरीवालछों से भी ८तुम” के बदले “भाप? का उपयोग करते हैं राजा महाराजार्भों के छिये “श्रीमान?? (हुजूर) का उपयोग किया जाता है; जेसे श्रीमान्‌ का , आगमन फब हुआ ? श्रीमान्‌ का स्वास्थ्य कैसा है ?

यह मेरी पुस्तक है वह उसकी कलूम है

ये मेरे मित्र हैं। वे मेरे भाई हैं

राजा ( मुनि का परिचय कराते हुए--जाप मेरे गुरु हैं।

माल्वीयजी देश के नेता हैं; आप ( वे ) बड़े दयाछ हैं |

टप्---ऊपर के वाक्यो में यह” «“ये??, “वह”, और #ज्ाप? ऐसे सर्वनाम हैं जो पास वा दूर की किसी वस्तु की ओर संकेत करते हैं। इन सवनामी को निश्चयवाचक सवबनाम कहते हैं। “वह” आर ध्यह? एक वस्तु के छिये और “ये” अनेक वस्तुओं के छिये अथवा भादर के लिये जाते हैं। “यह?? बहुधा अगले पिछले वाक्य के बदले

चिप

भी भाता है, जैसे, मे यह चाहता हूँ कि आप वहाँ जाय। वे सब आएंगे, यह निश्चित नहीं |

पहछे कही हुई दो संज्ञाओं में से पहली के लिये “बह?” और पिछली के' लिये “यह? आता हे, दुजंन ओर सजन में यह अंतर है. कि बह मिलने पर छुःस देता है और यह बिछुड़ने पर |

शरीर जोर आत्मा मनुष्य दृह के भाग हैं, वह अनित्य

ओर यह नित्य | ८६-- आप? का उपयोग एक ही मनुस्य के आदर के लिये होता

( रे७ )

है; इसलिये इसे आदर-सूचक स्वनाम कहते हैं मध्यम पुरुष में यह “तुम”? के बदले जाता है और अन्य पुरुष में “ये” या “वे” के बदले | “आप” का उपयोग “ये” के बदले बहुधा बोलने ही में होता है ओर इसके लिए. उपस्थित मनुष्य की ओर हाथ बढ़ाया जाता है।

९००- वह?” के बदले कभी-कभी, सो जाता है; जेसे जो चाहो सो ( वह ) ले लो जो आाया है सो ( वह ) जायगा।

द्वार पर कोई खड़ा है | मेरे घर कोई आए. हैं

पानी में कुछ है। मेरे मन में कुछ नहीं है

९१--“कोई?” और “कुछ”? ऐसे सबनाम हैं जो किसी निश्चित प्राणी या पदार्थ के बदले में नहीं आते अनिश्चय-वाचक स्नाम कहते हैं “कोई मनुष्य या बड़े प्राणी के छिए. और “कुछ”? पदाथ या धर्म के लिए आता है | “कोई” से आदर ओर बहुत्व का भी बोध होता है पिछले अर्थ में “कोई? बहुधा दोहराया जाता है जैसे, कोई कोई मूर्तिपजा नहीं करते कोई-कोई पुनजन्म को मानते हैं

कोई के साथ “सब्र”, “हर??, “ओर”? “दुसरा” आदि विशेषण मिलकर आते हैं; जेसे “सब कोइ? “हर फोइ”? “भोर कोई” “कोई भोर” “कोई दसरा” | अधिक अनिश्चय में “कोई? के साथ जब “आ”

त्यय जोड़ा जाता है, उस समय वह बहुघा प्राणी, पदाथ और धर्म,

तीनों के लिये आता है; जंसे इन नोकरो में कोई सा मेरा काम कर , सकता है | इन कपड़ों में से में कोई सा ले रूँगा | इन कारणों में कोई सा ठीक होगा

अनिश्चय में कुछ निश्चय प्रकट फरने के लिये “कोई कोई, वाक्यांश# आता है, जेंसे कोई यह फाम करेगा

&5..

“कुछ?” के साथ बहुधा “सब??, “बहुत”, “ओर?” जादि विशेषण

जाते हैं; जेसे, “सब्र कुछ”' “और. कुछ” |

के परस्पर संंबंव रखनेवाले दो वा अधिक शब्दों को, जिनसे पूरा विचार प्रकट नहीं होता, वाक्याश कहते है [ अं० ३६२ ]

( रे८ )

अनिश्चय में निश्चय और भिन्नता बताने के लिये क्रमशः “कुछ

.

>>

कुछ” “कुछ का कुछ” वाक्यांश जाते हैं, जते हम कुछ करेंगे | तुमने कुछ का कुछ समझ लिया |

में आप वहाँ गया था | ठुम जाप वहाँ जा सकते हो -

लड़का आपका काम करेगा | मुनि आाप मुझसे मिले थे

वोक्त वाक्‍्यो मे पहले आइ हुइ संज्ञा वा सवनाम की चचा करने के लिये उसी वाक्य में “आप?? सर्वनाम जाया है। पहले वाक्य में आप? सम!” सर्वनाम की चर्चा के लिये आया है, दूसरे वाक्य में

किम

ध्तुम?ः संरवनाम की; तीसरे वाक्य में “लड़का”? संज्ञा की मोर चौथे वाक्य में “मुनि? संज्ञा फी चर्चा के लिये आया दै। वाक्य में पहले जाई हुई संत्रा वा सवनाम की चर्चा के लिये जो सर्वनाम जाता है उसे निज्वाचक सवनाम कहते हैं। ऊपर के वाक्‍्यो में “आप?! निजवाचक सवनाम है सब सवनाम भादर सूचक “लाप”? से अथ भर प्रयोग मे भिन्न हैं।। आदर-सूचक “आप” केवछ मध्यम ओर अन्य पुरुष मे आता है। निम्वाचक “आप* का प्रयोग संज्ञा या दूसरे सवनाम के कारण पुरुष में होता दे आदर सूचक “आप? वाक्य म॑ अकेला जाता ;:र निमरवाचक “जाप?! संज्ञा या दसरें सवनाम के सबंध से आता ; ने आप आाइए। मे ञज्ञाप जाऊँगा |

रु * (८ लता हर

किकओं

६२--निजयाचक “आप? के साथ “ही” जोड़ने से उनका प्रयोग किया-विशेषण के समान होता है, जैसे, मे जाप ही जाऊँगा। वह आप थी आवेगा। घास जाप ही उगती है|

शलाप दी के अथ कर्मी-कर्मा खुद, स्वतः वा स्वर्य का उपयोग कया जाता और ये झब्द क्रिया-विशेषण के समान जाते हैं, जैसे, में उसके पास जाऊंगा | वे स्वयं मुझसे मिलेंगे राजा स्वतः महल |

$२ हद धन

डर

डा जहा हि

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रू ही]

|

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एक प्रकार का निजवाचक सर्वनाम है; पर इसका

( रे६ )

उपयोग “अपना” के अथ में बहुधा विशेषण के समान होता है; जैसे निज का काम ( सवनाम ), निज देश ( विशेषण )।

लडके के पास पुस्तक है जो उसे इनाम में मिली थी | जो सोता है वह खोता है | जो चाहो सो छो . ६४--ऊपर छिखे वाक्यो मे, एक डपवाक्य में, “जो”? सर्वनाम आया है ओर दूसरे उपवाक्य में एक सज्ञा अथवा सर्वनाम जाया है जिसके साथ “जो” का संबंध है। पहले वाक्य के दसरे उपवाक्य में “जो सवंनाम पहले उपवाक्य की “पुस्तक” संज्ञा से संबंध रखता है दूसरे वाक्य में पहले उपवाक्य के “जो? स्नाम का संबंध दुसरे उप- वाक्य के “वह” सबंनामस से है ओभोर तीसरे वाक्य में पहले उपवाक्य के ' “जो”? सवुनाम का संबंध दूसरे उपवाक्य के “सो” सवनाम से है। इस “जो? सवनाम को संबंध-वाचक कहते हैं, क्योंकि वह अगले या पिछले उपवाक्य में आकर दसरे उपवाक्य की संज्ञा या सर्वनाम से संबंध रखता है और दोनो उपवाक्यो को ( समुच्चय बोघक के समान ) मिलछाता है | संबंध-वाचक सवनाम एक ही है, ओर वह प्राणी पदार्थ का धर्म का बोध कराता है| इसका संबंधी शब्द नित्य-संबंधी फहलाता है। ६५--संबंध-वाचक सर्वनाम जिस संज्ञा से संबध रखता है वह बहुधा उसके साथ जाती है जिससे संबंध वाचक सर्वनाम का उपयोग विक्षेपण के समान होता है, जैसे, जो बात होनी थी, वह हो गईं जो मनुध्य सत्य बोलता है वह विश्वास के योग्य होता. है जो? का उपयोग आदर भोर बहुत्व के लिए भी होता है; जैसे, जो बड़े हैं वह सत्र कुछ करने को तैयार हो जाते हैं |: राम का विवाह सौता _से'हुआ था जो जनक पुत्री यी कभी-कभी “जो? एक वाक्य के बदले आता है, जैसे, उसने अपने भाई को घर से निकाल दिया जो बहुत अनुचित हुआ मनुष्य को सत्य - बोलना चाहिए, जिससे उत्तका विश्वास हो | '

8")

जो? के साथ बहुधा फारती का संबंध-वाचक सवनाम “कि! जोड़ दिया जाता है; जैसे, राम के साथ मोहन जाता है जो कि उसका मित्र है | समय का वह प्रभाव है कि जो कभी नहीं टलता। इस “कि? का प्रयोग अनावश्यक होने के कारण धीरे-धीरे घट रहा है।

'जो? के साथ बहुधा अनिश्रयवाचक सवनाम कोई? गौर 'कुछः जोड़े जाते हैं; जैठे, जो “कोई? जो कुछ | इनका अर्थ 'काई? और कुछ” , के समान है, जैसे, “जो फोई आता है। वह मुखिया को प्रणाम करता है |”? “तुम जो कुछ चाहते हो मिल सकता है ।??

जब “जो”? का अथ “यदि”? होता दे तब वह समुच्य-बीधक होता है; जेसे, “जो तुम आभोगे तो में चँगा।” जो तुम्हरे मन अति संदेहू तो किन जाइ परीक्षा लेहू |”

विविधता के अथ में “जो” की पुनरुक्ति होती है; जेंसे, जो जो आए. है उन्हे बिठाओो जो जो चाहिए सो सब छाओ |

संबंध-वाचक सवनाम के साथ “बह? के अथ में कभी-कमी “सो?? सवनाम जाता है, पर इसका प्रचार कम है।

कभी-कमी “जो?” वा “सो” (वह) का छोप होता है, जेंसे; (जो) सो हुआ “(जो) भाया सो जायगा ।” “जो होना था (सो) हो गया ॥”?

“जो हो” और “जो जाज्ञा” में दूसरे उपवाक्यों का छोप है| 'जो हो'““जो हो, सो हो ।! “जो जाज्ञा'-जो भाज्ञा हो सो में मानू गा

दरवाजे पर फोन खडा है उसके हाथ में क्या है ? '

वहाँ कोन आए थे घमम क्‍या है ?

९६--इन वाक्यों मे 'कौनः और 'क्या? सर्वनाम अज्ञात प्राणी ओर पदाथ के विषय में प्रथन करने के छिये आये हैं, हसलिए इन्हें प्रधनवाचक स्वनाम कहते हैं। ५कौन” और “क्या? के साधारण प्रयोगो में यही अंतर है जो “कोई” और “कुछ” के प्रयोगों में है, जेसे “कोन जाया है ??? “कोई जाया है ।”? "क्या गिरा १! “कुछ गिरा !?

ल्‍

( ४१ )

4क्रौन?? प्राणियों और विशेषकर मनुष्यों के लिये आता है और 3पक्या” छोटे प्राणी, पदार्थ अथवा धर्म के लिये जावा है। ६७--निर्धारण के अर्थ मे “कौन?? प्राणी, पदार्थ ओर घम तीनों के लिये आता है; जैसे “यह बालक कोन है जो भेरे अंचल को नहीं छोड़ता १?? *इन कपड़ो में मछमर कोन है ?? “इन कामों में पाप कौन है और पुण्य कौन ९? इस अथ में “कौन” के साथ बहुधा “सा? प्रत्यय जोडते हैं; जैसे, बह देश कोनसा है जिसमें सब प्रकार का सुख है !” “इन पुस्तको में तुम्हारी कोनसी है १” जब “कोन?” का अथ नददी” के समान होता है तब बह क्रिया विशेषण होकर आता है; जैसे 'यह काम कोन फठिन है। आपके छिये इतना दान कौन बहुत है” “कोन? आदर और बहुत्व के लिये भी आता है; जैसे वे मनुष्य कौन थे जो अभी यहाँ से गए हैं | “आपके यहाँ कौन आए हैं ;” विविधता के अथ में, “कोन?” की पुनरुक्ति होती है; जेसे, कोन कोन आए: हैं ? आपके लड़को में फौन फोन पढ़ते हैं ? ६८-लक्षण या पहचान पूछने में “क्या? प्राणी, पदार्थ और धर्म तीनो के लिये आता है; जेसे; “मनुष्य क्या है ?? “बादल क्‍या है 7? “जीवन क्या है ?” आइचये; घम और अशक्यता के अर्थ, में “क्या” क्रिया-विशेषण होता है, जैसे, “क्या अच्छी बात है १? “तुम वहाँ बेठे हो |? “बह मुझे क्या सारेगा !? ' | पूरे वाक्य के संबंध में प्रश्न करने के छिये “क्या?” का उपयोग विस्मयादि-बोघक के समान होता है, जेसे “क्या वह जावेगा १” “क्या तुमको यह पेड़ नहीं दिखाई देता १” . £प्या क्या? से “और”? (समुच्यय-ब्रोधक) का अर्थ पाया जाता है ' जैसे, “क्या राजा क्‍या रंक, सबको एक दिन 'मरना है |? “क्या छोटे क्या बडे, सब्र वहाँ पहुँचे ।?” र्

( ४२ )

“क्या? की पुनरक्ति से विविधता का अर्थ पाया जाता दे; जैसे, #तुम बाजार-से क्या-क्या छाए हो १? “पूजा? से “क्या-क्या करना पढ़ता है ९?” हु

दर्शातर सूचित करने में “क्या से क्‍या १? #हम छोग क्‍या हो गए.” “एक घड़ी मे क्या से क्‍या हो गया १? “हम छोग क्‍या से क्या हो गए ।”?!

आश्यास १--नीचे छिखे वाक्यो में प्रत्येक सर्वनाम का भेद चताओं ओर संज्ञा बताओ जिसके बदले सर्वनाम जाया दें--

राम ने कृष्ण से कहा कि में तुम्हे जानता हैं| वह मोहन का भाईहै | थह गोपाल फी पुस्तक है | सोहन आप अपना काम करता है। मेरा कोई क्या कर सकता हैं| भिखारी के पास कुछ नदी है। कुसंग में कॉन नहीं बिंगड़ता ? जो दूसरे के लिये गढा खोदता है वह आप उसमें गिरता दे। “जो गरीब सो द्वित करें, धनि रहीम वे* लोग”? | हम क्या-क्या कहे ? राजा के विरुद्ध नगर में फोन-फोन हैं ? नोकर ने मालिक से पूछा कि भाप मुझे कन्न तक रखेंगे ? मेरे भाई फी चिट्ठी आई है जिसमे उसने कुशछ-समाचार छिखा है | तुम गुरु की आाज्ञा नहों मानते जो नीति के विरुद्ध हैं | हम कोन थे क्या हो गये हैं, ओोर क्या होगे अभी

सबनास की साधारण व्याख्या

वाक्य--लड़के ने पिता से कहा कि यदि “आप जाज्षञा दें तो में अपने साथी को देख जाऊँ जो कई दिन से बीमार है

आप--पुरुपवाचक सवनाम, आादरसूचक, मध्यम पुरुष, “पिता” संज्ञा के बदले आाया |

मे--पुरषवाचक स्वनाम, उत्तमपुरुष, छडका संज्ञा के बदले आया।. अपने-निजवाचक सव नाम,उत्तमपुरुष “मै? सबनाम के बदले भआाया | जो-स्वंधवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, “साथी”? संज्ञा के बदले आया | अभ्यास अभ्यास में आए हुए सव॒नामों की व्याख्या करो |

द्रट न्ग्पिख्तट

नह)

( ४३) पाँचवाँ पाठ विशेषण के भेद *

छोटी लड़की खेंछती है। बड़ा छड़का पाठ पढता है। वह नई पुस्तक है | नॉकर का स्वभाव सीधा

९९--इन वाक्यो में रेखांकित विशेषण संज्ञाओ में संबंध रखकर उनके अर्थ से एक नई बात (विशेषता ) बताते हैं। “लडकी? संज्ञा के साथ “छोटी” विशेषण, “लड़का” 'संजशा के साथ “बड़ा” विशेषण, “पुस्तक” संज्ञा के साथ “नई” विशेषण ओर “स्वभाव”? संज्ञा के साथ “सीधा? विशेषण संबंध रखता है और ये विशेषण संबंध का गुण - बताते हैं, इसलिये इन्हे गुशवाचक विशेषण कहते हैं

गुणवाचक विशेषणों में हीनता के अथ में “सा” प्रत्यय जोड़ा जाता | है; जैसे, बड़ा-सा पेट, छोटी-ती डिबिया, ऊँचा सा घर

( ४२ ) मेरे पास पॉच रुपये| है| वहाँ कई छोग थे | वह कपड़ा ढाई गज है | बाढ़ में सैकड़ो घर गिर गए

१००-ऊपर के वाक्यो में रेखाकित' विशेषण संशञाओं से सूचित होने वाली वस्तुओं की संख्या बोघ कराते हैं, इसलिये, इन्हे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं | संख्यावाचक विशेषण के मुख्य दो भेद हैं-- (क) निश्चित संख्यावाचक-- एक, दो, चार, दूना, दूसरा, दोनो | (ख) अनिश्चित संख्यावाचक--कई, अनेक, बहुत; सच आदि | १०१--अनिश्चित सख्यावाचक विशेषणो के नीचे छिखे भेद होते हैं , (१) पूर्णाक बोधक--एक, दो, सो, हजार, छाख (२) अपूर्णोक-बोघक--पाव, आधा, पौन, सवा, डेढ़ (३) क्रमवाचक--पहलछा, दूसरा, चौथा, पाँचवों, छठा

४४ )

(४) भाजूचिवाचक--हुगुना, चौगुना, पेंचगुना, छगुना |; इकहरा; दुहरा, तिहरा, चोंहरा (५) समूहवाचक--दानो चार्रो, छओ, सातों, दर्तों | (६) प्रत्येक-नोधक«-प्रति, प्रत्येक, हर-एक, एक-एक | क्रमवाचक, आद्रत्तिवाचक और समूहवाचक विशेषण पृर्णाक-ओोघक विशेषणों से बनते हैं; जेसे--

पूर्णोक-बोधक क्रमवाचक आजत्तिवाचक समृहवाचक एक पहला एक-गुना अकेला दो दूसरा दुगुना दानो तीन तीसरा तिशु ना तीनो चार -.. चोथा चोगुना चारो पॉच पॉचवोँ पँचगुना ; पॉचो छः छ्ठा छरणुना छ्भो

१०२--अनिश्चित संख्या-वाचक विशेषणों से बहुधा बहुत्व का बोध होता है, जैसे, सब्र लड़के, कई फछ, बहुत घर, अनेक दूकाने, आधे सिपाही, बाकी छोग-।

“एक” पूर्णाक-बोधक विशेषण है, पर इसका प्रयोग 'कोई? के समान बहुधा अनिश्चय के अथ में होता है, जैते इमने एक बात सुनी है। एक दिन ऐसा हुआ | एक जादमी संडक पर जा रहा था |

जब “एक! (विशेष्य के ब्रिना) सवंनाम के समान उपयोग में आता है तब उसका अर्थ बहुधा 'कई? होता है और वह अलग-अलग वार्क्यों में जाता है; जैसे, सभा मे एक जाते हैं और एक जाते हैँ | एकों के पास अनावश्यक धन है और एको के पास अनावश्यक्र धन नहीं है। एक! के साथ 'सा' प्त्यय जोडने से उसका अर्थ 'समान? होता है, जैसे,दोनों का रूप एक-सा है| जत्र एक-से छोग मिलते हैं तब काय सफल होता है।

“एक-एक? कभी कभी “यह वह? के अर्थ में निश्च यवाचक सर्वी- नाम के समान जाता है, जैसे, उसके दो भाई हैं, एक डाक्टर है और

( ४५ )

एक वकील | में सरस्वती और गंगा की बंदना फरता हूँ; एक अज्ञान को मिठाती है, और एक पाप को नष्ट करती हे

:.. आदि? और “इत्यादि? (वर्गेरह) का अथ “मोर दूसरे! है। इनका प्रयोग स्वनाम अथवा विशेषण के समान होता है; जैछे, मनुष्य को घन, आरोग्यता आदि की चिंता करना चाहिए ( स्बनाम )। उसमें साहस, चतुराई, धीरज इत्यादि गुण पाए जाते थे ( विशेषण ) |

धअभ्ुक?! (फलाना) का उपयोग अनिश्चय के अथ में बहुध्रा “कोई” के समान होता है; जैसे, मनुष्य को जानना चाहिए. कि अमुक सनुष्य है कभी-कर्मी यह निश्चय नहीं होता कि अम्ल॒क बात सच है या झुठ * कोई दो पूर्णाक बोधक विशेषण साथ-साथ अनिश्रय सूचित करते हैं; जेसे, दो-चार दिन में, दस-बीस आदमी, पचास-साठ रुपए, ढाई- तीन घंटे में | “थीस?, (पचास? 'सैकड़ा?, “हजार? ओर “छाख? में “भो? जोड़ने से 'अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण बनते हैं; जैसे, च्रीसी आदमी, पचातों घर, सैकड़ों रुपए | ,.. परिमाण-बोधक संज्ञाओं में “ओो? जोड़ने से उनका प्रयोग अनिश्चित संख्यावाचक विशेषणों के समान द्योता है; जैसे, सेरों दूध, मनों फल, डेरो अनांज ( रे 9) सन्न धन जाता देखिए, आधा दीजे बॉटि। छड़के ने सारी संपत्ति उड़ा दा | उसने बहुत परिश्रम किया अभी तक काम पूरा नहीं हुआ | इसमें कुछ छाभ नहीं १०३--ऊपर के वाक्यों में रेखाकित विशेषण संख्या नहीं, किंतु परिमाण ( नाप तोछ ) सूचित करते हैं, इसलिये इन्हे परिमाण-बोधक विशेषण कहते हैं। ये विशेषण बहुधा भाववाचक, *द्रव्यवाचक अथवा / समूहवाचक सज्ञाओं के साथ भाते हैं। १०४--परिमाण-नोधक विशेषण बहुघा एकवचन : संज्ञा के साथ

( ४३ )

परिमाण और बहुत्चन सज्ञा के साथ अनिश्चित संख्या सूचित करते हैं,

सं,

परिमाण-बों धक अनिश्चित संख्यावाचफ बहुत दूध बहुत लड़के कुछ काम *. कुछ आदमी सब्र जंगल सब पेड़ पूरा कुदुब परे हिस्से « आधा घन आधे सिपाही

परिमाण-बोघक विशेषणों में “सा? प्रत्यय जोड़ने से कुछ अनिश्चय सूचित होता है; जैसे, बहुत-सा धन, थोड़ी-सी बात, जरा-सी त्रिदी एक परिमाण बोधक विशेषणों का उपयोग क्रिया-विशेषण के समान

होता है; जैसे, वह बहुत चछता है। लड़की कुछ अशक्त है | हम ऐसे झगड़ो में थोड़े पड़ते हैं

( ) यह पुस्तक मेरी है। वह पुस्तक उसकी है आदमी आया है। वह कुछ सामान छाया है | वहाँ कोन जानवर खड़ा है ? तुम क्‍या करते हो ? जं छड़का सच बोलता है वह विश्वास-पात्र होता है | १९०३--ऊंपर छिखे वाक्यों में रेखांकित शब्द यथार्थ सर्वनाम है। पर यहाँ ये अपनी संज्ञानो के साथ आए हैं; इसलिये यहाँ उनका

उपयवाग विशेषण के समान हुआ है। इस प्रकार के विशेषण स्ावे- नामिक विशेषण कहलाते हैं।

१०६-- पुरुषवाचक और निजवाचक सबंनामों को छोड़ शेष सभी उयनास सन्षा के साथ आकर विशेषण होते हैं, जैछे,

निश्चयवाचक्र-यह पुस्तक, ये पुस्तके; बह पुस्तक, वे पुस्तकें |

( ४७ )

की

अनिश्चयवाचक--कोई लड़का, कोई लड़के; कुछ फाम, कुछ चिताएँ |

प्रभवाचक--कौन लड़का, कोन लड़के ? क्‍या काम ! क्‍या बातें | घंबंधवाचक --जो लड़का, जो लड़के; जो काम, जो बाते | “निज”? और #पराया?” भी सार्वनामिक विशेषण हैं, क्योकि इनका मी प्रयोग बहुघा विशेषण के समान होता है; जैसे, निज देश, निज भाषा, पराया देश, पराई भाषा

विशेषण के रूप में “कोई”? और “कौन” प्राणी, पदार्थ वा घर्म सूचित करनेवाली सज्ञाओ के साथ जाते हैं; जैसे, फोई मनुष्य, कोई जानवर, फोई कपड़ा, फोई फाम | कीन मनुष्य ? कोन जानवर ? फोन फपड़ा फोन काम ?

क्या? जाश्चर्य के अर्थ से बहुधा “कैसा? का समानाथक होता और प्राणी, पदाथ वा धर्म के नाम के साथ जाता है; जैसे यह क्‍या आदमी है | यह क्या लड़की है | यह क्‍या वात है।

“कुछ” से सनिश्चय, संख्या और परिमाण, तीनों का बोध होता है; जैसे, कुछ लड़के, कुछ दूध

१०७--पुरुषबाचक और निजवाचक सबनाम (मे, तू , आप ) संज्ञा की विशेषता नहीं बताते, किंतु उसके साथ समानाधिकरशण होकर जाते हैं; जैते, मे, मोहन इकरार करता हूँ | छड़का आप आया था। ( अ० १८९६ ) '

१०८--“यह??, “वह?! “ती??, “धज्ो?? भोर “कोन? के “इस?” ८उस”, “तिस्”, और “'किसी” रूपो की आद्य “ई” को “ऐ'”? मोर ४उ?! को “बे” करके “स”?” में “जा?” जोड़ने से गुणवाचक विशेषण

/तथा “स?? के स्थान में “तना” करने से परिमाणवाचक विशेषण, बनाए जाते हैं; जैसे

( ४८ )

सर्वनाम रूप. | गुणवाचक विशेषण परिसाणवाचक विशेषण यह | इस ऐसा इतना

वह उस वैसा उतना

सो तिस तैसा तितना /उतना)

जो लिस जैसा जितना

कोन किस | कैसा कितला

“जेसा का तैसा? वाक्यांश का अथ “पू्बबत्‌” होता है। “ता” के बदले अन्य स्थानों में बहुधा “वैसा” का प्रयोग होता है। “तितनाएं? का प्रचार बहुत कम है

कभी कभी “ऐसा?” और “जैसा” का प्रयोग “समान? के अर्थ से सर्वध-सूचक के धमान होता है; जैसे, आप ऐसे सजन, भोज जैसा राजा उनके जैता झूर | -

१०६०-अन्य परिमाणवाचक विशेषणों कें समान साव॑नामिक परिमाणवाचक विशेषण भी बहुबचन में संख्यावाचक होते हैं; जैछे, इतने छांग क्यो आये हैं ! आप कितने दाम छेगे ? वह जितने दिन जी उतने दिन दुःख में रही |

पकतने? का उपयोग कभीन्‍कमी “कई? के ज्रथ में होता है; जैसे

“कतने ही छोग ईश्वर को नहीं मानते |” “कितने एक दिन के पीछे जरासथ फर सेना ले चढ जाया |??

च्च्के

हा

“केता? और “कितना” का उपयोग खजाश्चय में भी होता है विद्या पाने पर कैसा आनंद होता है ! कितने दुःख की बात है !

१६०--जब विशेषणो के विशेष्यो का छोप होता है, तब उनका नयाग प्राय; सज्ञा के समान होता है; जैसे, बड़े हीं छोडते

दुन सन्रको देखता है | जेसा करोगे वसा पाओोगे। सहज मे, इतने म।॥

पं है

( ४६ )

१११--विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है--एक विशेष्य के साथ ओर दूंसरा क्रिया के साथ; जैठें छोटा लड़का आया। मै बड़ी पुस्तक पढता हूँ छडका छोटा है | पुस्तक बड़ी थी | पहले दो वाक्यों . के विशेषण विशेष्य विशेषण ओर पिछले दो वाक्या के विधेय विशेषण कह- छाते हैं| विधेय-विशेषण अपूर्ण क्रियाओं के साथ पूर्ति के रूप में जाता है

कुछ गुणवाचक विशेषण केवछ विधेय-विशेषण होते हैं; जैसे इतना दूध बस होगा मुझे यह बात मालूम है। यह काम कब्र समाप्त हुआ | * कुछ विशेष आर्थों में विशेषण की पुनरुक्ति होती हे; जैसे, बड़े-बड़े पेड़, छोटे-छोटे फछ, चार-चार फूल, थोड़ी-योड़ी दवा

अनेक गुणवाचक विशेषण संज्ञाओ जार क्रियाओं से बनाये जाते हैं। जंसे, ;

संज्ञा से--ज॑गली, नागपुरी, जआाल्सी, दयाछु |

क्रिया से--बत्रिकाऊ, मरनद्वार, ठढलवों, सुहावना |

अभ्यास

१--नी चे छिखे वाक्या में विशेषणोंके भेद ओर उनके प्रयोग बताओ |

ऊँची दृकान का फीका पकवान | मरता क्या नहीं करता चार, दिन की चॉदनी, फिर ऑधियारी रात। दुश् छोड़े दुष्टता | ये वही जानकी हैं जिनके लिये घनुषयज्ञ होता है। वह मनुष्य कपर्टी निकछा | झूठे का कोई विश्वास नहीं करता | हम छोग दारुण दुख सहते हैं . किसानो ने आधा लगान पठाया नोकर तीसरे दिन छोटा | काली बिल्ली ने सन्न दही खा लिया | आजकल हजारो नोकर बेकार हैं। इस असार संसार में एक घम है सार। मेरे मन में सेकड़ो विचार और प्रत्येक विचार के साथ एक चिंता लगी, रहती है | रोग का यथार्थ कारण चतुर वेद ही जान सकता है

करमन्‍ा४-न्‍नकक ड्पाकरिलएरचकब. 3+>+मन्‍न्‍्न्‍मब,

विशेषण की साधारण व्याख्या वाक्य--दस दिन के बाद वह भयंकर युद्ध समाप्त हुआ और उसमें * दोनो ओर के हजारो सैनिक घराशायी हुए

2

६. 56: :)

दस->निर्चित संख्या-वाचक विशेषण, विशेष्थ “दिन” | 'वह--साव॑नामिक विशेषण, निश्चयवाचक, दूरवर्ती, विशेष्य युद्ध) भयंकर--गुणवाचक विशेषण, विशेष्य “युद्ध!; विधेय विशेषण होकर आया है| दोनो+*निरिचित संख्यावाचक विशेषण,समृहबाच क; विशेष्य“ओर/ हजारो--भनिश्चित संख्यावाचक विशेषण, विशेष्य, 'सैनिक! | धराशायी--गुणवाचक विशेषण, विशेष्य 'सैनिकः; विधेय-विशेषण होकर आया है| अभ्यास १--पिछले अभ्यास में दिए हुए' विशेष्णों की साधारण व्याख्या

किम पबकाब०+ व. >त चमक काना

डठा पाठ | 5 क्रिया-विशेषण के भेद लड़का आज आद़ेंगा। गाडी तुरंत छोटी नोकर नित्य आता है| लड़की फब गई थी ? ११२--ऊपर लिखे वाक्यो में रेखांकित शब्द क्रिया विशेषण हैं ओर वे क्रियार्ओों का काल अर्थात्‌ “कब? का उत्तर ) सूचित फरते ह। इन क्रिया विशेषणों को काल्वाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं कई एक काछवाचक क्रिया-विशेषणों से पुनर्माव ( अर्थात्‌ 'कबन-्कर्र, का उत्तर ) सूचित होता है; जैसे, बह वहुधा घूमने जाता है। हम प्रति दिन नहाते हैं। नोकर बार-बार आया है। कभी कभी ऐसा होता है वे वहों रहते हैं। छड़का आगे खड़ा है। राम बाहर जावेगा | ईश्वर सर्वत्र व्यापक है। १३--ऊपर के वाक्यो में रेखांकित शब्द स्थानवाचक क्रिया

है

( ५१ )

विशेषण हैं क्योंकि वे क्रियाओं का स्थानः( अर्थात्‌ “कहाँ? का उचर ) सूचित करते है कई एक स्थान-वाचफ क्रिया-विशेषणों से दिशा अर्थात्‌ “किघर” 'का उत्तर ) सूचित होता है; जैसे, चोर उधर भागा |, जिधर तुम गए थे, उघर मोहन भी गया था | गेंद दूर जायगी | गाड़ी धीरे चलती है| कुत्ता अचानक झपटा ) ; लड़का ध्यानपूर्वक पढ़ता है | सिपाही पेदछ जावेगा ११४--उपयुक्त वाक्यों में रेखांकित शब्द क्रियाओं की रीति ( अर्थात्‌ “कैसे?” का उत्तर ) प्रंकठट करते हैं; इसलिये उन्हें रीतिवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं | रीतिवाचक किया-विशेषण से नीचे छिखे अथ भी पाए जाते हई--- निश्चय--जैसे, नोकर अवश्य आवेगा | राम सचमुच जा रहा है। लड़के ने निःसंदेह चोरी की है। . सलनिश्चय--जैठे, आज कदाचित्‌ पानी गिरेगा | हम इस विषय में यथा-संभव परिश्रम करेंगे | शायद चिट्ठी आावे | निपेध--जैछे, मे 'न जाऊँगा वह नहीं आया | मत जाओ | कारण--जैसे, वह इसलिये आया है कि आप से मिले | तुम क्यो* जाते हो ? आप किस छिये ऐसा कहते हैं ? अनुकरण--जैसे, वह गटगठ दूध पी गया। घड़ाघड़ धार रुपयों की बही है। उसने लड़के फो तड़ातड़ मार दिया ' ११५--तो, ही, भी, मर, तक ओर सात्र एक प्रकार के रीति- वाचक क्रिया-विशेषण हैं; पर इनका डपयोग समुच्चय-ब्ोधक और विस्म- यादि-बोघक को छोड़ शेष किसी भी शब्द-भेद के साथ भद्दत्व देने के लिये होता है; इसलिये 2 क्रिया विशेषण कहते हैं उदाहरण --- _ मैतो जाता हूँ। मै जाता तो हूँ। मैं ही जाऊंगा मैं जाऊँगो ही | वह भी आवेया | वह आवेगा भी हम आज भर जायेंगे। राजा तक

है

( ५२ )

इसमें योग देते हैं। राम मात्र छघु नाम हमारा | प्राणी मात्र पर दया करो | ही” और “भर” प्रायः समानार्थी हैं और उनका अँर्थ “केवल”

है। “भी” और “तक” अधिकता के अर्थ में जाते हैं। #मात्रा मे दोनो अथ पाए, जाते हैं |

११६--“केवछ””? क्रिया-विशेषधण अन्य शब्दों के पूर्व आता दे और वह जिस शब्द की विशेषता बताता है उसी के अनुसार उसका शब्द- भेद होता हैं; जैसे, है

मेरे पास केवल पुस्तक है ( विशेषण )। में केवछ ठइछता हूँ ( क्रिया विशेषण ) | तुम आराम से बेंठो; केबछ बात-चीत मत करो ( समुखयन्बी घक )

२१७--न, नहीं और मत के प्रयोगों में यह अंतर है कि 'नः से साधारण निषेध, “नहीं? से निश्चित निपेष ओर “मत? से मनाई सूचित होता है, जैसे, वह जायगा में नहीं जाऊँगा। तुम मत जाओ | “न? कभी-कभी प्रश्न-वाचक क्रिया-विशेषण होता है, जेते, तुम वहाँ जाभोगे ? यह बात ठीक

जग रोगी बहुत चिह्लाया है | में यह बात त्रिल्‍्कुछ भूठ गया। लड़का “>* खूब खेलता है| लड़की कुछ डरती हे

१श१८--पूर्वोक्त वाक्‍्यो में रेखांकित क्रिया-विशेषण क्रियाओं का परिमाण ( अर्थात्‌ “कितना? का उचर ) प्रकट करते हैं; इसलिये थे परिसाण-बोधक क्रिया-विशेषण कहाते हैं |

कई एक परिमाण-बोधक क्रिया-विशेषण विशेषणों ओर क्रिया-विशे- घणो की विशेषता बताते हैं, जैसे, एक बहुत छोटी छड़की आईं (विशे- पण को विशेषता ) गाड़ी बहुत धीरे चछती है। क्रिया-विशेषण की विशेषता ) | इतना सुंदर बाढक | इतने धीरे | कुछ पहले |

११९--प्रशइन करने के छिये जिन क्रिया-विशेषणों का उपयोग होता है उन्हे प्रशन-बाचक क्रिया विशेषण कहते हैं; जैसे,

( ५३ )

नोकर कन्न आया ? राम कहा गाया था ?

यह काम केसे होगा यह क्यो आया था ?

ये क्रिया-विशेषण फालवाचक, स्थानवाचक, [रीतिवाचक अथवा परिमाण-वाचक होते हैं। » १२०--प्रयोग के अनुसार क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं-- ( १) साधारण, (२ ) संयोजक, ( ) अनुबद्ध

(१ ) जिस क्रिया-विशेषण का प्रयोग वाक्य. में स्वतंत्रता-पूर्व होता है उसे स्लाधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे, अब में जाता

धीरे चछो वह बहुत हँसता है

(२) जिस क्रिया-विशेषण का संबंध दूसरे वाक्य के किसी क्रिया- विशेषण से रहता है वह संयोजक क्रिया-विशेषण कहाता है; जैठे,

जब मे आाया तन्न वह घर में नहीं था। जहाँ पहले पानी था वहाँ अब धरती है। जेसे मे लिखता हैं वैसे लिखों। जितना मैं चला था उतना कोई नहीं चला |

( ) जो क्रिया-विशेषण वाक्य में समुच्चयत्नोधक और विस्मयादि- बोधक को छोड़ अन्य किसी शब्द भेद के साथ अवधारण के लिए जोड़ा जाता है उसे अनुबद्ध क्रियानविशेषण कहते हैं, जैछे,

मेरे पास घड़ी तो है | छड़का दी चला गया |

वह पहले भी आया था छड़की पढ़ी भर है।

१२१---रूप ( रचना ) के अनुसार क्रिया-विशेषणो के तीन भेद हैं--( ) मुख, ( २) योगिक, ( ) स्थानीय

(१) जो क्रिया-विशेषण किसी दूसरे शब्द से नही बनाए जाते

न्हे मूल क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे, झट, दुर, फिर, ठीक |

(२) जो क्रिया-विशेषण दूसरे शब्दों से बनाए जाते हैं वे योगिक क्रिया-विशेषण कहाते हैं, जेसे

( के ) संज्ञा से--सवेरे, क्रमशः, प्रेम-पूर्व क, शक्ति-मर |

( ) सर्वनाम से--

( ८४ 92

हे काल्याचक | स्थान-वाचक' रीति बाचक | परिमाण-वाचक सवना ८5 क्रि ८5 ८७ क्रिया विशेषण क्रिया-विशेषण क्रिया-विशेषण| क्रिया-विशेषण यह अब हाँ, इधर | ऐस, यो इतना वह तब हाँ, उधर | उतना सो | तहाँ, तिधर | तैसे, त्यो |. तितना जो जत्र जहा, जिधर | जैसे, ज्यो जितना कोन कब्र कहाँ, किधर | केसे, क्यों छितना

(१ ) विशेषण से--धीरे, चुपके, पहले, ठीक | ( ) क्रिया स--जाते, आते, लिए, चाहे | ( # ) क्रिया-विशेषण से--वहाँ से, कहों तक, ऊपर को, अभी | (३ ) दूसरे शब्द भेद जो बिना किसी रूपांतर के क्रिया-विश्येपण के समान उपयोग में आते हैं, स्थानीय क्रिया-विशेषण कहाते हैं, जेसे, (ञअ) संज्ञा--तुम भरी मदद पत्थर करोगे | वह अपना घिर पढ़ेंगा वे खाक चिट्ठी भेजेंगे ( जा ) स्वनाम--मैं यह चलछा लड़का वह जा रहा है। तुम मुझे क्‍या बुछाओंगे | यह काम कौन कठिन है | (इ ) विशेषण--स्री सुंदर सीती है मनुष्य उदास बेंठा है। लड़का सीधा गया | छोग उघारे पड़े थे | (ई ) वतमानकालिक कृदंत--छड़का रोता हुआ जाता है। कुचा भाकता हुआ दोंड़ा | हाथी झमता हुआ चलता है| ( ) भ्ुतकालिक कझदंत--चोर घत्रराया हुआ भागा | सब्र छोग साए पड़े ये | केदी पकडा हआ जाता है। है ( ) पूवकालिक कृदंत--तुम दौड़ कर चछते हो वह गिरकर भर गया छोग तमाशा देखकर छोटेंगे १२२- जो योगिक क्रिया-विशेषण दो या अधिक, शब्दों के मेल से

५४ )

बनते ईं उन्हें संयुक्त वा सामाजिक क्रिया-विशेषण कहते हैं। ये नीचे लिखे शब्द-भेदो के मेल से बनाए जाते हैं--. '

(क ) संशाओं की पुनरुक्ति से--घर-घर, देश-देश, घड़ी-घड़ी हाथो हाथ, पावों पांव |

( ) दो मिन्न भिन्न संजश्ञाओं के मे से--रात-दिन, देश-विदेश, . सॉझ सव्वेरे, घाट-बाट | '

(ग ) विशेषण की पुनरुक्ति से ठीक-टीक, साफ साफ, थोड़ा- थोड़ा, एकाएक |

( थव ) क्रिया-विशेषणो की पुनरुक्ति 5--धीरे-धीरे, जहाँ जहाँ कभी कभी, | हु , (७) दो मिन्न-भिन्न क्रिया-विशेपणों के मेल से--यहाँ-बहाँ, जहाँ कहीं, कछ परसो, तले ऊपर (च ) विशेषण ओर संज्ञा के मेल से--एक-बार, एक साथ, हर घड़ी, लगातार

(छ ) अव्यय ओर दूसरे शब्दों के मेल से--अनजाने संदेह, भर पेट, प्रति-दित (ज ) विशेषण ओर पृवकालिक कृदंत (कर या करके ) के थोग सें--विशेष-कर, बहुत करके, मुख्य करके, एक एक करके | १२३--हिदी में कनेक संस्कृत क्रिया-विशेषण , और कई एक उदू' : क्रिया-विशेषण जाते है जिनफी सूची नीचे दी जाती है-- (१ ) संस्कृत क्रिया-विशेषण अकस्मात्‌, कदाचित्‌, पश्चातू, प्राय, बहुधा, बृथा, वस्तुतः, स्वत:, सदा, सवंदा, क्रमशः, अक्षरशः; सवथा, पृवंबत्‌ ' ' » उदू क्रिया-विशेषण:

शायद, जरूर, प्रिल्कुठल, अकसर, फोरन, जल्द, नजदीक, खबर, » हमेशा |

१२४--नी चे. कुछ क्रिया-विशेषणों के अथ भोर' प्रयोग छिखे _ जाते हैं-.

है शः

( ४६ )

नहीं--यह क्रिया-विशेषण की क्रिया की विशेषता भी बताता है और प्रइन के उत्तर में पूरे वाक्य के बदले भी आता है, जैसे, में नहीं जाऊँगा .

प्रशन--क्या तुम जाओगे ? उत्तर--नहीं

न-+इसका अथ “नहीं? के समान है, पर यह्द प्रदन के उत्तर में नह बीच में निश्चय के लिये आता है; जैसे, कोई कोई, कुछ कुछ, एक एक, कमी कमी, कहीं कहीं |

इससे प्रइन और आग्रह भी सूचित होता है; जैसे, तुम चलोगे न! बह जाता है ! चलिए | तुम उसे बुलाओं |

तो--इससे निएचय या आाग्रह सूचित होता है। ज्ञत्र इसका प्रयोग संज्ञा या सर्बनाम के साथ होता है, तब वह उसकी विभक्ति के पश्चात्‌ आता है; जैसे, लड़के ने तो कहा था। उसको तो बुलाओं | चलो तो “यदि? के साथ यह दूसरे वाक्य में समुश्यय-व्रोधक होकर भाता है; जैसे, यदि तुम आओोगे तो मै आउँगा।

ही--यह क्रिया विशेषण शब्द ओर प्रत्यय के बीच में भाता है; जैसे, आप ही ने यह फहा था | छड़का वह काम करेगा ही कुछ सब- नामों और क्रिया-विशेषणों में यह प्रत्यय के समान द्वोता है; जैसे,

हम + ही हमीं तुम -- ही <- तुम्हीं यह + ही & यही बह + ही 5 वही सब + ही सभी कत्र -- ही 5 कभी तब-+ ही तभी अब -+- ही अभी कहाँ + ही कर्ह , वहॉ--ही वहीं यहाँ + ही यहीं न+ ही नहीं

भी--बह “तो? के समान विभक्ति के पश्चात्‌ आता है; जैसे हमको भी कुछ दो | “कोई” और “एक” के साथ “ही” के जर्थ में भाता है; जेसे, कोई भी नहीं आया। एक भी आादमी नहीं गया कमी-कमी इससे “तो” के समान भाग्रह का बोध होता है; जैसे, आओ भी | तुम उठोगे भी )

( ५७ )

भर-इसका उपयोग कमी 'ही? के समान और कमी “भी? के समान होता है; जैठे, मेरे पास कपड़ा मर है। गाँव भर में बात फेल गईं | काल- बाचक और स्थानवाचक शब्दों के साथ इसका उपयोग संबंध सूचक के समान होता है; जैसे नोकर रात भर जागा। वह गाँव भर फिरा | परि- माणवाचक शब्दों के साथ यह प्रत्यय के रूप में आकर उन्हें विशेषण बनाता है; जैछे, छेर मर अनाज, ठोकरी भर फूल, मुट्ठी भर चना |

तक --यह “भर” के समान शब्द ओर विभक्ति के बीच में आता है; जैठे, “पिता तक से कुछ नहीं मॉगता”? उसने भाई तक को कुछ नही दिया | इसका उपयोग संबंध सूचक के समान भी होता है; जैऐ, साधु मंदिर तक गया। वह भाधी रात तक घूमता रहा | “भर” के समान यह अधिकता के अथ में भो माता है; जैसे, राजा तक यह फाम करते हैं

मात्र-इसका उपयोग बहुधा शब्द और विभक्ति के बीच मे “ही?” ओर “भर” के समान होता है; जैसे, नाम मात्र के छिये प्राणी मात्र का जावन | फाल़वाचक और परिमाणवाचफ शब्दों के साथ इसका प्रयोग बहुधा प्रत्यय के समान होता है; जेसे, तिलमात्र संदेह | क्षण मात्र ठहरो लेश-मात्र बल एकन्मात्र संतान | '

कहाँ कहॉ--इसका प्रयोग मह्दा-अंतर के अथ में समुच्चययबोघक के समान होता है; “कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगा तेली | कहें कुंभज, कहेँ सिधु अथारा |?

कहीं--भनिश्चित स्थान के अथ के सिवा यह “अधिक” और ' “कदाचित्‌” के अर्थ में मी आता है; जैसे, मुझसे, कहीं सुखी हैं कहीं कोई हमें देख ले | कहीं-कही विरोध सूचित करते हैं; जैसे, कहीं धूप, कहीं छाया कही आनंद, कहीं शोक |

क्योकर--इसका अथ “कैसे? है; “जैसे? यह काम क्योकर होगा मनुष्य क्योकर जीता है ?

योही--इसका अर्थ “अकारण” भो है; जैठे, छड़का योंही फिरा करता है। आप कैसे आए यो ही

( ८५८ )

१--नीचे छिखे वाक्यों मे क्रिया-विशेषण और उनके भेद बताओ--

छगभग बीस वर्ष हुए जब्र में प्रयाग गया था। वह सदा पुरानी पुस्तके पढता था में अवश्य तुम्दारा कष्ट दूर करूँगा | सुनकर लड़का बहुत प्रसन्न हुआ | उसकी पुस्तक हाथो हाथ त्रिक गई जब्र तक श्वासा, तब तक आशा | जहॉ जाय रवि तहाँ जाय कवि | में फिर कमी ऐसा काम करूँगा जागे सेना चली हे ओर पीछे सेनापति चलता है ईश्वर के सिवा यहाँ कोई रक्षक नहीं है। वह सदा और सबवन्न सत्रका रक्षा करता है। छड़का निधड़क अकेला फिरता है। हम वहों तो गए थे | राजा के साथ कई नोंकर भी जायेंगे लडकी अभी पढती ही'है। लड़के भर इस काम में योग देते हैं। लड़के तक इस काम में योग देते हैँ। मेरे पास कपड़ा मात्र है | हि

क्रिया-विशेषण की व्याख्या घाक्य--बहुधा देखा जाता है कि जन्र मनुष्य कोई अपराध करता है न्तब उसकी अचानक पछतावा होता है कि मैने ऐसा काम क्यो किया बहुधा--क्रिया-विशेषण, काल्वाचक, “दिखा जाता है” क्रिया की (विशेषता बतलाता दे | जब--संबंधन्याचक क्रिया-नविशेषण, काल्वाचक, “करता”? क्रिया की विशेषता बतछाता है, दो वाक्यो को मिछाता है--( १) मनुष्य कोई अपराध करता है--( २) उसको अचानक पंछतावा होता है। तब--क्रिया विशेषण, काल्वाचक--“होता है” क्रिया की विशेषता बतछाता है, “जब का? नित्य सबंधी है. अचानक--क्रिया-विशेषण, रीतिवाचक, “होता है”? क्रिया की विशेषता बतछाता है। '

क्यो--प्रश्नवाचक क्रिया-विशेषण, कारणवाचक, “किया” क्रिया -की विशेषता बतलछाता है |

हु . अभ्यास है १-पिछले सम्यास से जाये हुए क्रिया-विशेषणों की व्याख्या करो |

( ५९ ) सातवाँ पाठ संबंब-सचक के भेद

धन के बिना काम नहीं चलता भिखारी छड़के समेत आया | हमें मनुष्य की नाई चलना चाहिए | उसके सिवा बहाँ फोई नहीं है |

१२५-- ऊपर लिखे वाक्यों में रेखाकित शब्द संबंध “चलता?? क्रिया से मिलता है| दूसरे वाक्य में “समेत” संबंध-सूचक “लड़के?” संज्ञा फा संबंध “जाया?” क्रिया से जोड़ता है। इसी प्रकार तीसरे वाक्य में “नाई? संबंध-सचक “मनुष्य? संज्ञा को “चलना चाहिए? क्रिया से मिलाता है। चोये वाक्य में “उसके”? सब॑नाम का संबंध “हे? क्रिया से “सिवा? संबंध-सुचक के द्वारा मिछाया गया है।

(क ) संबंध-सूचक संज्ञा या सर्वनाप्त का संबंध दूसरे शब्द से भी मिलता है; जैसे, भोज सरीखा राजा, रास के समान योद्धा, तालाब का ' जैसा रूप |

१२६--कई एक फाल्वाचक भौर स्थानवाचक क्रिया - विशेषण संज्ञा वा सर्वनाम के साथ आकर संबंध-सचक के समान उपयोग में

जाते हैं; जेत,

क्रिया विशेषण ' संबंध-सचक यह कफास पहले होना चाहिए.। ' | यह काम भोजन के पहले होना चाहिए यह फोम पीछे होगा | यह काम बातचीत के पीछे होगा - नोकर यहाँ रहता है।,. | नौकर मालिक के यहा रहता है। सामने मत बेठों , | मेरे सामने मत बैठो अधायामाइदाम्यायााभा इक कद कमा भा: ४५२ कववए७ ७७७१० का का ल्‍ना,

,. १२७--कई एक विशेषणो का उपयोग, संबंध-सचक के समान

होता है; जेते, :

रल्नं

( ६० )

विशेषण संबंध-सचक

धन के समान दो भाग फरो | इस कपडे का रंग उ8के समान है |

योग्य मनुष्य आदर पाता है। मेरे योग्य कार्य बताइए

वे विरुद्ध दिशाओं में गए। धम के विरुद्ध मत चढो। *: जैता देश, वैसा भेष | मैं आप के जैसा चतुर नहीं हूं।

४२८--“ने??, (को ?, “से??, “४क्षा-के-की ??, धम्ं” ओर “पर! भी एक प्रकार के सबंध-सच्चक हैं, पर ये स्वतंत्र शब्द नहीं हैं; इसलिए आगे विचार ( १७६ अंक में ) किया जायगा।

१२६००अधिकांश संबध सचको के पहले “के?” विभक्ति और कुछ के पहले “से? विभक्ति जाती हे, जैसे

! 4

नगर के पास गाँव से परे नगर के समान घन से रहित

(फ) नीचे लिखे संबंध-सूच को के पहले “की? विभक्ति आती है-- (79% अपेक्षा, जो; नाई; खातिर, तरह, मारफत, बदोलत, बनिस्वत |

१३ ०--फोई कोई सर्वध-सूचक बिना विभक्ति के भाते हैं; जेसें, लड़के समेत, गोंव तक, रात भर, पुत्र सरीखा '

कभी कभी “के” का छोप होता है; जेसे नीचे लिखे अनुसार, गए बिना, देखने योग्य

के ) जब “ओर” ( तरपा ) के पहले संख्या - वाचक विशेषण रहता है, तब उसके पहले “की?? के बदले “के?” आाता है; जैसे, नगर के चारो मोर मकान के दोनो तरफ... हु

१३१--आकारात विशेषभ्ो से बने हुए संबंध-सूचको का रूप

शेष्य के अनुसार बदलता है; जेसे, ताछाब का जैसा रूप, उनके सरीखे लड़के, सती ऐसी स्त्री

१३२--मारे?, “बिना? और “सिवा” संबंध-सूचक बहुधा संज्ञा

वा सवनास के पहले जाते हैं; जेसे, मारे भूख के, बिना धन के, सिवा' पड़े के

( ६१

१३३०-»अथ के अनुसार संबंध-सूचकों के नीचे लिखे भेद होते हैं--- फालवाचक--अनंतर, उपरात, पूष, लगभग, बाद | स्थान-बाचक--तले, बीच, परे, किनारे, सामने दिशा-वाचक--ओर ( तरफ ), आसपास; पार, आरपार, प्रति | साधन-वाचक--द्वारा, जरिए, मारफत, सहारे, बल | फाय-कारण-वाचक--लिये, वास्ते, निमित्त, मारे, फारण | विषय-वाचक--विषय, बान्नत, निस्च्रत, लेखे, मद्धें। मिन्नता-वाचक--सिवा, अछावा, अतिरिक्त, बिना, रहित विनिमय-वाचक्र--पलटे, बदले, जगह साहश्य-वाचक--समान, तरह, भाँति, सरीखा, योग्य, अनुसार, मुताबिक | विरोघ-वाच क--विरुद्ध, विपरीत, खिलाफ सहकार-वाचक--साथ, सग, सहित, अधीन, वश संग्रह-वाचक--भर, तक, पयत, समेत | तुलना-वाच क---अपेक्षा, बनिस्वत, आगे ,. १३४--रूप के अनुसार सबंध सूचक दो प्रकार के होते हैं--( ) मूल ( ) यौगिक (१) जो संबंध-सूचक किसी दुसरे शब्दों से नहीं बनाए गए ईं, वे मूल संबंध-सूचक कहाते हैं; जैसे, बिना, तक, नाईं (२) जो संबंध-सूचक दूसरे शब्दों से बनाए गए. हैं, उन्हे योगिक संबंध-सूचचक कहते हैं, जैसे (कफ ) संज्ञा से--पलटे, वास्ते, बदले, अपेक्षा, लेखे | (ख ) विशेषण से--समान, सरीखा, योग्य, जैसा ( ग॒) क्रिया विशेषण से--ऊपर, नीचे, आगे, पीछे, यहाँ (घ ) क्रिया से--लिए, मारे, करके, जान | ३५--संबंध-सूचक के योग में आकारांत संज्ञाएँ विक्षत रूप में भाती हैं, जेसे, किनारे तक, चोमासे मार, लड़के समेत

हु

( ६२ )

१३१६०-हिदी में कई एक संबंध-सूचक स॒स्कत और उठ से आए हैं; इनमें बहुत से हिदी शब्दों के समानार्थी हं--तीनों भाषा के कुछ समानार्थी संबंध-सूचक नीचे लिखे जाते हैं“ है

शक

न्‍

हिदी. संस्कृत डदू | हिंदी संस्कृत ड्दू

सामने. समक्ष. खूवर। से अपेक्षा वास्ते संमुख ह्यि निम्ित्त वास्ते

पास मिकट नजदीक हेतु खातिर समीप नाई भाँति तरह

सारे .. कारण. सच्नब | से द्वारा जरिए,

पोछ पश्चात्‌ बदौलत भड़े विषय बाबत अनंतर बाद

११७--नीचे कुछ विशेष संबंध-सूचको के अर्थ और प्रयोग ल्खि जाते हैँ---

आगे>-इसका अथ कभी-कभी योग्यता वा स्वभाव होता है; जैसे उनके भागे किसी की नहीं चछती मौत के आगे किसका वश है! इवा के आगे बादल नहीं ठदहरते

पीछे--जब इससे प्रत्येकता का बोध होता है तब -इसके पहले विभक्ति नहीं आती; जैसे जादमी पीछे एक रुपया दिया जाय लड़पे पीछे दस रुपए छर्च पड़ते हैं| गाव पीछे एक किसान बुलाया गया

पास--इससे अधिकार भी सूचित होता है; जैसे; मेरे पास त्रोड़ा है। उसके पार कुछ जमीन है। “मेरे पास एक लड़को १-48 इस वाक्य का यह अथ नहीं है कि मेरा एक छडफा है; किंतु यह अथ

मेरा एक लड़का भेरे पास रहता है अथवा मेरे यहाँ एक लड़ते नोकर या आश्रित के समान रहता

सरीखा--यह बहुघा बिना विभक्ति के आता है, और विशेष्य

अनुसार बदलता है; जैसे, राम सरीखा पुत्र, सीता सरीखी स्री; अऊँ सरीखे बीर

( ६रे )

जैसा-इसका अर्थ “वरीखा” के सहझ्ञ है; पर इसके पहले “का? और (के! दोनों विभक्तियोँ जाती हैं; जैसे, हरिस्चद्र का जैसा दान किसीने नहीं किया हरिश्चंद्र के जैसा दानी कोई नहीं हुआ कभी-कभी “जैसा? बिना विभक्ति के भी जाता है; जैसे, युधिष्ठिर जैसा सत्यवादी कोई नहीं हुआ |

सा--यह कभी संबंध-सूचक, फभी प्रत्यय और फभी क्रिया-विशेषण के समान उपयोग में जाता है। इसका प्रयोग जिसा” वा “सरीखा” ' के समान है| उदाहरण--

प्र्यय--काछा सा घोड़ा, थोड़ा-सा धन; बहुत-सा रुपया |

क्रिया-विशेषण-अधेरा-सा छाया है। वह आता सा दिखाई देता है ) लड़की झमती-सी चलती है | शेर हिरन को पकडे-सा जान पडता है।

संबंध-सूचक-फूउ-सा शरीर, हाथी का-सा बल, राजा के से गुण

अभ्यास

१--नीचे लिखे वाक्यों में संबंध-सूचक- भर उनके भेद तथा उप- योग बताओो -

पश्चिम की ओर एक देश है। पहाड़ी के ऊपर नगर बसा है।' नोकर दो दिन के बांद लोठा छोग पूजा के लिए आए | बूढा छड़ी के सहारे चलता है। वह रास्ते पर दोड़ता गया। सड़क के किनारे एक पेड़ है | भोजन के पश्चात्‌ कुछ देर तक आराम फरो। उसने पंच द्वारा झगड़ा निपयवाया | माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध कोई फाम मत करो | घन की अपेक्षा धम श्रेष्ठ हे। भारतवर्ष की जैधी ऋतुएँ ओर देशों में नहीं होतीं। आप-से सजन कहाँ मिलेगे। वह मेरे पास पल मात्र ठहरा | धमं के बिना मुक्ति नही मिलती घोड़ा सवार समेत गिरा |

संबंधसूचक की व्यवस्था

वाक्य--अपराधी ने राजा के आगे दीनता के साथ क्षमा. के लिये प्राथना की, इसी लिये राजा ने उसे फॉसी के बदले जन्म भर कैद का दंड़ दिया ।'

हे

( ६४ »

आगे-*संबंध-सूचक, स्थानवाचक, “राजा? संज्ञा का संबंध “की! क्रिया से मिलता हैं |

ताथ--संबंधन्सूचक, सहचार वाचक, 'दीनता? संज्ञा का संबंध क्षी क्रिया ते जाड़ता है |

लिये--सबंध-सूचक, कार्यवाचक, क्षमा” संज्ञा का संबंध' “की” क्रिया से मिलछाता है

बदले--संवंध-सूचक, सग्रह-वाचक, “फॉसी” संज्ञा का संबंध “दिया” क्रिया से जोड़ता है।

भर--संबंध-सुचक, सम्रह-चाचक, “जन्म? संज्ञा का संबंध “कैद” से जोड़ता है।

१“ पेछले अभ्यास मे आए हुए संबंध सूचकों की व्याख्या करो।

७७७७, / “2

आठवोँ पाठ सप्ुचय-बोधक के भेद रास तन की गए ओर वहाँ उन्होने राक्षतों को मारा | मैने अपने मित्र के बुलाया, पर वह नहीं आया | माता पुत्र से कहती थी कि तुम अपना काम करना | यदि मुझे सूचना मिछती तो में उनको भेजता २८--ऊ'र छिखे वाक्यों में रेखांकित शब्द समुच्य-बोधक हैं। पहले वाक्य में “और” दूसरे में ध्यर” और तीसरे में “कि” दो-दो

उपवाक्यों को जोड़ते हैं। चौथे वाक्य पयदि? और “तो” जोड़े से आए हुए समुचय बोघक हैं

ले १३६--संबंध वाचक स्वनाम ओर संबंध-वाचक क्रिया-विशेषण

भी उप-वाक्यों को जोडते हैं, पर वे दूसरे शब्दों से भी संबंध रखते हैं | पउम्नुच्चय-वोधक उपवाक्यों को केवल जोड़ते हैं, जैसे...

( ६५ )

मेरे पास एक घड़ी है जो ब्रिल्‍्कुछ ठीक चलती है। संबंध-वाचक सर्वनाम ) |

जहाँ सत्य है वहाँ ईश्वर है। (संबंध-वाचक क्रिया-विशेषण )

वह अपना काम नही करता, क्योकि वह आछसी है (समुच्चय-बोधक) |

« १४०--कभमी-कभी कुछ समुच्यय-बोधक केवल दो शब्दों ही को

जोड़ते हैं, जेसे, दो और दो चार होते हैं। उसको दाल और भात खिलाओ विक्का अर्थात्‌ मुद्रा व्यापार के लिए. आवश्यक है।

१४१--संबंध-सूचक और समुचख्यय-बोधक में यह अंतर है कि संबंध सूचक संज्ञा सर्वनाम का सबंध क्रिया के साथ मिछाता है; पर समुचय-बोधक दो शब्दों या उपवाक्यों को केवल जोड़ता है; जेंसे,

पिता पुत्र समेत आया ( संबंध-सूचक )

पिता और पुत्र आए ( समुच्चय-बोधक )

१४२--फोई-कोई समुश्चय-बोघक जोड़े से जाते हैं; जेसे,

क्या-क्या , क्या छोटे, क्‍या बड़े सबको दुःख होता है।

या-या या काम करो या घर जाओो।

न-न उनके पास वच्त्र है, अन्न |

चाहे-चाहदे ठुम चाहे रहो चाहे जाओ |

चाहे-पर चाहे धन चला ज्ञावें, पर मान जावे | रे / 4 /

यदि-तो यदि समय मिलेगा तो में वहाँ जाऊँगा

_यद्यपि-तथापरि (तो भी) वद्यपि हम दीन हैं तथापि नीच नहीं हैं। इसलिएं-कि वे इसलिये आए थे कि आपसे कुछ कहते १४३-कई-कई समुच्चय-बोधक दो शब्दों से मिलकर बने हैं; जैसे,

क्योकि में जाऊँगा, क्योकि मेरा जी अच्छा नहीं | नकि बह मेरा भाई है, कि साथी नहीं तो तुम समय पर जाओो; नहीं तो गाड़ी मिलेगी |

' इसलिये कि-पिता ने पुत्रकों बुछाया, इसलिये कि उसे कुछ शिक्षा दे |

अ्इालाहागे 2 3००»न«-+-+ जरर>भ्ममन्‍य

डे

( ९६

शम आवेगा ओर कृष्ण जावेगा

शाम आवेगा, या क्रष्ण आवेगा |

रास आवेगा, पर कृष्ण आवेगा | राम आया, इसलिये कृष्ण नहीं आया। २७४४-..-ऊपर लिखें उदाहरणो में रेखांकित समुच्य-त्रोधक के

समान स्थितिवाले दो दो उपवाक्यों को जोड़ते हैं, - इसलिये उन्हें समानाधिकरणश समुच्चय-बोधक कहते हैं |

१४४--समानाधिकरण समुच्यय बोधक चार प्रकार के होते हैं-*

(१)संयोजक-वे एक बात के साथ दूसरी बात जोड़ते हैं जैसे, राम आवेगा और कृष्ण आवेगा | क्‍या बूढ़े, क्या जवान; सब्र उससे प्रसन्न ये।

ओर” के सथानार्थी “तथा? “एबं” और “व हैं ; इनका ठप- योग “ओर” की पुनरक्ति मिटाने के छिये किया जाता है। व” उदू शब्द हैं ओर इसका प्रचार कम हे |

(२ ) विभाजक--इनके द्वारा दो बातों में किसी एक का स्वीकार अथवा दोनो का निषेष होता दे, जेसे, लड़का जावेगा या छड़णो आवेगी | जद्दी जाओ नहीं तो घंटी बच जायगी | इधर के हुए उधर के हुए | चाहे रहो चाहे जाओ | & 2५ हे बे ते ८6 न्‍ ( ) विरोध-दशंक--इनसे दो बातों में विरोध सूचित होता है; जेसे लड़की चतुर है, वह आलूसी है। मोहन देरी से आया, तो भी चुछा लिया गया। सोहन को क्षमा दी जावे, वरन्‌ दंड दिया जावे “पर” के समानार्थी “परंतु”, “लेकिन” और “मगर? हैं। इनमें

मगर” उदू है इसका प्रयोग कम होता है।

(४ ) परिमाण-दुर्शंक--इनसे सूचित होता है कि अगली बात पिछली वात का फल हैं; जेंसे,

६७ 2)

वह बीमार है, इसलिए पाठ्शाछा नहीं गया। वे सुझे नहीं मिले

सो मैं वहाँ से लौट आया | - “इसलिये” के समानार्थी, “अतएव” और “अतः” हैं। कमी-कभो

“इसलिये?” के बदले “इस वास्ते?, “इस फारण??, या “इससे? जाता

है। कानूनी हिंदी में “इसलिये?! के बदले बहुधा “लिहाजा?” लिखा जाता है।

लड़के ने कहा में जाऊँगा

लड़का पाठशाला नहीं गया, क्योकि वह बीमार है। यदि तुम मेरे साथ चछोगे तो आनंद होगा। यद्यपि हम दीन हैं, तोभी सदाचार से हीन नहीं

_. १४६--ऊपर लिखे वाक्यों में रेखांकित समुच्चय-ब्रोधक ऐसे उप- वाक्यो को मिलते हैं, जिनमे से एक उपवाक्य दूसरे पर अव्ंबित रहता है| पहले वाक्य में “में जाऊ गा? उपवाक्य “लड़के ने कहा”? , उपवाक्य पर अवल्ंबित है और वह “कि” समुच्चय-चोधक से जुड़ा है दुसरे वाक्यमें “क्यो? समुच्यय-बोधक पिछले मुख्य उपवाक्य के साथ अगले अवलंत्रित उपवाक्य को जोड़ता है। तीसरे उदाहरण में “यदि”? ओर चोथे में “यत्यपि!” अवलब्रित उपवाक्यों को जोड़ते हैं | जो समुच्चय नोधक अवलंबित या आश्रित उपवाक्य को मुख्य डउपवाक्य के साथ जोड़ता है उसे व्यधिकरण समुचय-चोधक कहते हैं--.-

१४७--व्यधिकरण समुचय-बोधक सुख्य चार प्रकार के होते हैं--

(१ ) स्वरूप-वाचक--इन अव्ययो के द्वारा जुड़े हुए वाक्यों या शब्दों में से पहले वाच्य शब्द का स्वरूप ( अथ ) दुसरे वाक्य या शब्द से जाना जाता है, जैसे,

राजा ने कहा कि मैं अपराधी को दंड दूँगा | आपने ठीक किया जो' यह बात उनसे नहीं कही सिद्धार्थ अर्थात्‌ गोतम शुद्धोदन के पुत्र थे बादशाह का बेटा याने शाहजादा शिकार को गया |

प८ )

(९) कारण-बावक--ये अव्यय एफ वाक्य का कारण दूसरे वाक्य से सूचित करते हैं; जैसे, |

लडकी आज नहीं आई, क्योकि उसकी माँ बीमार द। मैंने तुम्हे इसलिये पुकार था कि तुम रास्ता भूछ गये ये | में बढ्ों गया था इस- लिये कि आपने मुझे भेजा था जा

( ) उहेश्य-वाचक--इन अव्यययों से एक वाक्य का निमित्त वा फछ दूसरा वाक्य सूचित करता है; जेंसे,

हम तुम्हे इंदावन भेज्ञा चाहते हैं कि तुम उनका समाधान कर आगो इसने उन्हे इसलिये बुलाया है कि भेंट हो जाय | नौकर परि- श्रम करता है, इसलिये कि उसे पैछा मिले। चिटियों की रकिस्टरी की जाती दे ताकि वे खो जायें | वहाँ ऐसी सर्दों पड़ती हे कि पानी जमकर पत्थर हो जाता है। 8 5

(४ ) संकेत-बाचक--वे अव्यय रक वाक्य में कोई संकेत (शत्त) अकट करते हैं और दूसरे वाक्य में उसका फूछ बताते हैं। ये अव्यय जोड़े आते हैं, जैसे,

जो तू मेरी बात मानेणा तो तेरा भला होगा | यदि में स्वस्थ होता तो अवश्य आपकी सहायता करता कहीं कोई देख लेगा तो बड़ी दुददंशा होगी अगर जाप जावेंगे ते काम बन जायगा |

“यद्यवि-तथापि” जौर *चाहे-पर” भी संकेत-वाचक समु्चय-जों धक हैं, पर इससे कुछ विरोध सूचित होता है, जैसे,

यद्यपि द््स दीन हैं तथापि धर्म-हीन नहीं हैं

यद्यपि मेने उनसे निवेदन किया तो भी वे सदस्य हुए | चाहे धन चला जावे, पर घम्म जाना चाहिए.

. . ८<““नीचे कुछ समुच्चय-बोधको के विशेष अर्थ ओर प्रयोग लिखे जाते हैं-.

रे जब शब्द सर्वनाम, विशेषण और क्रिया-विशेषण भी होता ई, जैसे, जोर को मत बुछाओ ( स्वनाम ) ओर दूध चाहिये ( विशेषण )

( ६९ )

ओर धीरे चलो क्रिया-विशेषण )

जन्न इसका प्रयोग समच्य-न्रोधक के समान होता है, तब्र यह साधा- रण अर्थ के सिवा नीचे लिखे विशेष अर्थों में भी आता है--

(१ ) समकालीन घटनाएँ; जेंसे, आप गए, ओर विपत्ति आई--

(२) नित्य संबंध, में हैँ मौर आप हैं

( ) धमकी या तिरस्कार; जेसे, फिर में हैँ और वह है। तुम जानो ओर तुम्हारा फाम जाने |

कि--यह समुच्चय-च्ोधक कई अर्थां में भाता है।

(के ) संयोजक; जेसे, थोड़ी दूर गया कि एक आदमी मिला |

(ख ) विभाजक; जेसें, आप सुनते हैं कि नहीं !

(ग ) स्वरूप-बाचक; जेसें, उसने कक्षा कि मै जाऊँगा।

(घ ) कारण-वाचक जेसे, वह इसलिये आया है कि उसे रुपयों

की जरूरत है

( # ) उद्देश्य-बाचक; जैते, वह इसलिये आया है कि आपसे मिले। जो यह शब्द संबंध-बराचक सवंनाम भी हैं; जेसें, “जो?? आया है सो जायगा | जब यह समुचय-बोधक होता है तब्र “यदि” तथा “क्र? के बदले भाता है; जैसे, ( “यदि”? के बदले ) जो तुम आभोगे चढेगा | * ( “कि” के बदले ) आपने ठीक किया जो मुझे सूचना दे दी ऐसा करो जो उसके प्राण बचें इसलिये--यह परिणाम-वाचक; सुत्चयय-बोधक है; पर कमी-कमी इसका प्रयोग क्रिया-विशेषण के समान होता हैं; जैसे राम इसलिये बन फो गए कि उनके पिता ने आज्ञा दी थी। जब “इसलिये” के साथ “कि” का योग होता है तब “इसलिये-कि” संयुक्त समुच्चय-बोधक हो जाता है। ओर वह फारण-वाचक तथा उद्देश्य-वाचक दोनों प्रकार, का हो जाता है। मनुष्य को बड़ी का कहना मानना चाहिए, इसढिये कि वे छाभ की बात कहते हैं |

दर

( ७० )

नौकर परिश्रम करता है, इसलिये कि उसे पेसा मिले | चाहे--जब यह शब्द जोड़े से आाता है, तब विभाज॑न समुचय- के होता है, जैसे, आप चाहे जबलपुर में रहें चाहे नागपुर में जप

सके साथ दुसरे वाक्य में “परंतु” आता है, तत्र यह संकेत-वाचक समुच्प्र-बोघक ढोता है; जैसे, चाहे वह जावे, परंतु में अवध आऊंगा। “चाहे” बहुचा संभव वाचक सवनाम, संबंध-वाचक विशेषण और सर्वंधन्वाचक क्रिया-विशेषण की विशेषता बतलछाता है; जैसे,

यहाँ जादे को कहलो पर वहाँ कुछ कह सकोगे

तुम चाहे जितनी बाते कहो, पर से उनपर ध्यान दूँगा

तुम चादे जहाँ रहो, में तुमसे अवश्य मिलूगा। -

श्र रे हैँ

अज्यात्ष

१--मिम्नलिखित वाक्यों में समुश्ययन्भोपक ओर उनके भेद बता भो-- सवेरा हुआ और सूरज निकछा | जाप जाए चिट्टी भेजी | वह देने में तो सीधा है पर उसके पेट में दाँत है। तुम आभोगे कि हीं? इसने कद्दा कि मं जाऊंगा | वे चाहे रहें, चाहे जावें | वह इस- थे आया है कि आप उस्से कुछ पूछे में इसलिए, आया हैँ कि आपने मुझे बुलाया था| जो में जानता कि आप मिलेंगे; तो मैं कभी आता ।- ता युत्र को छाख समझाता है, पर यह्द उसकी बातें नहीं मानता | प्रजा ने राजा के विदद्ध पुछार मचाई क्योंकि उसपर अत्याचार हुआ था। कुछ कम्ाभो नहीं तो भूखों सरोगे छडके ने अभ्यास नहीं किया, इसलिये वह नापास हो गया या तो में जाऊँगा या वह जावेगा

९“ नीचे लिखे दो वाक्यो को उपयुक्त समुञ्य-बोधकों के द्वारा

जाहठो+--

जल ढ2

दि भं

उुछाया--वह अभाी तक जाया |

चेह भाग गया--उसे चोर का डर लगा |

बन

मा ( ७१ )

है

ब्ट

बह मुझे बुलावेगा--मैं उसके यहाँ जाऊँगा |

ज्वर की दशा में--भूख छगती है--नीद नहीं है * मैं काम पर नहीं गया--मेरी बहन बीमार थी। लड़का नम्न वचन बोलता दै--सब्र उसे चाहते हैं। तुम छाटे हो--बुद्धि में बडे |

[|

समुच्चय-बोधक की व्याख्या वाक्य--मै अपने मित्र के घर जाता हूँ. अथवा मेरा मित्र मेरे घर आता है; परंतु यदि इस प्रकार भेंट नहीं होती तो दोनो संध्या के समग्र पुस्तकालय में मिलते हैं | अथवा--समाना धिकरण समुच्चय बोधक, विभाजक दो वाक्‍्यों की मिलछाता है-- (१ ) में अपने मित्र के घर, जाता हूँ।। (२) मेरा मित्र मेरे घर जाता है प्रंतु-समानाधकरण समुच्यय-बोघक, विरोध दर्शक, दो वाक्यों फो जोड़ता है-- है (१ ) मेरा मित्र मेरे धर आता है | (२) दोनो संध्या के समय पुस्तकालय में मिलते हैं यदि--व्यधिकरण समुच्चयय बोधक, संकेत-वाचक, दा वाक्यो को “मिलाता है-- ( ) इस प्रकार भेंट नहीं होती | (२) दोनो संध्या के समय पुस्तदालय में मिलते हैं तो--व्यधिकरण समुज्यय-बोधक; “यदि?? का नित्य संबंधी अभ्यास | १-पिछले अभ्यास में आए हुए समुचय-वोधको की व्याख्या करो। |

4 -सब-लपर पक क३.पधामन्‍पा-0०>ग मिट पररामाफाक: कर

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( ७२ ) नवाँ पाठ विध्ययादि-वोधक के भेद बाह | ठुम् यहां घूम रहे हो !

| दुशे ने राजा को मार डाला | | मेरी छाती में दद हो रहा है |

/]

धूप 2

है

छः |

१४९---ऊपर लिखे वाक्यो में रेखांकित शब्द कोई तीत्र भाव: या मनोविकार सूचित करते हैं ओर वाक्य के किसी दूसरे शब्द से संबंध

नहीं रखते। वे, शब्द पशुओों की ध्वनियों से मिलते हैं। इल्हे विस्मयादि-वोधक कहते हैं

बनने

का

१५००-विस्मयादि बोधक भिन्न-मिन्न प्रकार के मनोविकार सूचित करते हें; जैपत,

विस्मय ( आश्रय ) वाह | हैं | ऐएं | ओो हो | वाह वा |

हृप>भहा | जाहा | अहह | पन्य | शाचाश !

शोक>-हाय | हा हा | आह ] ऊद | हाय द्वाय |

क्राध--चुप ] हट | क्यो | अवे ]

स्वीकार--टीक | भरता | हाँ | जी | अच्छा !

सत्रोधन--अजी | अरे | रे ! छो | हे |

१५१-कई एक संज्ञाएँ, विशेषण, क्रियाएँ और क्रिया-विशेषण विस्मयादि-बोघक के समान उपयोग में जाते हैं; जैछे,

भगवान्‌ | भारतवर्ष में गूँजे इधारी भारती !

रामनराम | कंसा लनर्थ हो गया |

भला | वह आपके पास कैसे जाया

इट ! अब ऐसा मत कहना |]

७३४ »

क्यों | फिर तो ऐसा कहोगे ?

१५ २---करमीन्कभी - वाक्यांश में अथवा पूरा वाक्य विस्मयादि-बोघक के समान जाता है; जैसे, बहुत अच्छा | धन्य महाराज | क्‍यों हो | क्या बात है |

१५३--जब विध््मयादिन्व्रोधक का उपयोग संज्ञा के समान होता है, उस समय वह विस्मयादि-बोधक नहीं रहता है; जैसे, आपको धन्य है। वहाँ हाय-हाय मची है। उनकी वाह-वाह हुईं ।_

१५४--नीचे कुछ विस्मयादि-्च्ोधर्कों के विशेष अथ ओर प्रयोग

» लिखे जाते हैं। -:

क्या--प्रश्नवाचक सर्वनाम है; पर इसका उपयोग प्रश्नवाचक क्रिया विशेषण के समान भी होता है; केसे, क्‍या तुम वहां जाओगे ! जन्न इससे तीत्र मनोविकार सूचित होता है तब यह विस्मयादि-बोधक होता है; जैसे, क्या | तुम अभी तक वहाँ नहीं गए ?

अरे, अजी--“भरे! से अनादर और “भजी'से आदर सूचित होता है। 'अरे! का स्त्रीलिंग “भरी” है।

हॉ--यह प्रश्न के उचर में पूरे वाक्य के बदले जाता है; जैसे; क्‍या

/ तुम वहाँ जाओगे ? हाँ। कोई-कोई वैयाकरण इसे क्रिया-विशेषण मानते

हैं; पर इसका संबंध क्रिया अथवा दूसरे शब्द से नहीं - होता, इसलिये इसे विस्मयादि-्त्रोघषक मानना उचित है |

अच्छा; भलछा--ये शब्द विशेषण हैं; पर इनका उपयोग “हाँ? समान स्वीकार के अथ में भी होता है; जैसे, अच्छा, एक बात सुनो भला; तुमने उसे देखा भी है; इस अथ में शब्द विस्मयादि-ब्रोघक हैं

अभ्यास्त

१--निम्नलिखित वाक्यों में विस्मयादि-बोधक झभोर उनके भेद बताओं+--

वाह | केसा अच्छा गाना है | भद्दा | ' भाप कत्र भाए भोहो !

रे

. येतो स्वामी हैं। छिः | हम ऐसा काम नहीं करते शाबाश | छोटे

है

( ७४ )

लड़के ने बाजी जीत छी | ठीफ | इसी तरह काम करते जाओ | क्या, वह अत्र आवेगा? हाँ, वह आवेगा राम राम | कैसे दुःख की बात है | हरे-हरे | मैने बड़ी भूठ की | आइ | मेरे सिर में बड़ी पीड़ा है| विस्मयादि-बोघक की व्याख्या

वाक्य--ओोहों | में बढ़ा माग्यवान हूँ. कि आपके दश्यन भिले। छि; | आप ऐसा विचार मन में छावे |

ओहो--विस्मयादि-बोधक, हृषवाचक | छिः«>पिस्मयादि-बोघक; घुणान्वाचकफ | १--पिछले अभ्यास में आए हुए विस्मयादि-ब्रो धको की व्याख्या करो।

रपट 2+क००००8 (राह: अा०८क ॥%र्क्फकावात,

०१4 दसंदा पाठ 2 हल पक राच्द के अंनक शब्द-भद्‌

मैं और हूँ; तू ओर है। ( सबनाम ) मुझे मोर दूध दो ( विशेषण ) बह और घांरे चलेगा। ( क्रिया-विशेषण ) लड़का आया ओर छड्की गई | ( समुच्चय बोधक )

१४४--पूर्वोक्त वाक्‍्यों मे “भर” शब्द अनेक शब्द-भेदो में भाव है। पहले वाक्य में वह सर्वनाम है; दूसरे में विशेषण और तीसरे: क्रियान्विशेषण है। चौथे वाक्य में वह समुख्य-बोधक है | इस प्रकी के और भी कई शब्द हैं जिनका शब्द-भेद निश्चय-पूर्वक्त तमी बंता जा सकता है जब उनका प्रयोग वाक्य भें किया जावे

१४६०--नीचे कई

शब्दों के मिन्न-भिन्न शब्द-मेदो के उदाईर दिये जाते हैं. ४.

शब्द ण्क

ऐसा

कारण

कुछ क्या

चाहे

जैसा

जैसा

झब्द-भेद सवनाम विशेषण क्रिया-विशेषण सर्वनाम विशेषण क्रिया-विशेषण संबध सूचक सुंज्ञा

सबंध सूचक समुचय-वाघक सर्वनाम विशेषण क्रिया-विशेषण समुच्चय-त्रो घकक सर्वनास ., विशेषण समुच्चय बोधक विस्मयादि-बो घक क्रिया क्रिया-विशेषण

समुचय-बोधक सर्वनाम विशेषण क्रिया-विशेषण

संबंध-सूचक

७५ 2

उदाहरण

वहाँ एक जाता है, एक जाता है | एक दिन ऐसा हुआ

एक तो में इद्ध हूँ दूसरे निबंल हूँ ऐसा मत विचारों

ऐसा घर कहाँ मिलेगा ?

रूंड़का ऐसा दोड़ा कि गिर पड़ा |

उसे राजा ऐसा पति मिछा है। बीमारी का कारण नहों जाना गया | बीमारी के कारण बह चल नहीं सकता। राम नहीं गया; कारण वह बीमार था। उसके 'हाथ में कुछ है।

वह कुछ काम करता है|

लड़की कुछ बड़ी है

कुछ तुम समझे कुछ हम समझे

तुम क्‍या चाहते हो ?

क्या में जाऊंगा ? क्‍या तुम जाओोगे

क्या छोटे क्‍या बड़े सब उसे चाहते थे

क्या वह नहीं भाया ,

यदि वह चाहे तो उसे भेजो |

तुम चाहे जितना करो में कुछ कहूँगा |

चाहे वह जाय, पर में जाऊगा |

जेसा बोओगे, वैसा काटोगे |

जैसा देश, वेसा भेष

वह जैसा यहाँ रहता है, वैसा वहाँ रहेगा।

ईश्वर आपका जेसा पुत्र सबको दे

७६ )

लो सवनाम * आपजो चाहें सो कर सकते हैं। विशेषण जो बात होनी थी, सो हो गई।

क्रियाविशेषन. जो गठरी खोली तो उसमें कुछ मिला समुच्ययन्तोषक. जो तुम ठहरोगे तो मैं चर्दूगा।

भ्रद्ा संज्ञा अब किसी का भछ्ता होगा | विशेषण आप भला तो नग भक्रा |

क्रिया-विशेषण आप भले आए * समुच्चयन्योघषक. वह भले जावे, पर में जाऊँगा। विव्मयादिन्तोघक भरा | वह क्या कहता था -

साथ सज्ञा दिन मेरा और उसका साथ रहा क्रिया-विशेषण बाप और बेटा साथ रहते हैं। सबंध-सूचक किसी का साथ मत करो | समुच्यय-चो धक डनके घर जाना; साथ ही उनसे भार

के लिये कहना | अभ्यास

१०“नीचे छिखे वाक्यों में रेखांकित शब्दों के शब्द-मेद कारण सहित बतामो---

पर की लुछाया और दस आए। एक तो गुणच कड़वी, दूसरे नीम चढ़ी | सॉप मरे छाठी टूटे

बालू ऐसी करकरी, उज्ज्यछ ऐसी घुप एसा मीठी कुछ नहीं, जेसी मीठी चुप |

वह कुछ डर से और कुछ प्रेम से ऐसा करता है। बहुत गई थोड़ी

"हा | इस वहां थोडे जाते हैं। थोड़ा जोर ०. जाते हैं। थोड़ा जोर हटो और क्या होगा यह वात और जाति में होती है। काछ अचानक मारिहै, क्या घर, क्या परदेश |

७७ ) वह भला गया। भला हुआ जो आप नहीं गए | मै वहाँ जो गया था। जो आप मुनी की नाई जाते तो मै आपके चरणों की धूलि सिर

पर रखता | इस समय तो मेरे पास रुपया नहीं है। उत्तम मनुष्य का साथ छोड़ना चाहिए; साथ ही उसका आदर करना चाहिए |

२--नी चे लिखे शब्दों का उपयोग उदाहरण देकर अलगन्भथरूग शब्द-मेदो में करो

आगे, पीछे, कोई, बहुत, समौन, सच

चौशा अध्याय राब्द-साधृन

पहला पाठ

पेकारी और अविकारी री पहले एक लड़का फिर एकू छडकी आई उह जा लड़के खेलते थे, उन्हें सिपाही ने हटा दिया |

लड़क अपने घर गए | वे अब खेलेंगे |

+१७--ऊपर लिखे वाक्यो मे रेखाकित शब्द ऐसे हैं, जिनका रूप

अथ के अनुसार बदल गया है | पहले वाक्य में लड़का शब्द संज्ञा है

आर वह पुदप जाति का बोध कराता है उनको बदल कर “लिडकी” सज्चा बनाई

855 5 है जिसम॑ जी जाति का बोष होता दूसरे वाक्य में

|

नम

्क

्डः क्य दे र्‌ कक से उन्हें? सवनामस जाया है। यह शब्द तीसरे वाक्य हे; 5०4 हुए यू?वख्ु वंनाम का ख््प पे | चोयथे वाक्य में ध्छ़ोटा! उिश्यणम साया 2 हि ; छाया डे जिमका रूप “छडकी?? संज्ञा के कारण “छोटी” हो

गया 2 |

स्र्स्प बाय दल सत्र 9 हे यम _ खेलते ये क्रिया आई है। इसका रूप चखिलेंगे' पता जा तीसरे वाक्य में साया हें

के 8, ] कं स्न्ल्कक 5) स्व गे ] ध्प्य दि ०० 70 है 704॥

क्‍

कक के.

से, कल5

$

( ७६ )

बदल जाता है उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, स्वनाम, विशेषण ओोर क्रिया विकारो शब्द भेद हैं

लड़का अभी आया है, परंतु लड़की अमी नहीं भाई लडके के पास पुस्तक है, परंतु लड़की के पास पुस्तक नहीं है ओहो ! मेरा भाई और बह्विन भा गये |

$

१५ ८---उपयुक्त वाक्यों में रेखांकित शब्द ऐसे हैं जिनका रूप अथ के अनुसार या दूसरे शब्दो के संबंध से कभी नहीं बदछता। पहले

' वाक्य में “अभी” शब्द क्रिया-विशेषण है। यह दो बार उसी रूप में

आया है। इसी प्रकार “नहीं”? क्रिया-विशेषण पहले और दूसरे' वाक्य में एक ही रूप में आया है। तीसरे वाक्य में “पास” संबंध-सूचक दो बार आया है; पर उसका रूप नहीं बदला

पहले और दूसरे वाक्य में “परंत”” शब्द समुच्यय-नोधक है और

' उसका प्रयोग दो बार हुआ है। दोनो स्थानों में उसका रूप जैधा का

तेता है। चौथे वाक्य में “भोहो?” विश्मयादि-बोधक का प्रयोग हुआ है। वह शब्द भी सदा इसी रूप में रहता है।

जिन शब्दों का रूप अथ के कारण अथवा दूसरे शब्दों के संबंध में नहीं बदलता उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी शब्द बहुघा अव्यय कहलाते हैं | क्रिया-विशेषण, संबंध-सूचक समुच्4-न्रोधक और विस्मयादि-बोधक अविकारी शब्द-भेद अर्थात्‌ अव्यय हैं |

अभ्यास

१--नीचे छिखे वाक्यों में विफारी शब्द ओर अव्यय बताओ--

,. लड़का अभी नहीं आया। छड़की अभी नहीं आईं | में कल » गाँव फो जाऊँगा। वहाँ मेरा फाम है मेंने कई गॉव में दोरा किया है। किसान खेती करते हैं। कई छोग व्यापार या नोकरी करनेवाले हैं

( ८० )

किसानों को बड़ा श्रम करना पड़ता है। नोकर आज जायगा। वह अचानक गया ओर अचानक आया | उसे बड़ी कठिनाई हुईं। यह काम काठेन था | उसके छड़के और लड़कियाँ गईं | तुम कहाँ रहते हो ? में वहाँ नहीं था। हाय | उसका द्वाथ टूट गया

609७ »कान्‍जक टिा2..व0व:॥ ३०७-5:%:कप,

दूसरा पाठ

संज्ञा का लिंग ल्डका छोटा था | लडकी छोटी थी | बालक आया | बालिका भाई | घोड़ा घास खाता है। घोडी घास खाती है। बाघ जगल में है बाधिन जंगल में है।

१५४६--ऊपर बाई ओर लिखी रेखाकित संज्ञाओ.से प्राणियों को 35५जाति का बोध होता है; मौर दाहिनी ओर लिखी रेखांकित स्ार्थों से ल्ली-जाति का अर्थ पाया जाता है| पुरुष-बोधक संशाओों को व्याकरण मे पुल्लिंग और स््री-वोधक संज्ञा को स्ी-लिंग कहते हैं। प्राणियों का जोड़ा-अथवा पदार्थों की जाति बनाने के छिए शब्दों में जो रूपांतर होता है उसे लिंग कहते हैं | बहुधा पुरुषवाचक संज्ञा दी को, रूप बदलकर, स््री-वाचक संज्ञा बनाते हैं; जैसे, छडका --लड़की बालक--बा छिक्का बाघ--बाधिन ६६००-हिंदी प्राणिवाचछ संज्ञाओ के समान अप्राणिवाचक संशाएँ भी पुछिंग वा छ्रीलिंग होती हैं; जेपे, पुछिंग--कपड़ा, घर; पत्थर, पानी, पेड़ | जीलिंग - टोपी, उत, चट्टान, ओस, जड़ |

धघोड़ा--घोड़ी

|

मे

( ८१ )

१६१--कई-एक मनुष्येतर प्राणिवाचक संज्ञाएँ केवल पुछिंग या

स्रीलिग होती हैं; जैते, " पुछिंग--भेड़िया, चीता, पक्षी, उच्छू, फछुभआ, खदमल | स्रीलिग--गिलहरी, चील, फोयछ, तितली, मक्खी, जोक १६२--अप्राणिवाचक संज्ञाओं से जोडे का बोध नहीं होता;

इसलिये इनका लिंग इनके रूप से जाना जाता है। अप्राणिवाचक

संज्ञाओं का लिंग नीचे छिखे नियमो के अनुसार निश्चित किया जाता है-«

हिंदी संज्ञाए ...पुल्निंग ( १) कई एक अकारांत संज्ञाएँ; जेसे धन, बल, अनाज; घर, सिर, गाँव हु (२ ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष अकारांत संज्ञाएँ; जेसे कपड़ा, पेसा, गन्ना, आटा, माथा $ ३े ) जिन भाववाचक संज्ञाओ के अंत में आव, पन या पा होता है; जैसे, बहाव, लड़कपन, बुढापा | मे (४ ) क्रियाथक संज्ञाएँ; जेसे, आना, जाना; गाना, खाना, तेरना

सोना

(५ ) कृदंत की अनंत संज्ञाएं, जैसे, मिलान, लगान, महान, पिछान; खान-पान, उठान |

अपवाद--पहचान, उड़ान, सुस्क्यान | हें

सत्रीलिंग .

(१ ) ईकारांत संज्ञाएँ; जेसे, चिट्ठी, नाठी, खेती, मिट्टी, योपी नदी | अप०--पानी, घी, जी, दही, मही, मोती

(२) जिनके अंत में “आई” हो; जसे, भलाई, बुराई, ऊँचाई,

' पिसाई, लिखाई; बुना

(३ ) ऊनवाचक याकारांत संज्ञाएँ; जेसे, खठिया, डिबिया, फुड़िया पुड़िया, -ठिलिया, डलिया

( झरे )

(४) ऊकारांत, संज्ञाएँ; जेते, बालू, व्याल, दारू, ढू, झाड़ू, गेरू। अप०--चजाढू, जॉसू, टेसू , निब्यू | (५ ) तकारांत संज्ञाएँ, जेते, रात; छत, बात, बचत, मीत अप०«»-मात, दॉत, खेत, सूत | ( ) सकारांत संज्ञाएँ, जेसे, प्यास; मिठास, बास, बकवास; फॉँस, सास | अप७--काँस, बॉस, निकास | ( ) कदंत की अकारात वा नकारांत संज्ञाएँ; जैसे, दूट, समझ, दौड़; रगड, सूजन, उछ्झन, जलन, रहन |

( ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ट, वट वा हट, होता है; जेंसे झंझट, पुट, सजावट, बनावठ, श्रवराहट, चिकनाहट |

।3

] पु है परकूत संज्ञाएं (१) जिन संज्ञाओं के अंत मे आर” “आय??, वा “आस” हो ? विकार, विस्तार, अध्याय, विकास, हास | अप०--सहाय और आय (२ ) जिन संज्ञाओं के अंत मेजवाद हो; जेंसे, जलज, सरोज, पिडज, जलद, सुखद, घनद | ह॒ प्रर ध्े ओऔओआ हि (३ ) प्रत्ययांत पज्षाए; जते, मत, स्वागत, गीत, चरित, गणित लिखित | (४) जिनके अंत शो होता है; जेसे चित्र, चरित्र, पत्र, नेत्र, पात्र | + | 2 से नात सज्ञाएं, जैसे, पालन, पोषण, नयन, वचन, शासन, दमन | मु (5) गन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में तू, त्य, अथवा होता “ते, पर्तीज़ि, बहुत्व, उत्व, झत्य, छाघव, गौरव, सोदय, माधुय, स्वास्थ्य। ख्रीलिंग

(१ ) अकारांत वा नकारांत स॑ आथना, वेदना, प्रस्ताव |

५३ जंत

52 ओके शाए, जंसे, दया, माया, कृपा, छजा;

( ८३ )

(२ ) उषरांत संज्ञाएँ; वायु, रेणु, मृत्यु, वस्तु, ऋत

अप०--मधु ०, अश्ु, ता, तर

(३ ) जिनके अंत में ति, थि वा नि होती है; जैछे; गति, मति॥ शक्ति, वृद्धि, सिद्धि, हानि, ग्लानि |

(४) जिनके अंत में होती है; जैसे, छवि, राशि, रुचि; केलि, मणि, वीथि |

अ१०--वारि, गिरि, आदि, वलि।

(५) इमा प्रत्ययांत संज्ञाएँ; जैते, महिमा, गरिमा, फालिमा, छालिमा |

(६) ता प्रत्ययांत माववाचक संज्ञाएँ; जैसे, नम्नता, लघुता, सुंदरता, प्रभुता, मूखंता, सहायता

उद्‌ संज्ञाएँ पुल्लिंग (१ ) जिनके आंत में आब होता है; जैसे, गुलाच, जुलाब, हिसाब, जवाब, तेजाब, असच्नाच अप०--किताब, मिहरात्र, शराब, ताच | '( ) निनके अंत में मार, आल वा जान होता है; जैसे, बाजार, इश्तिहार, सवाल, हाल, मकान, सामान | अप०--दूकान, सरकार, तकरार (३) जिनके अंत में रहता है जो,हिंदी में हो जाता है; जैठे, परदा,; गुस्सा, रास्ता, चश्मा, तमगा, ( हिं०--तगमा ) किस्सा | स्लीलिग..' (१ ) इकारांत भाववाचक संशाएँ; जैसे, गरीबी, ईमानदारी, गरमी, सरदी, बीमारी, चालाकी (२ ) शकारांत संज्ञाएँ; जैसे, नालिश, फोशिश, लाश, तलाश, मालिश, परवरिश अप०--तोश, होश

( ८४ )

( ) आकारात संज्ञाएँ;जेसे, हवा, दवा, सजा, बछा, जमा, हुआ |

अप०--दगा |

( ४) “तफइल” के वजन की संज्ञाएँ; जैसे, तसबीर, तकदीर, तदबीर, तहयीछ, तफसीछ, जागीर |

अप०«्ताबीज | -

१६३०-अथ के अनुसार अप्राणिवाचक संज्ञाओं का छिंग जानने के लिये कुछ नियम दिए जाते ईं-...

पुद्धिग

( १) देशों, पर्वतों ओर समुद्रा के नाम; जैछे, भारतवर्ष, नेपाल, हिमालय, अवेछी, छाछ समुद्र, फाला सागर |

( ) ग्रहों के नाम; जेंसे, सूर्य, चंद्र, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि |

अप०-- एथ्व] |

हे) समय के विभागों के नाम; जैसे, वर्ष, मास, दिन; सप्ताह, पाख, पछ |

अप०--सॉझ, रात, घड़ी, बेला |

(४) बातुओ के नाम; जैसे, तॉँबा, पीतछ, कॉसा लोहा, सोना रूपा छखप०««ञचॉदी |

(४) रत्नों के नाम: जैसे, हीरा पन्ना, नीछाम, मोती,मूँ गा, मानिक अप०--मणि, चुन्नी

(३) पेड़ों के माम; जैसे, पीपल, बड़, सागोन, कदंब, पाकर; जामुन | अप०--नीम, इमली, बेरी है

(७) जनाजो के नाम; जैसे, जौ, गे चावल, बाजरा, मटर, चना | अप०--अरहर, ञ्ू है ससूर; जुआार

(८2) द्रव पदार्थों के नाम; जैठे, घी, तेड पानी, दही,मही दघ लप१०--छाछ, कॉलजी (६) अक्षरों के नाम;

अक्षरों के जैछे, अ, भा, अनुस्वार, विसग॑, क, है सप०-> ३, हू, पं | ' ह॒

( ८५ )

'बीलिंग

(१ ) नदियों ओर झीलों के नाम; जेसे, गंगा, जमना, नमंदा गोदावरी, सॉमर, चिल्का

( ) तिथियोके नाम; जेंसे परिवा, दूज, तीज चौथ, पूनों, अमावस।

( ) नक्षत्रों के नाम; जसे, अश्विनी, भरणी, कृचिका, रोहणी आद्रां, भश्लेषा |

) किराने के नाम; जेंसे, छोंग, इलायची, बादाम, सुपारी

केतर, दालचीनी

अप०--कपूर, तेजपात कर

(५) भोजनो के नाम; जेछे, रोटी, पूरी, कचौरी; खीर, दाछ, खिचड़ी।

अप०--भात, रायता, लड्डू, हछ॒वा |

१६४--फोई-कोई संज्ञाएँ, दोनो छिंगों में आती हैं; इसलिये उन्हें उभयलिंग कहते हैं। उमयलिंग संज्ञाओ के कुछ उदाहरण ये है-.

आत्मा, कलम, विनय, ग्रड़बड़, बफ, घास, समाज, चलन |

१६५४--हिंदों में अधिकांश शब्द संस्कृत से आए हैं और तत्सम तथा तद्भधव ' रूपो में प्रचलित हैं इनमें से कई शब्दों का मूल लिंग हिंदी में बदल गया है; जेसे,

तत्सम शब्द हा संस्क्ृत-लिंग हिंदी-छिंग अभि ( आग ) पु स्त्री० आयु नपु सक लिंग स्त्री० जय न० स्त्री

* जो सस्क्ृत शब्द अपने शुद्ध रूप मे आकर हिंदी मे प्रचलित हैं वे तत्सम कहाते है, जैसे, राजा पितन, सध्या, उपासना, विकार, समाचार | जो संस्क्ृत शब्द विगडे,रूप मे आकर हिंदी मे प्रचलित है वे तदभव कहे जाते है; जैसे भाई, ( आता ), वहिन ( भगिनि ), सॉम (संध्या ), सेज (शैया ), घर गृह ), समधी ( संवधी

कर हर मक्षत्र ) सा 3० हे पका ज्‌ए स््रा० हि ज््न्ड मा] घु० स्राॉ०

के जाप पे पु०) ओपधि ज्[२ हवन पु9 के

पद पु० तंतु स्रा० क्र पा ्त्रा १७ 3 हम की श्रादू जञा 4 224 ] कु प० त्रूद्‌ स््रां

शा निज की दि (६44%०-विदी अर उद फे कई-एक मिल्ते-झुलते शब्दों में ला (४५७ जिलरध गर्ट जातो ४, रेंवे,

हर दे: दया न्ट्गि उद ल्गि

2] हु] हर ्ल्फ्ह

+॥ स्प्रा० चरना पु० हल 203: ह्ी० साया ' आर ि | ग्र० शक खा चेन घु०

>]| ढक को 2 लक पा ने का 2, है ही बे का ना याजच चआाफारात द्दीने ऊ॑ कारगे रद्द मर

8.

टाई दाग 5$ हारण खीलिंग रात ई; जल, हा 5 है (7, छा, 'होसा, एलजपा। ध्लटी, जग्ना, गिनी, लायत रा, जामट्रा |

6 ३9 2४ इ४च६। ले इयों कर्म के दिंदी शब्दी का लिंय प्रीति है: मी कया ्ाट-«याभिरएा प० है लनतवम के, असकान्मंटकहन ््प बे हम 8 | कारक

गो अहइकछ कप डैँ $ हरी, कल अलसी उसे

( ८७ )

१६८--सामासिक शब्दो का लिंग बहुधा अंत्य शब्द के छिंग के अनुसार होता «है रसोई-घर ( यु० ) धर्मशाला (ख्त्री० ), मॉ-बाप पु० ), बाल-बुद्धि ( स्री० )। , १६६-किसी पदाथ के मुख्य नाम का लिंग उस व्यक्तिवाचक संज्ञा के लिग के अनुसार होता है; जेछे,

“महासभा? (स्ली० ) #आगरा” ( पु० ) ८#पहामण्डल?? ( पु० ) '. #माधुरी? स्‍्त्री० ) ८“वर्णकुटी?? (स्त्री० ) “प्रताप”? ( पु० ) #अआनंद-मवन” ( पु० ) “गांडोब” ( पु० ) 4[टल्ली?? ( सत्री० ) “को हनूर?? ( पु० ) पुल्लिंग से ख्लीलिंग बनाने के नियम हिंदी शब्द्‌

लड़का--लड़ की पुतलछा--पुतली बकरा--बकरी बेटा--बेटी घोड़ा-- धो ड़ी -गधा--गधी

(१ ) प्राणिवाचक आकारांत पुढिंछिग संज्ञाओं के अत्य “भा? के बदले “ई? करके स्त्रीलिंग बनाते हैं। संबंध-वाचक संजशाएँ भी इसी वर्ग में आती हैं; जैसे

मामा--मामी, माई दादा**दादी आजा--भआजी

काका--काकी नाना--नानी_ साछा--सालछी कुत्ता--कु तिया बुड॒ढा--बुढ़िया बच्छा--बछिया चूहा--चुहिया , बेटा--बिटिया मुन्ना--मुनिया

(ञ 3) निरादर अथवा प्रेम में कहीं-कहीं “इया?? लगाते हैं और यदि अंत्याक्षर छित्व हो तो पहले व्यंजन का छोप कर देते हैं |

( ८८ )

टिग्मि--ट्िस्नसी तीतर-- तीतरी मेड जप की कवूतर--कवूतरी ठूरनफरा गीदड़--गी दड़ी

$ भा ) मतुष्येतर अछारात प्राणियाचक संज्ञाओं में भी बहुधा ईं!

48 अकलआा- पर ७७ भाग ०फ३ ७» मन कारक. [स२०- सार लुहार--लछुद्ठा रिन ६4४ 4"

. 7 2 वदल्बयानऊ जोर बर्णवाचऊ संज्ञाओं के संत में “इन” हट हाई 2। एप दंबध-वाचक और मनुष्येतर प्राणिवाचक संजशार्थों

बाघ -वाधिन सांप--सॉपिन साग--मागिन

दायी--हयना सिट्ट-- सिंदनी स्थार--स्थारनी

मंज्जाओं के आंत में नी! धवाचक संज्ञा के पत्वात्‌ भी

पड मी डनी

री पाप धरा कु

पड इत्ा|द छ्मी डे न्‍ः

( ८६ 9)

चौधरी--चौधरानी ... नौफर--नोकरानी (४ ) कई एक वर्णवाचक ओर संबंध-वाचक संज्ञाओं में “भानी” हो जाता है | |

ना

कक अमााकाथआ एआाउ अजय,

पॉडि--पेँड्ाइन ठाकुर--ठकुराइन मिसर--मिसराइन बाबू--बबुआइन पाठक--पठकाइन .. _ छाला--ललछाइन

(५ ) उपनाम--वाचक संज्ञाओं के अंत में “भाइन”? छगाया जाता है | ( ) आजकल कुमारी के नाम के साथ उसके पिता का ओर : विवाहिता स्त्री के नाम के साथ उसके पति का पुदिलिंग उपनाम जोड़ने की प्रथा प्रचलित है; जैसे, राजकुमारी सत्यवादी शर्मा, श्रीमती सुभद्रा- कुमारी चौहान | कमी-कभी पति के उपनाम का स्रोलिग भी उपयोग में आता है; जैसे, श्रोमती सरला देवी चोधरानी

समाशााान'" आराम, ५७9०

'रस्सता--रस्सी डिब्व्ा--डिब्बी, डिबिया मे गगरा--गगरी फोड़ा--फुड़िया [ के ] (>> ..। घंटठा--घंटी लोटा--छटिया

(६ ) कभी-कभी पदार्थ-वाचक अफरात वा भाकारांत संज्ञाओं में दीनता प्रकट करने के लिये “इ” वा “इया”? जोड़ते हैं। ये संज्ञाएँ (० ऊनवाचक कहाती हैं ( अंक--१५८ )

संपर्क, 2र०७क्‍न्‍2>मकाद॥ 'पनशरकतमभाइल

(७ ) कई-एक स्त्रीलिंग संज्ञाओ में प्रत्यय छगाकर पुछिंग चना है, जैसे - ' सेड़--मेड़ा “>उत्-बहनोई | मैंस---मैसा ! वैजननदोई

+ 8 . |

( ६० )

१७०-७ई एक मनुष्यावाचक स्रीलिंग शब्दों के पुदिठग शब्द प्रचा में नहीं हैं जेते, सती; सहेली, सुह्ागिन, भहिवाती, घाय, अप्सरा |

१७२०-कुछ शउ्द रूप में परस्पर जोड़े जान पड़ते हैं; पर यथाग में उनके अर्थ अछुग-भछग हैं; जैसे,

धॉड़ ( बैल ), सॉढ़िनी ( ऊँटनी ) सॉड़िया ऊँट का बच्चा) डाकू ( चोर ), डाकिया चिट्ठावाढा ), डाकिनी ( चुड़ेठ ), भेड़ ( भेड़े की मादा ), भेड़िया ( एक हिंसक जानवर )।

१७२--कई-एक पुर्छिग शब्दो के स््रीरिंग शब्द दूसरे ही होते हूँ जैसे +-

राजा--राती भाई--बहिन वर--वधू

पिता--माता पुरुष-ल्नी बेटा-बहू ( पतोहू ) पडर-सास मर्द ( आदमी ) औरत विधुर--विधवा साल्य--साछी पुत्र--कन्या साहिब--मेम

२१७३--कभी-कभी स्लीलिंग से किसी जाति की स्त्री ही का बोध नहीं होता, किंतु किसी व्यक्ति के स्नी का भी बोध होता है; इसीलिये कई-एक-*पुल्लिंग संज्ञाओ के भिन्न-भिन्न अथ-वाले दो स््रीलिग होते हैं; जैसे, भाई--बहिन, भावज पुत्र-कन्या, वधू साला--घाली, सरहनज बेटा--बेटी, बहू ( ) चेली शिष्या, शुरआइन, अध्यापिका, मास्टरिन, डाक्टरिन आदि शब्द दो-दो अर्थों में आते हं-( १) खतंत्र व्यवसाय करनेवाली अथवा ) पति की पदवी घारण करनेवाली १७४--एकलिग मनुष्येतर प्राणिवाचक संज्ञाओं में पुरुष भोर ह्ली जाति का सेद बताने के लिए क्रमश: नर ओर मादा जोड़ते हैं, जेते

नर-चील-मादा-ची छ, नर-सेड़िया-मादा-पमेड़िया, नर-त्िच्छू-- सादा विच्छू

( ६१ )

(क) मनुष्यवाचक “संज्ञाओं में “पुरुष” और «ट्री? शब्द जोड़ते हैं, - जैसे, पुरुष-छात्र, त्री-छात्र, पुरुष-कवि, सत्री-कवि, पुरुष-सदस्य, स्री-सदस्य |

संस्कृत-शब्द

हिंदी-रूप संस्कृत-रूप स्त्रीलिंग / हिंदी-रूप संस्कृत-रूप स्रीलिंग राजा (राजन )- रानी. विद्वान ( विद्वत्‌ ) विदुषी

युवा ( युवन )- युवती मानी ( मानिन ) मानिनी भगवान्‌ ( मगवत्‌ )- भगवती घाती ( घातिन ) घातिनी श्रीमानू._ ( श्रीमन्‌ )- श्रीमती हितकारी (हितकारिन्‌ ) हितकारिणी ( ) व्यंजनांत संज्ञाओं में “ई? छगाकर स्रीलिंग बनाते हैं | ह्दिी

में संस्कृत के पुछिंग रूप प्रचलित नहीं है

ब्राह्मग--त्राह्मणी कुमार--कुमारी > दास--दासी दूत--दूती देव--देवी सुंदर---सुंदरी

(२) भफारांत संज्ञाओं में अंत्य भ॒ के स्थान में ४ई” कर देते हैं।

हिं०-रू० सं०«रू० स्त्री० हिं०्-रू 9 संग्न्ह | स्त्री

कर्ता (कं) कर्त्रनी रचयिता (रचयितृ) रचयित्री दाता. (दात्री) दात्नरी कवयिता (कवयितृ) कवियित्री

(३ > अकारांत संज्ञाओं में व्यंजन सज्ञाओं के समान संस्कृत के पुछिंग रूप में “ई” जोड़ते हैं | हिंदी में संस्क्त-रूप का स्वतंत्र प्रचार नहीं

सुत--छुता ' पंडित--पंडिता तनथ--तनया महाशय--महाश या बालन“ बाला झूद्र-ब्यूद्रा

( ९२ )

(४) कई-एक संज्ञाओं और विशेषणों में “आा” जोड़ा जाता है।

ड़ प्म्म्फमपक पत्सआय प्फ्म्प्पमया,

इंद्र-इंद्राणी ' रद्र--रुद्राणी भवन्‍्न-भवानी ब्रह्म --त्रह्माणी

(४ 2 कई एक संज्ञाओं के नामों में “आनी” जोड़ते हैं | (६ ) कई एक संज्ञाओं के भिन्न-भिन्न अथंबाले दो दो स्त्रीलिंग होते हें; जैसे, आचाय॑+आचार्या ( वेदमंत्र सिखानेवाली ) आचार्याणी ( आचाय॑ की स्त्री ) उपाध्याय*«उपाध्याया ( शिक्षिका ) उपाध्यायानी उपाध्याय की स्त्री ) ज्त्रिय««्षत्रियी क्षत्रिय की स्त्री ) क्षत्रिया, क्षत्रियाणी ( उस जाति की स्त्री )

उदू-शब्द्‌ धि शु कप को हर (१) अधिकाश उदू पुल्िग संज्ञाओं में हिंदी प्रत्यय छंगाए जाते ह्‌, जैसे, शाहजआादा--शाहज्ञादी ,. फकीर--फकीरनी शेर--शेरनी

मुसछमान--मुसलमानी सुक्ला---मुल्लानी

मिहतर-+*मिहतरानी (२ ) कई एक अरबी शब्दों में अरबी प्रत्यय “ह? जोड़ा जाता

है!

4

स्रफ का मल ने 722 2 जे पर ईं, जा हिंदी मे “आा? हे ज्ञाता है, जैसे,

वालिद--वाहिदा साहिब--सा हिब्ा .

मालिक--माछिका खालू-.-- खाला अंग्रेज़ी शब्द (३) अंग्रेजी संज्ञाको का स्रीढिंग बहुधा “इन”छगाकर बनाते हैं जे, मात्यटर---मास्टरिन इंस्पेक्टर--इंस्पेक्टरिन डाक्टर--इडाक्टरिन कपाउंडर---कंपाउंडरिन

६३ )

हु अभ्यास

(१) नीचे लिखे वाक्यों में कारण बता कर संज्ञाओफा लिग बताओ। पेड़ में जड़, पांड, डालियों, प्चें, फूल और फल होते हैं। खेत की. भेड़ पर घास उगी | संदिर की सजावट में संस्थाकी संपूर्ण आय व्यय हो जाती है। गंगा के प्रवाह से कई गांवों का नाश हो गया | अज़ुन फा धनुष “गॉडीव” कहलाता है। दिल्‍ली में मुगछो के समय का एक किला बना-हुआ है “सरस्वती” प्रयाग से प्रकाशित होती है। घन की सहायता से मनुष्य कई कठिन कार्य कर सकता है। मुकदमे की पेशी दस तारीख को है।

(२) नीचे लिखी संज्ञाओं का प्रयोग एक-एक वाक्य में इस प्रकार करो कि विशेषण अथवा क्रिया के द्वारा उसका लिग जाना जा सके+-

खास, बचत; ज्ञान, बॉस, गिरी, लू, रगड़ |

( ) नीचे लिखी संज्ञाओं के. विरुद्ध लिंग वाले शब्द लिखो आर यदि उसके अथ में कोई विशेषता हो तो उसे स्पष्ट करो--

ब्राह्मण, ब्राह्मणी, शेर, बाघिन, सती, युवती, राजा, चीछ;, क्रीड़ा, . क्षत्रियाणी, बहिन, भावज, नट, चेला, बारिस्टर, काछी, कवि कारीगर को भा, कोयल

तीसरा पाठ

हु संज्ञा का वचन लड़का भाया है | लड़के आए हैं लड़की 'भाई है। . लड़कियों भाई हैं पुस्तक खो गईं पुस्तके खो गई नोकर को बुलाओ नोकरो को बुलाओ |

१७५---संज्ञाओ के रूपांतर से संख्या का ज्ञान होता है। ऊपर लिखे वाक्यों में ब्राई' मोर जो रेखांकित संज्ञाएँ हैं उनसे एक-एक वस्तु

है४ )

का बोध होता है ओर दाहिनी ओर छिखी रेजॉकित संज्ञाओं से एक ते अधिक वस्तु सूचित होती हैं। एक वस्तु सूचित करनेवाली संज्ञा एकवचन जोर एक से अधिक वस्तुओं का बोध करानेवाली संज्ञा बहुधचन कहती है |

तंजा के जिस रूप से संख्या का ज्ञान होता है उसे बहुवचन कहते हैं। बहुधा एकवचन संज्ञा ही की, रूप बदलकर, बहुवचन बना छेते,

हे; जैसे, लड़का-लड़ के . माता-माताएँ लड़की -लड़कियाँ बहू -बरहुएँ

( ) आदर के छिये भी बहुबचन का प्रयोग किया जाता है; जैसे राजा के बडे बेटे आए हैं। तुम अभी लड़के हो राम प्रजा को |

+७९--बहुवा जातिवाचक संज्ञा ही बहुवचन में जाती है। जज व्यक्तिवाचक, भाववाचक और द्रव्यवाचक संज्ञाएं मिज्ञ भिन्न प्रकारके

व्यक्ति, गुण अथवा द्वव्य सूचित करती हैं तब उनका प्रयोग बहुवचन में होता है; जैसे,

व्यक्तिवाचक---तीन राम प्रसिद्ध हैं। हिमाछय में कई प्रयाग हैं | भावदाचक--मनुष्य की कई दशाएं होती हैं

ईश्वर की लीलाएँ जानी नहीं जातीं | हव्यवाचक--बाजार सें कई तेल मिलते हैं |

ये दोनों साने चोखे हं। १७७-०कई एक संज्ञाएं

पडुवचन में जाती हैं; जैसे,

तमाचार -वबहों के समाचार नहीं मिले। साण--उसके प्राण गए | दाम--इस घड़ी के क्या दाप्त हूँ

इस की भावना के कारण बहुधा

(६ ६५ ) _भाग्य--मिखारी के भाग्य खुल गए दशन--लोगो का महात्मा के दशन हुए

एकवचन से बहुबचन बनाने के नियम १७८--हिंदी में संज्ञाओ के बहुबचन के दो रूप होते हैं-- ( ) विभक्ति-रहित% ( ) विभक्तिब्सहित

विभक्ति-रहित बहुबचन घनाने के नियय

पुल्लिंग लड़का-लड़के घोड़ा-घो डे फपड़ा-कपड़े बच्चा-बच्चे लोगा-लेटे रास्ता-रास्ते

(१ ) हिंदी जाकारांत पुल्लिग संज्ञाओं का विभक्ति-रहित बहुवचन 'अँत्य जा के स्थान में करने से बनता है। अपवाद-(१) साला, भानजा, भतीजा, बेटा, पोता, आदि, आका- रांत संबंध-सूचक संज्ञा को छोड़ शेष आकारांत संबंध-वाचक संजार्भों ओर उपनाम-बाचक तथा प्रतिष्ठावाचक पुलिंग संजशाएँ दोनों वचनों में .एक-सी रहती हैं; जैसे, आशा, काका, मामा; छाला, पंडा, सूरमा | (२ ) “बापदादा” संज्ञा बहुवचन दोनो प्रकार का होता. है, जेपे, “बाप दादे? जो कर गए हैं, वही करना चाहिए। “उनके बाप-दादा भेड़ की आवाज सुनकर डर जाते थे ।? मुत्िया, अगुवा ओर पुरखा इसी प्रकार की संशाएँ हैं ( ) संस्कृत फी आकारांत पुरिलिंग संज्ञाएँ दोनों वचनों में एक- सी रहती हैं; जैसे, पिता, श्राता, युवा, देवता, योद्धा, कर्चा (४ ) आफारांत पुद्लिंग संज्ञाओं फो छोड़ शेष पुल्लिग संझ्ाएँ ' दोनो वचनों में एक-सी रहती हैं, जैसे ... विद्वान-विद्वान्‌ चोवे-चोवे

“विभक्ति” शब्द का अथ चौथे पाठ मे समझाया जायगा

( हिंद )

बालक-त्रालक रासो-रासो

मुनि-मुन्ति जो-जों

भाई- माई को दो-फो दो

साधु-साधु एक विद्वान आया

डाकू -डाकू कई विद्वान्‌ आए | खीलिंग

बहिन -बहिने गाय-गाएँ मेंस-में से

(१ ) अकारांत ख्लीलिंग सज्ञाओ का बहुवचन अंत्य स्वर के बदले एं करने से बनता है |

तिथि-विधियाँ शक्ति-शक्तियाँ ठोपी-ठो पिया

रैनि-रीतियों छड़की-लड़ किया डाली-डालियाँ

(२) इकाररात और ईकारांत संज्ञाओं में ८४ई० को हृस्व॒ करके “या” जोड़ते हैं |

4 अकर७++७» 3पमनकक अपन, हडाताआ, 6-8.

बुढिया-चुढ़ियों शुड़िया-गुड़ियों डिबिया-डिज्वियाँ खटिया-खटियाँ लुथ्या-लछुटियाँ

चिड़िया-चिड़ियाँ

( हे ) याकारांत (ऊनवाचक) उंज्ञाओं के मंत मे केवछ अनुनातिक जोड़ा जाता है |

माली ०2... जम

(३ ) शेष ख्रीलिंग शब्दों में अंस्य के परे “ए?? जोड़ते हैं; ओर का हस्त कर देते हैँ जैछ,

छता-लताएँ वस्तु-वस्तु एँ फन्या-कन्याएँ बहू-बहुएँ भाता-माताएँ

' लू-लुएं

( ६७ ) ,

' (५ ) सानुनासिक ओकारांत और ओऔकारांत स्लीलिंग संज्ञाएँ दोनो वचनों मे एक सी रहती हैं; जैसे, जोखो, सरसो, गो उदू संज्ञाएँ रा १) उदू शब्दों के बहुवचन में बहुधा हिंदी प्रत्यय छगाए जाते हें; से,

गा

शाहजादा--शाहजादे शादी--शादियों बेगम--वेगर्मे खाला--खालाएं (२) अप्राणिवाचक संज्ञाओ में बहुधा “भात?? जोड़ा जाता है; जैसे, कागज--कागजात देह--( गाँव )--देहात ,. मकान--मकानात _“ तसलीम--तसलछीमात (३ ) प्राणिवाचक संज्ञाओ में बहुधा आन जोड़ते हैं, जैसे, _साहिब--साहिबान गवाहइ--गवाहान मालिक--मालिकान बिरादर--बविरादरान

(४ ) कई एक संज्ञाओं का बहुबचन अनियमित रूप से बनाया ' जाता है; जेसे,

अमीर---उमरा हाल,,,हवाल फायदा--फवा इद खबर-- अखबार कप

' किताब--कुतुब हफ--हुरूफ

(५) कई एक उदू आकारांत संज्ञाएँ भी संस्कृत आकारात संज्ञा के समान दोनो वचनो में एक सीं रहती हैं; जैसे, सौदा, दरिया, मिथॉ |

१७६ - जिन मनुष्यवाचक पुल्लिग संज्ञाओ के रूप दोनो बचनो में एक-से रहते हैं उनके बहुबचन में बहुधा “लोग” शब्द जोड़ देते हैं, जैसे, ऋषि लोग, राजा छोग, साहिब लोग |

( ) गण, जाति, जन; वर्ण आदि समूह-वाचक नाम भी बहुबचन के अथ में जांते हैं; जैसे, बालक-गण; तारा-गण, देव-जाति, विद्वजन, पाठक-वर्ग

१८०--पदार्थों की बड़ी संख्या, परिमाण या समूह सूचित करने

( छंद )

के डिये-जाति वाचक संज्ञाओं का प्रयोग बहुघा एकवचन में करते है; जैसे, “मेले? में केवछ शहर का आदमी आया था।? “उसने बहुत शिया फ्माया [!! ५८हस साल आस बहुत आया हर

सू>--विभक्ति साद्ित बहुवचन बनाने का नियम पॉचवें पाठ में लिखे जायेंगे |

| अभ्यास

१“नीचे लिखे वाक्यों में संजञाओं का वचन कारण-घहित बताओ-

कलकते से इम रंगून पहुँचे इस छोटे से देश ने पचास वर्ष में बडी उन्नति फर छी | उनके वच्् बिलकुल निराले होते हैं। वह सत्र पछ खा गया। उन वेचारों की दशा बडी ही शोचनीय है। नदी प्यासों की प्यास बुझाती है। लड़को, तुमने कितनी पुस्तकें पढ़ी हैं। जग में कई झोपड़ियाँ थीं बड़े कड़ाही में तले जाते हैं। लड़को को बुरी आदतें छोड़नी चाहिए. कई धातुर्ँँ मोपधि के काम जाती हैं। वहाँ से कोई समाचार नहीं आए | संसार में अनेक प्रकार की शक्तियों हैं। बाजार में कई प्रकार के नमक मिलते ह।

२--नीचे लिखी संज्ञाओं का उपयोग एक-एक वाक्य बनाकर भिन्न भिन्न वचनो में करो--सहांयता, फल, राम, तिथि, घेनु, जीव

4000 अ३४७५७ “कक, कक

चौथा पाठ संज्ञा के कारक (१) डड़का पुस्तक पढ़ता है। (५) पिता ने उससे पुस्तक ली। (२) पिता ने छडके को पढ़ाया (६) उसकी पुस्तक नई है। (३) पिता लड़के से बात करता है। | (७) छड़के में बुद्धि है (४) पिता लड़के को पुस्तक पद्म्है। (८) लड़के,पिता की जाज्ञा मान | १८०--ऊपर लिखे वाक्य में “लड़का? संज्ञा और “उस” सर्वनाम

( ९९ )

क्रिया से अथवा दूसरे शब्द से मिन्न-मिन्न ' प्रकार का संबंध रखते हैं। पहले वाक्य में “लड़का” संज्ञा से “पढ़ता है?” क्रिया से कर्चा का बोध - होता है; इसलिये “लड़का? संज्ञा को फर्चा-कारक कहते हैं ।दूसरे वाक्य में “पढ़ना” क्रिया .का फल “छड़के को? संज्ञा पर पड़ता है; इसलिये “लड़के को”? संज्ञा कर्म-कारक कहाती है। तीसरे वाक्य में “छड़के से?” संज्ञा के “करता है” क्रिया की संगति फा बोध होता है चौथे वाक्य में. , “बढ़ाता है? क्रिया का फल पहले , “पुस्तक”? संज्ञा पर और फिर “लड़के को? संज्ञा पर पड़ता है। इस प्रकार “लड़का”? संज्ञा का संबंध क्रिया से भिन्न-भिन्न प्रकार का है। पाँचवे वाक्य में 'उनसे? स्वनाम से “ली? क्रिया का अछ्गाव सूचित होता है। छठे वाक्य में “उसकी?” सर्वनाम से “पुस्तक” संज्ञा का संबंध पाया जाता है | संज्ञा वा सबेनाम के जिस रूप से उसका संबंध क्रिया वा दूसरे . 'शब्द के साथ सूचित किया जाता है, उसे कारक कहते हैं संज्ञा वा सर्वनाम फा संबंध क्रिया अथवा दूसरे शब्द से बताने के लिये उसके साथ जो अक्षर अर्थात्‌ चिन्ह लगाया जाता है उसे विभक्ति कहते हैं; जैसे, ने, फो, से, का; में | दे श्यए--हिंदी में आठ कारक होते हैं जिनके नाम और विभक्तियाँ नीचे छिखी जाती हैं--- ., कारक विभक्ति

(१ ) कर्ता ने . (२) कर्म को , (३) कारण क्‍ से ' ( ) संप्रदान रा को, के, लिए '( ) अपादान से (६ ) संबंध | का-के की ( ) अधिकरण ' में, पर

(८) संबोधन हे, अजी, भरे

१६

( १०० ) कारकों के लक्षण

(१ ) कर्ता-कारक सज्ञा ( वा सवनाभ ) के उस ख्भ को कहते लिसमे किया के कर्ता ( अथवा उद्देश्य ) का बोध द्वोता है; जैसे लड़का जाता है। लड़की ने काम किया बढ़ अभी तफ नही आया। पुस्तक लिखी जायगी

जिस कर्ता के लिंग, वचन पुरुष के अनुसार क्रिया के लिंग-वचन पुद्य होते हैं वह प्रधान कर्ता कहलाता है, और उसके साथ कोई चिह्द नहीं आता। जिस कर्ता के लिंगन्‍वचन-पुरुष के अनुसार क्रिया के लिग-बचन पुरुष नहीं होते वह अप्रघान कतो कहलाता है, भोर उसके साथ ने विर्भाक्त भाती है। ( ने चिह्न के उपयोग के लिए अ० २२१ देखो | )

(२) जिस वस्तु पर क्रिया फा फल पड़ ता है. उसे सूचित करनेवाले संज्ञा (वा सबवनाय ) के रूप को कर्म कारक कहते हैं; जैसे, लड़का फत्न तोड़ता है नौकर ने कोठा जाई | हम उसको घुलावेंगे |

जब कर निश्चित रहता है तब उसके साथ कमकारक की को विभक्ति आती है; जैसे लड़का फल को तोड़ता ६ै। नौकर ने कोठे को झाड़ा | जो कर्म वाक्य में उद्देश्य होकर जाता है, वह कर्ता-कारक में रहता है, जैसे, पुस्तक लिखी जायगी नोकर काम पर ज्षेज्ञा गया था

रपु-कारक संज्ञा के उस रूप को फद्दते है जिससे साधन (द्वारा) फा बोध होता है; जैसे नौकर कुल्हाणी से छकड़ी कफाटता है | लड़के ने डाथ से फछ तोड़ा घन परिश्रम से प्राप्त होता है

(४ ) जिस वस्तु के छिये क्रिया की जाती है उसे सूचित करनेवाला

तेज का संग्रदान-कारक कहलाता है; जैसे, राजा ने त्राह्यण को घन दिया गुरु शिव्य को गणित पढाता है | वे घूमने को गए हैं |

जब वाक्य में कम और संप्रदान, दोनो कारक जाते हैं तब्र कर्मे-

रे त् दी

कक की विभक्ति नहीं जाती; जैसे सिपाही ने लड़का माँ की साधा | वे सब को बात समझोते हैं |

(५ ) अपादान-कारक पश्मा का वह रूप है जिससे क्रिया का

(६१०९)

अल्गाव पाया जाता है; जैसे पेड़ से फछ गिरा। नोकर गाँव से आवेगा। गाड़ी दिल्ली से चलेगी

करण ओर अपादान, दोनो कारकों फी विभक्ति “से” है, पर उसके अलग-भलरग अथ हैं; जेसे, सिपाही. ने तलवार से शत्रु का शिर पड़ से

अगल कर दिया | इस उदाहरण में “तलवार से?? करण कारक और “घड़ से? अपादान है।

(६ ) संज्ञा के जिस रूप से उसका संबंध दूसरे शब्दों के साथ सूचित होता है उसे संबंध कारक कहते हैं; जेसे, राजा का पुत्र; लड़के की पुस्तक, घर के छोग

संबध-कारक का अथ विशेषण के समान होता है; जेंसे, घर का काम > घरू काम, जंगल का जानवर > जगली जानवर, महाजन फी चाल > महाजनी चाल | सबंध-कारक विभक्तियोाँ (का-के-की) संबंधो शब्द (विशेष्य) के लिंग वचन और कारक के अनुसार बदलती हैं | इस कारक

“का-संबंध क्रिया से नहीं होता, किंतु किसी दूसरे शब्द से होता है।

(७ ) अधिकरंण कारक संज्ञा के उस रूप को फहते हैं जिससे क्रिया का आधार सूचित होता है; जेसे, ल्लोटे में पानी हे। बंदर पेड़ पर चढा, में यह बात मन में रक्खूं गा यह काम एक वर्ष में हुआ

आधार दो प्रकार का होता हे--(१) अभ्यंतर ( भीतरी ) ओर (२) बाह्य (बाहरी) | पहले की विभक्ति “में” ओर दूसरे की “पर” है | नोनों प्रकार के आधारो स्थान और काछ का अर्थ सूचित होता है।

(८) संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने या चेताने का बोध होता है उसे संबोधंन-कारक कहते हैं; जेंसे, छड़के, इधर | दे भाइयी, मेरी बात मानो

संचोधन कारक का संबंध क्रिया अथवा किसी दूसरे शब्द से नहीं ' होंता। इसकी कोई विभक्ति भी नहीं है; इसलिये इसके पहले कोई एक विस्मयांदि बोधक छगा दिया जाता है।

हि

( १०२ )

१८३१--विभक्तियों के बदले किसी“किसी कारक में संबंध--हूचक ञाते हुं, जैसे;

करण--द्वारा--ज्रिए, कारण, मारे |

संप्रदान--प्रति,दिन; हेतु, निमिच, अर्थ; वास्ते |

अपादान--अपेक्षा, बनिस्वत, सामने, आगे

अधिकरण--बीच, मध्य, भीतर; अंदर, ऊपर ;े

१८४--बिभक्तियो और संब्रध-सूचकों में अंतर है कि विभक्तियो सज्ञा सर्वैनाम के साथ आकर सार्थक होती हैं; परंतु सबंध-सूचक स्वयं सार्थक रहते हैं, क्योकि वे स्वतंत्र शब्द हैं। “तलवार से” शब्द के साथ “से? विश्षत्ति आई; पर “तलवार के द्वारा? वाक्यांश के साथ “द्वारा”? शब्द आया है यद्यपि दोनों का अर्थ समान दे

१८५--किसी संज्ञा या सर्बनाम का अर्थ स्पष्ट करने के लिये जो शब्द आता है उसे उस संज्ञा या स्वनाम का समानाधिकरण शब्द

कहते हैं; जैसे मेरा भाई सोहन आज आया है| इस वाक्य में “मोहन

“भाई” संज्ञा का समानाधिकरण शब्द दे। इसी प्रकार राजा दशरथ

अयोध्या में राज करते थे! इस वाक्य से “राजा”? शब्द “दशरथ सज्ञा का समानाघिकरण है

समानाधिकरण शब्द उसी कारक में ञाता है जिसमें मुख्य संशा * या स्वनाम रहता है। ऊपर के उदाहरणों में “मोहन?” और “राजा” संज्ञाएँ कर्ता कारक में हैं; क्योकि घुख्य सक्ञाएँ, “माई” और “दशरथ? करता कारक में जाई हैं |

अष्याीत्ष १--नीचे लिखे वाक्यों से संज्ञाओं और सर्वनामों के कारक बताओ। बोड़ा जगल में माग गया | छड़के पतंग उड़ाते हैं | हम मोहन की

पदचानते है। पानी से पौधे बढ़ते हैं। हिंदी के प्रसिद्ध कबि तुछसीदास ने स्नेक अंयों का निर्माण किया है। एक दिन मनुष्य मिट्टी से झोपड़ा

( १०३ )

रे बनाता था | राम ने अपसे मित्र श्याम को' बुढाया | सबसे छोटे छड़के पुरस्कार दिया जायगा रोगी झृत्यु से बच गया | नौकर काम पर नहीं जाता | भाइयो, नशा फ़रना बुरा होता हैं। उनको बाहर जाने में डर लगता था | दिल्‍ली बहुत कांछ तक हिंदुओं की राजघानी रही | लड़के, तू अपने पिता की आज्ञा क्यो नहीं मानता $ मनुष्य के जीवन के लिये अन्न; पानी और हवा बहुत आवश्यक दे। “२_मरय को नहीं दोष गुसाई' ।१

पाँचवाँ पाठ संज्ञाओं की कारक-रचना

लड़का -लड़के ने राजा-राजा ने लोटठा--लोटे को पिता--पिता को पत्ता-पचे से ' काका--काका से

१८६--हिंदी अफारांत पुढ्लिंग संज्ञाओं के एकबचन में विभक्ति के पहले “भा” 'के स्थान में ए? हो जाता है, पर संबंधवाचक ओर संस्कृत अकारांत संज्ञाओो में कोई विकार नहीं होता। बाई ओर की संज्ञाए विकारी और दाहिनी ओर की अविकारी हैं.। विकारी संज्ञाओं का बदछ' - हुआ. रूप विक्रत रूप कहलाता है।

विभक्ति सहित घहुवचन घनाने के नियम

घर--घरो को डिबिया--डिबियो में बात--बातो में मुखिया--सुखियो का लड़का--लछड़फो से बाप-दादा-बाप दादो ने

(१) अभकारांत, बिकारी आकारांत और याकारांत संज्ञाओं के अंत्य पा! के' बदले “भो' छाया जाता है।. '*

( १०४ )

ही हर | मुनि--मुनियो ने तिथि--तिथियों का हाथी--हथियों का नदी--नदियों में

(२ ) इंकारात संज्ञाओं के अंत्य स्वर के पश्चात्‌ “यो? जोड़ा जाता है। “ई” को हम्ब कर देते हैं।

६६2०१७७०७--.. शिडपडउआ 5 40:80 अकाक,

रासो--रासो को सरतो--सरसो का कोदो--को दो से गो--ो में ( ) ओकारात संज्ञाओ में केवल अनुस्वार जोड़ा जाता है ओर

अनुल्वार युक्त ओकारात तथा थोकारांत संज्ञाओं में कोई विकार नहीं होता।

राजाबनराजाओ ने

साथु साधुओं का

काका--काकाओ को * चोवे--चौंवेओों में माता--मातानो से जों--जोओभो मे घेनुन-पेनु का

ड|कू-डाकुओं पर (४ ) शेष सज्ञाओं में अंत्य स्वर के पश्चा

तू जो! छूगाया जाता 'ऊ” की हस्व कर देते हैं

है।

जार 9 वा मु

(५) संबोधन कारक के

हि हित है लड़को,

"आय किक इवचन में अनुस्वार नहीं जाता, जैसे, भाश्या, हे साधुओो ||

(्‌ ग् ) ध्वटा? भोर 'अच्चा??

हे बहा अधिकत हे संज्राएँ संबोधन-कारक के _एकबचन हे सवकत रहती हैं; जते, हे वेटा, तुम कहाँ हो ? भरे बच्चा, वहां जा |

का सा पक्ञाओं की कारक रचना के कुछ उदाहरण दिए ल्छ +ऑआ७४

;

( १०५ ) पुल्निंग संत्ञाएँ

(१ ) अकारांत ,

कारक एकवचन बहुवचन . कर्चा बालक, बालक ने बालक, बालकों ने कर्म-संप्रदान बालक फो बालको को करण-अपादान बालक से बालको से _संत्रध हू बालक का-के-की बालकों का-के फी अधिकरण बालक में, बाठक पर बालकों में,नालकों पर संबोधन , . ' है बालक है बालकों (२) आकारांत ( विकारी ) फ्ता लड़का, लड़के ने लड़के, लड़कों ने फम-संप्रदान लड़के को लड़कों को करण-अपादान लडके से लछड़फी से संवध , लड़के फा-ऊेन्क्री ' छड़को का-के की. आधकरण लड़के में, लड़के पर. छड़कों में, छड़को पर संबोधन | हे छड़के हे लड़कों (३ ) आकारांत ( अविकारी ) कर्ता... राजा, राजा ने राजा, राजाओ ने फर्म-संप्रदान राज्ञा को राजाओं को संबोधन हे राजा हे राजाओं

(४) आकारांत ( वैकब्पित ) कर्ता बाप-दादा भाप दादा बाप-दादो ने बाप-दादा ने, बाप-दादे ने, बाप-दादाओं ने, बाप-दादो ने फस-संप्रदान बाप-दादा की, बाप-दादे को; बाप-दादाओं को,बाप-दादों को

'” संत्रोधन, दे-बाप-दादा, हे बाप-दादे, हे बाप-दादाओ; हे बाप-दादा |

०० मु

, कारक

क्त्ता फर्म-संप्रदान संबोधन

6

फ्तां कम-संप्रदान संत्रोधन

क्ता कर्म-संप्रदान संबोधन

कर्चा कम-संप्रदान संबोधन

( १०६ 3

(५ ) इकारशंत

एकवचन बहुवचन

मुनि, मुनि ने सुनि, सुनियों ने

मुनिकोी मुनियों फो

हे मुनि है मुनियो ख्ीलिंग-संज्नएए (१ ) आकारा[व

बहिन, बहिन ने बहिने, बहिनों ने

बहिन को बहिनों को

हे बहिन हे बहिनों

(२) आकारांत ( संस्कृत )

शाला; शाला ने शालाएँ, शालार्ओं ने

शाला को शालाओं फो

है शाला है शालाओो

) याकाशंत ( हिंदी 3 गुड़िया, गुड़ियो ने. गुड़िया, गुड़ियो ने

गुढ़िया को गुड़ियो को है गुड़िया हे गुड़ियों (४) इकारांत देवी, देवी ने देवियों, देवियों ने देवी को देवियो को हे देवी है देवियों

(५ ) ओकारांत

गो; गो ने गोएँ, गोभो ने

( १०७ )

कर्म संप्रदान गो को गोओं को संबोधन हेगो हे गौओो सूचना--ऊपर जिन फारफो के रूप नहीं दिए गए हैं, उनके रूप दूसरे-कारकों के. अनुसार बनाए जा सकते हैं। ' ।. ई८८--संस्कृत संज्ञाओ का मुठ एक वचन संबोधन-फारक मी उच्च ' हिंदी के गद्य ओर पंत्र में छाया जाता है; जेते, . (१) व्यंजनांत संशाएँ---राजन-राजन्‌ , श्रीमत-भ्री मन , भगवत्‌* भगवन्‌, महात्मन्‌ महात्मन, स्वामिन-स्वामिन्‌ | (२ ) आाकारांत संज्ञाएँ--सीता-सीते, राधाबराघे, नर्मदा-नसदे, ' प्रिया-प्रिये, आशा-माशे (३ ) इकारांत संजशञाएँ--हरि-हरे, मुनि-मुने, रति-रते, शांति-शांति सीतापति-सीतापते (४ ) इंकारांत संज्ञाएँ--पुत्री-पुत्रि, देवि-देवि, जननी-जननि; सरस्वती-सरस्वति, लक्ष्मी-लक्षमि ( ) उकारांत--बंघु-बंघो, प्रशु-प्रभो, शुरुूगुरो; घेनु-घेनो | '( )--ऋकारांत--पितृ-पित३, मातृ-मात३, दातृ-दात॥,श्रातृ-्श्राव३| अभ्यास

' १-नीचे छिखी संज्ञाओं की कारक-रचना उसके सामने छिखे' हुए कारको ओर वचनों में करो-- ' ( के ) “घोड़ा?ः--सब कारकों के दोनो वचनो में | (ख) “काका”--कर्चा,कर्म,ओर संबोधन कारकों के दोनों वचनो में (ग) “माली?--विभक्ति-रहित कर्ता और संबोधन कारकों के दोनो बचनो में (घ) “बहिन!?--विभक्ति-रहित कर्त्ता और कर्मफारकों के दोनों वचनों में क्‍ : (छ) ८माता?--संबंधकारक--के बहुवचन में

([ श्ण्ध्य है|

संज्ञा की पूशुं व्याख्या

वाक्य--चिड़ियों भी मनुष्य की तरह रात को अपने बाल बच्चों को लेकर अपने अपने घर भर्थात्‌ थौसले में चुपचाप सोया करती |

चिड़ियो--6॑ज्ञा, ज्यतिवाचक, युछिंग, वहुवचन, कर्चा-कारक, “सोया करती हूं? क्रिया का कर्चा

मनुष्य को--संज्ञा, जातिवाचक, पुल्लिग एकवचन संबंध-कारक, सबंधी शब्द “तरह” |

तरह--संज्ञा, भाववाचक, लीलिछिय, एकवचन;, फरण कारक ( “से? ) विभक्ति छ॒प्त है, इसको क्रिया “सोया करती हैं।”

“तरह” संबंधसूचक भी हो दकता है, क्योंकि इसकी विभक्ति का छोप हुआ है और यह “मनुष्य को? संज्ञाका सबंध “सोया करती हैं” क्रिया से मिलता है। .'

रात को--संज्ञा, भाववाचक, ह्लरीलिंग, एकबवचन, कमंकारक के रूप में मधिकरण-कारक, इसकी क्रिया “सोया करती हैं |?”

बाल-बच्चे को--संज्ञा, जातिवाचक

( 5 पुलिंग, बहुबचन, कमकारक; “लेकर” सकमक, पवी

कालिक क्रियाका कर्म | धर--संज्ञा, जातिवाचक, घोसले? संज्ञा का समानाविकरणन्क घोसले मे---संज्ञा, जातिवाचक, इसकी क्रिया “सोया करती हैँ |”?

पुल्छिंग, एकवचन, अधिकरण-कारक,

४५ आप का, | #रक, इसकी क्रिया सोया करती हैं ।* पुर्देलग, एकवचन, भधिकरण-कारफ,

शभ्याप्त

१--नीचे लिखे वाक्यो में संज्ञाओो

रे संसार में थोड़े का आदर प्राचीन काल से है | राजा दशरथ को तीन रानियाँ यी--कोशल्या, सुमित्रा और केकेयी हर साल खेत मे फसल बोने 3 भाम का सत्॒ नष्ट हो जाता है | उस तमय राजपुताने की रियासत बूँ दी दमा नाम एक क्षत्रिय राज्य करते थे कपास का बीजबोने के पहले - बरती तैयार की जाती है। सहाराज,कृपा कर मेरा अपराध क्षमा कीजिए |

बा

की पूण व्याख्या करो--

- को सिधारा।

एकवचन .

यह वह

६१०९ )

चंडाल के घर दास बनकर रहते हुए महाराज हरिछचंद्र को सीमा से अधिक कष्ट होने लगा। राक्षत बाण की चोट से कराहता हुआ ख्र्ग

'छठा पाठ (5 सवनाम की कारक-रचना विभक्ति रहित बहुवचन

बहुबचन हम तुम

0१ 3५%

नी

एकवचन बहुवचन सो सो आप आप जो लो कोन कोन क्या 'ल्क्या कोई कोई कुछ कुछ

- १८९--पुरुष-वाचक और निश्चय-वाचक स्वनामों को छोड़ शेष स्वनाम- विभक्ति रहित बहुवचन में एकवचन के समान रहते हैं

१९०--सवनामों का रूप लिंग के कारण नहीं बदछता ओर

- उसमें संबोधन-कारक होता है। “आप??, “कोई” “क्या? और “कुछ?!

छोड़ें शेष सर्वनामों के कर्म ओर संप्रदान-फारको में दो-दो रूप होते

हैं। उदाहरण---

सर्वनाम एकवचन ]

मै मुझको वा मुझे | उडेहिडिंग यह . इसको वा इसे 9 वा' ब्रह उसको वा उसे | सत्रीलिंग फोन किसको वा किसे , ह॒

[ बहुवचन | हमको वा हमें |

* इनको वा इन्हे ' उनको वा उन्हें ! किनको वा किन्‍्हे'

9

११० )

( पुछुय-बाचक सबनामों की कारक-रचना में पुरुध

उत्तम पुरुष “प्र? कारक एल्वचन बंहुवचन रक््तता में, मेने हम; हमने कर्मन्संप्रदान पुझ्की वा मुझे हमको वा हर्म करणन्भपरादान मुझसे हमसे संबंध मेरा-रे-री हमारानरे-री अधिकरण मुझ में-मुझ पर हमर्म हमपर सध्यम पुरुए “तू! क्चां तू, ्वूने तुम तुमने कर्म तुझको वा तुझे तुमफों वा तुम्हें फरण-अपादान तुझसे ठुमसे संत्रध तेरप्-रेन्री तुम्दारा रे-री सधिकरण तुझमें, तुझपर तुममें, तुमपर

हक.

१११---पुरुपवाचक सवनामी के एकवचन में कर्चा और सबंध कारक को छोड़ शेप कारकों में “मै” का त्रिछकलछ रूप “मुझ” और “तू! #तुझ” है। संबंध के एकवचन में “मैं? का विकृृत रूप “मैं” ओर “तू” का “ते? होता है ओर बहवचन में ऋ्रश; “हमारा” और

६६-००) : कु्द्दारा आते हैं। इस कारक की विभक्तियाँ रा-रे-्सी हैं। शेष कारकों में कोई विकार नहीं होता

निश्रयवाचक स्नामों की कारक-रचना निकद्बर्ती, "यह?!

कारक एकवचन बहबचन फर्सा इसने हि ;

ता यह इसने, ये इनने, वा इन्होने कर्म-संप्रदान इसको वा इसे इनको वा इन्हें

(१११ )

करण अपादान इससे इनसे

संबंध इसका-के-की इनका-के*की

अधिकरण इसमें, इसपर इनमें, इनपर दूरवर्ती “वह”

जि, कप

का वह; उसने वे, उक्षने वा उन्होंने

कम-संप्रदान उसको वा उसे उनको वा उन्हें

करण-अपादान उससे उनसे

संबंध उसका-कें-की उनका-के-फी

अधिकरण उसमें, उसपर उनमें, उनपर

१६२--एकवचन में “यह का विक्रत रूप “इस” और “वह”? का “उस” है। बहुबचन में क्रशः “इन?” ओर “उन? जाते हैं।

“तो? का विक्ृत रूप एफवचन में “तिस” और बहुवचन में 'तिन? होता है-। इस स्वनाम के रूपो के बदले बहुघा “वह! रूपों का. प्रचार

है; जेसे, तिसने उसने, तिनको, तिसका>उनका |

' संबंधवाचक-सवंनाम “जो”

कर्ता | जो, जिसने लो, जिनने या बिन्‍्होने कम संप्रदान जिसको, जिसे जिनको, जिन्हें संबंध जिसका-के-फी जिनका-के-की

प्रइनवाचक सर्वेताम “कोन” कर्ता: कौन, किसने कौन, किनने वा किन्होने कम-संप्रदान किसको, किसे किनको; किन्‍्हें -संबंध , .. किसका-के-की फिनका-के-की

१६३---संबंधवाचक स्वनाम “जो” ओर प्रश्नवाचक स्वनाम “कोन? के रूप “यह?” के नमूने पर बनते हैं। इनके विकृत रूप एक वचन में क्रमशः “जित?”? ओर “किस” भोर बहवचन में “जिन”? ओर “किन! हँ

( ११२ )

आदर-सचक सवनाम “आप?

फारक एकबचन बहुबचन | क्चा आप; आपने आप लोग, आपडो गेने कम-संप्रदान भापको आप लोगों फो

संबंध आपकान्केन्की आप छोगों का-के-को

१६४--विभक्ति के योग से आंद<-सूचक “आप” विक्षत रूप मे नहीं आता इसके बहुवचन में “छोग” या “सत्र” जोड़ते हैं

4. अवाचक ध्सद्धा १3 मजञज्ञवाचकन्सदनाओ

कर्ता आप ल्‍ कम-संप्रदान अपने फो वा आपको ५६ करणन्भपादान अपने से वा आपसे 4 संबंध अपना-ने-नी

१९५--निज्रवाचक सर्व॑नाम दोनो वचनों में एक-सा रहता दें। इनका विक्ृत रूप “अपना” है ज्ो संबंध कारक में जाता दै। इसके कर्ता में “जे” विभक्ति नहीं आती; पर दूसरी विभक्तियों के पूव हिंदी आकारात संज्ञा के समान, इसके विक्वृत रूप में अंत्यआ के बंदले हो जाता है। “अपना? के बदले “आप” के साथ भी; विकल्प से, विभक्तियाँ जोड़ी जाती हैं |

( के ) कभी-कभी “अपना? और “आप! संबंध-कारक को छोड़ शेप कारकोंम मिलकर आते हैं; जेसे, अपनें-आप, अपने आपको, अपने-जपमें

( ) “आप” से बनी हुई भावधाचक संज्ञा; “आपस” का उप- योग बहुधा संबंध जोर अधिकरण कारको में होता है; जैसे आपस की लड़ाई, आपस में लड़ना |

मी हज

अइनवाचक सर्वनास “क्या?

फारक एकबचन बहुवचन कैचा क्या हक

११३ )

* क्षम न्‍ क्या ५९ फरण-अपादान फाहे संप्रदान फाहे को - ४६ संबंध फाहे का-के-की ३३ अधिफरण फाहे में, काहे पर हि

, १९६--प्रश्नवाचक सवनाम “क्या?! की कारक-रचना नहीं होती; यह इसी रूप में केवछ कर्ता ओर कम कारको के विभक्ति रहित एकफबचन में भाता है। दूसरे कारकों में “क्या? के बदले “काहे के साथ विभक्तियों जोड़ी जाती हैं।

(भ) “काहे से? मौर “काहे को? का प्रयोग बहुधा “क्यों” के अथ 'में होता है; जेसे वह यह बात काहे से कहता है ? तुम वहाँ काहे को गए थे ? “क्योकि?” के अथ में कभी-क्रमी “काहे से, कि” आता है; जैसे; शाकुतला मुझे बहुत प्यारी है, फाहे से कि वह मेरों सहेली की बेटी है| “काहे का? अर्थ कमी-कमी “निरर्थक” होता है; जैसे, वह काहे

- का ब्राह्मण है

के 5

४5 रे 9 आतन्रुचयवाचक सवनाम्र काइ

कत्ता कोई किसी ने कोई-कफोई, किसो किसी ने कम-संप्रदान किसी को किसी किसी को संबंध किसी का-के-की किसी-किसी-का-के -की

१६७--'कोई'? का विंकृत रूप एकवचन में “किसी” है, जो बहुवचन में दुहराया जाता है और सर्वनाम के समान बहुबचन में इसका भलग विकृवत रूप नहीं है ( ) कोइ-लेखक ““किन्ही ने? “किन्हीं की?! “किन्हीं का?? आदि रूप लिखते हैं; पर ये सबसंमत नहीं हैं अनिशचय वाचक सवनाम “कुछ” १६८-प्रश्नवाचक “क्या? के समान “कुछ” की भी कारक रचना

( ११५४ »

नहों होती | यह इसी रूप में केवछ विभक्ति-रहित कर्ता ओर कर्म के एकबचन में आता है | जब “कुछ” का प्रयोग “कोई” के अथ में होता है तब इसके साथ संबोधन को छोड़ शेष कारकों की विभक्तियाँ बहुवचन में थाती हैं; जेते, कुछ ने चंदा दिया है। कुछ का नाम अच्छा है | कुछ में यह दोप पाया जाता है | १०“नीचे छिखे सब नामों की कारक-रचना उनके आगे छिखे हुए. कारकों भें करो-*७ (भ ) मैं सबंध-कारक के दोनों बचनो में | ( भा ) त-अधिकरण-क्ारक के बहुबचन में ( ) यह--करण-कार के एकवचन में (६ ) कौन--विभक्ति-रहित कर्चा और कर्म के, एकवचन में .। ( ) जो--कर्म' ओर तंप्रदान कारकों के दोनों बचनों में | ( ) कोई--नब कारकों में। सथनाम की पूर्ण व्याख्या वाक्य*्यह सच है कि जो फोई दूसरे के लिये गड़ह्ा खोदता हैः वह आप उसमे गिरता है | यह--सर्वनाम, निश्वववाचक, निकटवर्ती, अंतिम उपवग्य के बदले जाया है, अन्य पुरुष, पुल्छिग, एकवचन; कर्ताकारक, इसकी क्रिया "है जो कोई---संयुक्त संबध-वाचक सर्वनाम, छत “मनुष्य” संज्ञा के बदले आया, अन्य पुरुष, पुर्िछंग, एकवचन कर्चाकारक, इसकी क्रिया “खोदता है? | दूसरे के छिये-...अनिश्चयवाकऋ विशेषण, कहाँ सर्वनाम की तरह पा लन्य पुरुष, पुढिछिग, एकवचन, संप्रदान-कारक, इसकी क्रिया सादता है? | वह--निश्चयवाचक सर्व॑नाम, दूरवर्ती, “जो कोई” नाभ छा नित्य संबंधी, अन्य इसको क्रिया 'गिरता है? |

संबंध वाचक, -

हद पुरुष, पुह्लिंग,' एकवबचन, फर्चा-कारक,

(2१9५ )

आप--निनवाचक सर्वनाम, “वह?? सवंनाम के बदले आया, अन्य पुरुष, पुलिलिग, ए.कवचन, कर्चान्कारक इसकी क्रिया “गिरता” ध्वह?? का समानाधिकरण

उसमें--निश्चयवाचक, सवनाम “गाढ़ा” संज्ञा के बदले जाया, अन्य पुरुष, पुदिलंग, एकवचन, अधिकरण कारक, इसकी क्रिया “गिरता है”।

अभ्यास

१--नीचे छिखे वाक्यो में सर्बनामो की पूर्ण व्याख्या करो--

मेरा प्यारा भक्त वह है जो किसी से द्रोह नहीं करता है| जो जिसके गुण को जानता है वह उसे आदर देता है। आप कृपा कर उन्हें मेरे पास भेज देवें, अथवा अपने पास बुला लेवें ऐसा फोन होगा जो अपनी आत्मा से विरोध करेगा ? कया कहे, कुछ कहा नहीं जाता | अपनी माता _ के सिवा अपना कोई नहीं है। सबकी अपनी-अपनी पड़ी है | इसमें कुछ संदेह नहीं कि जिसका जिसपर सत्य ग्रेम होता है वह उसे मिलता है | . एक आता है, एक जाता है। ऐसा कहना आपको शोभा नहीं देता |

सातवा पा5 विशेषण का हूपांतर छोटा लड़का बडा पेड़ छोटी , लड़की बड़ी डाल छोटे लड़के बडे प्चें

(2 गक १६६--हिंदी में आकारांत विशेषण विशेष्य के लिग-बचन फारफ के अनुसार बदलते हैं पर उनमें कारक की विभक्तियों नहीं छगतीं जकारांत विशेषण को छोड़ दूसरे विशेषणों में कोई विकार नहीं होता जैसे, गोल मूँह, गोल टोपी; भारी बोझ, भारी लकड़ी, सुंदर पुरुष, सुदर स्री

( १९६ ) अपवाद«>नाना; खवा, उम्दा, जमा और जरा इन आकारांत विशेषणों में कोई विकार

नहीं होता; जैठे, नाना प्रकार के; सवा सेर, सवा रची में उम्दा कपड़ा, टोपियाँ

रा

आकार्सात विशेषण में विकार होने के नियम छोटे लड़के गए |

बह उेखचि पेड़ पर चढ़ा

किक

तुम कौन से घर में-रहते हो ?

| घिपाही बड़े फाठक तक जभाया। ( १) पुदिलग विशेष्य बहुबचन में हो अथवा सके पश्चातू विभक्ति वा संबंध-सूचक जावे तो विशेषण के अंस बा! के बदले 'ए' होता है

छोटी छडकी आई |

आज पॉचवीं तारीख है बह ऊंची डाल पर चढ़ा | तुम कीन सी कक्षा में हो.? सूर्खी पतचियाँ गिर गई

छताएँ हरी हैं। (२ ) ज्लीछिंग विशेष्य के खाथ विशेषण के अंत्य “आए के बदले

&2") के

द्््‌ झाता प्‌ |

|... (३ ) यदि विशेष्य कर्म-कारक में विभक्ति-सहित होता तो उसका विधेय-विशेषण वहुचा अधिकृत रहता दे; जे छड़की की सच्चा पाया |

जे गाड़ी को खड़ा करो मेने

_»२००--आकारात संबँध-सूचक ( जो अथ में विशेषण के समान होते है ) आांकारांत विशेषण के समान; विशेष्य के अनुसार बदछते हैं डे [श् हक] | 8 पर $ जैसे, प्रताप सरीखे वीर, दुर्गावती जेसी रानी, हाथी का स्ना बछ

मुझ दीन को किसी देश का तुम मुख से जिन यॉर्वों से उस घर भें

ज्ञिन लोगों से . २०१--जआफारात छोड़ शेध्र सांवनामिक विशेषण विभक्त्य॑त: सबंध-सूचकात विशेष्य के साथ अपने विक्ृत-रूप में गाते हैं

( ११७ )

- अप०«-कोई” सावनामिक विशेषण फाछवाचक संज्ञा के अधिकरण ,

कारक में बहुधा अभविकृत रहता है; जैसे, कोई घड़ी में, कोई दम में २०२--जत्र विशेषणों का उपयोग संज्ञा के समान होता है तब संज्ञा के समान उनको कारक-रचना होती है; जेसे, बडे को छोटों से, नीचों फा, दीन पर | गुणवाचक विशेषण की तुल्लना

२०३०-हिंदी में विशेष्ों की तुलना करने के लिये उसका रूप नहीं बर्दलता | तुछना का अथथ नीचे लिखे नियमों के अनुसार प्रकट फिया जाता है---

(१ ) जिस वस्तु के साथ अधिकता या न्यूनता की तुलना करते हैं उसका नाम अपादान-कारक में आाता है और जिस वस्तु की तुछना करते हैं उसका नाम विशेषण के साथ जाता है, जैसे रास से श्याम बडा है। चाँदी से सोना महँगा दोता है। पौधा पेड़ से छोटा होता है

(२) अपादान कारक के बदले बहुधा संज्ञा वा स्नाम के साथ “अपेक्षा” वा “बनिस्व्रत” ( उदूं ) संबंध-सूचक आते हैं ओर विशेषण ( अथवा संज्ञा के संबंध-कारक ) के पहले, अथ के अनुसार, “अधिक! ( ज्यादा ) वा “कम? विशेषण का उपयोग करते हैं; जेसे बह भेरी '' अपेक्षा अधिक चतुर है। दौलत के घनिस्वत ईमान ज्यादा कौमती है। ज्ञान की अपेक्षा बुद्धि अधिक महत्व की है।' राम श्याम से कम सावधान है

- (ञअ') अधिकता के अथ में कभी ,कमी “बढ़कर” या “कहाँ? क्रिया-विशेषण आता है, जैसे, उनसे बढ़कर धनी कोन है ! वे मुझसे कहीं सुखी हैं

( ) सर्वोचमता सूचित करने के लिये विशेषण के पहले “सबसे?” स्वनाम छगाते हैं और जिस वस्तु से तुछूना करते हैं उसका नाम अधि-

क्त

(३१८)

फरणनकारक मे रखते हैं; जैसे, वे नेतार्भों में सबसे बड़े हैं राजकुमारों में सबसे जेठे को गद्दी दी जाती है | ) सर्वोच्तमता दिखाने के छिये कभी-कभी विशेषण को दहराते हैं अथवा पहले विशेषण को अपादान-कारक में रखते हैं; जैसे, बड़े-बड़े विद्वान्‌ भी ईश्वर की लीछा को नहीं समझ सकते | अच्छे से अच्छा मनुष्य भी कुसंगति में पड़ जाता है | १०४-संस्ट्वत गुणवाचक विशेषणों की तुछना की दृष्टि से तीन अवस्थाएं होती हँ-(१) मूल्यवस्था (९) उततरावस्था (३) उत्तमावस्था,। (१) विशेषण के जिस रूप से कोई तुलना सूचित नहीं होती उसे मूछावस्था कहते हैं; जैसे, उब्च स्थान, नम्न स्वभाव, घोर पाप | | (२ ) विशेषण के जिस रूपए से दो वस्तुओं में से किसी एक के गुण की अधिकता वा न्यूनता जानी जाती है उसे उत्तरावस्था कहते हैं | वह

हप * तर? प्रत्यव छगाने से बनता है; जैसे घोरतर पाप, हृढ़तर प्रमाण, शुबतर दाप |

( ) उत्तमावत्था ब्शिषण के उस रूप को कहते हैं जिससे दो से घिक वस्तुओं में से किसी एक के जगा का अधिकता वा न्यूनता सूचित

|

होती है | इस रूप की शचना “तम? प्रस्यय लगाने से होती है; जेते, उच्चतम सर उत्तम सख्या, प्राची नतम काव्य | अभ्यात्ष

+जीचे छिखे वाक्यों में विशेषणों के रूपांतर का कारण बताओ-

उप कम का फछ बुरा होता है। वह छड़की सुशील है। लवे खेल -

3 वाणी होते हैं। इसके भीतर से दध सरीखा रस निकल्ता है। ऐसे उस नियम कड़े समझे जाते हैं। इस विपय में बड़े-बड़े पंडितों का मंत “दशा है| राम ने पिता के बचनों को पूरा किया। पतित्रता सनी अपने गत का सेवा करती है। चाणक्य अपनी पुरानी कुटी से चला गया | उज्य को सीमा क्षम होने छगी छड़की की अपेक्षा लड़का अधिक र्थिमा है। ये नोकर

+ नाहर से आए हूँ। किसी-किसी मनुष्य की नाच तरतता की ओर होती

( ११९ )

२--नीचे लिखे वाक्यो को फारण-सहित शुद्ध करा---

पुराने छत में एक चौड़ा नाली है। मेने टोपी को उलटी पहिना | श्याम का छोटा भाई को बुलाओ | वहाँ कई सुंदरियाँ छड़कियों थीं | इंश्वर की इच्छा बलवान है। आप फोन घर में रहते हैं। मेरे अपेक्षा

बह चतुर है। उन छोग ऐसा कहते हैं। पुरुषो की शिक्षा स्रियो से उच्च

क्न

, बताता है, पुढिंछग, बहुवचन

होना चाहिए |

विशेषण की पूर्ण व्याख्या

वाक्य--उसके एक पेर के निशान इतने गहरे थे जितने बाकी तीन पेरो के थे, इसलिए मुझे जान पड़ा कि ऊँ“ ढेँगढ़ा है

एक--विशेषण, निश्चित संख्यावाचक, “पेर” संज्ञा की विशेषता बताता है, पुहिंलग, एफ वचन

गहरे--विशेषण, गुणवाचक, “निशान” संज्ञा की विशेषता बताता है, पुछिग, बहुबचन, विधेय-विशेषण होकर आया

बाकी--अनिश्चित-संख्यावाचक विशेषण, पेरों”” संज्ञा की विशेषता

““तीन--निश्चित संख्यावाचक विशेषण, “पेरों? संज्ञा की विशेषता बताता है, पुदिंलग, बहुवचन अभ्यास

नीचे छिखे हुए. बाक्यों में विशेषणों की पूर्ण व्याख्या करो--

किसी सियार ने एक मोटे-ताजे हिरन को वन में चरते देखा | उनको एक तीसरा आदमी मिला | कॉच बड़ा कडकीला होता है। मेरे पिता प्यासे , हैं। यहाँ उन्होने अपनी गाड़ी खूब वेग से चलाई | उनका प्रण बहुत

' समय तकन चला वे दोनो बगीचे के दूसरे भाग में गये | रोष बनियो

ने इस गीत फा अर्थ तुरंत समझ छिया आम का पचा चौड़ा और घास फा सकरा होता है | कागज कई रंग और मेल फा होता है। घोड़े के कान सुडौल, लंबे और नुकीले रहते हैं| पर गधे के कानो की अपेक्षा छोटे रहते हैं।

_सर्काअमन्‍्क- सा अगेडआउपय,

| आट्व[ पा (4 'क्रया की वाचव्य नौकर छकड़ी काटता है | छक्षई काटी जाती दें। माली ने फूछ तोड़ा फूछ तोडा गया। |

छड़का चिट्टी लिखेगा ' चिट्ठी लिखी जायगां |

वह पुस्तक लावें। पुस्तक छाई जाते

२०४--बाई ओर के बाक्यी मे क्रियाओं द्वारा उनसे कत्तामों के विपय में कद्दा गया है, पर दादविनी ओर के वा क्यो में क्रियाएँ. अपने के विपय में कुछ कहती हैं। बाई ओर का क्रियाए कत्त वाच्य

कै 7 दाहिनी ओर की कमंवाज्य कहाती है। दाना प्रकार की क्रियाएं

थे में एक सी हैं, पर उनके रूपो में अंतर है, जिससे जाना जं का कि कत्त बाच्य में कर्ता की और करमंबाच्य मे कम की प्रधानता रहती दे

क्रियाओं में कमवाच्य नहीं होता क्योकि उनमे कम नहीं रहता | २०६--कत्त वाच्य द्विया का कमवाज्य में उद्देश्य होकर कता- कारक सें जाता है ओर यदि इसमें जुख्य कचा को प्रगट करने को

आवश्यकता हो तो उसे करण कारक में रखते हैं, जेसे बढ़ई३ ग्सी बनाता है ( कत्त बाच्य ) बढ़ई से (यथा बढई के द्वारा ) कुरती बनाई

जाती है ( कर्मवाच्य ) लडफा चिट्ठी लिखेंगा ( फत्त ) छड़के द्वारा चिट्ठी लिखी जायगी। ( कम० )।

|

( ) कोई-कोई लेखक भूल से कत वाच्य के कर्म को कर्मवाच्य में भी कर्मकारक में रखते है, जैसे, नौकर को बुछाया गया ! लड़के फो वहां भेजा जायगा जड को काम में छाया जाता है।

२०७- हिंदी में कमवाच्य बहुधा नीचे लिखे जर्थों में आाता दै

(क) जज्र क्रिया का कर्ता अज्ञात हो अथवा उसके प्रगट फरने फी आवश्यकता हो; जैसे, चोर पकड़ा गया है। जाज सच्च छो बुलाएं, जाएँगे

(स) गोरव जताने के लिये अधिकारियों और कचहरी फी भाषा में

(१९६९

'जैसे, आज हुक्म सुनाया जायगा | तुमको इचिला दी जाती जी है। , इस मामले को जांच की जावे (ग ) शक्तता वा अशक्तता के अथ में, जैसे, रोगीसे अन्न खाया जाता है | हमसे तुम्हारी बात सही जायगी | गो ऐप २०८--ट्विकमक क्रियाों के कमवाच्यमें मुख्य कम उद्देश्य होता है ओर गौण फेम जैसा का. तेसा रहता है; जैसे,

कतृ बाच्य कमवाच्य राजा ब्राह्मणको दान देता है।. ब्राह्मग को दान दिया जाता है। गुरु शिष्य को गणित सिखाता था | शिष्यक्रो गणित सिखाया जाता था | राम श्याम को चिट्ठी भेजेगा श्याम को चिट्ठी भेजी जायगी | _ लड़का दोड़ता है। लड़के से दोड़ा जाता है * रोगी बैठता है। रोगी से बैठा जाता है ) लड़की अन्न चलेगी लड़की से अब चला जायेगा |

बूढा उठ नहीं सकता था बूढ़े से उठा नहीं जाता था

२०१--इन उदाहरणों में बाई ओर की अकमक क्रियाएँ - कतृ बाच्य में हैं; क्योकि वे अपने कर्चाओ के विषय में विधान या फैथन करती हैं; पर दाहिनी ओरकी क्रियाओके विषय में कुछ नहीं 'ंहती इनसे केवछ क्रिया के भाव का बोध होता है, इसलिये इन्हें भाववाच्य कहते हैं। भाववाज्य किया बहुघा शक्तता अथवा अनशक्तता के, अथ में आती है।

२१०--कतृ वाच्य अकरमक और सकरम्मक दोनों प्रकार की क्रियाओों में होता है, कमंवाच्य केवल सकमक क्रियाओ में और भाव वाच्य केवल 0 _्ध ज्ै अकफमक क्रिया में होता है; जैसे--+

कत्तु वांच ... क्षमवाच्य भाववाच्य[ु लड़की पुस्तक पढ़ती है। पुस्तक पढ़ी जाती है). है। नौकर चलता था जोकर से चला छाता था

|

( १५२ )

/॥7

वाच्य क्रिया के उठ रूप को कहते है. भिससे जाना जाता दे कि क्रिया के द्वारा कन्तों के विषय में कुछ कहा गया दे वा कर्म के विपय में अथवा केवल भाव के विपय में | ;

२११--वाच्य तीन प्रकार के होते हैं-[ | फतृ वाच्य [२] कमवाच्य [ ] भाववाच्य

/2

(१ ) कतृ वाच्य क्रिया के उस जप को कदते हैं जिसमे जाना जाता दे कि क्रिया का उद्देश्य उमका कर्ता दे; जैसे छड़का दोंड़ता है | लड़की पुस्तक पढ़ती हे। नोकर ने कोठा भाड़ा |

(२) क्रिया के उस रूप को कर्मवाच्य कहते है. जिससे जाना जाता है कि क्रिया का उद्देश्य उसका कर्म है, जैसे, कपड़ा सिया जाता है। चिट्ठी अमी भेजो गई है | मुझसे यह भार उठाया जायगा |

( ) क्रिया का वह रूप भाववाच्य कहता दे जिससे जाना जाता है कि क्रिया का उद्देश्य उसका कर्चा या कर्म नई है, किंतु केवछ उसका भाव है; जैसे वेठा जायगा | धूत्र में चल्ला नहीं जाता रोगी छऐे अब कुछ छठा बेठा जाता है

अभ्यात्त नीचे लिखे वाक्यो में क्रियाओं के वाच्य कारण -सहित बताओ--

उम्र चतुर हो | सोने के सिक्के बनाये जाते हैं। रही कागज पुड़िया

वॉवने के काम जाता है। एक आदमी ने उस सॉप को छकड़ी पर उठा

लिया | यह खेल बहुधा गाँवों में खेला जाता है।

लिया यह खेल प्रकाश तथा हवा के लिये झरोखे रखे गये हैं छक

स्थानों में छाह्य पाया जाता है | रस्सी _ भन्‍्त हाथी बॉचे जा सकते हैं | उससे चुप नहीं बैठा जाता जब्नलपुर के दर्रीखाने में आजकल केदी लड़के रखे जाते हं। उसने खाने-पीने का सामान इकट्ठा किया | धूप के दिनो में मिट्टी को गोड़ते हैं। बिना बोले किसी से रहा नहीं जाता | जाडे में बाहर कैसे सोया जायगा !

२--ऊरर के वाक्यो में क्रियाओो के वाच्य बदलो

( ११३ )

“४ ३--ीचे छिखी सकर्मक क्रियाओं की कर्मवाच्य में ओर अकमक

' क्रियाओं को भाववाच्य में बदलों---

बढई लकड़ी चीरता है। छड़की चल नहों सकती | रोगी कुछ नहीं खा सकता छडको ने धरती खोद डाली | कया कोई ककड़ों में लेट सकता है वह पुध्तक पढ़ता है धोबची कड़े धोवेगा | शाजा युद्ध करता होगा। माली पेड़ोफको पानी देता तो मालिक उठे नौकरी से

,. निकालता | १. ३/ नवां प|5 | ८> (५ क्रिया का अर्थ

१-लड़का पुस्तक पढ़ता है। ४--लड़का पुस्तक पढ़ता होगा। २--संभव है कि लड़का पुस्तक पढ़े। ५--छड़का पुस्तक पढता तो रै- लड़के, पुस्तक पढ़ | अच्छा होता |

११२--ऊपर के वाक्यों में पढ़ना? क्रिया भिन्न-भिन्न रूपों में और

भिन्न-भिन्न क्या भें भाई है। पहले वाक्य में पढ़ता” क्रिया के द्वारा

एक निश्चित विधान या कथन किया गया है। दूसरे वाक्य में “पढ़े”? क्रिया संभावना प्रकट करती है [तीसरे वाक्य में “पढ़? क्रिया से आज्ञा.

' सूचित होती है। इसी प्रकार चोंथे,बाक्य में “पढ़ता होगा” क्रिया से

सदेह और पाँचवें वाक्य में “पढ़ता” क्रिया से संकेत अर्थात्‌ शर्ते पाई जाती है। प्रत्येक क्रिया एक भिन्न प्रकार का विधान करती है।

क्रिया के विधान करने को रीति को अथ कहते हैं

२१३--क्रिया के सुख्य अथ पाँच है--( ) निश्चयाथ ( ) संभावनाथे (३ ) जाज्ञा्थ (४ ) संदेहाथ ( ) संकेताथ

(१ ) क्रिया के जिस रूप से कोई निश्चित विधान या प्रश्न किया जाता है उसे निरचयाथथे कहते हैं; लड़का भाता है। नौकर चिट्ठी नहीं लाया | क्‍या जादमी जावेगा ?

१२५४ )

(२) संभावनाथ क्रिया से अनुमान, इच्छा, कर्तव्य आदि का गेष होता है; जैसे, कदाचित्‌ पानी बरसे ( अनुमान ) तुम्हारी जय हा ( इच्छा ); राजा को डांचत है कि प्रजा फा पालन फरे ( कतंव्य )

जावे तो मे जाऊ ( संवावना ) | |

(३) क्रिया के जिस रूप से आज्ञा, प्राथना, उपदेश जादि का बोध होता है उसे आज्ञाथे कहते है, जेंसे, तुम जाओ (भाज्ञा ), बेठिए ( प्राथना ); सदा सत्य बाली ( उपदेश )

( ) किस क्रिवा से विधान मे संदेह पाया जाता है उसे संदेहार्थ , कहते हैं; जैसे डड़का आता होगा नोकर गया होगा

(५ ) संकेताथ क्रिया का वह झूप हें जिससे काय कारण का संबंध रखनेवाली दो क्रियाओं की असिद्धि सूचित होती है; 'जेसे यदि आप

चर 8

आते तो में जाता। जो वह पढ़ता तो अवश्य सफल होता

]

(१'

न्‍िक०५०»»-न००->५ अममणककवभा! आ८फाह८पयआ

सर 5-० |] दसंव![ पां5 क्रिया के काल नोकर चिट्ठी छाता। नोकर चिट्ठी छाया नोकर चिट्ठी छावेणा |

रै४--ऊपर वाक्यों में 'छाना? क्रिया भिन्न-मिन्न रूपों में लाता ३, छाया, छावेंगा | इन रूपो से भिन्न भिन्न समय का

“छाता है? क्रिया से चछते हुए समय का, “लाया? से समय का और “छावेगा” से जानेवाले समय का अर्थ

शे

इांता

क्रया के जिस रूप से समय का बोध होता है उसे व्याकरण में काल कहते हैं।

40 | नि

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धरा ७०]

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( १२५ )

२१५--काल मुख्य तीन प्रकार के हैं--( ) वतमान ( ) भूत “(३ ) भविष्यत्‌ |

(१ ) वतमानकाल की क्रिया से चलते हुए समय का बोध होता है, जैते; गाड़ी आती है।माँ बच्चे को सुल्लाती हे। चिट्ठी भेजी जाती हे

(२ ) जिस क्रिया से जानेवाला समय सूचित होता है उसे भूतकात् फी क्रिया कहते हैं; जैसे गाड़ी आईं | माँ ने बच्चे को सुल्लाया चिट्ठी भेजी गई |

(३ ) जो क्रिया आनेवाला समय बताती है वह्द भविष्यतृकाल की क्रिया कहाती है, जेंसे, गाड़ी आवबेगी | मा बच्चे को सुलावेगी चिट्ठी भेजी जावेगी। शा

काल सामान्य अपूर्ण पूण $+--व+3++.........ह.ह.तह... 3 करारी री आस लक सर बज कट मिनी मल कपल + मी मम अत जल: किले मय मनन कड + जी कक धर पथ मे मै , वर्तमान मै चलता हूँ | मै चल रहा हूँ | मै चला हूँ भूत मैं चला मैं चछता था | मैं चढा था + ्ा धर जी भविष्यत्‌ मे चलूंगा | में चलता रहूँगा मे चल चुकूगा

ला: आज

२१६--ऊपर लिखे वाक्यो में “चलतो”? क्रिया के मुख्य फालो के भोर भी रूप दिए गए हैं | इनसे जाना जाता है कि प्रत्येक काछ की सामान्य अवस्था के सिवा अपूण और पूण अवस्थाएँ भी होती हैं। भपूर्ण अवस्था से जाना जाता है कि कार्य का आरंभ हो गया, पर समाप्ति नहीं हुई; ओर अपूर्ण अवस्था से सूचित होता है कि कार्य की ' समाप्ति नहीं हुईं; मौर पूण अवस्था से सूचित होता है कि कार्य की सस्ाप्ति हो गई | इस प्रकार क्रिया के काछ से कार्य का केवछ समय ही सूचित नहीं होता, किंतु उसकी अपूर्ण और पूर्ण अवस्था भी सूचित होती

_२१७--तीनो काछो को तीनों अवस्थामो के विचार से उसके नो ' भेद होते हैं, पर ऊपर दिए हुए तीन रूप संयुक्त क्रियाओं के हैं |

( ११६ )

( अ॑० २५६ ); इसलिये हिंदी फाछो की अवस्था के अनुसार उनके केवछ छः पेंद माने जाते हैं---( ) सामान्य वर्तमान (२) पू्

वत्तमान ( ३े ) सामान्य भूत ( ) अपू्ण भूत (५ ) पूरा भूत (६ ) सामान्य भविष्यतू |

(१ ) सामान्य वर्चमान काछ से जाना जाता है कि कार्यका

भारम बोलने (लिखने) के समय हुआ है; जैसे, हवा चलती हे | लड़का

पुत्तक पढ़ता है चिट्ठी भज्ञी जाती है

(२ ) पूण वर्तमान क'छ से सूचित होता है कि भूतकाल का काये

वत्तमान काऊ में समाप्त हुआ है; जैसे. पानी गिरा है | नौंकर आया है। चिट्ठी भत्ा

सू०--कोई-कोई लेखक इस काल का आसन्नभूत कहते हैं; क्योकि - यह भूतकाल की सनीपता सूचित करता हे |

( ) सामान्य भूतकाछ की क्रिया से ज्ञाना जाता है कि कार्य

पोलने ( वा लिखने ) के पहले समा हुआ; जैसे पानी ग्रिर। नोकर आया | [चट्ठां भेजी गई |

(४) अपूर्ण भूतकाल से सूचित होता है कि कार्य भूतकाल में दाता रहा; जले, गाडी जाती थी। चिट्ठी छिखी जाती थी। नोकर फोठा झाड़ता था |

(५ ) पृण भूतकाल से ज्ञात होता है कि कार्य को भूतफाल से पूण

3० नेडुत समय बीत चुका; जैसे, नौकर चिट्ठी छाया था | सेना लड़ाई +7 भजन गइ थी। आार्यों ने दक्षिण में प्रवेश किया था |

( ) सामान्य भविष्यत्‌ काल की क्रिया से जाना जाता है कि कार्य

आम होनेवाछा है; जैसे, नौकर चिट्ठी ल्ञाण्यणा | सेना लड़ाई पर भंजा जयगी | हम पुस्तक पढ़ेंगे |

जी

ति.6|

५. ते अर्थां मोर अवस्थाओं के अनुसार काछो के सोलह भेद जनक नाम ओर उदाहरण नीचे दिये जाते हैं-.

( १२७ )

से थक संभवनाथ | भाज्ञार्थ | संदेहाथ संकेताथ बच- (१)तामान्य वच-(७)संमाव्य (१०) प्रत्य-(( १२) संदि- कं मान मान वह चलता है। वर्च॑मान | ज्ष विधि “्घ वर्तमान वह चलता | तू चलछ वह चढरता

(२)पृण वत्तमान | हो होगा वह चला है >< भू ३६ भूत (३)सामान्य भूत-((८) संभाव्य (१३) संदि- (१४) सामान्य वह चला | भूत वह > र्घ भूत | संकेताथ-वह चला हो बह चला चलता होगा | (१५) जअपूण (४) अपूर्ण भूत संकेताथ-वह वह चलता था ५८ » चलता होता (१६)पृणसंकेताथ (५) पूण भूत वह्द चला होता वह चला था > औ€

मवि- ((६) सामान्यमर्विं-((९) संमाव्य((१ १)परोक्ष ध्यत्‌ ध्यूत्‌ बह चलेगा | भविष्यत्‌ | विधि 4 वह चले तू चलना

गाता 5 >> आन लीक तल, अमल कली जल कक कक ॒ल॒लमुबलईलाला रा एए

अभ्यास

१--नीचे छिखे वाक्यो में क्रियाओं के अर्थ और कला बताओों०*

मध्यभारतके स्थानों में छटेरे बसते थे। उसने अपने ही हाथ ते सात सो मनुष्य मार डाले थे। हम शझोीत्र ही किसी किसी द्वीप में पहुँचेंगे | उस द्वीप के. निवासी जंगली थे राजा ने उसे नये-नये छीप खोजने के लिये भेजा | पुरी में कई मंदिर हैं। इन्होंने परिश्रम करके उच्च पद पाया है | वे छोग गये पर बेठना बुरा नहीं समझते राजा ने भाज्ञा दी कि उस मनुष्य को भीतर बुछाओ यदि छड़का पिता का कहना मानता तो उसकी यह दृदशा होती इस समय गाड़ा आाइ होगी यदि देश में बुद्ध-धर्म का प्रचार हुआ होता तो हिंसा की

( शरद )

सीमा रहती जब तेरा पति ठुश्न पर क्रोध करे तत्र तू इस ओपधी को . पी लेना | हम छोगो को यह चाहिए कि हम किसी की नकठ कर | -

मा

ऐ०८ ग्यारहती प१।छ क्रिया के पुरुष, छिंग और वचन-अयोग पुजिंग पुरुष एकवचन बहुवचन उतचम मे जाता हूँ हम जाते ईं मध्यम तृ जाता हैं तुम जाते दो | अन्य बह्ट जाता दे वे जाते हैं ! | छीटिंग उत्तम में जाती हूँ हम जाती ईं मध्यम तू जाती है तुप जाती हो अन्य वह जाती है वे जातीं हैं

२२९--क्रियाओ के पुए्षपाचक स्वतामों के समान तीन पुझंष ( उत्तम, मध्यन, और अन्य ) और संज्ञाओं के समान दो छिंग (पुल्लिंग भोर ख्रीलिग तथा दो वचन ( एकवचन ओर बहुबचन होते हैं )

अप०--संभाव्य भविष्यत्‌ ओर विधि-काछो से छिग्र के कारण कोई विकार नहीं होता; जैसे;

पु०-म जारऊँ स्री०-मे जाऊेँ पु०--तुम ज्ञाओों स्री०--तुम जाओ “होना” (स्थितिदशंक) क्रिया के सामान्य वर्चभान काल में भी छिंग के फारण कोई हेर-फेर नहीं होता; जैसे,

( १२६ ) पु०--में हूँ खील्ञगो हू २२०--हिंदी आकारांत विशेषण के समान क्रियाओं में पुरिलग

एकवचय का प्रत्यय झा, पुल्छलिग बहुब॒चन का छू, सत्रीढडग एक वचन का और स्त्रीलिंग बहुबचन का कही इं ओर कहीं ई' है | जैसे

'लिग एफवचन बहवंचन पुल्लिंग मे चला हम चले त्रीलिग में चली ' हम चल्ों

सू०--आकारांत क्रियाओं में पुरुष के कारण कोई रूपातर नहीं होता; जैसे, मै गया, तू गया, वह गया

२२२--अकमक क्रियाओ के पुरुष, लिंग और वचन कर्ता के पुरुष लिंग ओर वचन के अनुसार होते हैं। जिस क्रिया के पुरुष-छिंग-बचन कर्ता के पुरुष लिंग-वचन के अनुसार होते हैं उसे कत्तरि-प्रयोग कहते हैं। कर्त॑रितप्रयोग में क्रिया के कर्ता के साथ “ने” चिह्न नहीं जाता | . लड़के ने पुस्तक पढ़ी लड़की ने फल तोड़ा था।

_ लड़के ने पुस्तके पढी थीं। लड़की ने फल तोडे थे

. लड़फो ने खेल देखा होगा लड़कियों ने खेल देखा है

२२२---सकमंक क्रियाओ के 'मूतकालिक कृदंत से बने हुए! कालो के पुरुष लिंगब्वचन विभक्ति-रहित कर्म के पुरुष-वचन के अनुसार होते हैं। जिस क्रिया के पुरुष-लछिगावचन कम के पुरुष लिग-बचन के अनुसार होते हैं उसे कमेणि-प्रयोग कहे हैं। कमणि प्रयोग में क्रिया के कर्ता के साथ “ने”? चिह्न आता है, पर कर्म के साथ 'को? चिह्न नहीं

. जाता | शेष काछो में सकर्मक क्रियाएँ कचंरि प्रयोग में आती हैं।

अप०--बकना, बोलना, भूलना, छाना; जनना और समझना सक- 8 कर्चरि-प्रयोग में आती हैं; जेसे वह कुछ नहीं बोढा हम पुस्तक छाए | जाप मेरी बात नहीं समझे | यात्री मार्ग भूछा होगा।

न्‍िकम»«++०-_-+ विसााामामाादे। अममाापप जी,

( १३० )

हमने लड़की को देखा | माँ ने छड़के को बुछाया | लड़कियों ने भाई को भेजा ठिपाही ने छड़के को पकड़ा | २२३--जब कचा के साथ “ने” चिह्न ओर कम के साथ ,को! रहता है तत्र क्रिय। के पुरुष-छिंग-वचन करता के अनुसार होते हैं ओर . कर्म के अनुसार | यह क्रिया सदा अन्य पुरुष, पुल्छिग, एकबचन में ती हैं| जिस क्रिया के पुर॒ुष-लछिगवचन कर्चा वा कर्म के अनुतार नहीं होते उसे भावे-प्रयोग कहते हैं। | के | नहाना, छींकना, खॉसना आदि अकर्मक क्रियाओं के भत- आलिक कृदत से बने काछों मे कर्ता के साथ 'ने? चिन्ह आता है और मे क्रियाएं भावे प्रयोग में रहती हैं, जैसे, मैने नहाया | किसी ने छींका है| रोगी ने खासा होगा | वाक्य ओर प्रयोग का मित्लन

वाच्य प्रयोग

कतृ वाच्य (१) कर्तेरि-प्रयोग--छड़का पत्र छिखता है | छडका पुस्तक पढ़ती हें। (२) कमणि-प्रयोग--छड़ के ने पुस्तक पढ़ी लड़की ने पत्र लिया | (३) भाव-प्रयाग-छड़के ने पुस्तक को पढा | लड़की ने पत्र को लिखा ऊसणि-प्रयोग--पुस्तक पढी गई कर्मच्राच्य पत्र लिखा जाता है। भाव-वाच्य भावे-प्रयोग - मुझसे चला जाता है एऊप7:::हहहक्‍त उसे बैठा नहीं जाता ।__ वेठा नहीं जाता | के प्रयोग के लिये २७७ अंक देखो अभ्यास या से कारणन्सहिंत क्रियाओ के प्रयोग बताओ- ने ठम्दारें घर पर कछ आार्ऊँगा। तुम मुझे

सूछ बन सयुक्त क्रिया

है | 82 989 डर हट

फंदाचित्‌ लप्न झठा हो

( १११ )

मिलना | इस समय नौकर काम पर गया होगा किसी ने मुझे इसका कारण नहीं बताया है | धन से विद्या श्रेष्ठ है। लड़की ने बहिन को देखा | रोगी ने कछ नहाया कई बुलाएं गए, पर थोडे चुने गए। मुझसे अकेला नहीं रहा जाता। स्त्री ने भाई को पत्र भेजा था। लड़का बहुत 'बका | गाय बछड़ा जनी पंडितों ने अपनी संमति दी थी | पुत्रों ने 'पिता की भाज्ञाओं की पाला है। सिपाहियो ने चोरों को पकड़ा था | नोकरानी ने कहा कि में काम करूँगी।

बारहवाँ पाठ कृदंत १--विकारी पढ़ना छाभकारी है। वह पढ़कर विद्ान्‌ हो गया | पढ़ा हुआ मनुष्य आदर पाता है | पछ्ुते समय अर्थ पर ध्यान दो

२२४--इन वाक्यों में क्रिया से बने हुए शब्द आए हैं जिनका उपयोग दूसरे शब्द भेदो के समान हुआ है | पहले वाक्य में “पढना?” शब्द संज्ञा है, क्योकि उसमें एक कार्य का नाम सूचित होता है दूसरे वाक्य में “पढ़ा हुआ? शब्द विशेषण है, क्योंकि वह “मनुष्य” संज्ञा की विशेषता बताता है। तीसरे वाक्य में “पढ़कर” शब्द किया-विशेषण के समान जाता है, क्‍योंकि वह “हो गया?! क्रिया की विशेषता बताता है। चौथे वाक्य में “पढ़ते” * शब्द विशेषण है, क्योकि उसका अर्थ "पढ़ने के? संबंध फांरक के समान है। क्रिया से बने हुए जो शब्द दूसरे शब्दों के समान उपयोग में आते हैं वे ऋदंत कहाते हैं

- पढ़ना छाभफारी है पढने में असावधानी मत करो। हे नि रे ' इसना स्वास्थ्य को बढ़ाता है | हँसने से छाभ होता है धीरे चलना अच्छा है। बच्चे को चलना सिखाया जाता है |

२२५--ऊपर लिखे वाक्यों में क्रिया से बने शब्दो का उपयोग संज्ञा के समान हुआ है; इसलिए उन्हे क्रियाथक संज्ञा कहते हैं

( १३२ )

' थे संज्ञाएँ क्रिया के साधारण उप भे रहती हैं भर संबोधन को छोड़ शेप कारकी के एक वचन में जाती हैं| इनकी कारक रचना हिंदी आकारांत पुद्लिंग संज्ञा के समान होती

छानेबाले मजदूर को सेजे | गाड़ी आनेवाली है

२९६--क्रियाथक संज्ञा के विक्षत रूप में वाल” ( हारा ) जोड़ने

वाचक संज्ञा बनती दे। इसका उपयोग विशेषण [के समान

भी ता हैं। कभी कभी इससे भ्रविष्यतुकालठ का भी आर्थ पाया जाता | इनका हप जाकारांत विभेषण के समान विदष्य के लिंग वचन अनुपार बदलता हे

बहता पानी हवा से साफ होता है।

चलती हुई गाड़ी में मत बेठो |

उसने उड़ते हुए पक्षी को मारा |

१९७०-क्रयाथक संज्ञा के अंत्य “ना? का छोप करने से जो अंश

वचता है उठे धातु कहते है। जैसे, में धतो” जोइ्ने से वह्मान-्का विशेपण विशेष्य के छिग वचन बहुधा “हुआ? शब्द लड् देत रूपांतर होता है |

आनाल्‍जा; करना-कर | धातु के अंत सके कदत विशेषणु बनता है। यह के अनुसार बदलता है। इसके साथ हैं जिनमें मुख्य शव्द के अनुसार

4333-०० द॥0:900-७ श्र००७ातआाह

-. ईआा अन्न गरीबों को दिया गया।

मनुष्य को खुले भेदान हे च् चु 3 भंदान मे घूमना चाहिए

( १३३१ )

दबी बिल्ली चुहों के कान काटती है।

२२८--ऊपर के वाक्यों में रेखांकित शब्द भूवकालिक झदृंत विशेषण के उदाहरण हैं| इसके साथ भी बहुधा “हुआ” जोडते हैं जो “होगा? क्रिया का भूतकालिक कृदंत विशेषण है। ये विशेषण भी विशेष्य के अनुसार अपना रूप बदलते हैं।

भूतकालिक कृदंत विशेषग बनाने के नियम ये हैं--

(१) अकारांत धातु के अंत में “आ?? जोड़ते हैं; जैसे,

बोल--बो छा पहचान--पहचाना डर--डरा मार>-मारा चमफ--च सका खीं च--सखीं चा

(२) धातु के अंत में भ, आ, ई, वा हो तो धाठु के अंत में-य करके आा जोड़ते हैं; जैछे,

छा--लछाया खे--खेया पी--पीया बोबोया जी--जीया डुबो--डुबोया

_ सू०--दोधघ “ई” को हस्व॒ कर देते हैं। (३ ) ऊकारांत ,धातु के “ऊ” 'को हस्व करके उसके पछचात “आई जोढ़ते हें; जैसे, '

है. 5० लक इुला। छू--छुआ * (४) नीचे छिखे भूतकालिक ऋदंत विशेषण नियम विरुद्ध बने है* . - हो--हुआ ( हुई ) * दे--दिया (दी) कर--किया ( की ) के लिया ( छी » जा--गया ( गई ) मर->मरा; मुआा (मरी, सुई )

| २६--अकर्मक क्रिया से बना हुआ भूतकालिक इद॑त विशेषण फत्त वाच्य और सकमंक क्रिया से बना हुआ कर्मवाच्य हीता है; जैसे, अकमंफ--भाया हुआ माल, झड़े पत्ते, बढ़ी हुई घास

' सकमंक--बोया हुआ खेत; भेजे हुए कपड़े, तपाई हुई चांदी

( १३१४ )

ख०>तकमंक कुदंत के साथ “हुआ”? के बदले कभी-कभी “जाना किया का भूतकालिक कृदंत “गया? जोड़ते हैं; जैठछे, चोया गया खेत, जैजे गए कपडे, तपाई गई चांदी

ए->छाविकारी ( अध्ययन )

उसने घरसे निकछ जंगछ की राह छी ! उनकी समझा के मेरे पात छाओ | इतनी कथा मुनि. ने राजा को समझायी वह अंगुली पकड़ के पहुँचा पकइता है | छड़का रोटी खाकर पाठशाल्व को जाता है। अच्छा स्थान देखकर वें वहाँ ठहरे

२१०--पूर्वकालिक छदंदु, अव्यय धातु के रूप में रहता है अथवा धातु के अत सें “कर” अथ्वा के! जोड़ने से बनता है। इसका उपयोग बहुधा मुख्य क्रिया से पहल्षे होने वाके कार्य क्री समाप्ति के अथ में, क्रिया विशेषण के समान होता है। इसका रूप नहीं बदलता इसलिये इसे अव्यय कहते हैं

२२१---पूर्वकालिक कुदंत ओर सुख्य क्रिया का उद्देश्य बहुघा एफ ही रहता है, पर कभी-कभी पूर्वकालिक कृदंत के साथ अछग उद्देश्य आता है; जैसे, चार बत्न कर दस मिनट हुए हैं। इस ओऔपधि से थकाबट दूर होकर बल बढ़ता है। इस व्यापार में खर्च जाकर कुछ बचत होती है।

उसने जाते ही उपद्रव मचाया छड़की चलते ही गिर पड़ी

चिट्ठी पाते ही तिपाही ज्ञायगा | रोगी उठते ही चिंल्लाता है

२३२--तात्कालिक छूदंत अव्यय बनाने के छिये वर्तमान- कालिक इदंत विशेषण के अंत्य ध्ता? को पते! करके उसके आगे “ही” नोड़ते हैं। इनसे मुख्य क्रिया के साथ होनेवाले कार्य की समासति का वाध द्ोता है। यह कृदंत भी अव्यय है और क्रिया-विशेषण के समान उपयाग भें झाकर सुख्य क्रिया की विशेषता बताता है।

रे३े--ताल्कालिक कृदंत और सुख्य क्रिया का उद्देश्य बहुधा एक ही रहता है, पर कमी-कमी तात्कालिक कृर्दत का उद्देश्य भिन्न

( १३५ )

कर 2५ का रहता है और यदि वह प्राणिवाचक हो तो संत्रंघ कारक में जाता है; जैसे, राजा नें सिंहासन पर बेठते ही अन्याय आरंम किया | दिल निकलते ही चोर भाग गए | आपके आते ही उपद्रव शात हुआ

'। 62२७७ काका >»नननमन-ण, रे

लडकी बाहर निकलते डरती है

मुझे रास्ता चलते कष्ट होगा

जंगल में घूमते हुए मैने एक इरिण देखा

राम को बन में रहते चौदह वर्ष बीते।

२३४--ऊपर छिखे वाक्यों में रेखाक्रित शब्द पूर्ण क्रिया-

चोतक कृदंत कहाते हैं; क्योकि इनसे मुख्य क्रिया के साथ होनेवाले फाय की अपूर्णता सिद्ध होती है। इस कृदंत का रूप तात्कालिक झदत के समान होता है, पर इसमें “ही” नहीं जोड़ी जाती। इस इझदत का उद्देश्य बहुधा संप्रदान-कारक में आता है।

न्‍अजशमनपलननन। रेकलम;3-काक:ब (मप्यतम

+ इस बात फो हुए दस बरस बीत गए इतनी रात गए तुम क्यो आए लड़का हाथ में पुस्तक छिए हुए आया | , दिन निकले सब छोग चले गए | २३५ - ऊपर के वाक्यों में रेखांकित शब्द अपूर क्रिया द्योतक कूदृत के उदाहरण हैं। इस कृदंत से मुख्य क्रिया के साथ होनेवाले' व्यापार की पूर्णता सूचित होती है। यह कृदंत भूतकालिक कृदंत के अंत्य #आ?” के बदले ८ए” करने से बनता है। २३६---अपूर्ण क्रिया-द्योतक और पूण्ण क्रिया-द्योतक झदंतों के साथ पहुधा “होना” क्रिया के पूर्ण क्रियान्योतक कृदंत का रूप “हुए? लगाते हं। दोनो कृदुंत भी अब्यय और क्रिया-विशेषण हैं।

( १३६ )

अच्यास

१--नीचे छिखे वाक्यो में झदंतों के भेद बताओ---

इतना वचन ज्योतिषियों के मुख से निकलते ही राजा भीष्मक ने अति सुख मान बडा आनंद किया | वह ब्राह्मण टीका छिए चला-चलछा शिशुपाल को सभा में पहुँचा | वह प्रभु का नाम लेता द्वारका को गया | तोरणन्बंदनवार वेँप्रे हुए हैं। वे कहने-सुनने से पढ़ने छगे वहाँ गॉव की रइनेवाली एक स्त्री आई | वे देवी के सामने अकेले बैठकर रोया करते थे और भी अनेक पश्ु काम में आए. | महाराज की आज्ञा पत्थर पर खुदी है | भगवान्‌ विगडी के बनाने वाले हैं | दो घडी दिन रहे वे लोग मिलने को आर चलती गाड़ी में मत चढ़ो

क्रियाओं ओर ऋदूंतों की पूर्णो व्याख्या '

वाक्य--राजा ने शर्म समा में अपनी चमकती हुईं तलवार दिखा कर कहा कि इस शा््त्र के रहते किसी को मेरा राज्य छीनने का साहस नहोगा। - हे भरी--भूतकालिक कझंदंत विशेषण, सकर्मक, कर्मवाच्य, “सभा? की विपता जाता है त्रीडिंग, एकवचन |

सती दुई->वतमानकालढिक कृदंत विशेषण, अकर्मक, कचु वाच्य

तलवार” संज्ञा की विशेषता बताता है, स््रीलिग, एकबचन |

हे दिखाकर--पूर्व कालिक कदंत अब्यय, सकमंक, कतृ वाच्य, इसकी डेझय क्रिया “कहा”, कर्म “तलवार” | केहा--क्रिया, सकमंक, कत्त लन्यपुरुप, पुर्िकग, एकवचन, वाक्य, भावे-प्रयोग | रहते--अपूर्ण क्रियाद्योतक कृद॑त मुख्य क्रिया “होगा? |

>_ | वाच्य, निश्चयाथं, सामान्य भूतकाल इसका कर्चा "राजा ने?ः, कर्म अगला

अव्यय, अकमक कतृ वाच्य इसकी

( १३७ )

छीनने फा--क्रियाथक संज्ञा, सफर्मक, कतृ वाच्य, संबंध कारक,

; संबंधी शब्द “साहस ??, इसका कर्म “राज्य”? |

होगा -क्रिया, अकमक, फतृ वाच्य, निश्चयाथ, सामान्य भविष्यत्‌ काल, अन्य पुरुष, पुढिछिंग, एकवचन, इसका (कर्ता “साहस”? कर्तरि- प्रयोग

अभ्यास

२--पिछले अभ्यास में आई हुईं क्रियाओं और कूदंतों की पूर्ण

' व्याख्या करो |

. तेरहवों पाठ क्रिया को काल-रचना २३७--क्रिया के वाच्य, अर्थ, काछ, पुरुष, छिग और वचन के , रण होनेवाले रूगे के संग्रह को कात्न-रचना कहते हैं २३८--हिंदी के सोलह ( १६ ) काछ क्रिया के मुख्य तीन रूपो से पनते हें; जैसे ( क) धातु से--( १) संमाव्य भविष्यत्‌ (२) सामान्य भविष्यत्‌ (३ ) प्रत्यक्ष विधि ( ) परोक्ष विधि | ( चार काछ ) | ( ख-) वर्चमानकालिक कृदंत से (१) सामान्य संक्रेतार्थ ( १) पामान्य बतमान (३ ) अपूर्ण मृत (४) संभाव्य बचमान (५) संदिग्ध , पेमान (६ ) अपर्ण संकेतार्थ | ( छः काल ) ( ) भूतकालिफ कृदंत से--( ) सामान्य भूत ( २) आसत्न 'त ( पूर्ण वर्तमान ) (३ ) पूर्ण मूत (४) संभाव्य भूत (५ ) संदिग्ध भैत ( ) पूर्ण संकेता्थ | ( छः काल.) | २२६--जो फाल केवल प्रत्यय जोड़ने से बनते हैं वे साधारण , शत और दूसरी क्रिया की सहायता से बनाए, जाते हैं वे संयुक्त काल कहते हैं १०

| 3 रेस )

धातु से बने हुए चारों काछ तथा सामान्य संकेताथ और सामान्य त--ये छः साथाएण काछ हैं और शेष दस संयुक्त काल बनाए, जाते हैं। २४०--जिस क्रिया की सहायता से संयुक्त फाछ बनाए जाते हैं, उसे सहायक क्रिया कहते हैं; जेसे, वह चलता है। वह चलता था | वह चला होगा इन उद्घादरणों में “है?! अथा? और “होगा? सहा- यरू क्रियाएँ हैं जो “होगा? क्रिया के रूप हैं २४१००आगे छाछो फी रचना के नियम लिखे जाते हैं | १०-कठ वाच्य (क ) धातु से बने हुए काछ

( ) सभाव्य #विष्यतू काल के बनाने के लिये धातु में नीचे लिखे प्रचवय ज्ञोड़े जाठ है--

पुरुष एकबचन , बहुवचचन उ० ्ँ एँ

आ० ए्‌ यो

ल० ष् ्‌

(ञ) अकारांत घातु भे ये प्रत्यय अंत्य के बदले लगाए, जाते * हैं जैसे, लिख, पढ़े, बोले

(ञ दूसरे घातुओं में ऊँ ओर को छोड़ शेष ग्रत्यय के पर्व विकल्प सेव” का जागम होता हे; जैसे; खाए वा खावे, सोएऐँ या सोवें; पीए या पीवे |

भप०--देना, लेना ओर होना के कुछ रूप नियस-विरुद्ध होते हैं जेसे, लेवे वा छे, देऊे या दूँ, होते वा हो

डर

(२) संभाव्य मविष्यत्‌ के अंत में छिंग-वचन के अनुसार गा, गे, की का ओईओ 3535 कि २3 गी जोड़ते हैं; जेसे जाऊँ गा, जाएँगी |

( ) प्रत्यक्ष विधि का झूप, मध्यम पुरुष एकबचन, को छोड़

संभाव्य भविष्यत्‌ के समान होता है। उसका मध्यम पुरुष एकवचन वातु के रूप में रहता हे; जैसे, कह, बोछ, सुन |

(जे) भादर-सूचक जाप के साथ प्रत्यक्ष विधिकाल में घातु में “इए

रा

ध्

( ११२९ )

बोढ़ते हैं; जेसे; भाइए बैठिए. यह जादर के लिये “इएगा” जोड़ते हैं; जऐे, आइएगा, बेठिएगा | यह आदर-सूचक रूप कभी-कभी सामान्य भविष्यत्‌ काल में भी आता है; जंसे, आप कब आइएगा ( » भावेगे) यदि भाप उनसे मिलिएगा (> मिलेंगे) तो वें आप को उपाय बतावेंगे | ( आा ) नीचे लिखे क्रियाओं के आदर - सूचक विधिकारू मे 'ज' का आगमन होता है; जेसे, ' लेना--ली जिए. देना--दी निए. करना**ऋफी जिए होना--हूजिए- पीना--पीजिए ' कविता में ये रूप क्रमशः लीजे, कीजे, हूजे ओर पीजे हो जाते हैं (ई ) “चाहिए” क्रिया रूप मे “चाहना?? क्रिया फा आदर-सूचक प्रत्यक्ष विधिकाल है, पर इससे वर्चमान की आवश्यकता का बोध होता है; जैसे, मुझे पुस्तक चाहिए, ( आवश्यकता है )। उसे जाना चाहिए (४ ) परोक्ष विधिकाल के दो रूप हैं--( ) क्रियार्थक संज्ञा ह्वी इस फाल में आती है ( ख) आदर-सूचक विधि के अत में *ए? के बदले यो! करते हें] उदा०--वहाँ मत जाइयो। किसी से बात मत कीजियो : परोक्ष विधि केवल मध्यम पुरुष में जाती है भादर-सूचक प्रत्यक्ष विधि का “गीत? रूप परोक्ष विधि में भी आता है; जेसे, आप वहाँ जाइएगा किसो के सामने बात मत कीजिएगा |

२४२--संयुक्त काछों की रचना में “होना” सहायक क्रिया के जिन

काले का. उपयोग किया जाता है वे यहाँ छिखे जाते हैं-- होना ( स्थिति-दर्शऋ ) कतरि-प्रयोग )

१- सामान्य वर्तेमान काल

'कर्ता--पुल्लिग वा स्त्रीलिंग

... पुरुष एक्वचन | बहुवचन

' उत्तम मै हूँ हम हैं

( १४० )

मध्यम तह तुम ही अल वह्द है वे हैं (४ ) पझ्लासान्य भूतकाल कत्ता--पुढिलिग

१०रे था थे कर्ता>-ख्री लिंग दी थी थीं

होना ( विकार-दशक ) (१ ) संभाव्य भविष्यत्‌काल कर्त॑रिं-प्रयोग कर्चा--पुल्लिंग वा स्त्रीलिंग हम हों, होवें २--तू हो, होवे तुम हो, हो भो ३--वह हो, होवे वे हों, होवें (२ ) सामान्य भविष्यतृकाल कर्ता--पुढिंलग ( र्री० ) कत्तरि-प्रयोग १--में होऊँगा ( होऊेंगी ) हम होगे, होवेगे, (होंगी, होवेंगी) २--तू होगा; दोवेसा तुम होगे, होओभोगे ( होगी, होवेगी ) ( होगी, होओगी ) ३--वह होगी, होवेगा वे होगे होवेंगे ( होगो, होवेगी ) ( होंगी, होवेंगी ) सामान्य संकेताथ काल ( कर्ततरि-प्रयोग ) कत्ता--पुल्छिंग ( स््री० ) २१--हे होता ( होती ) होते ( होतीं )

२-मे-हो के

( १४१ )

(ख ) वच्॑मानकालिक कृदंत से बने हुए फाछ-«

(१) सामान्य संकेताथ काछ वच॑मान काछिक क्ृदंत को कर्चा के लिंग-वचनानुसार बदलने से बनता है। इस काल में कोई सहायक क्रिया नहीं जाती; जैछे, मे आता | हम जाते वे आती

(२) सामान्य वचमान काल बनाने के लिए वर्तमान-कालिक कृदत ' के साथ स्थिति-दर्शक “होना? सहायक क्रिया के सामान्य वर्तमान फाछ रुप जोढ़ते हैं; जैसे में आता हूँ हम जाते हैं | वे आती हैं |

( ) अपूर्ण भूतकाल वर्तमान कालिक कृदंत के आगे स्थिति-दद्यक सहायक क्रिया के सामान्य भूतकाल के रूप जोड़ने से बनता है, जेसे, मे गाता था। इम जाते थे वे जाती थीं

(४ ) संभाव्य वर्तमान बनाने के लिये वर्तमान काछिक इदँत में - विकार-दर्शक “होना” सहायक क्रिया संभाव्य भविष्यत्‌काल के रूप जोढ़ते हैं; जैसे, मै जाता होऊँ | हम जाते हो वे भाती हों

(५) सदिग्ध वर्दमान फाछ वबतमानकालिक कृदत के आगे विकार- दशक सहायक क्रिया सामान्य भविष्यत्‌काछ के रूप जोड़ने से बनता है जैसे में आता होऊ गा हम जाते होंगे | वे माती होगी

६) अपूर्ण संकेतार्थ काल बनाने के लिये वर्चमान कालिक कदंत के साथ विकार-दशक सहायक क्रिया के सामान्य संकेता्थ काल के रूप जोड़ते हैं; जैसे, में जाता होता | हम जाते होते | वे आती होतीं

(अ) इस काछ में होना क्रिया की काछ-रखना नहीं होती, क्योकि उससे क्रिया की पुनरुक्ति होती है

( ) भूतकालिफ कदंत से बने हुए काल इन काछो में अकर्मक क्रियाएँ बहुधा कर्चरि-प्रयोग में और सकर्मक चहुधा कमंणि वा भावे प्रयोग में आती हैं। यहाँ अकर्मक क्रिया के उदाहरण दिए जाते हैं-- | (१ ) सामान्य भूतकाछ भूतकाछिक ऋृदंत में कर्चो के लिंगनवचना उसार रूपांतर करने से त्रनता है, जैसे, मै जाया | हम आए। वें जाई।

( १४२ )

(१ ) भासन्न भूतकाल बनाने के लिये भूतकालिक छृदंत के साथ सहायक क्रिया के सामान्य वर्चमान काल के रूप जोड़ते हैं; जेसे, में आया हैं | हम आए हैं। वे आइ हैं

(३ ) पृण-भूतकाल भू तकालिक कृदंत के सहायक क्रिया के सामान्य भूतकाछ के रूप जोड़कर बनाया जाता है; जेसे में आया था | हम भाए थे।वे भाई थीं |

(४) संभाव्य भूतकाछ तकालिक कृत में सद्यायक क्रिया के संभाव्य भविष्यत्‌ काछ के रूप जोड़ने से बनता है; जेंसे में आया होऊँ। हम जाए हो वे भाई हो

( ५४ ) संदिग्ध भूतकाछ त्रनाने के लिये भूतकालिक कृंदंत के साथ सहायक क्रिया के सामान्य भन्रिष्यत्‌ कःछ के रूप जोड़े जाते हैं, जेंसे, में आया होऊँगा | हम आई होगी

(६ ) पूर्ण संकेता्थ काछ भूतकालिक कृदंत में सहायक क्रिया के सामान्य संकेताथ के रूप छगाने से बनता है, जेसे, में आया होता हम आए होते। वे आाई होतीं

२४३--आगे कतृ वाच्य के सब फाछो में दो किया के रूप लिखे जाते है जिसमें एक अकमंक और दूसरी सकर्मक है---

अकमकछ क्रिया, “चलना” ( फंतू वाच्य )

धघातु-- चल

क्रियाथक संशा--चलूना

उच्तमानकाछिक कझृदत--चछता ( हुआ »

भूतकालिक कृदत--चला ( हुआ )

पृवेकालिक कृदंत--चछ, चलकर. “'*

तास्कालिक कृदत---चलछते ही

अपण क्रियाद्योतक झद॑त-..चछते ( हुए )

पूण क्रियाद्योतक कृदंत---बछ्े (हुए )

(१४३)

(क ) धातु से बने काल ( कचरि प्रयोग ) (१ ) संभाव्य भविष्यतकाल कर्ता--पुढिलिंग या स्त्रीलिंग चल १, हे चछे २, चलें चलो (२ ) सामान्य भविष्यत॒काल फर्चा--पुल्लिग ( स््री० ) चलेगा ( चलूगी ) १, चलेंगे ( चलेंगी ) '२, चलेगा ( चलेगी ) चछोगे ( चलछोगी ) (३ ) प्रत्यक्ष विधिकाल ( साधारण ) कर्चा-पुटिलिंग वा सत्रीलिंग

चले चलें चल चलो चले चले ( आदरसूचक 2 २४८ आप चलिए चलियेगा (४ ) परोक्ष विधिकाल ( साधारण ) - चलना; चलियो चलना, चलियो ( आदरसूचक ) २५८ आप चढहिएगा

(ख ) वर्तमानकालिक कृद॑त से बने हुए काल ( कर्चरि-प्रयोग ) (१ ).सामान्य संकेतार्थ काल कर्ता--पुढिलिंग स्नी०) २--३ चलता ( चलती ) चलते ( चलती )

( १४४ »

(० ) सामान्य वतमान चलता हूँ ( चलती हैँ ) १, चलते हैं ( चलती ) २, चलता दे ( चलती है ) चलते हो ( चलती हो ) (३ ) अपूर्ण भूतकाल क्तॉन्न्बपुलिंलग (स्त्री० ) १०-२३ चलता था ( चलती थी ) चलते थे ( चलती थीं ) (४ ) संभाग्य वत्तेमानकाल कर्चा--पुल्लिग ( स्त्री०

चलता होऊँ ( चलती होऊे ) १, ३२े चलते हों ( चलती हो ) २, चलता हो ( चलती हो ) चलते हो ( चलती हो )

(५ ) संदिग्ध वतेमानकाल कर्ता--पुलिछिग ( स्त्री० )

चलता होऊंगा ( चलती होऊँगी ) १, चलते होगे (चलती होंगी) हैं चछता होगा ( चछती होगी ) चलते होगे ( चलती होंगी ) (६ ) अपूर्ण संकेतार्थ काल फर्चा--पुल्छिग ( छ्ली० ) १-चलता होता ( चलती होती ) चछते होते (चछती होती) ( ) भूतकाढिक कृद॑त से बने हुए काल ( कचरि-प्रयोग )

सामान्य भूतकाल कर्चा--पुहिलग (स््री० ) चले ( चली ) आसन्नमूतकाल

९->ह चला ( चली )

चला हूँ ( चली हैं ३२, ( चला है )

9

१, रे चले हैं ( चली हैं ) चले हो ( चली हो )

( १४४ )

(३ ) पूणु भूतकाल कर्ता--पुल्लिग ( स्री० )

) १०--र३े चला था चली थी ) चले थे ( चली थीं )

(४ ) संभाव्य भूतकाल हज फर्चा--पुल्लिग ( स्त्री० ) १, चला होऊ ( चली हाऊ ) १५ ३; चले हो चली हो ) २, ३, चला हो ( चली हो ) २, चले होभो चलो होओ )

(५ ) संद्ग्धि भूतकाल कर्ता--पुढिंलग (स्त्री० )

/ *-चला होऊंगा ( चली होऊेंगी ) १, चले हो ( चलो हों ) ३, चला होगा ( चली होगी ) चले होंगे (चली होंगी)

(६) पूर्ण संकेतार्थकाल कर्ता--पुदिंलग (स्त्री० )

(है चला होता ( चली होती ) चले होते ( चछी होती ) सकमंक क्रिया, “पाना? ( कतृ वाच्य ) चातु पा क्रियार्थक-संज्ञा पाना वर्तमानफालिक छृद॑त पाता ( हुआ ) भूतकालिक कृदंत पाया ( हुआ ) पूवफालिक कृद॑त पा, पाकर '. तात्कालिक कृदंत पाते ही अप क्रियाद्योतक कदंत पाते ( हुए )

पूर्ण क्रियाद्योतक कृद॑त पाए, ( हुए 2)

( १४६ )

( के ) धाठ से बने हुए काल ( कचरिजपयोग )

( १) संसाव्य भविष्यतृकाल

कर्चानन्व्पुल्लिग वा स्रीलिंग

पाऊँ १, ३) पाएं, पाव २, दे पाए; पावें र॒पाओ

(२) सामान्य भविष्यतृकाल कतता--पुटिंलग ( स्ली० )

पाऊँगा £ पारऊँगी ) $, पाऐँगे, पावेगे ( पाएँगी; पावेंगी ) २, हे पाएगा; पावेंगा , २, पाओंगे ( पाओोगी )

(३ ) अत्यक्ष विधिकाल साधारण) कत्चा+>पुदिकग वा ख्रीलिंग

पाऊ पाएं, पावें श्पा पाञभो पाए, पावे

पाएं, पावेँ. - ( आदरपूचक )

र्‌ आप पाइए., पाइएगा

(४) परोक्ष विधिकाल ( साधारण )

पाना; पाइये) पाना, पाइयो ( आदरसूचक )

आप पाइएगा

ला

हि

( १४७ ) ( ) वर्तमान काछिक कृद॑त से बने हुए. काछ ( कत्तरि प्रयोग ) (१ ) सामान्य संकेताथ काल फर्चा--पुढिंठग ( स्त्री० ) १०>रें पाता ( पाती ) पाते ( पातीं )

(२ ) सामान्य वत्तमान काल कचा--पुट्लिग ( स्त्री० )

पाता हूँ ( पाती हूँ १, पाते हैं ( पाती हैं ) २, पाता है (पाती है) पाते हो ( पाती हो )

(३ ) अपूर्ण मूतकाल कर्ता--पुल्लिग ( स्त्री० ) - “हे पाता था ( पाती थी ) पाते थे ( पाती थीं )

(४ ) संभाव्य वत्त मान काल फता--पुदिलंग ( स्त्रॉ० )

पाता'होऊँ ( पाती होऊँ ) १, पाते हो पाती हो ) 9 रैपाताहो (पातीहो) ' .२ पाते होओो ( पाती होओ )

(५ ) संदिग्ध वत्तमान काल कत्ता “-पुल्लिंग ( स्त्री० ) पाता होऊँगा ( पाती होऊँगी ) १, पाते होगे पाती होंगी ) ९, पाता होगा ( पाती होगी ) पाते होगे ( पाती होंगी ) धक ( ) भूतकालिक कृदंत से बने हुए काल ( करमंणि प्रयोग ) (१ ) सामान्य भूतकाल कर्म-पुल्छिंग, एक० व० (स्‍्त्री०) ' कर्म-पुदिलंग ब० व० (स्त्री० 2 उन्होने पाया ( पाई ) पाए ( पाई )

(

( १४८ )

* ६९) आसन भूतकाल कर्म पुदिंछा एू० व० ( ख््री० ) कर्म पुल्लिग ब० व० (स्त्री० ) मैंने, उन्होने पाया हो (पाई है). पाए हैं ( पाई हैं ) ( ) पूर्ण भूतकाल

कम पुदिंछलग ए० व० ( स्त्री० ) कम पुल्लिग ब० व० ( स््री० ) मैंने "उन्होंने पाया या (वाई थी ) पाए थे (पाई थीं ) ,

(४ ) संभाव्य भूतकाल कर्म पुदिछिंग ए० ब० ( ख्री० ) कर्म पुदिछिग ब० व० (स्त्री० ) मैंने...उन्होंने पाया हो (पाई हो ) पाए हों ( पाई हो )

(५) संदिग्ध मूतकाल कर्म पुहिंछग ए० ब० (स्त्री० ) कर्म पुब्छिग ब० ब० ( स्त्री० ) मैने, , .उन्होंने पाया होगा ( पाई होगी ). पाए होगे ( पाई होगी )

(६ ) पूर्ण संकेतार्थ काल कर्म पुदिंछण ए्‌० व० ( स््री० ) कर्म पुल्छिग ब० ब० (स्त्री०) मै...उन्‍्होने पाया होता (पाई होती). पाए होते ( पाई होती )

२--कर्मवाच्य

२४४--कर्मवाच्य क्रिया बनाने के छिए सकरमक घाठु के भूतका्ल कदत के जागे “जाना” सद्दायक क्रिया के सब काछो और अर्थों का रूप जोड़ते हैं। फर्मवाच्य में कर्म उद्देश्य होकर अप्रत्यक्ष कर्ता कारक के रूप मे जाता है; ओर क्रिया के पुरुष, छिग; वचन उद्देश्य ( कम ) के अनु- पार होते हूँ; जैसे छड़का बुछाया गया | छड़की बुलाई गई दे। _ २४५--आगगे “देखना? सकमेक क्रिया के कर्मवाच्य ( कर्णि अयाग ) के केवल पुढिछिंग रूप दिये जाते हैं। स्लीलिंग रूप कतू वाच्य कीड-रचना के अनुकरण पर सहज ही बना लिए, जा सकते हैं

( १४६ )

सकमक क्रिया, “देखना”? ( कर्मवाच्य )

]

घातु..., देखा था क्रियाथक संज्ञा देखा जाना * वतमानकालिक झद॑त देखा गया (६ देखा हुआ ) भूतकालिक कृदंत देखा जाकर पवंकालिक कृदंत देखे जाते ही ताल्कालिफ कृद॑ंत देखे जाते हुए भपूण क्रियाद्योतक कृदंत

देखे आते हुए - पूर्ण किया्योतक झद॑त कह वि! ( ) धातु से बने हुए फाछ

( कर्मणि प्रयोग )

(१) संसाव्य भविष्यत्‌काल कर्म ( उद्देश्य ) पुल्लिग देखा जाऊं १, देखे जाएँ, जाव २, देखा जाये, जावे देखे जाभो

. (२ ) सामान्य भविष्यतकाल कम ( उद्देश्य )एब्छिग देखा जाऊंगा १३ देखें जाएँगे, जावेंगे २, देखा जायेगा, जावेगा देखे जाओोगे

(३ ) प्रत्यक्ष विधि काल ( साधारण ) कर्म ( उद्देश्य )-“उस्डिंग देखा जांऊें देखे जाएं; जावे देखा जा देखे जाओ डे देखा जाए, जावे देखे जाएँ, जाव

( १५० )

( आदर-सूचक ) २४% . आप देखे जाइए, जाइएगा

(४) परोव्ष विधिकाल ( साधारण ) कम ( उद्देश्य १--पुल्लिग देखा जाना, जाइयो देखे जाना, जाइयो ( आदर-सूचक ) आप देखे जाइएगा (ख ) वतमानकालिक कृदंत से बने हुए का (९ ) सामान्य संकेतार्थकाल १--३ देखा जाता देखे जाते

| कर

(२) सामान्‍य वर म्ानकाल - देखा जाता हैं १, देखे जाते हैं २, देखा जाता होगा देखे जाते होगे ( ) अपू्ण सूत॒काल १०३ देखा जाता था देखे जाते ये (४) संभाव्य वत्तमानकाल देखे जाते हो. , देखे जाते होगे (५ ) संदिग्ध बत्तेमानकाल ; रगा जाता होऊँ गा १, हे देखे जाते होंगे देखे जाते होगे ( ६) अपूण संकेतार्थ काल

रे बेचा जाता चोगा खे जाते हों ! देता जाता दोगा १-३ देखे जाते होंगे

श्र पक १३ +० स्क्ख्कु

ज्ञता इज

आखिर ही

कक ऊपर

दवा जाता होगा

हर]

मार (० 38 कर 8०४ 5 जी माता द्ांगा

लो

्. मत

हट हि ांक

( १५१ )

भूतफालादिक छृदंत से बने हुए काल ( कर्मणि-प्रयोग )

(१ ) सामान्‍य सृतकाह

१--१ देखा गया १--ह देखे गए (२) आसक्न भूतकाल

देखा गया हैँ १, देखें गए हैं

२, देखा गया है देखे गए हो

( ) पूर्ण भतकाल्न १--देखा गया था -. १--देखे गए थे (४) संभाव्य भतकाल १--देखा गया होऊँ १, ३े देखे गए हो २, देखा गया होगा | देखे गए हो (५) पूर्ण संकेताथ काल देखा गया होऊ गा १, दे देखे गए होगे, २, देखा गया होगा देखे गए होगे (६ ) अपूर्ण संकेतार्थ काल | १--३ देखा गया होता १--देखे गए होते भा ३--भाववाच्य

२४६--भाववाच्य अकर्मक क्रिया का वह रूप है जो फमवाच्य के समान होता है। भाववाच्य क्रिया में कर्म नहीं होता' और उसका कर्चा करण कारक में आता है। यह क्रिया सदेव अन्य पुरुष; पुदिलिग एक वचन मे अर्थात्‌ भावे प्रयोग में रहती हैः जेंसे, हमसे देखा गया। - रात भर किसी से जागा नद्दीं जाता |

भाववाच्य क्रिया का उपयोग शक्तता वा अशक्तता के अथ में होता है। यह क्रिया सब काछो ओर झद॑तो में नहीं आती

है

( १५७२१ ) २४७०--यहाँ माववाच्य के केवल उन्ही कालों के रूप छिखे नाते जिसमें उसका प्रयोग होता है--- ( अकर्मक “चला जाना” क्रिया ( माववाच्य ) घातु,,, ... -«- «बब्चेंका जा | ( सूचना--इस क्रिया से ओर कृद॑त नहीं बनते | ) (१ ) धातु से बने हुए काल भावेप्रयोग ) (१ ) संभाव्य मविष्यत्‌काल सु “उनसे चला जावेगा, जायगा (२) सामान्य भविष्यत्काल मुझसे ०० «उनसे चछा जावेगा, जायगा (खत ) वर्तमानकालिक झदंत से बने हुए काल ( भावेप्रयोग ) (१) सामान्य संकेताथथ काल मुझसे ......लउनस चला जाता (२) साप्तान्य वत्तमान काल मुझसे- ०००० «उनसे चला जाता ( ) अपूर्ण मुतकालल मुझसे ००० उनसे चला जाता था (४ ) संभाव्य वत्तेम्रानकाल मुझसे, , ., . .उनसे चला जाता हो (५ ) संदिग्ध वत्तेमानकाल मुझसे ०» » «उनसे चला जाता होगा

( १४५३ 9

( १) भूतकालिक क्ृदंत से बने हुए काल भावे प्रयोग ) (१) सामान्य भूतकाल मुझसे* **उनसे चला गया (२ ) आसक्ष सूतकाल मुझसे. ..उनसे चला गया है (३ ) पूर्ण-भूतकाल मुझसे ...उनसे चला गया था (४ ) सभाव्य भूतकाल मुझसे+ «उनसे चला गया हो

अश्याज्

१-नीचे लिखी हुई क्रिया की काल-रचना उनके सामने लिखे हुए. कलो में करो. अ--/रहना? क्रिया की कतृ बाच्य के संभाव्य भविष्यतृकाल में | भा--“देखना? क्रिया की कतृ वाच्य के आसन्न भूतकाछ के बहु पचन में | - इ--“बुलाना? क्रिया फर्मवाच्य के संभाव्य भूतकाल में ई--«“दौड़ना” क्रिया की भाववाच्य के पूर्ण संकेता्थ काल में | उ--“होना? क्रिया फतृ वाच्य के सामान्य संकेताथ कार के अन्य पुरुष में ऊ-“छीनना”? क्रिया की कर्मवाच्य के वत्तमानकालिक से बने हुए. किसी काल में |

3

११

( १४४ ) वीदहवा पाठ कक (हे & 4 प्रश्शाथेक क्रियाएं

बाप लड़के से चिट्टी छिखवाता है ) केवापाकपप: 2० प्जक:मजपपाककाप+कना अधला

प्रालिक ने नोकर से गाड़ी चलवाई | राजा पंडित से रामायण पढ़वाएँगे-।

श४८--ऊपर लिखे वाक्यों में रेखांकित क्रियार्भों से उनके कर्चाों पर दूसरे कर्चाओं की प्रेरणा समझी याती है, इसलिए उन्हें प्रेरणा्थक क्रियाएँ कहते हैं जो कर्ता दसरे पर प्रेरणा करता है उसे प्रेरक फर्ता और जिस पर प्रेरणा की जाती है उसे प्रेरित कर्ता कहते हैं। ऊपर के उदाहरणों में बाप, मालिक और राजा प्रेरक कर्चा तथा छड़का नौकर

ओर पंडित प्रेरित कर्ता है| प्रेरित कर्चा वहुधा करणुकारक के रूप में आता है |

मिरना गिशाना गिरवाना चलना चलाना चलवाना उठना उठाना उठवाना

२४६--बहुघा अकर्मक से सकमंक और सकमक से प्रेरणा्थक क्रिया बनती है; परतु आना; जाना, सकता, होना, रुचना और पाना से दूसरे , अकार की क्रियाएँ नहीं बनतीं। प्रेरणार्थंक क्रियाएँ भी सकर्मक होती हैं। ह॒

देना दिलाना दिलवाना सीना सिलाना सिलवाना

|

ल्‍ः

( १५४ )

धोना घुलाना धुल्वाना गढ़ना गढाना गढ़वाना २४०--८ई सक्मंक क्रियाओ से दो-दो प्रेरणार्थक रूप बनते हैं, जो बहुधा अथ में समान होते हैं (भ ) कुछ एकाक्षरी घातुभो से केवछ एक ही प्रेरणाथक क्रिया बनती है; जैसे, गाना गवाना, खेना-खेवाना, खोना-लोबाना;। बोना बोआाना, लेना-लिवाना

पीना पिछाना पिलवाना खाना खिलाना खिलवाना देना दिलाना दिलछवाना पढ़ना पढाना पढ़वाना सुनना सुनाना सुनवाना

२४१--कई एफ सकमक-क्रियाओ के दोनो प्ररणा्थक रूप द्विकमक हेते हैं; जैछे, प्यासे को पानी पिल्लाओ;; भूखे को रोटी खिलवाआ, , पह लड़के को संस्कृत पढ़वाता है |

२४२--फोई-कोई धातु स्वरूप में प्रेरणार्थक हैं, पर पदाथ मेँ वे मूठ अफर्मक ( था सकमक ) हैं; जेसे कुम्हछाना, धतराना मचलाना; इठलाना

(ञ) कुछ प्रेरणार्थक धाठ॒ओं के मूछ प्रचार में नहीं हैं; जैसे

चताना ( या जतलाना ) फुछछाना, गवांना २५३--अकर्मक धाठुओ से नीचे लिखे अनुसार सकमंक धातु

बनते हैं...

१--धातु के आद्य स्वर फो दीघ फरने से; जैसे--« ! कूटना--फकाटना पिसना>पिसाना

दबना+“*चदबानी डुठनान्न्-लूटना

( १५६ 3)

बंधनानल्वॉवना मरमा>*मारना विटना-+-पीठना पट्नाननपाटनों

(थे ) “सिछाना” का सकप्क छप धपीना” होता ३;

२---तीन अक्षरों के धातु में दूसरे अक्षर का स्वर दांव हाता हट जलकर

निकरूना+ निकालना उखड़ना**उखाड़ना सम्हलना--सरहालना विगड़ना--विगा ३--किसी-किसी धातु से आशय या को गुण करने से, जैछे-- फिरनान्बफेरना खुलना+-खोलना दिखना--देखना घुछना+*थोलना छिदुना-छेदना मुडना--मोड़ना ४--कई धातुओं के अंत्य के स्थान में ड़ हो जाता है;, जेसे-- जुट्ता--जोड़ना टुटना--तोड़ना छंटना--छोड़ना फूटना--फाड़ना

फूटना--फोड़ना (ञभ ) “बिकना? का सकसेक “बेचना! और “रहना! का धरना” होता है।

, २५४--प्रेरणाथक क्रियाओं के बनाने के नियम नीचे दिए जाते है

१०-मछ घातु के अंत में “भा? जोड़ने से पहला प्रेरणाथक और “या? जोड़ने से दूसरा प्ररणाथक रूप बनता है, जेसे---

सु्‌० बा० थ्र्०प्र० द० प्र ग्िरन्ल्‍ूना गिरा--ना गिरवा--ना धाआ चला-ना चलवा--ना फेहननता फेला--नां फेलवा--ना झड़ख्च्च्नी उड़ान्ना उड़वानना चढ़->ना

चढ़ा--ना चढ्वा--ना

( १५७ )

२--कहीं-कहीं दो अक्षरों के धातु में 'ऐश या “औ” को छोड़ कर भादि का अन्य दीघ हस्व होता है; जेंसे--

सृ० घा० घ्‌0 प्रे० दू० प्रे० ओढ़ना उढाना उढ़वाना जागना जगाना जगवाना ड्बना डुबाना डुबवाना «बोलना बुलाना बुलवाना भीगना मभिगाना भिगवाना लेटना लिटाना लियवाना

विश

( अभ ) “डूबना?? का रूप “डुत्ोना” और “भीगना” का रूप “मिगोना” भी होता है।

( भा ) प्रेरणा्थक रूपों में “बोलना? का अथ बदल जाता है। “ज्” अनुच्चरित रहता है; जेसे--

हु

स्‌० घा० प्‌ प्रे० बू० प्रे०

चमकना चमकाना चमफकवाना पिघलना पिघलछाना पिघलवाना बदलना बदलाना बदलवाना

३--एकाक्षरी धातु के अंत में “छा” और “लछवा” छगाते हैं मौर दीघ को हस्त्र कर देते हैं; जैले--

खाना खिललाना खिलवाना छूना छुलाना छुलवाना : देना दिल्लाना दिलवाना धोना घुलाना घुलवाना पीना पिछाना पिलवाना

सीना सिलछाना सिलवाना

१५८ )

(अ ) “खाना? में आद्य ध्वर “इ? हो जाता है। इसका एक प्ररणाथक (विवांना भी है ४--कुछ धातुओं के पहले प्रेरणाथक रूप “छा”? अथवा “जा”

लगाने से बनते हैं; परंतु दसरे प्रेरणाथफ में “बा” “छगाया जाता है जेसे-+-

कहना कहाना या कहलाना कहवाना

दिखना दिखाना या दिखछाना '. दिखवाना सीखना सिखाना या सिखछाना... सिखवाना सूखना सुखाना या सुखलात्ना सुल्षवाना बेठना बिठाना या बिठलाना बिठवाना

( ) “कहना” के पहले प्रेरणार्थथ रूप अपण्ण अकर्मक भी होते हैं; जैसे “ऐसे ही सज्नन अंथकार कहलाते हैं |? “विभक्ति-सहित शब्द पद कहटछाता हैं ।??

/ _कहवाना? छा रूप “कहलवाना” भी होता है। ( ) “बेठना”? के कई प्रेरणार्थक रूप होते हें; नेंठाना बंठालना. बिंठालना नाम-धातु ओर अनुकरण-घातु घिक्कार--पिक्कारना उद्धार--उद्धारना

बैठवाना

अपना---अपनाना अनुराग--अनुरागना लाठी--छठियाना अलग--अलछगाना संज्ञा अथवा विशेषण से जो क्रियाएँ बनती हैं उन्हें नाम घातु हते हें। किसी पदार्थ की ध्वनि के अनुकरण उकरण-वबातु कहछाती है, जैसे पड़ने ड़ --बड़बड़ाना खटखट-खटखदाना

हम]

जो क्रियाएँ बनाई जाती हैं

भडभड़--भड़भड़ा ना टर--टर्राना भनभन -- भनभना ना

( १५६ )

अच्यास

१--नीचे छिखी अफमक क्रियाओं से सकभंक क्रियाएँ बनाओ--- पकत्ा, बढना, हटना, रहना, खेलना, कूदना।

२--नीचे लिखी सकमक क्रियाओं से प्रेरण/र्थक बनाओ जौर एक- एफ वाक्य में उनका. उपयोग करो-«*

पढ़ना, सीना, बोलना, खोंचना, काटना

३--नीचे लिखे शब्दों से क्रियाएँ बनाओो---

फल, बात, हाथ, दुख, चिकना )

४--नीचे छिखे वाक्यो में ग्रेरणार्थक क्रियाओं का अयय॑ समझ।भओो-

ऐसा कोन है, जो अपना शरीर कटवाएगा | वह अपने पैर का जूता पेड़ से छुछाने छगा | राजा ने मंत्री फो बुछ्बाया | उसने मेरा उपदेश नहीं झुलाया माता ने अपने पुत्र से पत्र छिखवाया बगीचे में कई पेड़ लगवाए गए हैं | इस पुस्तक फो संवूक में रखवाओं | अहल्या- बाई ने अपने राज्य भर में कुएँ खुदवाए थे। व्यापारी ने कई प्रकार के कपड़े दिखाए | हिंदू छोग उत्सव में बाजे बजवाते हैं |

पद्रहवा पाठ संयुक्त क्रियाएं लड़का मन में कुछ सोचने छगा नोकर सवेरे ाया करता है। आकाश के तारे कौन गिन सकता है। हम अपना काम कर चुके | २५६--ऊपर लिखे वाक्यों में दो-दो शब्दों से बनी हुई क्रियाएँ भाई हैं, जिनमें एक मुख्य और दूसरी सहायक क्रिया हैं। मुख्य क्रिया कदंत के रूप में और सहायक क्रिया काछ के रूप में हैं। कुछ विशेष

( १६० 9)

कृदतो के नागे विशेष अथ में कुछ सहायक क्रियाएँ जोड़ने से जो क्रियाएँ बनती है उन्हे संयुक्त क्रिया कहते हैं |

२५७-ह#प के अनुसार संयुक्त क्रियाएँ गांठ प्रकार की होती हैं---

(१ ) क्ियायक संज्ञा के मेल से बनी हुई; जैसे, जाना चाहिए | करना पडता है कं

(२ ) वत॑मानकालिक कृदंत कें मेल से बनी हुई; जैसे, बढ़ता जाता | करता रहता है |

(३ ) मतकालिक कृदंत के मेल चला जावेगा |

(४) पूववकाडिक कदृत के सेल से बनी हुईं; जैसे, तोड़ डालेगा |, फ्र सकता है | (५ ) अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के मेछठ से बनी हुई; जेते, चलते गा गदते बनता हे | (+ ) पथ क्रियाद्योतक ऋदत के मेऊ से बनी हुई; जैछे, . दिए. देता

के कि < | मार डालता है |

०५

बनी हुईं; जैसे, पढ़ा करते हैं

ल्न्

भा ज+क समर, प8।

५. ६9) सजा या विजेषण के सेछ से बनी हुईं; जैसे, दिखाई दिया साकार करता हे |

( < ) पुनद्छ संयुक्त क्रियाएँ; जेसें, समझते हैं। आया-जाया

हि." ले

्ननप्डी च्ोचु

ड् ८-- संयुक्त नी थो में नीले शत फ्््ॉस उठने ब्ल्पन- च्चु हे | [, 3ल्ना, करता, चादइना[ $ फैना , जाना, देना, डालना, क्ू 2 4४85१ | है भनेता, रहना, लगाना, लेना; चकना, होना [

में मे उ८वा नकना? झो त्च मा हि के “टुवा 'नकना झोर धचुकना' को छोड़कर * शेष क्रियाएँ

अचुछार दूसरी सहायक क्रियाओ से “वतयुक क्रियाएँ भी हो सकती हैं; जैसे, “वह जाने

दिप्दा ऐश इस वाक्य से धल्गता है ४४ वीक्‍्य से हल्यता है?” सहायक क्रिया है; पर

( १६१ )

“जाढ़ा लगता है” इस वाक्य में “छगता है” मुख्य क्रिया है। “जाडा हग जाता है?! इस वाक्य में “जाता है? सहायक क्रिया “छगना?? मुख्य क्रिया के साथ थाई है |

, २१९--संयुक्त-क्रियाओं में कभी कमी सहायक क्रिया के कृद॑त के भागे दूसरी सहायक क्रिया आाती है जिससे तीन अथवा चार शब्दों की भी संयुक्त क्रिया बन जाती है, जैसे, इसकी तत्काल सफाई कर ल्लेनी चाहिए ।? “उन्हें वह फाम करना पड़ रहा है! “हम यह पुस्तक 'उठा जा सकते हैं ।”

(१ ) क्रियाथक संज्ञा के मेल से बनी हुई संयुक्त क्रियाएँ

२६०--क्रियार्थक संज्ञा के मेल से बनी हुई सयुक्त क्रिया में क्रिया पक सज्ञा दो रूपो में आती हे--( ) साधारण रूप में ओर (भा ) विकृत रूप में |

( ) साधारश रूप के साथ “पडना??, “होना? या “चाहिए?”

भों को जोडने से आवश्यकता बोधक सयुक्त क्रिया बनती है, ! फैना पड़ता है| करना चाहिए | करना होगा |

जब इन संयुक्त क्रियाओं में क्रियाथक संशा का प्रयोग विशेषण के मान होता है तत्र ये बहुघा विशेष्य के लिग-बचन के अनुसार बदलती है, जैसे, कुलियो की मदद करनी चाहिए। मुझे हुवा पीनी पड़ेगी। जे होनी है सो होगी '

( आा ) क्रियाथंक संज्ञा के विक्षत रूप से तीन प्रकार फी सथुक्त क्रियाएँ बनती हं-..( ) आरम-बोधक, (२) अनुमति-बोधक और ( ) अवफाश-बोघक |

(१) आरंभ बोधक क्रिया “छुगना” के योग से चनती है; जैते पेह कहने लगा लड़की गाने लगी

(२ ) देना जोड़ने से-अनुमति-बोधक क्रिया बनती दे जैसे

ने दीजिए उसने मुझे बोलने दिया

( १६२ )

(३ ) अवकाश बोधक क्रिया अथे में अनुमति बोधक क्रिया वी विरोधिनी है; जैसे, त्‌ यहाँ से जाने पावेगा |? बात होने पाई |”? मै कठिनाई से लिखने पाया हूँ ।”

( भर ) कभी-कभी “पाना” क्रिया पूवकालिक कझर्दत के साथ भी जाती है; जैसे, कुछ लोगो ने श्रीमान्‌ फी बड़ी कठिनाई से देख पाया। “समय मिलने के कारण मैं पूजा नहीं कर पाता हूँ. ।”

(२ ) वर्तमान कालिक कृदृत्त के मेल से बनी हुई ६१--वर्तमान फाकिक कृदंत के जागे जाना, जाना, अथवा रइना जोड़ने से नित्यता बोधक क्रिया बनती है; जैछे, यह बात सनातन से होती आती है पेड बढ़ता जाता है। पानी घरसता रहता है (थे) “पहना? के सामान्य भविष्यत्‌काक से ऑग्रेंजी के पूण भविष्यत्‌काल क्रा बोध होता है; जैसे हम उस समय लिखते रहेंगे |

(३ » भूतकालिक ऋदत के मेल से बनी हुई २६२०«अभकमक क्रियाओ के मृतकालिक कृदंत के भागे #जाता? क्रिया जोड़ने से तत्परता-बोधक संयुक्त क्रिया बनती है; जैसे, लड़का आया जाता है | सिर फटा जाता था लड़की गिरी जाती होगी | २१६३--भूतकालिफ कृत के आगे “करना” जोड़कर अभ्यास-

बाधक क्रिया बनाते हैं, जैसे वह पढ़ा करवा है चिट्ठी लिखा कहूंगा खबेरे घूप्ता करो

4 >> ने

१३४--भूतकालिक कृदंत के साथ “चाहना” क्रिया कोड़ने से इच्छा-बीधक क्रिया बनती है। जैसे, मै कुछ काम किया चाहता हूँ ठम उनसे मिला चाहते हो वे मुझे बुल्ञाया चाहते हैं

( जे ) इस क्रिया से भविष्यत्‌काल की निकटता भी सूचित होती

है, जैसे दाप रे है, जैसे गाडी आया चाहती है घड़ी घज्ञा चाहती है। फल गिरा चाहता हे '

१६३ )

. (६) फर्मीन्‍कर्मी क्रियाथंक के साथ “चाहना” जोढ़ते हैं; जेसे, मैं ज्ञागा चाइता हूँ वह लिखना चाहता है

(3 ) अम्यास-बोधघक ओर इच्छा-बोधक क्रियाओ में “जाना” का भूतकालिफक कृदंत गया? के बदले “ज्ञाया” होता है; जेसे वह, जाया करता है वे जाया चाहते हैं

(४) पूबकालिक ऋद॑त के मेल से घनी हुई २६३--पूर्वकालिक कृदंत के योग से तीन अ्रकार की संयुक्त क्रियाएँ .. बनती हैं--( ) अवधारण बोघक (२) शक्ति-्बोधषक भोर (३ ) पणता-बोघफ | २६६--अवधारण बोधक क्रिया से मुख्य क्रिया के अथ में अधिक निश्चय पाया जाता है। इस अर्थ में नीचे छिल्ली सहायक क्रियाएँ आती हैं-.. क्‍ .. उठना, बैठना, डालना--ये क्रियाएँ बहुधा अचानकता के अर्थ में भाती हैं; जैसे बोल- उठना, जाग उठना, मार बैठना, उठ बेठना, तोड़ दालना, काट डालना | लेना, आना, इनसे वक्ता की ओर क्रिया का व्यापार सूचित होता हैं; जैछे, कर लेना, घूम लेना, बढ आना, दे आना | . » पढ़ना, जाना--ये क्रियाएँ बहुधा शीघ्रता सूचित करती हैं; जैसे, कैद पढ़ना, चोंक पड़ना, खो जाना, पहुँच जाना | देना--इससे दूसरे की ओर क्रिया का व्यापार सूचित होता है; जैऐे; भेड़ देना, कह देना, मार देना है "हना--यह क्रिया बहुधा भूतकालिक झदत से बने कालो में कं | इसके आसजन्नभूत और पूर्णभूत कालछो से क्रमशर अदा बतंमान भौर अपूर्णभूत फालो, का बोध होता है; जैसे, पढ़ रहा है। वह जा रहा था। २६७--शक्ति बोधक क्रिया पूर्वकालिक-कदंत में “सकना पनाई जाती है; जैसे, खा सकना, हो सकना।

जोड़कर

रर्

( १६४ )

रृ६८-पुर्णतान्वोधक क्रिया “चुकना” क्रिया के योग से बनती है; जैसे, पढ चुकना, दोड़ चुकना | गन

( ) “चुकना” क्रिया के सामान्य भविष्यत्‌काल से जी के पूरी भविष्यत््‌ू काछ का बोध होता है, जैते उस समय वह खा चुकेगा | कापके आगे तक वह लिख चुकेगा |

(५ ) अपूर्ण क्रियाद्योतक ऋूदंत से बनी हुई

२६६०-अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदत आगे “बनता” क्रिया को जोडने से योग्यता-बोधक क्रिया बनती है, जैठे रोगी से चल्लते बनता है। उससे पढ़ते बनेगा |

( ) पूण क्रियाद्योतक कृदंत से बनी हुई

९७०-“पृण क्रिया द्योतक कृदंत से दो प्रकार को संयुक्त क्रियाएँ बनता ह--( 2 निरंतरता-व्ोधक ( निश्चयन्बोघक )

२७१--सकमंक क्रियाओ के पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के भागे “जाना? क्रिया जोड़ने से निरंतरता-बोधक क्रिया बनती है; जैछे वह मुझे घनगत्त जाता हे इस लता को क्‍यों छाडे जाता हे लड़की वह

काम किए ज्ञाती है पढ़े जाओ यहों क्रिया, बहुधा वर्तमानकालिक झदत से बने हुए काछो में तथा विधि काछों- मे जाती है |

१७२--पृण क्रियाद्योतक कृद॑त के आगे छेना, देना, डालना और

3ठना जोड़ने से निश्च-व्रोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। ये क्रियाएँ (3. उेंसक क्रियाओ के साथ सामान्य बचंमान कालों में आती हैं जते, म॑ बह युस्तक लिए ले कप

7 यह उस्तक लिए लेता हूँ | वह कपड़ा दिए देता है। हम कुछ कहे बेंठते है |

(७) संज्ञा विशेषण के योग से बनो हुई १७२०-सच्ञा (या विशेषण ) के साथ क्रिया जोड़ने से जो संयुक्त

क्रिया बनती है उसे न्ास बाधक क्रिया कहते हैं; जैसे भस्म होना, भस्म ऊरना, स्वाकार होना, स्वीकार फरना |

( १६५७ )

२७४--नामत्रो घक संयुक्त क्रियाओं में “करना?! “४होना?”ः ओर “देना” क्रियाएँ भाती हैं। “करना? और “होना” के साथ बहथा तंस्कृत की क्रियाथंक संज्ञाएँ और “देना? के घाथ हिंदी की माव वाचक तंज्ञाएँ जाती हैं, जेसे-- ' होना--स्वीकार होना, नाश होना, स्मरण होना, कँठ हीना | करना--स्वीकार करना, अंगीकार करना, नाश करना, सारस करना |. देना--दिखाई देना, सुनाई देना, पक्ड़ाई ढेना, छुछाई देना | (८ ) पुनरुक्त संयुक्त क्रियाएँ ' २७५--जनब दो समान अथंवाली या समान ध्यनिवाछी क्रियार्थी का संयोग होता है तब उन्हे पुनरुक्त संयुक्त क्रियाएँ कहते हैं; जैछे, पढ़ना-लिखना, करना-घरना, समझना-बूझना | ( ) जो क्रिया केवछ यमफ ( ध्वनि ) मिलाने के छिये भाती है, वह निरथक रहती है; जैसे, पूछना-ताछना, होना-हवाना | २७६--केवल नीचे लिखी सकमक चंयुक्त क्रियाएँ कमवाच्य में भाती हूँ... है » (१) आवश्यकता-बो घक क्रियाएँ जिनमें “होना?” और “चाहिए”? का योग होता है, जैसे, चिट्ठी छिखी जाती थी | काम देखा जाना चाहिए | '( ) आरम-बोधक; जैसे, वद्द विद्वान्‌ समझा जाने छया। आप भी बड़ों में गिने जाने छगे | (३) अवधारण-बोधक क्रियाएँ जो “लेना? “देना”; “डालना” के योग से, बनती हैं, जैसे, चिट्ठी मेज दी जाती | काम कर लिया गया (४ ) शक्ति-त्रोधक क्रियाएँ; जैसे, पानी लिया जा चुका (५ ) पर्णता-बोघक क्रियाएँ; जैसे, पानी छाया जा चुका (६ ) नाम-ब्ोधक क्रियाएँ; जो संस्कृत क्रियाथक संज्ञा के योग से बनती हैं, जैसे यह बात स्वीकार की गई। कथा श्रवण की जायगी | (७ ) पुनरुक्त क्रियाएँ; जैसे, काम देखा-भाला नहीं

ज्ज्फ

( १६६ )

२७७--नीचे लिखी सकमक संयुक्त क्रियाएँ ( कतू वाक्य ) भूत- कालिक कृदत से बने हुए कालो में तदेव कर्तरि प्रयोग में जाती हैं---

(१) भारंभनवोधक-लड़का पढने छगा। लद॒ किया फाम करने लगी |

(२) अभ्याउ-ोधक--यों वह दीन, दुःखिनी बाला सोया की दुःख में उस रात | बारह बरस दिल्‍ली रहे, पर भाड़ दी झोका किए |

(क ) शक्ति-वेधक--छड़की काम कर सका; इस उसकी बात कठिनाई से समझ सके थे ?

(५ ) पर्णता-बोघक--नोकर कोठा झाड़ चुका सल्ली रसोई बना चुकी है।

(६८ ) वे नाम बोधक क्रियाएँ जो देना या पड़ना के योग से बनती हैं; जैसे, चोर थोड्ी दूर पर दिखाई दिया ; बढ छब्द ठीक-ठीक सुनाई पड़ा |

अधश्यास

१--नीचे ठिखे वाकयों में संयुक्त क्रियाओं के भेद बतछाओ---

एक दिन स्री रखोई बना रही थी। विवाह के कुछ दिनों बाद राजा का देहांत हो गया उनकी तोपें आग उगरूने छगीं | उसने बोतल में लोहे का एक टुकड़ा डाछ दिया | खेर ऊपर चढ़ जाता है। हवा के बिना कोई नहीं जी सकता | कुछ दूरी पर एक पेड़ दिखाई दिया | लड़का सवेरे घूमा छरता है। तुम अपनी कितात्न क्‍यों खोये देते हो ? देखो, समझ-बूल्ञकर हँसना, पीछे रोना पड़े | मुझे समय नहीं' मिलता

इसलिए मैं आपसे नहीं मिलने पाता | महाराज, में आपके कह देने से धनुष उतारे लेता हूँ *

२--नीचे लिखी क्रियाओं का

हे उपयोग एकनएक संयुक्त क्रिया के रुप में करो |

दौड़ना, खौंचना, चलना, बुढाना; भेजना, बेठना |

आ्य्थ्या

घोडब-रचंना पह्ज्ञा पांठ उपसर्ग

२७८--व्युत्पत्ति के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं--( ) रूढ़ और (२) यौगिक

(५ )/रूढ़ उन शब्दों को कह्दते हैं ज्ो दूसरे शब्दों के योग से नहीं बने होते; जैठे नाक, कान, पीछा, झट, पर

(२ ) जो शब्द दूसरे शब्दों के योग से बनते हैं, उन्हें योगिक शब्द कहते हैं, जैसे, कतरनी, पीलान्पन, दूधवाला, झट-पट; घुड़साल 'यौग्रिक शब्दों में ही सामाप्तिक शब्दों का मी समावेश होता है।

अथ के अनुसार यौगिक शब्दों का एक भेद योगरूढ़ि कहलाता है जिससे फोई विशेष अथ पाया जाता है; जैसे, लंब्रोदर, गिरधारी, पंकज, जलद | “धपंकज” शब्द के खंडो ( पंक--ज ) का अथ “कीचड़ से उत्पन्न? है, पर उससे केबछ कमछ का विशेष अर्थ लिया जाता है | इसी प्रकार “जद” ( जछ-+-द ) का अथ बादल है।

२७६--एक ही भाषा में किसी शब्द से जो दूसरे शब्द बनते हैं, वे बहुधा ही तीन प्रकार से बनाए. जाते हैं और किसी-किसी शब्द के साथ दूसरा शब्द मिलने से सामासिक शब्द तैयार होते हैं; जैसे, पबल, बलवान, बल-प्रयोग निर्धन, धनी, घन-दोलत

( १६६ )

२७७--सीचे लिखी सकमक संयुक्त क्रियाएँ ( कत्‌ वाक्य ) भूत- कालिक कृदत से बने हुए फालो में सदेव कर्तरि अयोग में आती हँ--

(१) भारंभनवोधक-लड़का पढने छगा | लड़कियों काम करने छगी |

(५) अभ्यास-बोधक-न्यों वह दीन, दुःखिनी बाछा शेया की दुःख में उस रात बारह बरत दिल्‍ली रहे, पर भाड़ ही झोका किए

( ) शक्ति-बोधक--लड़की काम कर सकी; हम उसकी बात कठिनाई से समझ सके थे ?

(५ ) पुर्णता-बोधक--नौकर कोठा झाड़ चुका ज्ली रसोई बना चुकी है ' (६ ) वे नाम बोधक क्रियाएँ जो देना या पढ़ना के योग से बनती ई; जैछे, चोर थोड़ी दूर पर दिखाई दिया ; वह शब्द ठीक-ठीक सुनाई पड़ा |

अन्यास

१०-नीचे लिखे वाक्‍्यों में संयुक्त क्रियाओों के भेद बतछाओ---

एक दिन ज्ञी रतोई बना रही थी ! विवाह के कुछ दिनों बाद, राजा का देहांत हो गया उनकी तोपे जाग उगलछने छगीं उसने बोतल में छोहे का एक ठुकड़ा ढाल दिया | खयेला ऊपर चढ़ जाता है। हवा के बिना कोई नही जी सकता | कुछ दूरी पर एक पेड़ दिखाई दिया छडका सवेरे घूमा करता है। तुम्त अपनी किताब क्यों खोये देते हो देखो, समझ-बुज्ञकर हँसना, पीछे रोना पडे | मुझे समय नहीं' मिलता इसलिए, में आपसे नहीं मिलने पाता | महाराज; मैं आपके कह देने से बनुप उतारे लेता हूँ

हो

२--नीचें छिल्ली क्रियाओं का उपयोग एकएक संयुक्त क्रिया के रूप में करो | बा

दोडना, खींचना, चलना, बुछाना, भेजना; बैठना |

कसओ अध्याय

शुब्द-रचना : पहला पाठ उपसर्ग

र७थ--व्युत्पत्ति के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं--€ १) ' रूढ़ ओर ( २) यौगिक,

. (५४ )/रूढ़ उन शब्दों को कददते हैं जो दूसरे शब्दों के योग से

नहीं बने होते; जैसे नाक, कान, पीछा, झट, पर |

(२ ) जो शब्द दूसरे शब्दों के योग से बनते हैं, उन्हें योगिक शब्द कहते हैं, जैसे, कतरनी; पीछा-पन, दूधवाला, झट-पट, घुड़साल यौगिक शब्दों में ही सामास्तिक शब्दों का भी समावेश होता है

अर्थ के अनुसार यौगिक शब्दों का एक भेद योगरूढ़ि कहलाता है निससे कोई विशेष अथ पाया जाता है; जैसे, लंबोदर, गिरधारी, पंकज; जलद “पंकज” शब्द के खंडों ( पंक--ज ) फा अथ “कीचड़ से उत्पन्न?” है, एर उससे केवछ कमल फा विशेष अआर्थ छिया जाता है | इसी प्रकार “जलूद” ( जल--द ) फा अथ बादल है।

२७६--एक ही भाषा में किसी शब्द से जो दूसरे शब्द बनते हैं, वे बहुधा ही तीन प्रकार से बनाए जाते हैं ओर फिसी-फिसी शब्द के साथ दूसरा शब्द मिलने से सामासिक शब्द तैयार होते हैं; जैसे, अबल, बलवान, बल-्प्रयोग | निधन, धनी, घन-दौलत |

( शृ६ृ८ )

२८०--हिंदी में और दो प्रकार के योगिक शब्द हैं जो क्रमश: पुनइक्त और झलुकश्ण-वाचक कहलाते हैं। पुनरुक्त शब्द किसी शब्द की दुदराने से बनते हैं, घर-घर. मारोन्मारी, काम-धाम, काव-कूट अलुकश्ण-बाचक शब्द किसी पदार्थ की यथार्थ अथवा कह्पित ध्वनि फो ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं, खटखट, घड़ाम, चटपट, तडाक |

र८१--प्रत्ययो से बने हुए शब्दों के दो मुख्य भेंद ई--करदंत ओँत तद्धित | घातुओं के भागे लगाए, गये प्रत्यर्यों के याग से जो शब्द बनते हैं, वे कुदंत कहलाते है धातुर्ओों को छोड़ शेष शब्दों के आगे प्र्यय छगाने से जो शब्द बनते है, उन्हें तद्धित कहते हैं; जेंसे, बोलमने- वाला (कृत ), दुधवाला (तद्/धित ), लड़ाई (ईदंत ), बड़ाई ( तड़ित ) |

१८२- हिंदी में उपसगयुक्त संस्कृत तत्सम शब्द भी जाते हैं, इसलिये उनके संबंध से पहले संस्कृत उपसर्गा का विवेचन फिया जायगा |

( ) संस्कृत उपसग

अतिथ्भधिक, उसपार; जैसे, अतिकाल, अतिरिक्त, अतिशय | अधि-ऊपर, स्थान में श्रेष्ठ; जेसे, अधिपति, अधिकार, अधिकरण | अनुन्पाछे, समान, जेसे, अनुकरण, अनुक्रमक, अनुचर | अप>बुरा, दीन, विदद्ध, अभाव; जेंसे, अपशब्द, अपकी त्ति, अपमान अमिन्‍्ओर, पास, सामने; जेसे, अभिकाषा, अभिप्राय, अमिसुख अवरनीचे, दीन, अमाव; जेसे, अवगत, अवगुण, अवतार |

, आनतक, ससेत, उलटा; जेंसे, जाफर्षण, आजीवन, झाक्रमण | उत्‌-ब्‌>ऊपर, ऊँचा, श्रेष्ठ, जेसे, उत्कर्ष, उत्कँठा, उत्तम उप“निकट सहृश, गौण; जैसे, उपकार, उपदेश, उपनाम दुरनदुसज्चुरा, कठिन; दुष्ट; जेसे, निद्शन, निपात, नियम ! निल्‍भीतर, नीचे, बाहर; जेंसे, निदर्शन, निपात, नियम | निर_निस्‌ > बाहर, निषेध; जेसे, निर्गत, निर्णय, निरपराघ

१६६ )

परान्यीछे, उल्टा; जैसे, पराक्रम; पराजय, परामव | . परिज्भासपास, चारो ओर, पूण॑; जैसे, परिक्रमा, परिजन, परिपुर्ण > प्रतन्भधिक, आगे, ऊपर; जैसे, प्रख्यात, प्रचार, प्रबछ | प्रति-विरुद्ध, सामने, एक एक; जेसे, प्रतिकूछ, प्रत्यक्ष, प्रतिक्षण विभिन्न, विशेष, अभाव; जैसे, विशेष, विवाद, विज्ञान | समून-अच्छा, साथ, पुण; जैसे, संतोष, संगम्‌ , संग्रह सु>अच्छा; सहज, अधिक; जैसे, सुकम॑, सुगम, सुशिक्षित | ३--कभी कभी एक ही शब्द के साथ दो-तीन उपसर्ग आते हैं जैसे, निराकरण, प्रत्यप्कार, समालोचना

२८४--संस्कृत शब्दों में कोई कोई विशेषण और अव्यय भी उप> सर्गों के समान व्यवह्गत होते हैं

अनन्भभाव, निःशेष; जैसे, अधम, अज्ञान, अगम, अनीति |

खरादि शब्दों के पहले “अ?? के स्थान में “भन्‌”” हो जाता है

और “अन्‌” के “न?” में भागे का स्वर मिल जाता है

उदा०--अनेक, अनंतर, अनादर

हि०--अनाज, अछूता, अटल |

अधस-भीतर; उदा०--भघ/प्तन, अधोमुख, भधोगति

अंतरमनी चे; उदा०--अंतःपुर, अंत।करण, अँंतदशा

कुप(का, कद )--बुरा; उदा०--कुकम, कापुरुष, कदाचार ॥)

हिंदी--कुचाल, कुठौर, कुडौल |

चिर्‌ज्बरहुत; उदा०--चिरफाछ, चिरजीव, चिरायु

न--अभाव; उदा०--नारस्तिक, नक्षत्र, नपुःसक

पुरस-सामने, आगे; जेते, पुरस्कार, पुरश्चरण, पुरोहित

पुरान्पहले; जेसे, पुरातन, पुरावृक्ष, पूरातत्व |

पुनर्‌रफिर, जैसे, पुनर्जन्म, पुनर्विवाह, पुनरुक्त

बहिर-बाहर, जैसे, बहिष्कार, बहिद्वार, बहिगंत | -

स>-सहित; जेते सजीव, सफल, सगोत्र | हिंदी'सवेरा, सजग)सचेत) “८ श्र्‌

( १७० )

त्‌ू-अच्छा: जैसे सज्जन; सत्कर्म, सलात्र सहस्साथ; जैसे; सहज, सहचर, सद्दाद्र | स्व-अभपना, निजी, उदा०--स्वदेश, खतंत्र, स्रभाव |

( खे ) हिंदी उपसर्ो थे उपरर्ग बह॒था सस्कृत उपसर्यों के अपभ्रंश दे ओर विशेषकर

तद्धाव शब्दों के पव थाते

खज-भभावष, नियेध, उदा०--अज्ञान, सचत, अलग, |

अपवाद--संस्कृत में स्व॒रादि शब्दों के पहले ञअ के स्थान में सन्‌ हो जाता है; परंट हिंदी मे अन्‌ व्यंजनादि शब्दों के पूर्व भी जाता दे; जैसे, अनमोल, अनचन, अनगिनती |

अंघ ( सं०--अर्द् ) | आबा, उदा०--अधकच्ा, अधपका |

(सं०->>अव | द्वीन, न्पिध, उदा०--भीगुन, भषद |

नि ( सं०--निर 3 5 रहित, निकम्मा, निडर |

भरव्यपूरा, ठोक; उदा२->भरपंट, भरपुर, भरसक |

सु (सं०--सु ) > अच्छा, उदा०---छुडाल, सुज्ञान, सुपूत |

( गे ) उदूं उपसर्ग

कम थोड़ा, हीन; उऊदा०->कमजोर, कमत्रर्त, कमकीमत

खुश - अच्छा, उदा०--खुशवू , खुशदिल, खुशकिस्मत |

गेर (अ०--गेर निन्न ) उदा०--गरमसुल्क, गरहाजिर

ना > अभाव ( स+-न ) उदा०-+नाराज, नापसन्द, नाछायक )

5 ओर, मे; अनुसार, उदा०--त्रनाम, वश्जछास, बदस्तूर

बंद - बुरा, बदमाश, बदबू, बदनाम

बा >- साथ, उदा०--बातजुबा, बाकायदा, बातमीज |

वे > बिना; उदा०--वेचारा, ( हि० बिचारा ) वेइमान, वेहतर ' हूँ यह उपसर्ग, बहुधा हिंदी शब्दों में भी छगाया जाता है; जैसे

#5

वेचनी, वेजोड़, वेसुर

( १७१ )

सर मुख्य; उदा०--सरकार, सरहद, सरदार, सरतान | हर 5 प्रत्येक; उदा०--हररोज, हरमाह, हरचीज, हरसाढू |. ( इस उपसर्ग का उपयोग हिंदी शब्दों के साथ अधिकता से होता « है; जैसे, हरकाम, हरघड़ो, हरदिन, हरएक, हरकोई। ) १-नीचे लिखे शब्दो में उपसर्गों के भेद और उनके अथ बताओ

. . प्रयोग, वियोग, उपयोग, सुयोग, अभियोग, उद्योग, संयोग, विचार ! प्रचार, समाचार, अत्याचार, अनाचार, उपचार, अकाम, निष्काम, सकाम, बेकासम, ओगुन, नापसंद; निघड़क

२--नीचे लिखे उपसगों के दो-दो उदाहरण दो--

भा, उप, अनु, उत्‌, प्रति, वद, नि; सु, कु, स, |

_कामकााकाथाओ, िकपाकामफअाे, (जा .

दूसरा पाठ कृदंत ,( अन्य शब्द )

( के ) फतृ वाचक संज्ा

' अकड़--जैछे, बूझ्नना--बुझकड़, कूदना*कुदकड़, भूठना+-

भुलकड़; पीना--पियकड़ |.

अंकू, आक, आकू-जैसे, उड़ना--उड़ंकू, उड़ाकू, तैरना-*पैराक, लड़ना--लड़ाक ( लड़ाफा--लछड़ाकू ) |

इयल--जैसे, अड़ना““भड़ियल, सड़ना--सड़ियल |

इया--जैसे, जड़ना--जड़िया, छठखना---छूबिया, घुनना---घुनिया, नियारना---नियारिया

ऊ-+जजैसे, खाना-खाऊ, रठना-ऋ₹टू, उड़ना**उड़ाऊ, विगाड़ना--बिगाड़, , काटना--काट

एरा--जैसे, कमाना--कमेरा, रूटना--छटेरा |

ने

शक पे

( १८१ ) है

ऐया[--जैसे, काटना--करेया; ववाना---कचेंया, परोसना--परोसैया सारमा--मरेया हे ऐत--जैसे, छडना--लड़ेत, चढ़ना---चढ़त

भोड़ा ओरा>जैसे,भागवा-सगोड;्ँसना-४ँ तोड़ा,चाटना-चटोरा |

क-जैंसे, मारना-मारक, घालना-वालक |

हा>जैसे, काटया-- कटहा, मारना--मरकहा

(ख ) माववाचक संज्ञाएँ

अंत--जैसे, गहना -- गढंत, छिप्टना-*लिपटंत, लड़ना--लड़ंत, स्दना+-रवटंत |

आ**“इस प्रत्यय के योग से चहुघा भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैले, घेरना--चेरा; फेरना--फेरा, जोड़ना--जोड़ा |

( ) इस प्रत्यव के छगाने के पूथ किसी किसी धातु के उपात्य स्वर में गुण होता हैं; जेसे, मिललमा+-->शेला, टूटना++टोटा, झलना-- झुला, ठेलना--ठेला, घेरना--घेरा |

आई--इस प्रत्यय से भाववाचक,सज्ञाएं बनतो हैं जिनसे (१) क्रिया के व्यापार (२) क्रिया के कामों का चोथ शेता है ) जैसे---

( ) छड़ना--लड़ाई, समाना--समाई, चढना--चढ़ाई

( ) लिखंता--लिखाई, पिसना -- पिसाई |

( सूचसा>>-भाना से अबाई और बाना से जवाई भाववाचक संज्ञाएँ क्रिया के व्यवहार के अथ मे बनती हैं। )

आन--जैसे, उठना--उठान, उड़ना--उड़ान )

आप--जैसे, मिहना--मिछाप, जछमा--जछापा, पूजना--पुजापा,

आव--जैसे, चढ़ना--चढाव, बचना--बचाव, बहना-- बहाव, लगना->लूगाब |

गावट--जैठे, लिखना--लिखाव€८, थकना-थकावट, रुकना+- सकावट, बनना--बनावट, सजना--सजाव८ |

( १७३ )

आवा--जैसे, भूठलना--भुलावा, बुछाना--बुछावा, छुड़ाना-छुड़ावा आस-+-जैसे, पीना-प्यास, ऊँघना- घास आहट--जैसे चिल्छाना- चिल्छाहट, घवराना--घधत्रराहट, गुराना शुराहद __* यह प्रत्यय बहुधा अनुकरणवाचक शब्दो के साथ आता है | ई--जैसे, हँसना--हँसी, बोलना--बोली, धमकाना--घधमकी, घुड़फना--घुड़की | ओऔता, औती--जैछे समझाना--समझोता, मनाना--मनौती; चुकाना--चुकोती ओवल--जैसे, बूझना--बुझीवछ, मनाना--मनोवल त--जेसे, बचना--ब्रचत; खपना--खपत, रैगना--रंगत | ती--जैसे, बढ़ना--बरढ़ती, घटना--घटती, न्न---जैसे, चछना->चलन, कहना--कहन | (ग ) गुणवाचक संशाएँ ई--जैसे रेतना--रेती, फाँसना--फॉसी, बुहारना--बुहारी न--जैसे, झाड़ना--झाड़न, वेलना--वेलन, जमाना--जामन | ॥. . ना--जैसे, वेछडन--वेलना, ओढ़न--ओडढ़ना, कतरना--कतरनी | दि, (घ ) गुणवाचक्त विशेषण आवना-जैंसे, सुहाना-सुद्ावना, छमाना-छुमावना, डरना-डरावना इया--जेंसे, बढ़ना--बढ़िया, घटना-घटिया आऊ+--जेंसे, विकना--विफाऊ, टिकना-टिकाऊ, जलना--जलाऊ वॉ--जैसे, ढछना--ढलवों, कटना--कटवों, पिटना:--पिट्वों | अभ्यास नीचे लिखी क्रियाओ से संजश्ञाएँ ओर विशेषण बनाओ-- «. चमकना, चलना, उड़ाना, हँसना, भूछना, लड़ना, घटना, जछूना डरना, लुभाना |

रे

है

( १७४ ) तीसरा पाठ तद्धित (के ) कतू वाचक संज्ञाएँ

आर--यह प्रत्यय संस्कृत के “कार” प्रत्यय का अपभ्रंश दे | उद्दा०--कुम्हार कुंमहार ). सुनार ( स्वर्णकार ) लुहार, चमार |

आारा, आरी, भाड़ी--ये “आर? के पर्यायी हैं भोर थोडे से शब्दों में छगते है; जेसे, चनिज--बनिया, पूज--पुजारी, खेंछ--खेलाड़ी |

इया---कुछ संज्ञाओं से इस पत्यय द्वारा कतृ वाचक संज्ञाएं बनती हैं; जेसे आढतं-अढ़तिया, मक्खन-मखनिया, दुख--दुलिया

ई---कोई>फ्ोई व्यापारथाचक संज्ञाएं इसी प्रत्यव के योग से बनती है; जेसे तेह-वतेली, माला--माली |

एरा-६ व्यापारवाचक )--जेसे, सॉप>सपेरा, कॉसा-कसेरा, छाख- लखेरा

एड़ी-जेंसे; भाग-भेंगेड़ी, गॉजानगजेड़ी

एतन्जेसे, छट्ठछठेत; माता-नतैत; डाका-डकैत

बाल--यह प्रत्यव “वाला? का शेष है; जेसे, गया--गयावाल; प्रयागन-प्रयागवाल, पदली-पदलीवाल जा

वाला-जेसे, टोपीन्दोपोचाला, घन-घनवाछा, गाड़ी-गाडीवाला

दरानन्‍यह प्रत्यय वाला का पर्यायी है; परंतु इसका उपयोग उसकी अपेक्षा कम होता है; जेसे, छकड़ी-लकड़ हारा, चूड़ी-चूड़िहारा, पासी- पंनहारा

( 9 भाववाचफ संज्ञाएँ

आ“जेंसे, चजाजन्बजाजा, सराफ-सरागा, बोझ-नोझा |

आईद-जेसे, कपड़ा>कपडाईद, सड़ना-सड़ाइईँद, घिन-घिनाईंद |

आई“इस प्रत्यय के योग से विशेषणो और संजश्ाओं से भाववाचफ संज्ञाएं बनती हैं जेसे, भला-भछाई, बुरा-बुराई, पंडित-पंडिताई |

( १७५ )

आका-जैसे घम-धमाका, भड़-भड़ाका, धड़-घड़ाका | आन-जेसे, ऊँचा-ऊँचान, लंत्रा-लंबान; मीचा-नीचान | आयत-जंसे; बहुतायत, पंच-पंचायत, अपना-भपनायत आहट-जसे, कड्डुआ-कडुआाहट, चिकना-चिकनाहट | ई-जसे, बुद्धिमान-बुद्धिमानी, ग्रहस्थ-गहस्थी, चोर-चोरी। भओती-जेसे, बाप-तपौती, बूढा-बुढ़ोती फ-जेसे, धम-घमक, ठढ-ठढक त-जेंसे, र॑ग-रंगत, मेल-मिल्लत ता-जेसे, मित्र-मित्रता, कवि-कविता, मधुर-मधुरता स्व-जेसे, गुरु-गुरुत्म, उती-छतीत्व, पुरुष-पुरुषत्व | पन-जेसे, काछा-कालापन, पागल-पागरूपन; छड़का-लड़कपन पा-जेसे, बूढ़ा-बुढ़ापा, रॉड़-रेंड्रापा य-जेसे-मघुर-माघुय, पंडित-पांडित्य, धीर-थै्य स-जेंसे, आप-आपस, घाम-घम्स | ( ) अपत्यवाचक ( संतानवाचक ) संज्ञाएँ * अन्जेसे, रघु-राघव, पाडु-पाडव, वसुदेव-वासुदेव इ-जेसे, दशरथ-दाशरथि, मरुत्‌-मारुति इ-जसे; रामानन्द-रामानन्दी, दयानंद-दर्यानदी, मोहम्मदु--« ' मोहम्मदी एय--जेंसे, गंगा-गांगेय, कुती-फॉतेय, विनता--वैनतेय, भगिनी-भागिनेय | य--जेसे, शंडल-शाडिल्य, पुछस्ति--पौलस्त्य, दिति-दैत्य (घ ) ऊनवाचक 'संज्ञाएँ इया--जेंसे, खाठ--खटिया, फोड़ा--फुड़िया, डब्चा--डिबिया ई-जेंसे, पहाड़-पहाडी, ढोछक-ढोलकी, रस्ता-रस्ती,टोकरा-टोकरी | . भोछा--जैसे, सॉप- सेंपोला, बात--बतोला, खाट--खटोछा डा, ड्री--जेंसे, चाम--चमड़ा, मुख--मुखड़ा, पंख--पंखड़ी

्ई

0.

] शी

घ्प

न्‍हीं।

थी जैसे; हहा--काठारी, छा--छुत्री, पीट--पोटरी ली--जैसे, टीका->टिकरली, खाज-इुजठी,2फ- 2पाली ,सूत-सुतछा | (४ ) गुगवाचक विशप् >जसे, प्यास-थानसा, मूत्व--भुसा, छू--जेंसे, शगड़ा--झगडालू | | फ-जेंसे, ब५-वारपिक, शरास-शारीरिक, घमचामिदासेनानीनिक | जगठ--पंगली, ऊन--+ऊनी, देश--देशी लछाजंपते,--+शू->रगांला, सस-रुकसहला

टें>सी गे

च््ा

>

शण रु

6

| 5 2 गेरू-गेरुआा, टद्ल--+टइलुआा, फाय-+फहला | क--जेसे, घर-परझ, बाजार नन्‍्वाजार, दाल--दाल | ऐला--जैंसे बन--बनेला, घुभझुमेंठा, मछ-नमुझेला ला--जेंठे, आगे--अगरा, लाइ--छाइुला, पीक्ष--पिछला

बंत--जेसे, गुण-->गुणवत, घन--धनवंत्त, जब--जययंत, शील-- शीलवंत ; ' हा--जेंस, हल--इढवा दा, पानी--पनिदा, कर्वीर--फर््रीरादा | अभ्यास चे छिखी संज्ञाओं भीर व्क्षिपणणी से दूसरे शब्द बनाओ-- भूख, दूध, सित्र, पहाड़, टृता; शिव, दिन, चूहा, चोर, छड़ी, पवित्र, छंत्रा, सघुर, कड॒भा, उदास, बुरा, बूढ़ा, गीला, गोली, पुराना

९००५... +वक #चह-ा८इायाक"+ २८७ /ार,

रह

चौथा पाठ सात

वर दयासागर है | किसान दाल-रोटी खाता है |

न्धि में भर सक प्रयत्न कखँगा | बालक मंद-बुद्धि है |

4 १७७ )

वह तन-मन-धन से मेरी सहायता करेगा | जिभुयन में दशरथ के सभान कोई राजा नहीं हुमा २८५--ऊपर लिखे वाक्यो में रेखाकित शग्द दो या अधिक शब्दों के मेल से बने हैं ओर उनके संबंधी शब्दी का छोप हो गया है, जैसे, दया--सागर > दया ( फा ) सागर | दाल--रोयी > दाल ( और ) रोगी मंद---बुद्धि + ( जिसकी ) बुद्धि मंद ( है )। तन-+-मन--धन < तन ( और ) मन ( और ) धन। न्विभुवन 5 ( तीन भुवनों का समूह ) जब दो या अधिक शब्द अपने संबंधी शब्दों फो छोड़कर एक साथ मिल जाते हैं तब उनके मेल को समास भौर उनके मिले हुए शब्दों को सामासिक शब्द कदते हैं | इन शब्दो का संबंध प्रकट कर दिखाने की रौति को विग्रह् कहते हैं र८६--जब्र दो या अधिक संघ्कृत शब्द परस्पर जोड़े जाते हैं, तब उनमें बहुधा संधि के नियमों का प्रयोग होता है, जेते-« राम + अवतार<रामावतार, पत्र + उत्तरण्पत्रोत्तर मनस्‌ + योग-मनोयोग ५. रे८७- किसी सामासिक शब्द में विभक्ति छगाने का प्रयोजन हो तो उसे समास के अंतिम शब्द में जोड़ते हैं, जेसे, मॉ-बाप से, राज-कुल में, भाई-बहिनों का (१ ) अव्ययी भाव समास ' मैं यथा-शक्ति प्रयत्न करूँगा | छड़का प्रतिदिन पाठशाला जाता , है | वह आजीवन कंगाल रहा गाड़ी धीरे-घीरे चछती है | र२८८--ऊपर छिखे रेकाकित शब्दों में प्रत्येक का अथ पहले शब्द के अनुसार है और वह पहला शब्द अव्यय है। समूचा शब्द

( १७८ )

क्रियाजविशेषण के सम्मान उपयोग में जाता है | इस समाख का गव्ययी-माव समा कहते हैं

र८छ९--यथा अनुसार ), जा ( तक )। प्रति ( प्रत्येक ) यांवत्‌ ( तक ) बि ( त्रिना ) से बने हुए संस्क्षत अव्ययीभाव समास हिंदी में बहुधा भाते हैं, जेसे, यथात्थान, आजन्म, यावज्जीवन, प्रतिदिन |

२६०--हिंदी में संस्कृत पद्धति के निरे हिंदी अव्ययौभाव उमास बहुत ही फम पाए जाते हैं | इस प्रकार के जो शब्द हिंदी में प्रचलित हैं, वे तीन प्रकार के होते हैं--«

( अ) हिंदी; जेंते, निडर, निघड़क, मरपेट, अनक्षाने

( था ) उर्द' अर्थात्‌ फारसी अथवा भरबी; जेंसे, इररोज, वेशक, बखूबो, नाहक |

(इ ) मिश्रित अर्थात्‌ दोनो भाषाओों के शब्दों के मेल से बने हुए, . जेसे, हरघड़ी, हरदिन, वेकाम, वेखटके |

२६ १०-हिंदी में अगली संज्ञा को द्विसक्ति करके भी अव्ययीभाव समास बनाते हैं, उदा०--घर-घर, पलपल, हार्थोन्ह्ाथ, कभमी-कमी द्विझ्क शब्दों के बीच मे (ही? वा 'हीं' क्षथवा “था? जाता है; जेंसे, भनही-मन, घरदी-घर, मुँद-मुँह, एकाएक |

२६२०-संज्ञार्जा के सप्रान अव्ययो की ह्विरक्ति से भी हिंदी में

झ्म कम घ्५, कक, व्ययीमाव समास होता है; जेसे बीचो-बीच, बड़ाघड़, पाल-पास, धीरे-धीरे

(२ ) तत्पुरुष समास

लड़की रसोई-घर में है। बालक जन्माघ है। नौका जल-मग्न हो गई |; राज पुत्र युद्ध में मारा गया

२६३--ऊपर के उदाहरणो में जो सामासिक शब्द आए हैं; उनमें

ते प्रत्यक में दूसरा शब्द्‌ प्रधान है और पहले शब्द के पश्चात्‌ किसी

एक कारक की विभक्ति का छोप है; जैसे, राज पुत्र॒-राजा का पुत्र | इस

( १७६ )

" प्रकार के समास को तत्पुरुष समास कहते हैं। तत्पुरुष समास में बहुधा संशाएं या विशेषण आते हैं |

'. २६४--तत्पुरप समास के प्रथम शब्द में कर्ता और संबोधन कारकों को छोड़ शेष जिन फारको की विभक्तियों का छोप दह्ोता है, उन्हीं के अनुसार तत्पुरुष समास का नाम रखा जाता है; जेसे,

कम-तत्पुरष-संस्कृत ( उदा० ) स्वगप्राप्त, देशगत, भाशातीत |

करण तत्पुरुप--( संस्कृत ) ईश्वरदतच; तुलसीकृत, भक्तिवश ( हिंदी--मनमाना, गुडमरा, सँँहमॉगा, मदमाता संप्रदान;तत्पुदष--( सस्कृत ) कृष्णापंग, देशभक्ति, बढि-पश्ु ( हिंदी )--रसोईघर, ठकुर-सुद्दाती, हथकड़ी |

अपादान तत्पुदष--( संध्कृत ) जन्मांघ, ऋणमुक्त, घर्म-विमुख | ( हिंदी ) देश-निकाला, गुरुमाई, जन्मरोगी, कामचोर |.

संबंध-तत्पुरप--( संस्कृत )राजपुत्र, प्रजापति, सेनानायक | ( हिंदी ) राजपूत, बनमानुष, बैछगाड़ी, रामकहानी

अधिकरण-तत्पुरुप--[संस्कृत) ग्रामवास, गहस्थ, प्रेममग्न (हिंदीओ मन-मोजी, आप-बीती, काना-फूती

२६ ५---जनत्र तत्पुरुष समास का दूसरा पद ऐसा कृद॑त होता दे जिसक। स्वतंत्र उपयोग नहीं हो सकता, तब समास फो उपपद कहते हैं, जुसे,

( संस्कृत )--ग्रंथकार, ऋतश; वदप

( हिंदी )--लकड़फोड़ा, चिड़ीमार, पनडुब्बी |

२९६---अभाव अथवा निषेध के अथे में शब्दों के पूर्व भा वा अन?” लगाने से जो तत्पुरुष बनता है, उसे नव्य_तत्पुरुष कहते हें; जैसे,

( संस्कृत )--अधम ( घर्म ), अन्याय, ( न्याय ), अनाचार ( आचार )।

( हिंदी ) अनबन, अनभछ, अनरीत, अलग |

के

१5०) | (३ ) कम्रघारय समास नील फमल सदाघन भलमानस , सजन परभानद बड़ा घर

२६४७--ऊपर छिखे लदाइरणों में पहला शब्द विशेषण और दूसरा झठ्द लिशेष्य है। इसमें भी दूसरा शब्द प्रधान दीता है। इस समा को कर्मेशशुय कहते हैं पद ( ) तत्युरुष ओर कर्मबारय मे यद अंतर है कि तस्पुरुष के स॑ डॉ "में सलग-भछग विभक्तियाँ लगाई ज्ञाती हैं, परंतु कमबारथ खंडा मं पक ही ली विमर्कि रहती है। 2१९८--कर्मधारय समास दो प्रकार का है। जिस सम्राध् से विशेष्य विशेषण भाव सूचित होता है. उठे विशेषतञा-बाचक कर्मंधारय और जिशासे उपमानोपमेंय-्भाव जाना जाता दे उसे उपसा बाचक फर्मधारव कहते हैँ | उद०--- विशेषदाबाचक कर धारय संस्कृत--पीतावर, सत्‌गुण, नीछ-कमल | हिंदा--कार्ली मिच , मेंशधार, नीलगाय | उपल्ावाचक कर्मघारय संस्कृत--चंद्रमुख ( चढ़ सरीखा झुख ), घनश्याम ( घन सरीखा चयाप्त ), बच्र देह बच्र के समान देह 9 (४ ) दिगु समास त्रिभुवन ( तीन भुवनों का समूह 3, जिकाछ (तीन काछो का समूह) पंचपात्र ( पॉच पन्नों का समूह है पडरख ( घट रसो का समृह ) दोपहर ( दो पहरो का समइ % दठवारा (जाठ वारो का समृह) | २९६--ऊपर लिखे उदाहरणो में पहछा पद सख्यावाचक विशेषण है ओर समूचे शब्द से कुछ वस्तुओं का समूह सूचित होता है। यह समास कमंघारय का छक भेद है, क्योंकि दोनो में पहला शब्द विशेषण होता है इस समारु को ट्विगु समास कहते है |.

बज

( ९८१ )

(५) हंद समास ऋषि-पुनि ( ऋषि भोर मुनि ), सीता राम ( सीता और रास ) राधा-कृष्ण ( राघा और कृष्ण ), गाय-बेल ( गाय और बेल ) भाई-बहिन ( भाई ओर बहिन ), पाप-पुण्य ( पाप और पुण्य ) , ३००--पूर्वोक्त उदाहरण में प्रत्येक समास के दोनो शब्द प्रधान

, हैं अर्थात्‌ दोर्नों ही के विषय में चर्चा फी गई। इस समास में दोनों

शब्दो के बीच में आनेवाला समुच्यय-बोधक ( “और” अथवा “वा? ) लुप्त रहता है। यह समास द्वंद्व समास कहलाता है

३०१--/द समास तीन प्रकार फा होता' है-*« *

(१) इतरेतर इंद्व--जिस समास के दोनों शब्द “और” समुचय बोधक से जुड़े हुए हो, पर उस समुच्चयन्बोधषक का छोप हो; उसे इतरेतर दद्व कहते हैं, जेंसें---

सस्कृत--सुख-ठुःख, राम-लक्ष्मण, देव-दानव |

हिंदी--माँ-बाप, दूध-रोटी, नाक-कान

(२ ) समाहार द्ंदु--जिस हद समास से उसके पदो के अर्थ के सिवा उसी प्रकार का ओर भी अर्थ सूचित हो उसे समाहार दूंद्व

'कहते हैं; जेते, सेठ-साहूकार (सेठ और साहूकारों के सिवा और भी

लोग ) भूल-चूक, द्ाथ-पॉव, रुपया-पेसा (३ ) वैकल्पिक ढंद्ध्+-जब दो पद “बा? “अथवा” आदि,

“विकल्प-सूचक समुचय-नोधक के द्वारा मिले हो ओर उस समुच्य-बोधक:

का लोप हो जाय, तब उन पदों के समास फो वैकल्पिक हंद्ध कहते हैं | इस समास में बहुधा परस्पर विरोधी शब्दों का मेल होता है, जेसे, जात-कुजात, पाप-पुण्य, धर्माधम | ( ) घहुत्नीदि समास वि वह बालक मंद-बुद्धि है। यहाँ एक कन फटा साधु आया मुनि जिर्तेंद्रिय होते हैं। , मैंने नील-कंठ पक्षी देखा

( एंकर 2

8०२०--ऊपर छिखे रेखाकित शब्दों में प्रत्येक समास के दोनों शब्द प्रधान नहीं हैं। 'मंद बुद्धि! कहने से मंद ही का अथ मिकछता है और न॒वबुद्धि का, कितु ऐसे व्यक्ति का अर्थ निकलता है, जिसमें ये दोनों भावनाएँ पाई जाती हैं. अर्थात्‌ जिसकी बुद्धिन्मंद दे | जिस समास में कौई भी शब्द प्रधान नहीं होता और जो अपने दाव्दों से भिन्न किसी सज्ञ' की विशेषता बताता है उसे बहुत्रीहि समास कहते हैं

३०३--इस समास के विग्नह में संबंधवाचक सर्वनाम “जो? कर्चा और संबोधन कारवों को छोड़ शेष जिस कारक की विभक्ति छगती है, उठी के अनुसार इस समास का नाम होता है; जैसे---

कर्मन्बहुत्री हि--इस जाति के सस्कृत समासों का प्रचार हिंदी में नहीं दे मोर हिंदी में ऐसे फोई समास हैं |

क्रण-बहुत्रीहि--जितेंस्ट्रिय ( जीती गई हैं इंद्रियाँ जिसके द्वारा ), कुतकार्य ( किया गया दे कार्य जिसके द्वारा ) |

संप्रदान-बहुत्री हि--यह समास भी बहुधा हिंदी में नहीं आता इसके संस्कृत उदाहरण ये हैं--दत्तथन (दिया गया घन जिसको ), उपहृतगशु ( भेंठ में दिया गया है पद्चु जिसको )। !

स्वंध-चहुत्रीहि--दशानन ( दश हैं आनन-मुंह-जिसके ), सहखबाहु सइख है वाहु जिसके ) पीतांभर ( पीत है संबर-कपड़ा-जिसका )॥

हिंदी--कमफटा, दुधसुद्दा, मिठबोछा |

अपादान-बहुन्ीहि--निर्जेन ( निक७ गया जन-समुह जिसमें से ), निर्विकार, विमछ |

अविकरण-बहुब्ीहि--प्रफुल्छ-कमछ ( खिके हैं कमछ जिसमें, बह तालाब ) ईद्रादि ( इंद्र ईं जादि में जिनके, वे देवता )। हिंद्य-- पतश्चड़, मलोना, सतर्खंडा |

३०४--शक समास में जआानेवाले शब्द एक ही भाषा के होने

चाहिऐ, जैसे, पाक-शाछा, रसोईघर; बाबचीखाना, पर इस नियम के कई अपवाद भी हैँ; घन, दौलत |

हे ( १८३ )

हू.

३०५--कभी-एक ही समास का विग्रह अथ सेद से कई प्रकार का होता है; जेसे, निनेत्र”ः शब्द “तीन जॉखों? के अर्थ में फर्मघारय है; परंतु “तीन ऑलोवाला” ( मह्दादेव ) के अर्थ में बहुत्रीहि है “सत्यव्रत” शब्द के और भी अधिक विग्रह हो सकते हैं; जेसे--- सत्य और व्रत - दंढ सत्व-रूपी त्रत ) सत्यत्रत ) सत्य है ब्रत जिसका बहत्रोहि .. ऐसी अवस्था में समय का विग्रह्द केवछ पृर्वापर संबंध से ही हो सकता है।

८0

- केमंधारय

अभ्यास १--नीचे छिखे शब्दों में समासों के भेद बताओ-+- चीर फाड़, राजद्रोही, लंबोदर, यथाशक्ति, रघुकुछ, चतुवर्ण, नाई- घोबी, नव-रत्ञ, अनुरूप, मंद-बुद्धि, पीत-वर्ण, गुरुदेव २--नीचे लिखे अर्थों में सामासिक शब्द बनाओ और उसके भेद बतामो--

(१ ) सच या झूठ | (२ ) भाई ओर बहिन | (२ ) भा मनुष्य '. (४) सत्रीका घन (५ ) चंद्ररूपी सुख (६ ) जिसके तीन नेत्र हैं। ( ) जिसका हृदय पाषाण है ( ) जन्म से लेकर | (६ ) प्रत्येक मास में | (१०) दस अबतारों का समूह | ९३/ ३/ पाचवा पाठ

पुनरुक्त ओर अनुकरण-बाचक शब्द

देश-देश बड़े-बड़े ,. दोड़-दौड़कर

( औ८४ )

बन-व्न धीरे-बीरे- पूछ-ताछ

भन-भन खटन्खट आसन्पास

३०६---ऊपर छिखे शब्दों में एक ही शब्द दो बार आया है खथवा एक सार्थक के साथ दूसरा समानुप्रार या निरथक शब्द आया है। इस प्रकार के अण्दो को पुनदुक्त शब्द कहते हैं |

३०७--पुतरुक्त शब्द दो प्रकार के द--पूर्ण पुनरुक्त, अपूर्ण पुनरुक्त |

( ) जब कोई एफ शब्द एक ही साथ लगातार दा बार अथवा तीन बार प्रयुक्त होता है तब्र उन सबको पूर्ण पुनरुक्त शब्द कहते हैं; जैसे, देश-देंश, बड़े-बड़े, जन-जन; चलछते-चलते, जय जब जय |

(२१) जन किसी शब्द के साथ कोई समानुप्रास साथक वा निरथ्थक

शब्द भाता हें तब वे दोनो शब्द पुनरुक्त शब्द्‌ कहते हैं; जंसे आस- पास, आमने-सामने, देख-भाल |

३०८--पूण पुनठक्त शब्द अतिशयता, एकजांतीयता, भिन्नता, भादि बर्थों में भाते हैं; जेऐे,

(१) संज्ञाएँ--हँली-हसी में लड़ाई रख दो रंग-रंग के फूल

(५ ) विशेषशु-मीठेन्मीठ आम" छोठे छोटे छड़के मलूय बिठाए, गए अनूठे-भबूठे खेछ

(३ ) क्रिया--बह मासन्मारा फिरता है। छड़का सोते-सोते चॉक पढ़ा | में चलते-चछते थक गया

( ) क्रियाविशेषशु--बीरे-घीरे, कभी-कभी, जब-जब आदि

(५) संवंध-सूचक्र--नोकर के खाथ-वाथ, लड़के के पास-पास,

( ) विस्मथादिवाोधकर--हाय-हाय | छि। छि। | अरे अरे |

३०६-- अपूण पुनमक्त शब्द दो साथक अथवा एक सार्थक और नेरयक था दो निरथ्थक शब्दो के मेंठ से बनते हैं; जैसे,

#"]

| पड़ी। फूछ-फूछ अलग

पान

छ््फ

ीद।

( ८५ )

(१ ) संज्ञाएँ-काम-काज, बात चीत, सटथर-पटठर | ( ) विशेषण-मरा-पूरा, भोला-भाछा; इद्टा-कट्ठा ( ) क्रिया--लड॒ना-भिड़ना, पूछना-ताछना, सोचना-विचारना | “४ ( ) अव्यय--यहाँ-वहाँ, आमने-सामने, आस-पास | ३१०--अनुकरणवाचक रब्दों के उदाहरण नीचे दिए जाते हँ-- ( ) सज्ा-गड़बड़, खटखठ, भनभन (२ ) विशेषण--गड़बड़ियां, खट्पटिया, भरभरिया | (३ ) क्रिया -हिनहिनाना, झनझनाना, मिनभिनाना | ( ) क्रिया-विशेषण-झटझट, थरयर, घड़ाधड़ अभ्यास नीचे लिखे वारक्यों में पुनरक्त शब्दों के भेंद बताओों-- : घर-घर बोलत दीन हे जन-जन जॉचत जाय। बात-चबात में भेद हैं| वहों पहुँचते ही पहुँचते रात हो जायगी मेरे रोम-रोम प्रसन्न हो गए | उस सड़क पर कई ऊँचे-ऊँचे घर हैं | पुस्तके पढते-पढ़ते भायु बीत गई | पागल अंट-संठ बरकता है| वहाँ दनादन गोली चली | उसने सब काम ठीक-ठाक कर लिया | लड़के ने जेसें-तैसे काम कर लिया | वह थर यर ' काँप रहा है

बठा पाठ

हिंदी भाषा का संक्षिप्त इतिहास

वैदिक काल में शिष्ट समाज की भाषा संस्कृत थी; पर जन-साधारण उस समय' भी एक प्रकार की साधारण भाषा बोलते थे, जो प्राकृत कहलाती थी। इस प्राकृत से भागे पाल्नी मोर द्वितीय प्राकृत का जन्म हुआ कालछातर में ये भाषाएँ व्याकरण के जठि नियमों द्वारा बाँध दो गई; जिसका परिणाम यह हुआ कि बोल-चाछ की भाषा अपअंश हो गई अपभ्रंश भाषाएं भी व्याकरण के नियमों के

श्रे ' -

हु

( श्थ्६ )

अंतर्गत गई; तब सब्बसाधारण के लिए सरल भाषा को आवश्यकता पडी इस समय आधुनिक देशी भाषाओं का जन्म हुआ। हिंदी भाषा का उदगम भी इसी समय हुआ हिंदी का जन्म प्रांत भर अपभ्रश भाषाओं की उन शाखाओं से हुआ जो शोरसेनी ओर अड मागघी कहलाती थीं भाषाएँ ग्यारहवीं शताव्दी तक प्रचलित थीं। हेमचंद्र के प्राकृत व्याकरण में हिंदी का उदाहरण दिया गया है “भत्लो हुआ जु मारिया, बहिणि महारा कठ॒ु | लज्जेज॑तु बयंसियहु, जइ भग्गा घर ' एंतु है बहिन भा हुआ जो मेरा पति मर गया | वह भागा हुआ घर जाता तो मैं सखियो में छज्जित होती | ) | पृथ्वीराज रासो में भी पुरानी हिंदी का रूप पाया जाता है। इस काल फी भाषा मे प्राकृत ओर अपम्रंश शब्दों को अधिकता है। इस समय की भाषा में हिंदी का रूप पूरी तरह स्थिर नहीं हुआ था चंद कवि के समय के पश्चात्‌ से हिंदी का रूप कुछ-कुछ स्थिर होने छगा था। चंद के समय का हिंदी उदाहरण यह है-- उच्चिष्ठ छंद चंदन बयन सुनत सुजंपियं नारि। ततु पवित्र पावन कबत्रिय उकति अनूठ उधारि | 'छंद, कविता उच्छिष्ट है?, चंद का यह बचन सुनकर स्त्री ने कहा--पावन कवियो की अनूठी उक्ति का उद्धार करने से शरीर पवित्र हो जाता ) | यद्यपि इस काल में कई कवि हुए, पर उन सच्चकी रचनाएँ उपलब्ध नहीं हूँ, इसलिये इस युग का प्रमुख कवि पृथ्वीराज रासो का लेखक चंद कवि ही माना जाता है। चंद का समकालीन कवि जागनिक था

जिसके अंथों के आधारपर आह्हा काव्य ) की रचना हुई यह काल हिंदी का आदिकाल कहलाता है |

( १८७ )

श्सके पश्चात्‌ हिंदी भाषा के विकास का सध्यकाल आता है। इस युग में हिंदो की प्राचीन बोलियोॉ बदरूफर क्रमशः ब्रज्ञमाषा, अवधी और खड़ी बोली हो गई | इसे घमंकाल कह सकते हैं। इस काल की भाषा का रूप भक्त कवियों की रचनाओो से जाना जाता है। इस समय हिंदी का रूप स्थिर हो चलछा था | धर्मकाल के कवियों की कबिता अधिकांथ में हिंदी के उस रूप में हुई जिसे त्रजमाषा फहते हैं इस फाछ में विशेष- कर फन्नीर साहब फी भाषा ध्यान देने योग्य है उनकी फविता में ब्रज- भाषा ओोर हिंदी के उस रूप का मिश्रण है, जिसे बाद में लल्लू छाल ने (सन्‌ १८०३ में ) खड़ी बोली का नाम दिया कबीर साहब की भाषा बहुत सहज है। फन्नीर साइबर ने जो कुछ छिखा है वह लेखक की दृष्टि से नहीं, वरन्‌ सुधारफ की दृष्टि से लिखा है, इस लिए उनकी भाषा सरल

भोर सरस है। उनकी कविता का उदाहरण यह है--

मनफा फेरत जुग गया, गया मनका फेर | कर का सन का छॉड़ि दे, मन का मनका फेर

इसके पश्चात्‌ पंद्रहवीं शताब्दी में हिंदी भाषा पर विदेशी सचा का . प्रभाव पड़ने छगा इस समय मुसलछमानी शासन होने के कारण हिंदी में अरबी ओर फारसी शब्दों का उपयोग प्रचुरता से होने छगा इसी काल में उदू' भाषा का जन्म हुआ उदूं यथाथ में कोई नई भाषा नहीं . है। वह्ट भाषा दिव्ली ओर मेरठ के आस-पास बोली जानेकली खड़ी बोली ओर भरब्री-फारसी शब्दों का मिश्रण है। उदूं और हिंदी में वसस्‍्तुतः केवछ लिपि का भेद है। इस काल में हिंदी भाषा से अरबी- फारसी के कई शब्द ऐसे घुछूलमिल गए कि उनका पहचानना कठिन '' हो गया है, जैछे, रोटी, तावा, हलवा

उचर मध्यकाल के प्रमुख कवि सूरदास भोर तुल्सीदास हैं | सूरदास वल्लभाचाय के शिष्य ओर कृष्ण-मक्त थे | कहते हैं कि इन्होंने सवा लाख पद छिखे हैं, जिनका संग्रह “'सूरसागर! नामक पंथ में है | ये

( १८८ )

ब्रजभावा में कविता करते ये तुलसीदास की भाषा बेखवाड़ी से. मिलती हुईं अवधी और ब्रजमापा है इनका प्रसिद्ध अंथ रामचरित मानस है।

इसके बाद सूरति मिश्र मे त्रजमापा के गद्य में वेताछ-पचीसी नामक ग्रंथ छिखा | यह रचना कदाचित्‌ गद्य की प्रथम रचना है

जे

आधुनिक हिंदी के विकास का काल सन्‌ श्८्ू०० से मारंभ होता है | छसलमानी राजत्वकाल में जिस प्रकार हिंदी मापा में अरबी ओर फारसी भाषाओं के शब्दों का समावेश हुआ, उसी प्रकार इस काल में यूरोपीय भाषानओं के ,शब्दनमंडार से हिंदी का फोप भरने छगा | इस समय बहुत से यूरोपीय शब्द हिंदी में व्यवह्यत होने छगे और होते जाते हैं; जैते, नीलाम, कमरा (पोतंगीज ) मास्टर, डाक्टर, बेरिस्टर ( अंग्रेजी )

इत काल में हिंदी भाषा की सर्वतोघुखी उन्नति हो रही है। भाषा का शब्द-मंडार तथा साहित्य तेजी से उन्नति कर रहा है। उपन्यास और नाठको की अधिकता हो रही है तथा'अनेक प्रकार के सामयिक पत्र प्रकाशित किए जा रहे हैं। भाषा अधिक व्याकरण-संमत्त लिखी जा रही है, पर संस्कृत शब्दों की भरमार बहुत होती है

छठा अध्याय - बाक्य-विन्यास पहला पाठ

5 कारकों के अथे (१) करततों कारक ३११--हिंदी में कर्चा-कारक के दो रूप हैं--- ( ) अप्रत्यय प्रधान ), ( ) सप्रत्यय ( अप्रधान ) ( अप्रत्यय कत्ता कारक नीचे लिखे अर्थों में आता है--

हज (कफ ) प्रतिपदिक के अथ मे ( फिसी वस्तु के उल्लेख मात्र में ), जेसे, पुण्य, पाप, लड़का, वेद, सत्संग, कागज

( ) उद्देश्य में-ब्यानी गिरा | नौकर काम पर भेजा जायगा |

'हम तुम्हें बुछाते हैं , (ग) उद्देश्यपू्ति में->ब्रोड़ा एक जानवर है मंत्री राजा हो गया साधु चोर निकला सिपाही सेनापति बनाया गया |

( ) खतंत्र उद्देश्य-पूरति में--मंत्री का राजा होना सभको बुरा लगा | लड़के स््री बनना ठीक नहीं

( # ) स्वतत्र कर्ता के अर्थ में--चार बजकर दस मिनट हुए हैं। इस औषधि से थकावट दूर होकर बल बढ़ता है। दिन निकलते ही चोर भाग गए

(२ ) सप्रत्यय कत्ती-कारक वाक्य मे कैवल उद्देश्य ही के अर्थ में ञाता है, जेंसे, लड़के ने चिट्ठी लिखी | मैने नोकर को बुछाया। हमने अभी नहाया है।

6888 )

(२) कमेकारक

३१२-७फकर्म-कारक का प्रयोग बहुधा सकमक क्रिया के साथ होता है और कर्ता-कारक के समान बह दो रूपो में आता दै-(१) अग्रत्यय (२ ) सप्रत्यय

१) अप्रत्यय कर्म-कारक से नीचे लिखे अथ सूचित होते हैं--

(ख ) मुख्य कर्म-राजा ने ब्राह्मण को घन दिया। गुरु शिष्यफो गणित पढ़ाता है| नठ ने छोगो को खेल दिखाया

( ) कर्म-पर्ति--अहल्‍्या ने गंगाधर को दीवान बनाया। मेने चोर की साधु समझ लिया | राजा ब्राह्मण फो गुरू मानता है |

(ग ) सज्ातीय कर्म--सिपाही कई लड़ाइयों छड़ा “सोओ सुख* निंदिया प्यारे छछन |?” किसान ने चोर को खूब मार मारी वें ही यह नाच नचाते हैं।

(घ ) अपरिचित वा अनिश्चित फर्म-मैंने शेर देखा है। पानी 'लाओ | छड़का चिट्ठी रिखता दे | हम एक नोकर खोजते हैं।

(०२ ) सम्रत्यय कर्म-कारक बहुधा नीचें लिखे अर्थों में जाता है-

(क ) निश्चित फर्म भें>-चोर ने छड़के को मारा हमने शेर को देखा है लड़का चिट्ठी को पढ़ता है।

( ) व्यक्तिवाचक, अधिकारवाचक, तथा स्बंधवाचक कर्म में, जेसे, हम मोहन को जानते हैं। राजा ने ब्राह्मण फो देखा। डाकू गॉव

के मुखिया को खोजते थे

( ) मनुष्यवाचक सावनामिक कर्म में“ राजा ने उसे निकाल दिया। सिपाह्दी तुमको पकड़ लेगा | छड़का किसी को देखता है। आप किसको खोजते हैं

(३ ) करण कारक

२१३--करण-कारक से नीचे छिखे अथथ पाए जाते में--

( के ) करण अर्थात्‌ साधन--नाक से सॉस लेते हें पेरों से चलते शिकारी ने शेर फो बंदूक से मारा

है

| है

( १६१ )

( ) कारण--आपके दशन से छाम हुआ | धन से प्रतिष्ठा बढ़ती है। वह किसी पाप से अजगर हुआ था |

(ग ) रीति-लड़के क्रम से बेठे हैं। मेरी बात ध्यान से सुनो नौकर धीरज से काम करता है |

(ध ) साहित्य--विवाह धूम से हुआ | सर्वंसंमति से निश्चय हुआ भाम खाने से फास या पेड़ गिनने से ?

(& ) दशा--शरीर से हृद्टा-कट्टा | स्वभाव से क्रोधी | हृदय से दयाल |

( ) भाव और पलटा--गेहूँ किस भाव से ब्रिकता है तमने ब्याज किस हिसात्र से लिया वे अनाज से घी बदलते हैं।

(४ ) संप्रदानकारक

३१४--संप्रदान-कारफ नीचे लिखे अर्थों में भाता है--

(क ) द्विकर्म क्रिया के गोण कम में--राजा ने ब्राह्मण फो घन दिया | गुरु शिष्य को व्याकरण सिखाता है। ढोरो को मैछा पानी पिलाना चाहिये।

(ख ) फल वा निमित्त--ईश्वर ने सुनने को दो फान दिये हैं। लड़के सैर को गए.। वह धन के छिए, मरा जाता है।

( ) प्राप्ति--मुझे बहुत काम रहता है। उसे भरपूर आदर मिला लड़के को पढना जाता है।

( घ) मनोविकार--उसक़ो देह की सुधि रद्दी। इस बात में किसी को शंका होगी (३ ) प्रयोजन--मुझे उनसे कुछ नहीं कहना है। उसको इसमें

. कुछ छाभ नहीं तुमको इसमें क्‍या करना है

(च) कर्चव्य, आवश्यकता और योग्यता-मुझे वहाँ जाना चाहिए | यह बात तुमको कन्न योग्य है। उनको वहाँ रहना था।

है

( १६१ 2)

(५ ) अपादान-कारक २१४०अपादान-कारक के अर्थ जोर प्रयोग नीचे छिखे अनुसार ' होते हैं-- ( के ) काछ तथा स्थान का आरंभ--वह लखनऊ से जाया मे कल से वेकल हैं. गंगा हिमालय से निकली दे

( ) उद्यत्ति--ब्राह्मण ब्रह्मा के सुख से उत्पन्न हुए हैँ। दूध से दह्दी बनता है | कायछा खदान से निकाला जाता है

( ग्र) काल वा स्थान का अंतर--भटक से कठक तक। खदेरे से सॉझ तक | नस से शिख तक

( थ) मिन्नता--यह कपड़ा उससे अछुग है। आत्मा देह से भिन्न है | मोकुछ से मथुरा न्‍्यारी |

( & ) तुछना--मुझसे बढ़कर पापी कौन होगा ? भारी से भारी बजन | छोटे से छोटा प्राणी

(च ) वियोग--वह मुझसे अछग रद्वता है। पेड़ से पत्ते गिरते हैं | मेरे हाथ से छड़ी छठ पड़ी ,

(& ) निर्धारण ( निश्चित करना )-इन कपड़ों में से आप कोन सा लेते हूँ हिंदुओं में से कई छोग विलायत को गए हैं। इन लड़कों में से एक को में जानता हूँ |

( ६) संबंध- कारक

३१६--संबंध-कारक से अनेक प्रकार के अर्थ सूचित होते हैं; उनमें से यहाँ केवल म्रुख्य-प्ुख्य अर्थ लिखे जाते हैं---

(क) स्व-स्वामिभाव--देश का शजा, मालिक का घर, मेरा घर |

(से) अंगांगिमाव--लड़के का हाथ, स्त्री के केश; तीन खंड का मकान |

(ग) जन्य-जनक-भाव-छड़के का बाप, ईश्वर की सृष्टि , राजा का बेटा।

(व) काय-कारण मावन्नबतोन फी अंगूठी, चॉदी का पलंग, मूर्ति का पत्थर |

श््े

$-

( १६३ )

(ड)) सेव्य-सेवक-भाव**इंश्वर का भक्त; गॉव का जोगी, राजा की सेना

(च) गुण गुणी भाव--मनुष्य की बढ़ाई, आम की खटाई; भरोसे का नौकर

(छ) नाता--राजा का भाई, स््री का पति, मेरा काका |

(ज) प्रयोजन--बेठने का कोठा, पीने का पानी, खेती का बेंछ |

(झ) मोल या माल--पेसे का गुड़, गुड़ का पेंता, रुपए के सात सेर चावल

(ज) परिमाण-दो हाथ को छाठी,दस ब्रीघे का खेत, चार सेरकी नाप |

(७) अधिकरणन्कारक

३१७--अधिकरणुन्कारक की मुख्य दा विभक्तियों हैं--में और पर इन दोनो के अथ ओर प्रयोग अलग-गलग हैं |

(१) “में”? का प्रयोग नीचे लिखे आर्थों में होता है--

(क) आमभ्यंतर आधार--दूध में मिठास है। मछलियों समुद्र में रहती हैं। नोकर काम में है |

(ख) मोल पुस्तक चार आने में मिली | उसने बीस रुपए मे गाय ली | यह कपड़ा तुमको कितने में बेचा ?

(ग) मेल तथा अंतर--हममें तुममें कोई भेद नहीं है। भाई-माई में प्रीति है। उन दोनो में अनबन है।

- (घ) करण-व्यापार में उसे ठोटा पड़ा। क्रोध में शरोर छीजता

है। बातो में उड़ाना |

&डछ) निर्धारण--देवताओं में कौन अधिक पूज्य है ? सती ख्तरियो

में पद्मिनी प्रसिद्ध है। अँंधों में काने राजा | सब में छोटा |

.... (च) स्थिति-सिपाही चिता में है उसका भाई युद्ध में मारा « गया रोगी होश मे नहीं है

(छ) निश्चित काछ की स्थिति--वह एक घंटे में अच्छा हुआ। दूत कई दिनो में छोंटा | प्राचीन समय में मोज नाम का एक प्रतापों शजा हो गया हे

१९४ )

(२) “पर” नीचे छिखे अथ दूचित करता है

(क) बाह्य आधार--सिपाही घोड़े पर बठा दे खड़ा है | नीकरों पर दया करो |

(ख) दूरता--एक कोस पर, कुछ आगे जाने पर; एक कोस की दूरी पर |

(ग) कारण-मेरे बोलने पर वह अप्रसन्न हो गया। अच्छे काम पर इनाम मिलता है इस बात पर सब्र जग मिट जायगा |

(थे) भधिकता--इस अथ में संज्ञा की द्विकक्ति होती दे; जेंसे धर से चिट्ठियों पर चिट्टियों आती हैँ तगादे पर तगादा भेज्ञा जा रहा है | दिन पर दिन भाव चढ रहा है

(छ) निश्चित काछ--सम्तय पर वर्षा नहीं हुई। एक-एक घंटे पर दवा दी जावे गाड़ी नौ बजकर पेंतालिस मिनथ पर जाती दे

(व) नियम पालन-वह अपने जेठों की चाछ पर चढछता दै। ठुम अपनी बात पर नहों रहते | छड़के माँ बाप के स्वभाव पर होते ईं |

(छ। अनंतरता--भमोजन करने पर खाना चाहिए. | बात पर ब्रात निकलती है। आप का पत्र जाने पर सब्र प्रबंध हो जायगा |

(८ ) संबोधन कारक ३१८--इस कारक का प्रयोग किसी को चिताने अथवा पुकारने में रे हे होता है; जसे, भाई तुम कहाँ गए. थे ? मित्रो, हमारी सहायता करो

३१६--संबोधन कारक के साथ ( आगे या पीछे ) बहुधा फोई एक विस्मयादिन्बरोधक आता है; जसे, तजो रे मन हरि विमुखन फो संग हे प्रभु रक्षा करो हमारी | भैया हो, यहाँ तो आभो 4

अभ्यास १०>नी चें लिखे वाक्यों में कारक और उनके अर्थ बताओ---

दिली में एक बादशाह का नाम अल्तमश था। उसकी पढ़ाई का चहुत अच्छा प्रचंध किया गया था | सरदारों फो उसका शासन भाया।

| लड़का द्वार पर

(६१ प्‌ )

उन्होंने उसके भाई को गद्दी पर बेठाया। अंत में उनको गद्दो से उतारना पड़ा। रजिया ने बढ़ी चतुरता से विरोधियों फो हराया इतकी सेना शन्नुओं से मिल गयी | उसने तलवार से अनेकों योद्धा मार गिराए। दोनो फो हिंदुओं ने बंदी करके मार डाला | हे प्रभु, तेरी छीछा विचित्र है

_कवपइ डा 2७३ हर मार 3 बच ८०० ही,

दूसरा पाठ कालों के अथ (१ ) संभाव्य भविष्यत्‌-काल

३२०--संभाव्य भविष्यत्‌ काछ नीचे छिखे भर्थां में आता है--

(भ ) संभावना--भाज ( शायद ) पानी बरसे। ( कहीं ) वह लोट आवे। हो हो राम जाने

( ) इच्छा आशीर्वाद, शाप आदि--मैं यह बात राजा फो सुनाऊँ | आप का भछा हो | गाज परे उन छोगन पे

(३ ) कर्तव्य, आवश्यकता-ठुयको कन्र योग्य है कि बन में बसों इस काम के लिये उपाय अवश्य किया जावे

(ई ) उद्देश्य, हेतु--ऐसा करो जिससे बात बन जाय इस बात की चर्चा हमने इसलिये की है कि शंका दूर हो जाय

(3 ) उ्प्रेक्षा ( तुलना )--ठुम ऐसी बातें फरते हो मानों कहीं के राजा होभो | ऋषि ने तुम्हारे अपराध को भूठ अपनी कन्या ऐसे भेज दी है जैसें कोई चोर के पास अपना घन भेज्ञ दे

(२ ) सामान्य भविष्यत्‌-काल

३२१--इस काल के अनारंम फार्य अथवा दश्या के अतिरिक्त नीचे लिखे अथ सूचित होते हैं--

( ) निश्चय की कल्पना--ऐसा बर और कहीं मिलेगा | जहॉ तुम जाभोगे वहाँ में भी जाऊँगा। उस ऋषि फा हृदय बड़ा कठोर होगा

(१ ६६ )

( ) यार्थना>-प्रश्नवाचक वाक्यों में यह अथ पाया जाता ईै; जैसे; क्या आप फछ वहाँ चलेंगे ? क्‍या तुम इतना मेरा काम कर दोग क्या वें मेरी बात सुनेगे ? | |

(ह ) संकेत--यदि रोगी. की सेवा होगी; तो वह अच्छा दवा जायगा | अगर हवा चलेगी, तो गरमी कम दो जायगी।

( ) प्रत्यक्ष विधि

३२२--इस काछ में अर्थ ये हँ--

( ) अनुमति-प्रशन--उत्तम पुरुष के दोनो बचनों में किसी की अनुमति अथवा परामर्श अदहण करने में इस काछ का उपयोग द्वोता दे; जैसे, क्या में जाऊँ हम छोग यहाँ बठे

( था ) संमति--उत्तम पुरुष के दोनों बचनों मे कभी कभी इस काल से श्रोता की संमंति का बाघ होता है; जेसे' चछे, उस रोगी की परीक्षा करे हमछोग मोहन फो यहाँ बुछाये

(६ ) भाज्ञा ओर उपदेश--यहाँ बैठा कियो को गार्ली मत दो। नोकर अभी यहाँ से जावे

(६ ) प्रार्थना--आप मुझपर कृपा करें | नाथ, मरी इतनी विनती मानिए नाथ, करहु बालक पर छोह

(४) परोक्ष विधि

२२३--इस काछ के. अर्थ ये हैँ...

( भर ) परोक्ष विधि से भाज्ञा, उपदेश, प्राथना आदि के साथ भविष्यत्‌ काछ का अथ पाया जाता है; जैते, कछ मेरे यहाँ आना | दमारी शीघ्र सुधीछी जिये | कीजी तदा घम से शासन; स्त्व प्रजा के मत इरियों। (आ ) “आप? के साथ परोक्ष विधि-में "गात”? आदर-सूचक

विधि का प्रयोग होता है; जैठे, कक आप वहाँ जाइएगा भाप उन्हें बुलाइएगा (५) सामान्य संकेता्थ ३२४--इस काछ के अथ ये हैं...

( १९७ )

( ) क्रिया की असिद्धता का संकेत ( तीनो कालछों में ), जैसे, मेरे झक भी भाई होता, तो मुझे बडा सुख मिलता (भूत)। जो उसका काम होता तो वह कभी आता ( वर्तमान )। यदि फल आप भेरे ' साथ चलते, तो वह काम अवश्य हो जाता ( भविष्यतू )।

(भा ) असिद्ध इच्छा--जैसे, हा | जगमोहन सिंह, आज“तुम जीवित होते। कुछ दिन के पश्चात्‌ नींद निज अंतिम सोते

(३ ) कभी-कर्मी सामान्य संकेतार्थ फाल के संभाव्य भविष्यत्‌॒कालू के अर्थ की इच्छा सूचित होती है; जैसे मे चाहता हूँ कि वह मुझसे मिलता ( मिले )। यदि आप कहते ऋऋहे ) तो में उसे बुलाता (- बुलाऊँ ) | इसके लिए. यही उपाय है कि जाप जल्दी जाते |

(६ ) भूतकाल को किसी घटना के विषय में संदेह का उचर देने के लिए सामान्य संकेतार्थ काछ का उपयोग बहुधा प्रश्षवाचक और निषेध वाचक वाक्य में होता है; जैसे अर्जुन की क्या सामथ्य थी कि वह हमारी बहन को ले जाता ?

(६) सामान्य वर्तमान काल

- ३९४५--यह काछ नीचे लिखे भर्थां में जाता है--

(भ ) बोलने के समय की घटना--जैठे, पानी अभी बरसता है |, गाड़ी आती है। वे आप फो बुछाते हैं |

( भा ) ऐतिहासिक वर्चमान--भूतृकाल की घटना का इस प्रकार वर्णन करना मानो वह प्रत्यक्ष हो रही हो; जैसे, तुछसीदासजी ऐसा कहते हैं। राजा हरिश्वंद्र मंत्रियों सहित आते हैं। थोक-विकल सत्र रोवहिं रानी '

(इ ) स्थिर सत्य--साधारण नियम किंवा सिद्धात बनाने-में अर्थात्‌ ऐसी बात कहने में जो सनातन और सत्य है इस काल का प्रयोग किया जाता है; जैसे सूर्य पव में उदय होता है। पक्षी अंडे देते हैं आत्मा अमर है।

(ई ) वर्चमानकाल की अपूर्णता--जैठे, पंडितजी स्नान करते हैं ( कर रहे हैं )। मै अभी लिखता हूँ गाड़ी आती है

( शहद )

475

(3 ) अभ्यास--जैसे, दम बढ़े तड़के उठते ई। सिपाईी पहरा देता है। गाड़ी दोपहर को आती हे | वििधज कि (ऊ ) आसन्नमूत--आपको राजा सभा में बुछाते ई। से अभा

ते रै

0४४

ध्ात

अजोध्या से आता हैँ क्या इम तेरी जाति पति पूछते ( ) भासक्न-मविष्यतू--में तुम्हें अभी देखता हू मरता है। लो, गाडी; भव थाती है )

(७ ) अपूर्ण भूतकाल

३२६--इस काल से नीचे के भथ सूचित होते ६ई--

( ) भूतकाल की किसी क्रिया फी अपूर्ण दक्षा-किंसी जगई कथा होती थी | चोर चक्कर छगाता था | चिल्ाती वह रोन्रो कर

(आ) भूतकाल की किर्सी अवधि में एक काम फा बार कर दोना- जहाँ जहाँ रामचंद्र जी जाते थे, वहाँ मेंबर छावा करते थे। वह जो जो कहता था, उसका उचर में देता जाता था |

( ) भूतकालिक अम्यास--पहले यह बहुत सोता या। में उसे जितना पानी पिछाता या उतना वह पीता था।

(ई ) भूतकालीन उद्देश्य--में आपके पास भाता था वह कपड़े पहिनता ही था कि एक-नोकर ने उसे पुकारा |

अब तो वह

( ८) संभाव्य वर्तमानकाल ३२९७---इस काछ के अर्थ ये हैं---

( ) वचभानकाछ की अपूर्ण ) क्रिया की संभावना--फदाचित्‌ इस गार्डी में मेरा भाई जाता हो | मुझे डर है कि कहीं कोई देखता हो। शायद राम पढ़ता हो

( भा ) अभ्यास ( स्वभाव या धर्म )--ऐसा घोड़ा छाओ जो घंटे में दस मील जाता हो हम ऐसा घर चाहते हैं जिसमें धूप आती हो वह ऐसा छड़का नहीं है जो सदा लापरवाही करता हो

(8) भूत जयवा भविष्यत्‌ काछ की अपूर्णता की संमभावना-जत्र आप

( १६६ )

भाएँ, तब में भोजन करता होऊँ | अगर में लिखता होऊें तो मुझे बुलाना।

(३ ) उद्प्रेक्षा--भाप ऐसे बोलते हैं मानो मुख से फूछ झड़ते हों | ऐसा शब्द हो रह्या था मानो मेघ गरजता हो। आप सुझे इस प्रकार आज्ञा देते हैं मानो में आपकी नौकरी करता होऊ

(६ ) संदिग्ध वत्तमान काल

३२८--यह काल नोचे लिखे अर्थों में आता है--

(भ ) व्च॑मानकालछ की क्रिया का सदेह-गाड़ी आती होगी। वे मेरी सब कथा जानते होगे | तेरे छिये मोतमी अकुछाती होगी

( भा ) तक--चाय पत्तियों से बनती होगी यह तेल खदान से निकलता होगा आप सबके साथ ऐसा ही व्यवहार करते होगे |

(३ ) भूतकाल की अपूर्ण का संदेह--उस समय मैं वह काम फरता होऊँगा जन्न आप उनके पास गए, तत्र वें चिट्ठी लिखते होगे वे वहों रहते होगे

( १० ) अपूण संकेतार्थ काल

' ३२६--इस कांल से नीचे के अर्थ सूचित होते हैं--

(जर॒ ) अपूर्ण क्रिया की असिद्धता का संकेत--अगर बह काम करता होता, तो अन्नतक चतुर हो जाता अगर हम कमाते होते तो ये बातें क्यों सुननी पड़तीं। यदि वे चछते तो अवश्य पहुँच गए होते

(जा ) वचमान या मृत की कोई अधिद्ध इच्छा-मे चाहता हूँ कि यह लड़का पढ़ता होता | उसको इच्छा थी कि मेरा भाई मेरे साथ काम करता होता बह चाद्वता था कि भेरा लड़का बुद्धिमान होता

(इ) कभी-कभी पूर्व वाक्य का छोप कर दिया जाता है और केवल उत्तर वाक्य बोला जाता है; जैसे, इस समय वह लड़का पढ़ता होता |

( अगर वह जीता रद्दता तो पढ़ने में मन छगाता | हम सुख में समय बिताते होते | ,

( २०० ) |

(११ ) सामान्य भूतकाल ०>-सामान्व मृतकाछ नीचे लिखे अथ सूचित करता

(अर) बोलने वा लिखने के पर्व क्रिया की ; स्वतंत्र घटना--जंसे, विधना ने इस दुःख पर भी वियोग दिया। गाड़ी सवेरे बाई। अस कहि कुटिछ भई उठि ठाढ़ी

( ) आसन्न भविष्यतू->आप चलिए, मे अनी आया। अब यह वेमोत मरा | मा अत्र कौन ब्रोलिल-

(इ ) सांकेतिक अथवा संबववाचक वार्क्यों में इस काछ से साधारण वा मिश्रित मविष्यत्‌ का जोध होता है, जेसे, अगर तुम एक कदम भी बढ़े ( बढोगे ), तो तुम्दारा बुरा हाल हुआ | रुका ( रुकेगा ), ल्लोही इम भागे ( भागेंगे )। जहाँ मेने बहाँ वह उठकर तुरन्त चला |

(ई ) अन्यास, सव्ोधन अथवा स्थिर सत्य सूचित करने के छिए

इस काछ का उपयोग सामान्य वर्तमान के समान होता है; जेसे, ज्योद्दी वह उठा ( उठता है ) त्योंद्दी उसने पानी माँगा ( मॉगता दे 3, लो, में

चला | पढा जिन्होंने छंद-प्रभाकर, काया पलूट हुई पद्माकर | (१९ ) आसन्न मूतकाल ( पूर्ण वत्तमानकाल ) ३३१--इस काल के अथ ये हैं--- ( अर ) किसी भूतकाछिक क्रिया का वत्तमानकाछ में परा होना; जैसे नगरम एक साथु आए हैं| उसने अभी नहाया है | वह अभी जाया है | ( आा ) ऐंटी भूतकालिक क्रिया की पृणता जिसका प्रभाव वचंमान- काछ में पाया जावे, जैते, व्रिद्दरा कवि ने सतसई लिखी है। दयानंद सरस्वती ने ऋग्वेद का अनुबाद किया है। भारतवर्ष में अनेक दानी राजा हो गए हैं। ) भृतकाछिक क्रिया की आवृत्ति सूचित करने में बहधा जातन्न भूतकाल जाता ह, जेसे, जब जब अनावृष्टि हुई है, तब तव अकाल पड़ा ई, जब-जब वह मुझे मिला है, तब-तव उसने घोखा दिया है |

(२०१ )

(ई ) किसी क्रिया का अभ्यास--उसने बढ़ई का काम किया है |

आपने कई पुल्तकें लिखी हैं | मैने वह पुस्तक पढ़ी है ( १३ ) पूर्ण मूतकाल

३३२--इस काल का प्रयोग नीचे लिखे भर्था में होता है--

(ञ ) बोलने या लिखने के बहुत ही पहले की क्रिया; जैसे, सिर्क- दर ने हिंदुस्तान पर चढ़ाई की थी। लछड़कपन में हमने अंगरेजी सीखी थी आज सवेरे मैं आपके यहाँ गया था |

( आ) दो भूतफकालिक घटनाओं की समकाठीनता--वे थोड़ी ही दूर गए थे कि एक महाशय मिले। कथा पूरी हो पाई थी कि सब्र लोग चले गए |

(इ ) यही काछ फर्मी-कभमी आसन्न भूत के अथ में. भी आता है; जैसे, अमी मैं आपसे यह कहने आया था कि में घर में रहँगा ( आया ' था>आाया हूँ )। हमने आपको इसलिये बुलाया था कि आप मेरे प्रशन का उत्तर दें |

( १४ ) संभाव्य भतकाल , ३३३---इस फाछ के नीचे लिखे अथ्थ सूचित होते हैं--

( ) भूतकाल की ( पूर्ण ) क्रिया की संभावना--जैसे, हो सकता

है कि उसने यह बात सुनी हो | जो कुछ तुमने सोचा हो उसे साफ- ' साफ कहो | संभव है कि उसने यह कह दिया हो |

( ) भाशंका वा संदेह-कहीं चोर ने उसे मार डाला हो |

विवाह की बात सखी ने हँसी में कही हो उन्हें चिट्ठी देरी से मिली हो

(३ ) भूतकालीन उत्प्रेक्षा--वह मुझे ऐसे देखता है मानो मैंने कोई भारी अपराघ फिया हो वह ऐसी बाते बनाता है मानो उसने कुछ देखा ही हो | लड़का ऐसी बाते करता दै मानो वह बड़ा विद्वान हो

,._( १५ ) संद्ग्धि भूतकाल

8३४--इस काल के अथ ये हैं--

' (अर ) भूत॒कालिक क्रिया का संदेह--जैसे; उसे हमारी चिट्ठी मिलती १४ किक

( २०२ )

शेगी ठुग्हारी घड़ी नौकर ने कहीं रख दी होगी नेरा भाई पहुँच गया होगा

) अनुमान-कहीं पानी बरसा हागा; क्योकि ठंटी इवा चछ रही है रोहिताश्व भी अच इतना बढ़ा हुआ होगा | छाट साइबर कल उदयपुर पहुँचे हंगे |

(ई ) विज्ञहा--आरीक्ृष्ण ने गोवर्धन कैसे उठाया होगा | उस

द्वी में में क्या छिखा होगः। (१६ ) पूर्ण सकेताथकाल

३३५००-इस फाल से नीचे लिखे अथ सूचित होते है

( ) पूर्ण क्रिया का असिद्ध संकेत--ल्‍जैठे, जो मेने अपनी लड़की सारी होती, तो अच्छा था यदि वूने भगवान को इस मंदिर में त्रिदाया होता, तो यह अशुद्ध क्यो रहता | यदि वह चला होता, तो अब तक पहुँच जाता

( ) भूतकाछ की अतिद्ध इच्छा--जत्र वे तुम्हारे पास आए थे तब तुमने उन्हे बिठलाया तो होता। तुमने अपना काम एक बार तो कर दिया होता | वह कम से कम एक बार तो सुझसे मिला होता |

झभ्यात् १--नीचे लिखे वाक्यी में काछो के अर्थ बता भो--

थोड़े दिन बाद समाचार मिला कि राजा जनक सीता का विवाह

के लिये स्वयंवर रचनेवाले हैँ उन्होंने यह प्रण किया था कि जो! इस तोडेगा उसी के साथ विवाह होगा | यदि तुम्दारे प्रति राजा का सच्चा अनुराग होता तो क्या बेटे को राजगद्दो देते | अब मुझे मेरे वर दीजिए वे नहीं केसे करते राम बोले कि में पिता की भाज्ञा कैसे मानू मेने इसी छिये जन्म लिया है। अयोध्या-वासी राम का साथ छोड़ते थे यह कैसे हो सकता था कि राम बन को जाते ) सीता ने

सोचा कि फोई झूग चरता होगा | किसी शिकारी के भय से वह बहाँ

४१

र्‌ थे

( २०३ )

भाग भाया होगा शायद वह राक्षस हो उसकी यह इच्छा ही थी कि लक्ष्मण चले जावें | इस समय मारीच के मुँह से ऐसे शब्द निकले मार्नों राम बोल रहे हैं। राम ने लक्ष्मण से फह दिया था कि तुम सीता फो छोड़ अकेले कहीं मत जाना |

#म्ाबाद +०००००००० #न>० नमन,

तीसरा पाठ शब्दों का अन्वय (१ ) उद्देश्य और क्रिया का अन्यय किसी बन में हिरन ओर फोवा रहते थे | मोहन भोर खोहन सड़क पर खेल रहे हैं | | . ३३६--यंदि संयोजक समुच्यय-बोधक से जुड़ी हुईं एक ही पुरुष ओर एक ही छिंग की एक से अधिक एकवचन प्राणिवाचक संझाएँ अप्रत्यय कर्चा-कारक में आकर उद्देश्य हों, तो उनके योग'से क्रिया उसी पुदष भोर लिंग के बहुबचन में आएगी मेरी बातें सुनकर महारानी को हर्ष तथा भाश्चर्य हुआ | कुँए में से घड़ा तथा छोटा निकछा | उसकी [बुद्धि का बल ओर राजा का अच्छा नियम इसी एक काम से मालूम हो जावेगा | ३७--संयोजक सूमुच्चय-बोधक से जुड़ी हुई एक ही पुरुष ओर लिंग फी दो वा अधिक अप्राणिवाचक अथवा भाववाचक संज्ञाएँ यदि एकवचन में जायें तो क्रिया बहुधा एकबचन ही में रहती है। राजा और रानी भी सूछित हो गए. कश्यप और अदिति बातें करते हुए दिखाई दिए | गाय और बेल चरते हैं। ३३८--यदि भिन्न-भिन्न लिंगो की दो (वा अधिक ) प्राणिवांचक

डी

(_ १०४ )

तंज्ञाएँ एकवचन ये आवें तो क्रिया बहुधा पुर्लिलग एकवचन मे जाती है

गर्मी और हवा के ऋकोरे और मी बलेश देते थे उनके खार नेत्र और तीन भुजाएँ थीं हास्व में झुँह, गाछ और आँखें फूछी हुईं जात पढ़ती हैं

३३६९--यदि भिन्न-भिन्न लिंग वचत की एक से अधिक संझशाएँ सप्रत्यय कर्ता-कारक में जावें, तो क्रिया के लिंग-बचन अंतिम को के अनुसार होते हैं

हम भोर तुम वहाँ चलेंगे | तू और वह कछ भाना ठुम ओर वे फत्र जाओगे

३४०--मिन्न मिन्न पुरुष के कर्चार्थों में बदि उत्तम पुरुष आवे, तो क्रिया उत्तम पुरुष होगी; यदि मध्यम तथा अन्य पुरुष कर्चा में हो तो क्रिया मध्यम पुरुष में रहेगी

में या मेरा माई जावया | वे और तुम वहाँ ठहर जाना इस काम में फोई हानि अथवा छाभ नहीं हुआ |

३६४१०--वदि कई का विभाजक समुच्चय बोघक के द्वारा जुड़े हाँ; तो अंतिम कर्चा क्रिया से अन्बित होता है

(२) कर्म ओर क्रिया का अन्यय

मेने गाय जोर भैंस मोछ छी शिकारी ने भेड़िया और चीता देखे | महाजन ने वह्टों लड़का और मतीजा भेजे |

३४२--एक ही छिंग की अनेक एकवचन प्राणिवाचक सँज्ञाएँ अप्र- स्वय कर्म-कारक में आबे तो क्रिया उसी छिंग के बहुबचन में जाती है।

मेने कुएँ में से एक घड़ा और छोटा निकाछा उसने सुई और कंघी में रख दी। सिपाही ने युद्ध में खाहल और घीरल दिखाया था।

( २०५ )

३४३--यदि एक ही लिंग फी जनेक एकबचन अप्राणिवाचक अथवा भाववाचक संज्ञाएँ कर्म हो, तो क्रिया एकबचन में आएगी

हमने लड़का ओोर लड़की देखे | - राजा ने दास और दासी भेजे | ' किसान ने गाय और बेल बेचे |

३४४--यदि भिन्न-भिन्न लिंगों फी अनेक प्राणिवाचक संज्ञाएँ एक वचन में कम होकर जावे तो क्रिया बहुधा पुल्लिंग बहुबचन में आती है।

उसने मेरे वबास्ते सात कमीजे ओर कई कपडे तैयार किए थे | उसने वहाँ देख-रेख और प्रबंध किया मैंने किश्ती में एक सो मरे बेल, तीन सो भेड़ें मोर खाने-पीने के लिये रोटियों और शराब भरपूर रख ली थी

३४५--यदि भिन्न-भिन्न लिंग वचन फी एक से अधिक संजाएँ

' कम-कारक में आवे तो क्रिया अंतिम कर्म के अनुसार होगी |

तुमने टोपी या कुर्ता छिया होग़ा। लड़के ने पुस्तक, कागज अथवा पेंसिल पाईं थी | उसने पुस्तक या फापी भेजी होगी |

३४६--ग्रदि कई कर्म विभाजक-समुच्चरयबोधक के द्वारा जुड़े हो तो क्रिया अंतिम कम के अनुसार होती है |

(३ ) विशेषण ओर विशेष्य का अन्वय

वह कोन सा जप-तप, तीथयाचा, दहोस-यश्ञ ओर प्रायदिचत हैं ? आपने छोटी-छोटी रफाबियों और प्याले रख दिए पुरानी सड़कें और रास्ते सुधारे गए

२३४७--यदि अनेक विशेष्यो का एक ही विकारी विशेपण हो तो ' वह प्रथम विशेष्य के लिंग-वचनानुसार बदलता है।

एक लंत्री, मोटी और सीधी छड़ी छाओ। उस पेड़ में पेने और _छेढ़े कोठे हैं | छोग अच्छी ओर सस्ती चीजें पसंद करते हैं

( २6६ )

३४८--यदि एक विशेष्य के पूर्व अनेक विकारी विशेषण हों तो सभी विशेषणों में विशेष्य के अनुसार विकार होगा |

राजा के महृछ में बहुत से कमरे हैं। सिपाहियों के कपड़े एक विशेष प्रकार के होते है | छड़के की छड़ी छोटी है

३४६--संबंध-कारक में आकारांत विशेषण के समान विकार होता है। यदि संबंधी शब्द ( भेद्य ) विकृत रूप में जावें तो संबंध-कारक ( भेदक ) में बेंसा विकार होता है।

सिफजफक अप अप (-डमप्णज

जाति के सर्वगुण-संपन्न बालक ओर बालिकाओं ही का विवाह होना चाहिए. उसमें शब्दों के भेद, अवस्थां ओर व्युपत्ति का वणन है। भेरी पुस्तकें और कागज पत्र कहाँ हैं

३५०--यदि सनेक भेद्यों का एक ही भेदक हो तो यह प्रथम भेद से अन्वित होता है |

_स.-बक+कट &2:::4-अदत प्ाडाकरय 7७,

सोना पीछा होता है। घास हरी होती है। मेरी बात पूरी होना कठिन है।

३५ १--यदि विचेय विशेषण आाकारात हो तो विभक्ति रहित कर्चा के साथ उसमें उद्देश्व-्विशेषण के समान विकार होता है।

।्प

अननानरससकननन >नन-ननन-न जटरजथ्या,

गाडी खड़ी फरो | दरजी ने कपड़े ढीले बनाये। मे तुम्हारी बात पक्की समझता हूँ

५२--विभक्ति-रहित कर्म के पदर्चात्‌ आनेवाला आकारांत विधेय- विशेषण उस कम के साथ लिंग-बचन भें अन्वित होता है | अभ्यास १--नीचे लिखे वाक्यो में शब्दो का एफ दूसरे के साथ संबंध बताओ-- अफबत्रर विद्वानों का और पंडितों का आदर करता था | भकचर की रहन-सहन-सीधी-सादी थी | हुमायू ओर उसके भाई वर्षों छड़ते रहे रामको पारितोपषिक जोर उपाधि मिली | अवुरूफजल की मृत्युका समाचार

( २०७ )

सुनकर उसे खेद भोर दुःख हुआ लड़के की बुद्धि ओर ज्ञान कुंडित पड़ता है। मक्खियों की आदतें गंदी ओर हानिकारक होती हैं। सिपाही के हाथ, पर तथा अन्य अंग थक गए। प्रत्येक केत्रिन में भाल- मारी, पलंग, मेज, कुरसी ओर हाथ मुँह धोने का सामान रहता है। आज चिट्ठी या समाचारपत्र नहीं आए | ग्राहक ने धोतियाँ ओर टोपियों खरीदीं। मनुष्य अच्छी, सस्ती तथा उपयोगी वस्तुएँ खरीदता है। घर में कई मनुष्य, स्तरियाँ ओर लड़के रहते हैं| गोपाल ने छाता छड़ी मोछ छी

'शाााधथहा८मा पद पता. करममान्‍म जा.

चोथा पाठ शब्दों का क्रम

३५३--वाक्य में पदक्रम का सबसे साधारण नियम यह है कि पहले कर्ता वा उद्देश्य, फिर कम वा पूर्ति ओर अंत में क्रिया रखते हैं जैते, छड़का पुस्तक पढ़ता है | छिपाही सूवेदार बनाया गया। मो चतुर जान पड़ता है | है

३५४--ट्विकमक क्रियाओं में गोण कर्म पहले और मुख्य कर्म पीछे 'आता है; जेसे, हमने अपने मित्र को चिट्ठी भेजी | गुरु शिष्य को गणित पढ़ाता है। राजा ने सिपाही फो सूवेदार बनाया |

३५५--दूसरे फारको में आनेवाले शब्द उन शब्दों के पूष आते हैं 'जिनसे उनका संबंध होता है, जेसे, मेरे मित्र की चिट्ठी कई दिन में आई। यह गाड़ी बंचई से कछकते तक जाती है। राम अपने गुणों में एक ही है

-- ३५६--विशेषण संज्ञा से पहले और क्रिया-विशेषण वा क्रिया-

विशेषण-वाक्यांश ) बहुधा क्रिया के पहले भाते हैं; जेंछे,, एक भेड़िया किसी नदी में, ऊपर की तरफ पानी पी रहा था राजा आज नगर : में आए. हैं। चतुर मनुष्य बहुघा समय व्यथ नहीं खोते'। ,

३५७--समानाधिकरण शब्द मुख्य शब्द के पीछे आता है ओर पिछले शब्द में विभक्ति का प्रयोग होता है; जैसे, कल्छू, तेरा भाई बाहर

( २०८ )

खड़ा है। भवानी सुनार को बुाओं राम का पिता मोहन यहाँ आया है।

२४८-०--तो, में, ही, भर, तक और मात्र वाक्य में उन्हीं शब्दों के पश्रात्‌ आते हैं बिनपर इसके कारण अवधारण होता है और इनके स्थानातर छे वाक्य में अर्थातर हो जाता है; जैसे हम, भी गाँव को जाते हैं। हम गाँव को भी जाते हैं। हस तो गाव को जाते हैँ हम गाँव को तो जाते हैं

२५६--समुच्चय-बोधक अव्यय जिन शब्दों अथवा वार्क्यों को' जोड़ते हैं उनके बीच मे जाते हैं; जैसे, हम उन्हें सुख देंगे क्योकि' उन्होने हमारे लिए. बड़ा तप किया है। ग्रह और उपग्रह सूर्य के भास पास घूमते हैं। मैने छड़के को बहुत समझाया, पर वह सुधरा | «

रे६०--छंद की पूर्णता के लिए प्रायः सभी शब्द वाक्य में अपना स्‍थान छोड़कर दूसरे स्थान में जाते हैं; जैसे,

कही सजावट की चीज़ो से शो जाता था चित्त प्रसन्न "

कहीं के अपनी महिमा से करती थीं विस्मय उत्पन्न.

माँति भांति की बच्न्राशियों कहीं दिखाई देती थीं;

डशछ कछाफारो की कृतियों चित चुराये लेती थीं |

अभ्यास यो में शब्दों के क्रम का कारण बताओ-- भारतवर्ष में कपास के बच्र छगभग चार हजार वध से बनते हैं उठ समय यहाँ महीन और सुंदर वस्त्र भी। बनते थे पूव काल के लेखकों ने ल्ल्ा है कि भारतीय कपड़ा सस्ता तैयार होता है और उसकी छपाई तथा रंगाई भी सनमोहक होती है। जब से वैज्ञानिकों ने बिनोंले फो उपयोगी पदार्थ सिद्ध फर दिया, तचसे अमेरिका में कपास ही के समान उसका आदर होने छगा मिलो का आविष्कार करके वैज्ञानिकों ने

छार्खो मजदूर्रीं को काम दिया है। चर्खों और करों द्वारा कपड़ा बुनने- गड़ा भारदवष साजकल बच्र व्यवसाय में पिछड़ा हुआ है

१--नीचे लिखे बाव

( २०६ .) पाचत्रा पाठ शब्दों का लोप ३५६---फरमी-कभी वाक्य में संक्षेप अथवा गोरव छाने के छिए

कुछ ऐसे शब्द छोड़ दिए जाते हैं जो वाक्य के अथ से सहज ही जाने

जा सफते हैं

(क) उद्देश्य का लोप--सुनते हैं कि आज जायेंगे | वहाँ मत जाना | हा, जाता हूँ जैसे बनेगा वैसे काम किया जायगा सुना गया है कि वे आवेगे | है

(ख) कम का लोप--लड़का पढता है। बहरा सुन नहीं सकता | तुम्हारी बहिन सो रही है | गरीब स्त्रियों पीसती हैं। लड़की अब देख

सकती है। रु (ग) क्रिया का छोप--दूर के ढोछ सुहावने मै वहाँ जाने का नहीं

' महाराज की जय आप को प्रणाम विवाद करने से क्या छाम ?

(घ) विशेष्य का लोप--भले भलाई करते हैं। हमारी और उनकी अच्छी निभी ) विद्वानो का आदर सबंत्र होता है। सुधरी भिगरी वेग ही बिंगरी फिर सुधरे | बहुत गई थोड़ी रही नारायण अब चेत

(8) समुच्चय-बोधक का लोप--नोंकर बोला, महाराज पुरोहित जी आए हैं। क्‍या जान किसी के मन में क्या भरा है। आप बुरा मानें तो एक बात कहूँ मेरे मक्तो पर भीर पड़ी है, इस समय चलकर उनकी चिंता

मिटा देना चाहिए | तॉँत्रा खदान से निकलता है, इसका रग छाल होता है _अभ्यास | २--नीचे छिखे वाक्यो में छ्॒त शब्दो को प्रकट करो |

पुत्र, वहाँ जाना में तेरी एक भी सुनूँगा कोई कोई जंठत पानी में तैरते हैं; जैसे, मछलियों देखते हैं कि युद्ध दिन-दिन बढता जाता है | उसने कहा, में फकछ जाऊँगा मैने बहुत दुख भोगा है, अब मुझे शरण दो मेरी भी तो कुछ मानो , आप यहाँ कैसे ? कहाँ राजा भोज, कहाँ गगा तेली रहिमन, अच वे तरु कहाँ, जिनकी छाॉह गंभीर 'हसारी उनकी नहीं बनती

25५

सातवी अध्याय वादय पृथकरण पहला पाठ

ताक उषताकुस शोर वाक्यांश

महाराज दशरघ जनक का निमंत्रण पाकर बहुत प्रसन्न हुए

चंद्रगुत्त ऋहुत बुद्धिमान राजा था |

दवाराम राजा का एक पुराना नौकर था

गरमी के दिलों में समुझ का बहुत झा पानी भाप बन जाता है।

उपमन्यु बड़े यत्न से गुरु की गोवे चराने छगा |

३६०-उपर लिखा प्रत्येक शब्द-समूह एक-एक पूरा विचार प्रकट करता है| शब्दों के ऐंस समूह को जिससे पूरा विचार प्रकट द्ोता है, वाक्य कहते हैं

न्‍अकपनस+++»नकाथ + अवननननननन- ॥अम्यााारजका

ब्

गुरु बसिष्ठ ले राजा से कहा कि अब कोई चिंता की बात नहीं है जिन सीर्पो में मोती उसन्न होते हैं, वे सम्रुद्र की तलही में रहती हैं।

जैसे ही शेव्या ने घोती फाइकर देनी चाही; त्यों साक्षात्‌ भगवान्‌ प्रकट हो गए

हरी

जब शरीर प्राणन्वायु घारण करने में असमर्थ हो जाता है, तब मनुष्य मर जाता है।

राजा ने ऋषि का बड़े आदर से सभा में बुछाया और उन्हे आसन पर बेठाया |

है

३९१--ऊपर छिखे उदाइरणो भें एक पूरा विचार प्रकट करने के लिए. दो-दो वाक्य आए हैं; क्योकि एक वाक्य का अर्थ दूसरे पर

( २११ )

अवलंबित है | जत्र फोईं पूरा विचार एक से अधिक वाक़्यों से प्रकट होता है तब उनमें से प्रत्येक को उपवाकय कहते हैं। उपवाक्य एक प्रकार के वाक्य ही हैं

ल्‍्ह

आग छग जाने के कारण घर का घर जल गया |

सच ब्रोलना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है

वह दो महीने बाद छोटेगा |

मोहन कमी कभी अवश्य आवेगा | दूर से आया हुआ एक यात्री पेड़ के नीचे बेठा है।

३६२--ऊपर लिखे' वाक्यों में प्रत्येक रेखांकित शब्द-समूह से एक

' पूरा विचार प्रकट नहीं होता; किंतु एक-एक मावना प्रकट होती है।

शब्दो के ऐसे समूह को जिससे पूरी बात नहीं जानी जाती, किंतु एक भावना सूचित होती हे, वाक्यांश कहते हैं

अभ्यास

नीचे लिखे वाक्यो में वाक्य, उपवाक्य और वाक्यांश बताओ-- यदि मनुष्य पश्ु-पक्षियों की बोली समझ ले तो उसका बहुत सा . फाम निकले | प्राचीन काल में विद्वानो ने इस रहस्य का मेद जान लिया था | नवीन सम्यता तो अपनी विद्या के अभिमान से इन बातों को शठ ही समझती है। जिस वस्तु को वह सुगमता से नहीं प्राप्त कर सकती उसे मिथ्या ढकोसला बताती दे | जीव-जंतु विद्या पर इस समय विद्वानों का बहुत ध्यान है | उसकी उन्नति' भी बहुत हुई है; परंतु वह पशु- पक्षियो की बोछी समझने की विद्या के बिना अधूरी है। |

_अ्यामरलद्कड तप्जानतआपकापा' ड्रकाधामाकरफ,

९५१२ )

दूसर! प6 'साथारश वाक्य

३६३-- वाक्य के मुख्य दो अवयव होते हैं--

( भ) जिस वस्तु के विषय में कुछ कहा जाता है उसे सूचित करनेवालो को उद्देश्य कहते है; जैसे आत्मा अमर है। घोड़ा दोड़ रहा है रामने रावण को मारा इन वाक्यों में “जात्मा? “घोड़ा? और “रस ने” उद्देश्य है। क्योकि इनके विषय में कुछ कहा गया है अयात्‌ विधान किया गया है।

(आ ) उद्देश्य के विपय में जो विधान किया जाता दे उसे सूचित करने वाले शब्दों को विधेय कहते है; जैसे ऊपर छिखे वाक्यों में ५अआत्मा? “घोड़ा? “रामने? इन उद्देश्यों के विषय में ऋ्रशः “अमर है? “दौड़ रहा है” “रावण को मारा”, ये विधान किए गए, हैं, इसलिए इन्हे विधेय कहते हैं |

३६४-- जिस वाक्य में एक उद्देश्य ओर एक विधेय रहता है उसे साधारण वाक्य कहते हैं; जैसे आज बहुत पानी गिरा। बिजली चम- कती है राजा ने उसी समय आने की आज्ञा दी |

३६४०-साधारण वाक्य सें एक संज्ञा उद्देश्य और एक क्रिया

विधेय होती हैँ ओर इन्हे क्रश; साधारण उद्देश्य और साधारण विधेय कहते हैं

३६६--साधारण उद्देश्य में संशा अथवा संज्ञा के समान उपयोग में भानेवाले दूसरे शब्द भाते हैं; जैसे,

(भर ) संज्ञा-हवा चलकर | छड़का आवेगा [ राम जाता है।

( ) सर्वेनाम--तुम पढ़ते थे वे जावेंगे इस बेठे हैं।

(३ ) विशेषण--विद्वान्‌ सच जगह पूजा जाता है। मरता क्या नहीं करता |

क्र

( २१३ )

) संज्ञा वाक्‍्यांश--वहाँ जाना ठीक नहीं। झूठ बोछना - पाप है | खेत का खेत सूख गया. |

३६७--उद्देश्य बहुधा कर्चा कारक में रहता है; पर कभी-कभी वह दुसरे कारकों में आता है; जैसे

(१ ) प्रधान कर्ता कारक--लड़का दोड़ता है। ज््री कपढ़ा सीती

है। बंदर पेड़ पर चढ़ रहे थे ' (२) अप्रधान. कर्ता फारक--मैंने छड़के को बुलाया | सिपाही ने

चोर को पकड़ा | हमने अभी नहाया है।

(३ ) अप्रत्यय कम कारक--चिट्ठी छिखी जायगी। दवा बनाई गई पुस्तक छापी जाती है

(४ ) करण कारक--( भाववाच्य में छड़के से चछा नहीं जाता मुझसे बोलते नहीं बनता | रोगी से अब बेठा जाता है।

(५ ) संप्रदान कारक--आपकफो ऐसा कहना चाहिए था | मुझे वहाँ जाना था | राजा को हुक्म देते बना

शे६८--वाक्य के साधारण उद्देश्य मे विशेषणादि जोड़कर उसका विस्तार करते हैं। उद्देश्य की संज्ञा का अर्थ नीचे लिखे शब्दों के द्वारा बढ़ाया जा सकता है--

(क ) विशेषण--अच्छा छड़का माता-पिता की आज्ञा मानता है | लाखों आदमी हैजे से मर नाते हैं। भले मनुष्य कभी अशिष्ट व्यवहार नहीं करते

(ख ) संबंध कारक--दर्शको की मीड़ बढ़ गई। भोजन की सब चीजे छाईं गईं | जहाज पर के यात्रियों ने आनंद मनाया

( ग) समानाधिकरण शब्द--परमहंस कृष्णस्वामी काशी गए . उनके पिता जयसिंद यह बात नहीं चाहते थे | महाभारत युद्ध में द।रका

के राजा श्रीकृष्ण सम्मिलित हुए ये | (घ ) विशेषण वाक्याश--दिन का थका हुआ मनुष्य रात फो ' खूब सोया काम सीखा हुआ नौकर कठिनाई से मिलेगा आकाश में फिरता हुआ चंद्रमा राहु से ग्रसा जाता है |

( २१४ 2

॥६६*-्सापारणत: विय में काल प८5 समाविका जया ग्त्ती श्र और वह किसी भी वाक्य, अथे, फाछ, पुदुव, लिंग, वचन आर प्रयोग में मा सकती है। इसमें संयुक्त किया का भी समावेम द्ोता उदा०-लड़का जाता है | पर फेंका जायगा। धंरे-चीरे उजाला होने क्षगा |

( के ) सावारणतः अकसक क्रियाएं जगना अथ स्वर्य प्रकट करता हैँ, परतु अपर्ण अकमक क्रियार्जों का शब पशा करने के लिये उनके साथ उद्देश्य-पर्ति छगाने की आवश्यकता द्ोवी दे | उ्रध्यन्यति में संज्ञा विशषण झथवा जोर कोइ गुणवाचक शब्द आता है; जंध बर आादमा पागछ है | उसका नोकर चोर निकला वह प॒स्तद राम की थी

( ख्‌ ) सकमछ किया का अर्थ कम के बिना पूरा महदीं दोता और हद्विकमक क्रियाओं में दो कमर आाते ई, जैसे, पै्यी पधचिले बनाते दें बह आदमी मुझे बुढाता है। राजा ने प्राह्मग को दान दिया |

( गे ) अपूण सकमक क्रियाओं के फमबाच्य के रूप भी अपर्ण दोते हैं, जेसे, वह लिपाही-सरदार बन गया | ऐसा जादमी चाछ्ायफ समझा जाता दे | उनका कहना झूठ पाया गया |

( ) जब आधपूर्ण क्रियाएँ अपना अर्थ भाप दी प्रकट करतो ईं, तन वे अकेली ही विधेय होती हूँ, जेंस, टंश्वर हैं। चबेरा हुआ चंद्रमा दिखाता है | ४७०--करम में उद्देश्य के समान संज्ञा अथवा संज्ञा के समान उप-

थाग मे आनंबाला [ई' दूसरा शब्द आता अमन

(के » संजश्ञा--माली फूछ तोड़ता है। सोदागर ने घोड़े वेचे। छद्दफा पुस्तक पढ़ता है

( ) सवंनाम--बह जादमी मुझे बुछाता है मैने उसको नहीं देखा | उसने यह भेजा है |

( ) विशेषण--दीनों को मत सताओो। उसने ड्रबते फो बचाया तुम जनायों को कष्ट से बचाओ |

( २१५ )

(घ ) संज्ञा वाक्यांश--वह खेत नापना सीखता है। में आपका इस तरह बातें बनाना नहीं सुझूँगा | बकरियो ने खेत का खेत चर लिया |

३७१--गोंण कर्म मे भी ऊपर लिखे शब्द पाए जाते हैं; जैसे,

(क ) संज्ञा--यज्ञदच देवदत्त को व्याकरण पढ़ाता है| ब्राह्मण ने राजा को कथा सुनाई क्‍ (ख ) सर्वनाम--उसको यह कपड़ा पहिनाओो। खुझे किसी ने . सलाह नहीं दी

(ग) विशेषण--वे भूखे को भोजन ओर प्यासे को पानी देते हैं।

( ) संज्ञा वोक्‍्यांश-- उसने मेरे कहने को मान नहीं दिया। मैं गॉव के गाव को सदाचार, सिखाता हूँ

३७२--फर्मवाच्य में द्विकमंक क्रियाओं का मुख्य कम उद्देश्य हो जाता है और वह फर्चाकारक में आता है; परंतु गौँण कर्म ज्यो का त्यो बना रहता है; जैते ब्राह्मण को दान दिया गया। मुझको वह बात बताई जायगी | गाय को घास खिलायी जाती है

३७३--अपूर्ण सकमक क्रियाओं के कतृ वाच्य मे कर्म के साथ क्म-पूर्ति आती है; जैसे ईश्वर राई को पत करता है। मैने मिट्टी को ' सोना बनाया | तूने सारे धन को मिट्टी में मिछा दिया

३७४--सजातीय अकमंक क्रियाओं के साथ उन्हीं की धातु से बना सजातीय कर्म जाता है; जेसे, वह अच्छी चाल्न चलता है। योद्धा पिंह की बेठक बैठा लड़का दौड़ दौड़ता है |

३७५--उद्देश्य के समान कर्म और पूर्ति का भी विस्तार होता है | यहाँ मुख्य कर्म के विस्तारक शब्दों की सूची दी जाती है--

(क ) विशेषण--मैने एक घड़ी मोल छी | तुम बुरी बातें छोड़ दो वह उड़ती हुईं चिड़िया पहचानता है। '

(ख ) समानाधिकरण शब्द--आध सेर घी छाओ |. में अपने मित्र गोपाल को बुढाता हूँ | राम ने छका के राजा, रावण को मारा |

( ११६ )

(ग) संबंध कारक--उसने अपना हाथ बढ़ाया | जान का पाठ पढ़ लो | दाकिम ने गवि के मुखिया की बुलाया |

( ) विशेषण वाक्यांश--मैने चॉस पर चढ़ते हुए नर्टे की देखा लोग हरिहचंद्र की बचाई हुई जिताबें प्रेम से पढ़ते हैं

३७६-- उद्देश्य की संज्ञा के समान विधेव की क्रिया का विध्तार होता है। विधेय की क्रिया क्रियाविशेषण अथवा उसके समान उपयोग में आनेवाले शब्दों के द्वारा बढाई जाती है

३७७--विवेय की क्रिया का विस्तार आागे छिखे शब्दों से होता है|

(क ) उंज्ञा या संशा-वाक्याश--एक उसय बडा अकाछ पड़ा। उसने कई वर्ष राज्य किया | नो दिन चले बढ़ाई कोस |

( ) क्रिया विशेषण के समान उपयोग में झानेवाले विशेषण-- वह अच्छा छिखता है। सखी मधुर गाती है | में स्वस्थ बैठा हूँ

( ) विशेष्य के परे आनेवाके विशेषण--स्त्रियों उदास बेठी थीं | उसका छड़का भछा चंगा खड़ा है कुचा भोकता हुआ भागा |

(घ ) पूर्ण तथा अपूर्ण क्रिवाध्योतक कृदंत--कुत्ता पूछ हिलाते हुए आया | स्त्री बकते-बकते चली गई | लड़का बेठे-बेंठे उकता गया

( ) पृव कालिक कझदंत--वह उठकर भागा तुम दौड़कर चलते ह। | वे नहाकर छोंट जाए | |

( ) तत्काल्याधक कृदंत--उसने जाते ही उपद्रव मचाया स्ली गिरते ही मर गई | वह छेटते ही सो गया

( ) स्तंत्र वाक्यांश--इससे थकावढ्ः दूर होकर अच्छी नींद आती है | इतनी रात गए क्यो आए, ? उनको गए एक खाल हो गया |

(ज ) क्रिया-विशेषण या क्रिया विशेषण वाक्यांश-गाड़ी जल्दी चछती है| चोर कहीं कहीं छिपा है| पुस्तक हाथो हाथ बिक-गई |

( ) संबंध सूचकांत शब्द-चिड़िया धोती समेत उड़ गई। वह भूख के मारे मर गया | मैं उनके यहाँ रहता हैँ |

(६ २१७ )

(2 ) कर्ता, कर्म और संबंध कारकों को छोड शेष कारक--नमैंने

" चाकूसे फल फाटा | वह नहाने को गया है। में अपने किए पर पृछताता हैँ

(३७८ )--अथ के अनुसार विधेयवर्धक के ( क्रियान्‍विशेषण के समान नीचे छिखे भेद होते हैं--- (१) काल्वाचक--मैं कल भाया। वह दो महीने से बीमार रहा |,

' ' उसने बार-बार यह कहा

स्थानवाचक--पंजाब में हाथियों फा बन नहीं है। प्रयाग गंगा के कित्तारे बसा है। गाड़ी बंचई फो गई (३) रीतवाचक--मोटी छकड़ी चढ़ा बोझ अच्छी तरह सँभालती

: है। घोड़ा छँगढ़ाता हुआ भागा | सिपाही ने तलवार से चौते को मारा |

(४) परिमाणवाचक--में दस मीरू चछा। यह छड़का तुम्हारे बराबर काम नहीं कर सकता धन से विद्या श्रेष्ठ है सूचना--नहीं (न मत) को विधेय-विस्तारक्क मान कर साधारण विधेय का एक अंग सानना उचित है | ' (+) फार्य-फारण-वाचक--तुम्हारे भाने से मेरा फाम सफल होगा।

' पीने को पानी छाओ | शक्कर से मिठाई बनती है।

साधारण वाक्य के प्रथक्करण के कुछ उदाहरण-- (१ ) वह आदमी पागल हो गया ( ) इसमें वह वेचारा क्या कर सकता था। ' (३ ) एक सेर घी बस होगा (४ ) खेत का खेत सूख गया

. » ) यहाँ भाये मुझे दो वर्ष हो गए |

'(६ ) राजमंदिर से बीस फुट की दूरी पर चारो तरफ दो फुट ऊँची दीवार है (७ ) दुर्गघ के मारे वहाँ बैठा नहीं जाता या ( ) यह अपमान किससे सहाय जायगा क्‍ (६) नेपालवाले बहुत दिनों से अपना राज्य बढ़ाते चले आते-थे | १५

4

साधारण उद्देश्य। साधारण विधेय पूरक 2 णि हे कप / 5 5 | ग्न्ल्ह | विधेयक-विस्तारक ह। उद्देश्य विदक। विंधंव [कस पू्त [ | विककि, 3203 0 0 68 (१) | आदर्सी | वह | हो गया | पागल 9 (२) बह विचाराकिर सकता थाक्या[ दसमें ( स्थान ) (३) घी एकसेर होगा

छः नत्नस ]

(४) | खेत छा खेत | सूख गया [० | (५)| वर्ष दो | होगए |०| [मुझे यहाँ आए (काल) ६९)| दीवार दिफुद|ं हैं (5 ? | राजमंदिर से, , .पर ऊँची स्थान ) चारो तरफ ( स्थान ) बिद्प +्+ श0 गन कप (७) बठना (छत्त)। | चेठा नहीं |०| दुगंध के मा (क्रियांतग जाता था ( कारण ) वहाँ अथवा किसी ( स्थान ) से छप्त)

(८)। अपसान | यह |सहा जायगा | (९) | नेपाछ्वाले | |चलेआतेये [० अपना राज्य

| बढ़ाते (रीति) .. अभ्यास

१०-मीचे लिखे खाधारण वाक्यो का प्रथक्वरण करो---

सभापति ने अपना भाषण पढ़ा सीढ़ी के सहारे में जहाज पर जा पहुँचा। मुझे ये दान ब्राह्मण को देने हैँ उसका कहना झठ समझा गया | विद्वान को सदा घर्म की चिता करनी चाहिये। मीरफासिम ने मुँगेर को अपने राजवानी बनाया धूप कड़ी होने के कारण वे पेड़ की छाया में ठहर गए: | गाय के चमडे के जूते बनाए जाते हैं। हिंदुस्तान के डच्तर में हिमालय पव॑त है मुझसे चला नहीं जाता | वह साधु चोर निकला | तुम इतनो रात बीते क्‍यों जाए तुम्हारा मित्र गोपाल कहाँ रहता है ? अहल्‍्या बाई ने गंगाधर को दीवान बनाया | घी रुपये का एक सेर मिलता है।

प्र

(२१६ )

तीसरा पाठ संयुक्त-वाकय में आगे बढ़ गया और वह पीछे रह गया मेरा भाई वहाँ जावेगा या में ही उसके पास जाऊंगा | ये लोग नए बसनेवालो से सदेव लड़ा करते-थे, परंतु धीरे-धीरे . जंगल पहाड़ों में भगा दिए गए |

शाहजहों इस वेगम को बहुत चाहता था; इसलिये उसे इस के बनाने फी बड़ी रुचि हुई।

२७९--ऊपर छिखे दूसरे वाक्यों में से प्रत्येक में दो मुख्य उप*« वाक्य सिले हुए हैं यदि हम चाहे तो इन मुख्य उपवाक्यों का उपयोग अल्म-भमलग भी कर सकते हैं; जैसे, में आगे बढ़ गया। वह पीछे रह गया | जिस वाक्य में दो या अधिक मुख्य उपवाक्य मिले रहते हैं, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं| संयुक्त वाक्यो के उपवाक्य एक दूसरे के समाना।धकरण होते हैं |

३८०--संयुक्त वाक्यों के समानाधिकरण उपवाक्यों में चार प्रकार “का संबंध पाया जाता है--सयोजक, विभाजकू; विरोधदशक और परि“ णाम बोघक यह संत्रंघ समानाधिकरण समुच्यत्रोघक अव्ययों के द्वारा सूचित होता है; जेते--.

( ) संयोजक-- मू गा समुद्र में होता है ओर वहाँ छत्ता बॉघकर बढ़ता रहता है। विद्या से ज्ञान बढ़ता है, विचारशक्ति प्राप्त होती दे ओर मान मिलता है। पेड़ के जीवन का आधार केवल पानी ही नहीं 'है; वरन्‌ कई पदार्थ भी हैं

( ) विभाजक--उन्हे नींद आती थी; भूख-प्यास लगती थी या तो आप स्वतः माइए या अपने ,नोकर को भेजिए अब तू या छूट ही जायगा, नहीं तो कुत्तो-गिद्धों का भक्ष्य बनेगा

(३ ) विरोधदर्शक--कामनाओं के प्रबल हो जाने से आदमी

जे

८72

( २१५० )

दराचार नहीं कस्ते; किंठु अंतःकरण के निबंछ हो जाने से बह वेसा करते द् मुरछा दूर हो जाने पर राजा रानी को समझाने छगे, पर उसने राजा के कथन पर कुछ मी ध्यान दिया | मेंने उसे बहुत समझाया; परंतु वह अपनी हृठ पर अड़ा रहा हि

(४ ) परिणामबोधक--मुझे उन छोगो का भेद लेना था; सो में वहाँ ठहृरकर उनकी बाते सुनने छगा | आप से बहुत समय से भेंट नहीं हुईं थी, इसलिये में यहाँ आया हूँ उसने मेरी बात नहीं मानी थी; इसढछिये आज उसे ये आपत्तियों सहनी पड़ रही हैं

४३८१--कममानकरभी सम्मानाधिकरण उपवाक्य बिना समुद्ययन्चो घक के ही जोड़ दिए जाते हैं; जैसे, आप सब प्रकार से समथ हैं; जाप इस फाम को कर सकते हैं; पानी वरसने की संभावना है; बादल घिरे हुए. हैं; मेरे भक्तों पर भीर पड़ी है; इस समय चलकर उनकी जिंता मिदा देनी चाहिए,

संयुक्त वाक्य के उपवाक्य-पथक्षरण का उदाहरण

मैंने इस कार्य में बहुधा उद्योग किया है; इसलिये मुझे सफछता की

पूरी आाश्ा है; परंतु मनुष्य के भाग्य का निणय ईश्वर के हाथ में रहता है।

पर..." सका धपकाह-क एटा अर २2 कप अक 34.

उपवाक्य प्रकार संबंध संयोजक शढ (क) मेने इस कारय में | सुख्य

बहुत उद्योग उपवाक्य

किया है।

(ख) इसलिए. मुझे | सुख्य सफलता की पूरी | उपवाक्य थाशा है|

(ग) परंतु मनुष्य के | मुख्य भाग्य का निणय | उपवाक्य ईश्वर के हाथ में रहता है।

पड

(क) का समाना- घिकरण परिणास बोघक इसलिए, (ख) का समानाधि- करण, विरोध दर्शक पर॑ठु

( २५१ )

अभ्यास मु १--नीचे लिखे संयुक्त वाक्‍्यो का उपवाक्य-पृथयक्वरण करों-- दो एक दिन जाते हुए दासी ने उसको देखा था, किंतु संध्या के पीछे भाता था; इससे वह उसे पहचान सकी | उस समय हवा बडे जोर से चलती थी जोर पानी भी वेग से बरसता था; इसलिए ऐसे समय मेरा यहाँ आना संभव था | में बढ़ी देर तक राह देखता रहा; पर 'शाम जाया और मोहन | जंगल में मुझे प्यास छगी; में पानी की खोज में यहाँ वहाँ फिरता रहा, पर सारे प्रयत्न निष्फल रहे ओर मुझे कोई जलाशय मिछा | महानद ने इसको बहुत सोचा; परंतु उराकी बैंद्वि ने कुछ काम किया | रामचंद्र की आज्ञा पाकर अंगद रावण फी सभा में गए और सीता फो छोटा देने के लिए उन्होंने रावण को बहुत समझाया | तू अपनी भिक्षा का सारा अन्न मुझे छाकर देता है और फिर अपने लिए मॉगने नहीं जाता, तो भी तू मोटा ही होता जाता है | , ईंस काम फो में पूरा ही करूँगा अयवा शरीर त्याग दूँगा। वह बूड़ा हो गया पर उसके केश काले ही हैं | इस अवसर पर या तो वे मेरे यहाँ भावेंगे अथवा मुझकों उनके यहाँ जाना पड़ेगा |

चौथा पाठ मिश्रवाक्य तुमकी यह कब योग्य डे कि बन सें बसो जो मनुष्य घनवान्‌ होता है, उसे सभी चाहते हैं। जन्न सवेरा हुआ, तब हम लोग बाहर गए | यदि आप यहाँ भावेंगे तो में आप की वह उपाय बताऊँगा जिससे

मनुष्य आरोग्य रह सकता है। ' ३८२०-ऊपर छिखे वाक्यों में प्रत्येक में दो वा दो से अधिक

( श्र 2

उपवाकप मिल्ले हुए हैं, जिनमें से रेखांकित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य और शेष आशित उपवाक्य हैं। जिस वाक्य में एक मुख्य उपवाक्य और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य रहते है, उसे मिश्र वाक्य कहते हैं

१८३--मिश्रवाक्य के जाश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते है---

संज्ञा उपवाक्य, विशेषण और क्रिया विशेषण उपवाक्य |

( ) सुख्य उपवाय्य की किसी संज्ञा या सवनाम के बदले जो उपवाक्य आता है, उसे संज्ञा उपवाकय कहते हैं; जैसे, तुमको यह कब योग्य दे; कि बन मे बसों इस वाक्य में 'चन में बसो? आभित टपवाक्य मुख्य उपवाक्य के “यह?” सबनाम के बदले में जाया दे |

(ख ) मुख्य उपवाक्य की किसी संज्ञा या स्वंनाम को विशेषता. बताने वाला उपवाक्य विशेषण उपवाक्य कहलाता हे; जेसे जो मनुष्य बनवानू्‌ होता है, उसे उभी चाहते हैं| इस वाक्य में “जो मनुष्य घन- वानू्‌ होता है” यह जाश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य के “उसे? सर्वनाम की विशेषता बतछाता है |

(ग ) क्रिया विशेषण उपवाक्य सुख्य उपयाक्य की क्रिया की विशेषता बतछाता हे जैसे, जब सवेरा हुआ तब हम छोग बाहर गए इस मिश्र व्क्य में जब सवेरा हुआ? क्रिया विशेषण उपवाक्य मुख्य , उपवाक्य की “गए? क्रिया की विशेषता बतछाता है | |

शे८४--शुक मिश्र वाक्य में दो या अधिक समानाधिकरण जाश्रित उपवाक्य नी भा सकते हैं। उदा०--हम चाहते हैं कि लड़के निरोग रहे और “लड़के निरोग रहें? और “विद्वान्‌ हो” ये दो आश्रित उप- वाक्य हैं। ये दोनों उपवाक्य “चाहते हैं? क्रिया के कर्म हैं इसलिये दोनो समानाधिकरण संज्ञान्ठपवाक्य हैं |

(क ) संज्ञा उपवाक्य . *८5“-संज्ञा-ठपवाक्य मुख्य उपवाक्य के संबंध से बहुधा नीचे ढिखे फिसी एक स्थान में जाता है-..

२९३ )

(भ ) उद्देश्य--इससे जान पड़ता है “गकि बुरी संगति का फूल बुरा होता है |” मालूम होता है “कि हिंदू छोग भी इसी घाटी से होकर. हिंदुस्तान में आए थे ।”?

( भा ) कर्म--वह जानती भी नहीं “कि धर्म किसे कहते हैं ।”मैने सुना है ५कि आपके देश में अच्छा राज-पबंध है ।”

"(३ ) पूर्ति-मेरा विचार है “कि हिंदी छा एक साप्ताहिक पत्र निकालूँ !? उसकी इच्छा है “पके आपको मारकर दिलीपसिह को गद्दी पर बिठावें ।? हु

-( ३.) समानाधिकरण शब्द--इसका फछ यह होता है “कि इनकी तादाद अधिक होने पाती ।?? यह विश्वास दिन पर दिन बढ़ता जाता है “कि मरे हुए मनुष्य इस संसार में लौठकर जाते हैं |”? '

रे८६-- शा-उपवाक्य बहुघा स्वरूप-्वाचक समुच्य-बोधक “कि”? या “जो” से आरंभ होता है; जैसे वह कहता है “कि में कछ जाऊँगा।” _थह्दी कारण है “जो धर्म ही उनकी समझ में नहीं आता |?

( ) विशेषण उपवाक्य ३८७--विशेषण-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की किसी संज्ञा की विशे- षता बतलाता है; इसलिये वाक्य में जिन-जिन स्थानों में संज्ञा आती है, उन्हीं स्थानों में उसके साथ विशेषण उपवाक्य लगाया जा सकता है,जैसे, . (अ ) उद्देब्य के साथ--एक बड़ा बुद्धिमान डाक्टर था जो राज- नीति के तत्व को अच्छी,तरह समझता था जो सोया उसने खोया |

(भा ) कर्म के साथ--वहाॉँ जो कुछ देखने योग्य था; मेंने सब देख लिया | वह ऐसी बातें कहता है, जिनसे सबको बुरा छगता है)

(३ ) पूर्ति के साथ--वढह फोन सा मनुष्य है जिसने महांप्रतापी राजा सोज का नास सुना हो। राजा का घातक एक सिपाही निकला जिसने एक समय उसके प्राण बचाए थे

(ई ) विधेय-विस्तार के साथ--आप उस अपकीति पर ध्यान

( १२८ )

॥लऐ.

नहीं देते, जो बाल-हत्या के कारण सारे संसार में होती उन्होंने जो कुछ दिया उसी से मुझे परम संतोष है | १८८--विशेषण-उपवाक्य संबंध वाचक सवनाम “जो” से जारंभ होता है ओर मुख्य वाक्य में उसका नित्य-संबंधी “सो”?, “वह”? जाता | कमी-कमी जो और सो से बने हुए “जेसा?? “जितना? जोर “वैसा”? ४उतना” सर्वनाम भी जाते हैं| इनमें पहले दो विशेषण-उपवाक्य में और पिछले दो मुख्य उपवाक्य में रहते हैं। उदा०*-जिसकी लाठी उसकी भेंठ | जेसा देश, वेसा भेष

( ) क्रियाविशेषण-उपवाक्य ३८६--क्रियाविशेषण-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की क्रिया की विशे- पता बतछाता है | जिस प्रकार क्रियाविशेषण विधेय को बढ़ाने में उसका काल, स्थान, रीति, परिमाण, कारक और फल प्रकाशित करता है, उसी प्रकार क्रियाविशेषण-उपवाक्य सुख्य उपवाक्य के विधेय का अथ इन्हीं अवस्थाओं में बढ़ाता है

२३९०---अथ के अनुसार क्रिया-विशेषणनठपवाक्य पॉँच प्रकार के विई--( ) काब्वाचक (२) स्थानवाचक (३) रीतिवाचक ( ) परिमाणवाचक और (५४ ) कार्य कारण वाचक | ३६ १--काल्वाचक क्रियाविशेषण उपवाक्य से निश्चित काल,काला- त्थित ओर संयोग के पुनरभाव का अथ सूचित होता है, जेसे, “जब किसान फंदा खोलने की जावे??, तब तुम साँस रोककर सु्द के समान पड़े लाना | “जन्न जाँघी बड़े जोर से चछ रही थी??, तब वह एक टाप पर बाग पहुँचा | फाब्याचकन्क्रियाविशेषण-उपवाक्य जब, ज्योह्दी, जबन्जब, जब्न-तक ओर बत्र कभी स्बंधवाचक क्रियाविशेषणों से आरंभ होते हैं और मुख्य उपवाक्य में उनके नित्य-संचधी तब, त्वोही, तब-तब जाते हैं। २९२०-स्थानवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य के

( २२५ )

संबंध से स्थिति और गति सूचित करता है, जैसे, “जहाँ अभी समुद्र है” वहाँ किसी समय जंगलछ था ये छोग भी वहीं से आए, “जहों से आर्य लोग आए थे ।??

स्थानवाचक क्रिया-विशेषण-उपवाक्य में जहाँ, जहाँ से, जिधर आते हैं ओर मुख्य उपवाक्य में उनके नित्य-संबंधी तहाँ ( वहाँ ), तहों से ओर उधर जाते हैं।

३६३--रीतिवाचक क्रियाविशेषण से समता ओर विषमता का अथ पाया जाता है, जैसे दोनों वीर ऐसे टूटे “जैसे हाथियों के यूथ पर सिंह टूटे ।? “जैसे आप बोलते हूँ? वैसे में नहीं बोल सकता

रीतिवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य जैसे, ज्यो ( कविता में ) और मानों से आरंभ होते हैं ओर मुख्य उपवाक्य में उनके नित्य-संबंधी वैसे ( ऐसे ) कैसे ओर क्यों जाते हैं।

३६४--परिसाणवाचक क्रियाविशेषण - उपवाक्य से अधिकता, तुल्यता, न्यूनता, अनुपात आदि का बोध होता है; जैसे, “ज्यो-ज्यो भीजे कामरी त्यो-त्यों मारी होय ।” “जैसे-जैसे आमदनी बढती जाती है वैसे- वैसे खच भी बढ जाता है।”

परिमाणवाचक क्रियाविशेषण उपवाक्य में ज्यो ज्यो, जैसे-जैसे, जहाँ तक, जिंतना आते हैं ओर सुख्य उपवाक्य में उनके नित्य-भरबंधी वैसे- 'बैसे ( तैसे-तैसे ), त्यो-त्यों, वहाँ तक, उतना रहते हैं

३२६५०-कभी-फभी संबंधवाचफ क्रिया-विशेषणों के बदले संबंध-वाचकफ विशेषण ओर सशझ्ा से बने हुए वाक्यांध ओर नित्य-संबंधी शब्दों के बदले निश्रयवाचकफ विशेषण ओर संशा से बने हुए वाक्यांश आते हैं। ऐसी अवस्था में आश्रित उपवाक्यों फो विशेषण उपवाक्य मानना उचित हे क्योंकि उनमें संश्ा की प्रधानता रहती है; जेसे, “जिस कार श्रीकृष्ण इस्तिनापुर को चले??, उस समय की शोभा कुछ बरनी -नहीं जाती | ; , “जिस जगह से वह. आता है? उसी जगह लौट जाता है। ३६ ६--फार्यकारण वाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य से' हेठु, सकेत,

२२६ )

विरोध, कार्य का परिणाम का अथ पाया जाता हें; जैसे, हम उन्हें: सुख देंगे “क्योंकि उन्होंने हमारे लिए. बड़ा दुख सद्दा है।? “जो वह प्रसंग चलता”, तो मैं भी सुनता | इस बात की चर्चा इमने इसलिये की हे ४कि उनकी शंका दर हो जाय |! क्षायकारण-बाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य व्यधिकरण समुच्य-तरीधककों से आसंम होते है, जो बदुधा जोड़े से आते हैं; उसे-+- आश्रित उपवाक्य में मुख्य उपवाक्य में क्षि

इसलिये; इतना क्योकि | ऐसा, यहाँ तक जो, यदि, अगर तो, तथापि, तो भी

यद्यपि कितु चाहे--केंसा; कितना | | कितना--क्यो |; + तो भी, पर जी, जिससे, ताकि

शिश्र वाक्य के उपवाब्य-पृथक्रण का उदाहरण

लो मनुष्य दीघजीवो हुए हैं उनके जीवन की रहन-सहन से पता लगता डे कि उनका जीवन सश्छ रूप से व्यतीत होता था |

उपवादय प्रकार पंयोजक

शब्द

संबंध

(क) जो मनुष्य दीघ- | विशेषण- लीवी हुए हैं उपवाक्य

*ख? उपवाक्य में “उनके! सवनामकी शेषता बताता है

(ख) उनके जीवन की रहन- मुख्यउपवाक्य सहन से पता छगता

(ग) कि उनका जीवन सरल संज्ञा उपवाक्य| खः ख? उपवाक्य फी रूप से व्यतीत होता था | * कह

पता? संज्ञा का

_पसानाधिकरण

( २२७ )

अभ्यास १-नीचे लिखे मिश्र वाक्यो का उपवाक्य-इथक्करण करो---

जिन स्थानों फा जल वायु स्वास्थ्यकारी हो वहाँ रहना चाहिये यदि तुम भूखे हो तो मत खाभो जिस प्रकार रामचंद्र अपने तीनों भाइयों पर प्यार करते थे उसी प्रकार वे तीनो बड़ा भाई मानकर उन सेवा करते थे यद्यपि वह बड़ा विद्वान था तथापि उसे इस बात का अभिमान था कि मैं विद्वान्‌ हूँ | उसका कुचा जिसे वह बहुत चाहता था अचानक चोकी पर उछल पड़ा जिससे बची गिर गई और सत्र फागज- भस्म हो गए | चाणक्य ने कहा कि जब तक हम राजा के घर का भीतरी हाल जानें तबतक कोई उपाय नहीं सोच सकते जिनका यह सिद्धांत है कि इस णसार संसार में इंश्वर ने हमें परीक्षा के लिये भेजा है उन्हें! यहाँ फोई डर नहीं है। इसबात का पता छगाना कठिन है क्योकि इस विषय में जो दत-कथाएँ प्रचलित हैं वे प्रामाणिक नहीं मानी जा सकतीं नदी के तीर खड़े हो वसुदेव विचारने छगे कि पीछे तो सिह बोलता है ओर जागे अथाह यमुना बह रही है, अत्र क्या फर्रे ?

_.०्सेयन्सातत। 2फ॥४००ाानाम वैधापमादस्‍शतयाओं

पाचवाँ पाठ

मिश्रित वाक्य

१--जो राजा यज्ञ में नहीं आते थे विरोधी समझे जाते थे और उनको यथोचित दंड दिया जाता था

ए--अक्षरों का घुँघल्ापन मिटाने ऊँ (लिये लकड़ी पर तेल मछ दिया जाता था और उनको इस प्रकार खोदते थे कि अक्षर उभरे हुए _ दिखाई देने छगते थे

३--जबे ये मुझसे मिलते हैं. अथवा मेरे पास पत्र भेजते हैं तब में उनके यहाँ जाता हूँ; परंतु वहों अधिक दिन नहीं रहता,।

( शृश्द्ू )

३६७--ऊपर लिखे वाकयों यें दो-दो मुख्य उपवाक्ध ओर उनके साथ एक या अधिक आश्रित उपवाक्य आए हैं, इस प्रकार के वाक्‍्यों को मिश्रित वाक्य कहते हैं। ये वाक्य मिश्र संयुक्त भी फहते हैं, क्योकि इनमें दोनो प्रकार के वाक्य मिले रहते हैं। मिश्रित वाक्य एक से अधिक मुख्य उपवाक्यों और एक अधिक या आश्रित वाक्यों के मेल से बनता है।

अभ्यात्ष

१--नीचे लिखे वाक्यों के भेद छारण-्सहित बताओ---

गोतम बुद्ध के पिता माम शुद्घोदन था। जब मेरी बृद्धावस्था आएगी तब क्या में दुखी होरऊँगा वे प्रायः यही तोचा करते थे कि क्या फोई ऐसा उपाय नहीं है जिसके द्वारा मनुष्य सदा के लिए दुख से छुटकारा पा जाय | संखार में घोड़े का आदर प्राचीन काल से दे, परंतु सबसे श्रे. घोड़ा अरब का ही होता है। परिश्रम फरने में एक तो भोजन का परिपाक खूब होता है, फिर भूख अच्छी तरह रूगती है और नींद भी खूतच्र आती है| छट्ष्मण ने भी बडे भाई के साथ जाने की इच्छा प्रकट की, ओर जब रामचंद्रज्णी ने देखा कि वे किसी प्रकार मानेंगे तत्र उनसे कह दिया कि अपनी माता फी भाज्ञा लेकर चलो इनको विशे- घता यह थी कि इनके प्रति भारतवासियों फा जितना प्रेम था उतना ही सरकार भी इनका झादर करती थी। यदि थे छोग परिश्रम करते और भाग्य ठोककर रह जाते तो यह दिन कहाँ से देखते

_डिक्यालक-्ार 3. अल-दाकपाननणढ “रप्कलनमपत्क

छठों पाठ संकुचित वाक्य

राजा ओर रंक ऐसे देश-सेवक के उठ जाने से पछताते ये | छ; घंटे तक समुद्र की छहरे घरती की मोर और छः घंटों तक उछटी बहती हैं।

( २२९ )

नगर के छोग अपने घरों ओर दूकानों फो सजाने छगे अनुभव से मनुष्य चतुर ओर साहसी हो जाता है

३६८७-जब्र संयुक्त वाक्य के समानाधिकरण उपवाक्यों में एक ही उद्देश्य अथवा एक ही विधेय या दूसरा फोई खंड बार-बार जाता है, तब उस खंड की पुनरुक्ति मिटाने के लिए. उसे एक ही बार छिखकर संयुक्त वाक्य संकुचित कर देते हैं

३९६--संकुचित संयुक्त वाक्य में--«

(१) दो या अधिक उद्देश्य का एक ही विधेय हो सकता है; जैसे मनुष्य ओर कुचे सब जगह पाए. जाते हैं | उन्हें आगे पढ़ने के लिए समय, धन, इच्छा होती है |

(२ ) एक उद्देश्य के दो या अधिक विधेय हो सकते हैं, जैसे गर्मी से पदाय फेलते हैं और द्ु छे सिकुड़ते हैं। हम यहाँ रहेगे या चले , जायेंगे

( ) एक विधेय के दो या अधिक कर्म हो सकते हैं; जेसे, पानी अपने साथ मिट्टी ओर पत्थर बहा ले जाता है। मबदूर सामान और बोझ ढो रहे हैं

(४ ) एक विधेय के दो या अधिक पूर्तियों हो सकती हैं; जेसे, सोना सुंदर और कीमती होता है। छड़का बुद्धिमान और परिश्रमी जान पड़ता है।.,

(५ ) एक विधेय के दो वा अधिक विधेय-विस्तारक हो सकते हैं;

जैसे, दुरात्मा के धमंशास्त्र पढ़ने और वेद का अध्ययन करने से कुछ नहीं होता। . वह ब्राह्मण जति संतुष्ट हो, आशीवाद दे, वहाँ से उठ, राजा भीष्म के पास गया। हे

(६ ) उद्देश्य के कई उद्देश्यवद्धक हो सकते हैं, जेंसे, मेरा और मेरे भाई का विवाह एक ही घर में हुआ है.। बढ़े ओर मजबूत घोड़े

बोझा ढोने के काम में आते हैं। ', , (७ ) एक कर्म अथवा पूर्ति के अनेक ग्रुणवाचक शब्द हो सकते हैं

( २३० )

जैसे, सतपुड़ा, नर्मदा और ताप्ती के पानी को जुदा करता है। घोड़ा 9 हे उपयोगी भीर साहइसी जानवर है | संकुचित वाद्य के प_रथकरण का उदाहरण ; ( १) प्राणात होने पर ही हस गाना जी मर उनकी सेना को दुर्ग

के भीतर प्रवेश करने का अवसर देगे

म्त्िप्े उद्देश्य | विधेयक

न्‍

उद्देश्य | साधारण उद्देश्य | वर्द्धक | विधेय

साधारण विवय पुर

कर्म [| पूर्ति

[०

विवेय विस्तारक

सा फ्िः

च्ि

| प्राणांत होने प्रवेश करने | पर ही (काल०) फा अवसर ( मुख्य ) राना जी "| और उनकी

सेना को

( गोण ) ...... | £€ संयुक्त ) अश्यात २०-नीचे लिखे संकुचित वाक्यो का पूर्ण पथक्करण करो--- राष्ट्रीय विचार के हिंदू और मुसलमान एकता स्थापित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। उनकी रचनाओं में भारतीयों का भद्दा और अस्वामाविक चित्र ही अंकित मिलता है वे निर्देयी और कट्टर थे | जहाज के मछाह ओर कमचारी किनारे की ओर चछ पड़े | वह वहाँ गया और लेट आया सेटने काशी में एक घमंशाढा और कई मंदिर बनवाए | बिहार के भूकंप- पीड़िता को भन्न और वच्च बोटे गए, प्रत्येक मनुष्य को धेयं, साहस और हृढ़ता से काम करना चाहिए |

लड़का बुद्धिमान और परिश्रमी की पड़ता 5 - कि जान पड़ता है। उच्चे मोर धर्मात्मा

नुष्य सर्वत्र आदर पाते हैं

( २३१ ) सातवाँ पाठ संक्षिप्त वाक्य ( ) सुना है। () कहते हैं दूर के ढोछ सुहावने ()।. ४००--ऊपर छिखे वाक्यों में कुछ शब्द छठे हुए हैं जो रचना में आवश्यक होने पर भी अपने अभाव से वाक्य के अर्थ में कोई हीनता उत्पन्न नहीं करते इस प्रकार के वाक्यों फो संक्षिप्त वाक्य फहते हैं ४०१--किसी-किसी-विशेष वाक्य के साथ पूरे मुख्य उपवाक्य का लोप हो जाता हे; जैपे जो हो, भाज्ञा, जैता आप समझें सूचना--संक्षिप्त वाक्यों' का प्रथकरण करते समय अव्याह्ृत शब्दो

को प्रकट करने की आवश्यकता द्वोती है; पर इस बात का विचार रखना चाहिए कि इन वाक्यो' की जाति में काई हेर फेर हो |

संक्षिप्त वाक्य के प्रथककरणु का उदाहरण

बहुत गई थोड़ी रही, नारायण अब चेत। फिर पछताए होत का, चिड़ियाँ चुन गईं खेत

उद्देश्य विधेय | ॥98 नि वाक्य प्रकार हि. जा 2 ड़ धिए | 56 ॥# रण बत्ज 2 5 ०] छः प्र ८८ कि /णि हि 9 | ४9 नि कि ्यि र्ध्ण (फ) 9

संक्षिप्त ) (अव- बहुत गई लगा स्था) नडुत गई (ख्र) ।( संक्षिप्त ) (ओर) थोड़ी रही| | | . थोड़ी रहीम्रुख्यउपवाक्य (क) का समा- नाधिकरण (संयोजक)

( २१२ )

(ग) | (संक्षित्त ) [(इस-

नारायण | मुख्य उपवाक्य लिये) अब चेत | (ख) का समा-

नाधिकरण

परिणाम बोघक [

(घ) | (संक्षिप्त ) ।(क्यो-

फिर | क्रिया विशेषण | कि)

पछताए। उपवाक्य पछताए

नारा- चित | ०| | - अब यण ( फाछ० )

का

होत का | (कारणबाचक) (ग) उपवाक्य के चेत क्रिया की विशेषता | आबताता है। मिल आम अल ४५५48: 20

(४) | (संक्षिप्त ) चिड़ियों | क्रिया-विशेषण चुन गई | उपवाक्य | ट्‌ (फाल्वाचक) |

९;

खेत | | (घ) उपवाक्य | कीहोतक्रिया | | | की विशेषता ! बतछाता है | 2 3. 8 ॥ह शा टन अभ्यास १--नाचे लिखे संक्षित वाक्यो का पू्ण एथक्करण करो | . कह्दों राजा भोज कहाँ गंगा तेठी। सॉच को जॉच क्या ? हमारी आर उनकी नहीं बनती बह बेपर की उड़ाता है। मै तेरी एक भी

उदता। जहाँ तक हो मनुष्य को परिश्रम करना चाहिए | तुम्हारे मन्त में

जाने क्या सोच है बच नें तो में हे जा भाच ई। आप घुरा मानें तो मैं एक बात फह | बहिरो

से रॉ के वे टेप क्य 24 है थम उुनि बोले | क्या कहूँ! सुधरी बिगरे वेग ही, बिगरी फिर मुधर |

आठवों अध्याय

विराम-चिह्न ४०२--शब्दो मोर वाक्यो का परस्पर संबंध बताने तथा किसी विपय को भिन्न-भिन्न भागों में बाटने ओर पढने में ठह रने के छिये, लेखों, में ज्ञिन चिन्हों का उपयोग किया जाता है उन्हे' विराम-चिह्न कहते हैं ४०३--मुख्य विराम-चिह्न ये हैं--- (१ ) अल्प विराम हे ( ) अड्डे विराम ; (३०) पूर्ण विराम (४) प्रश्न चिह्न 4 (५ ) भाहचय चिह्द ! (६ ) निर्देशक (डेस) --- (७) कोष्टक ()

(८ ) अवतरण चिह्न ??

' (१) अल्प-विराम ४०४--इस चिह्न फा उपयोग बहुधा नीचे छिखे स्थानों में किया . ज्ञाता है--- ; ; ( ) जब एक ही शब्द-प्ेद के दो झब्दो,के बीच में समुच्चय- बोधक हो; जैसे वहों पीले हरे खेत दिखाई देते थे। वे छोग नदी, नाले पार करते चले। . (ख ) जब एक ही शब्द-मेद के दो से अधिक शब्द आवे और ' उनके बीच समुच्वय-बोधक रहे, तत्र अंतिम शब्द को छोड़ शेष के पश्चात्‌; ,. जैसे, किसी नगर में एक महाजन, उसकी स्त्री और दो बच्चे थे वह श्दे ;

€( श१४ ) ,

साधु शांत; और कोमल स्वभाव का था | नौकर फोट झाड़ता है, बिस्तर बिछाता और बाजार से सोंदा छाता है |

( ) जब कोई झब्द जोडे से जाते हैं, तब प्रत्येक जोडे के पश्चात्‌; जैसे ब्रह्म ने दुख ओर सुख, पाप ओर पुण्य, दिन और रात, ये बनाये हैं। छोटे ओर बडे, धनी ओर गरीब, पढ़े ओर अपढ; सब्न ईश्वर फो मानते हैं

) समानाधिकरण शब्दों के नीच में; जेते, ईरान के बादशाह, नादिश्शाह ने दिल्‍्छी पर चढ़ाई की | राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र, राम- चंद्रजी घन को गए

(७ ) कई-एकर क्रियाविशेषण-वाक्यों के साथ जैसे बडे महात्माओं ने समय-समय पर, यह उपदेश दिया हे एक हब्शी छड़का'मजबूत रस्सी का एक सिरा अपनी कमर में लपेट, दूसरे सिरे को लकड़ी के बड़े उकड़े में बाँध, नदी में कूद पड़ा

( 9 संबोधन कारक की संशा और संबोधन शब्दों के पश्चात्‌; जैसे, हे ईश्वर, तू सबकी इच्छा पूरी करता हैं। जरे, यह फोन है? छो; में यह चछा

छ) संज्ञा-वाक्य फो छोड़ सिश्र-वाक्य के शेष बडे उपवाक्य के बीच में, जेसे, हम उन्हें सुख देंगे, क्योकि उन्होने हमारे लिए दु।ख सह है। आप एक ऐसे मनुष्य की खोज कराइए; जिसने कभी दुःख का नाम सुना हो

( ज॑ ) जब संज्ञा-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य से किसी समुच्यय-बोधक के द्वारा नही जोड़ा जाता है; जैसे छड़के ने कहा, मैं अभी जाता हैँ

परमेश्वर एक है, यह धर्म की मूल बात है | ) जब संयुक्त वाक्य के प्रधान उपवाक्य में घना संबंध रहता है, तब उनके बीच में; जैसे, पहले हमने बगीचा देखा, फिर मैं एक टीले पर चढ़ गया ओर वहाँ से उतरकर सीधा इधर चल आया। उसका आचरण अच्छा है, स्वभाव दयाद है, और चरित्र जादर्श ,

अड्े-विराम ४०५--अद्ध विराम नीचे छिखी अवस्था में प्रयुक्त होता है--

( २३२५ 2

'( के ) जब संयुक्तवाक्यों के मुख्य उपवाक्यों में यरस्पर विशेष संबंध नहीं रहता, तब वे भरद्ध विराम के द्वारा अलग किए. जाते हैं, जेंसे उसने अपने मित्र को बचाने के लिए अनेक उपाय किए; परंतु वे सब मिष्पछ हुए. | उलझे हुए रेशों में पत्तियो के ठुकड़े ओर धूछ चिपकी रहती है; इसलिए, रूई को घुनने के पूर्व उसका कूडा करकट साफ किया जाताहे |

( ) उन पूरे वाक्यो के बीच में जो विकल्प से अंकित समुच्बय- बोधक के द्वारा जोड़े जाते हैं, जेसे, सूथ का अस्त हुआ, जाकाश छाछ हुआ, बराह पोखरो से उठकर घूमने छगे; भौर मोर अपने रहने के झाड़ो पर जा बेठे | हरिण हरियाली पर सोने लगे, पक्षी गातेनगाते घोसलछो की ओर उड़े, और जंगल में घीरे-धीरे अंधेरा फोलने छगा |

( ग॒ ) उन कई आश्रित वाक्यो के बीच में, जो एकही सुख्य उप- वाक्य पर अवलंबित रहते हैं, जेंसे, जच्र तक हमारे देश के प्ढ़े-छिखे लोग यह जानने लगेंगे कि देश में क्या क्या हो रहा है, शासन में क्या त्रुटियाँ हैं, और किन किन बातों की आवश्यकता हैं; और आवश्यक सुधार किए जाने के लिए. आंदोलन करने | छंगेंगे, तब तक देश की दशा सुधारना बहुत कठिन होगा।

_ (३) पूर्ण विराम . ४०६--इसका उपयोग नीचे लिखे स्थानों में होता है-- ,. (कक) ग्रत्येक पर्ण वाक्य के अंत में, जेसे, महाकवियो की वाणी में - अलोकिक रस होता है | इस नदी से हिन्दुस्तान के दो समविभाग होते . हैं। सब छोगो का अनुमान था कि इस वर्ष फसल बहुत अच्छी होगी ( ) बहुघा शीषंक और शब्द के पश्चात्‌ जो किसी वस्तु के उल्लेख मात्र के लिये जाता है, जेसे, राम-बन-गमन पराधीन सपनेहे सुख नाहीं | आम्य जीवन और नागरिक-जीवन * (ग॒) प्रार्चीन भाषा के पदों में अर्द्धाली के पश्चात्‌, जेसे जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी | सो द्रप अवधि नरक अधिकारी

रे $

( रशे६ 3)

(४) प्रश्न चिह्न,

४०७०-यह चिह प्रश्नवाचक, वाक्य के अंत में छगाया जाता दे, जैसे, कया यह बैंठ तुम्हारा ही दे £ दरवाजे पर कौन खड़ा दे यह ऐसा क्यो फह्टता था कि इस वहाँ न' जायेंगे ?

( क) प्रइम का चिह्न ऐसे वाक्यों में नहीं छगाया जाता जिससे प्रश्न भाशा के रूप में हो; जैसे; दिदुस्तान की राजधानी बताओ राम- चंद्रजी की फहानी लिखों

( ) जिन वाक्यों में प्रश्नवाचक शब्दों का अथ संबंधवाचक शब्दों का सा होता है, उनमें प्रश्न चिह्न नहीं गाया जाता है, जेंसे, आपने क्या कहा; सो मेने नहीं सुना | वद नहीं जानता कि मै क्या चाइता हूँ नव- युवक बहुघा यह नहीं जानते कि कोई बात कब ओर फहॉ कहनी चाहिये

(०५) आश्चय चिह्न

४०८--यह चिह्न विस्मयादि-बोधक अव्यर्यों और मनोविकारसूचक शब्दो, वाक्‍्यांशों तथा वाक्यो के अंत में माया जाता है; जेसे, वहा उसने तो मुझे अच्छा घोखा दिया ! रामन्राम | उस लछड़फे ने दी पश्ची को मार डाछा |!

( ) तीत्र मनोविकार-सूचक संबोधन-पर्दों के भंत भे भी भाइचये चिह् आता है, जेंसे, निश्चय दया-दृष्टि से माधव | मेरी मोर निहारोगे

भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती |

( ) मनोविकार सूचित करने में यदि प्रशनवाचक शब्द जावें तो भी आश्चय चिह्न छगाया जाता है, जेसे, क्यो री | क्‍या तू भाँखो से

अंधी है | कया इतनी छोटी बात आपकी समझ में नहीं भाती ! (६) निदेशक ( डेश )

४०६०० इस चिह्न का प्रयोग नीचे छिखे स्थानों में होता है--

._ के ) समानधिकरण शब्दों, वाक्याशों अथवा वाक्यो के बीच में जैसे, दुनिया में नवापन-नूतनत्व ऐसी चीज नहीं जो गली गली सारी-

ही ४»

( २३७ )

मारी फिरती हो जहाँ इन बातें से उसका संबंध रहे--वह केवल मनो-विनोद की सामग्री समझी जाय--ब्रहीं समझना चाहिए कि उनका

उद्देश्य नष्ट हो गया--उसका ढंग बिगढ़ गया |

(ख ) किसी विषय के साय तत्स॑बंधी अन्य बातो की सूचना देने में; जेसे इसी सोच में सवेरा हो गया कि हाय | इस वीरान में अब कैसे प्राण बचेंगे--न जाने में कोन मौत करूँगा | इंगलेंड के राजनीतिशो के दो दल हें--एक उदार, ओर दूसरा अनुदार

(ग ) फिसी के बचनों को उद्धृत करने के पूर्व, जैसे, मै--भच्छा यहाँ से जमीन फितनी दूर पर होगी ? कप्तान-कम से कम तीन सो मील पर हम लोगों को सुना-सुना कर वह अपनी बोली में कहने छगा--- तुम छोगों को पीठ से पीठ बॉधकर समुद्र में डुना दूँगा | कहा है--सॉँच बरोबर तप नहों झूठ बरोबर पाप

।. (७) कोष्टक

४१०--कोष्टफ नीचे लिखे स्थानों में आता है--

,_ ( ) विषय विभाग में क्रम-सूचक् अक्षरों या अंकों के साथ; जैसे; ( के) काछ, (ख़) स्थान (ग) रीति, (घ) परिमाण। (१)

शब्दालंकार, ( २) अर्थालंकार, ( ) उभयालकार : (ख ) समानार्थी शब्द या वाक्यांश के साथ; जैसे अफ्रिका के

. नीग्रों छोग ( हब्शी ) अधिकतर उन्हीं की सतान हैं। उसी कालेज में , एक रईस किसान ( बडे ) जमींदार का छड़का पढ़ता था |

( ) ऐसे वाक्य के साथ जो मूठ वाक्य के साथ आकर उससे रचना का फोई सबंध नही रखता; जैसे रानी मेरी का सोदय अह्वितीय था ( जैसी वह सरूपा थी बैसी ही एलिजाबेथ कुरूपा थी )। जब राना वृद्ध हुआ तब उसने शासनभार अपने पुत्र को सौंप दिया ( घर्म के अनुसार यह उचित ही था।)

' (८) अबवतरण चिह्न ४११-इन चिह्लो का उपयोग नीचे छिखे स्थानों में किया जाता है--

( श्श८् )

( ) किसी महत्वपूर्ण वचन उद्ड्षत करने भर अथवा उदाहरण, कहावतो में जैसे; तुलसीदास ने कहा दै “पराधीन सपनेदुँ सुख चाही? | धमीय॑न्वंशी राजाओं के समय में भी भारतवासियों को अपने देश का अच्छा ज्ञान था”-यह साधारण वाक्य है | उस बारक के सुलक्षण देख- कर सब यही कहते थे कि “होनद्वार विस्त्रान के दोत चीकने पात ।”

(ख्र ) संज्ञा-वाक्य के साथ, जब्र वह सुख्य वाक्य के पूर्व जाता दै जैसे, “रबर काहे का बनता है?” यह बात बहुतो को माकूम नहीं दे मे अपनी प्रतिज्ञा पादूँगा” ऐसा कह उसने रण के लिये प्रस्थान किया |

(ग) जब किसी अक्षर, शब्द या वाक्य का प्रयोग अक्षर शब्द या वाक्य के जर्थ में द्ोता है; जैसे, हिंदों में “ऋ?”? का उपयोग नहीं होता। “शिक्षा?” बहुत व्यापक शब्द दै। चारो मोर से “मारो-मारो” को आवाज सुनाई देती थी

( ) पुत्तक, समाचार-पत्र, रेख, चित्र. सूर्ति, पदवी भादि के नाम में; जैसे, आपके पुस्तक का नाम “पंचपात्र? है। कालछाकॉकर से “सप्राद”? नाम का एक साप्ताहिक निकछता था। उन्हें “राय साहिब! की पदवी मिली है

अज्याश्त

१--नीचे लिखे अंदर भें ययास्थान विराम-चिह्न छगाभो--

ये साहिल्यसेवा में रुपया छगाते थे दीन-दुखियों की सहायता फरते ये देशोपकार के कामो में चंदे देते थे ठाकुरपूला का प्रबंध करते ये और साथ ही साथ भोग-विछास भी करते थे इनका बढ़ा हुआ खर्च देखकर एक बार खर्गीय महाराज इंश्वरीप्रसाद नारायण सिंह काशीनरेश ने इन्हे अनेक प्रकार से समझाकर कहा बबुआ घर को देखकर काम करो पः बबुचा को इन बातों से क्या मतलब था उन्होने चट उत्तर दिया हुज्‌ इस धन ने मेरे पूवजो को खाया है मैं इसे खार्ँगा।

चा्कारपकण. .अवमरयट पड

6

| की परिशिष्ट प्राचीन कविता की भाषा का संजलषिप्त व्याकश्श

१--हिंदी कविता तीन प्रकार की उपभाषाओं में होती है--ब्रज- भाषा, बेसवाडी ओर खड़ी बोली हमारी अधिकांश प्राचीन कविता ब्रजभाषा में पाई जाती है ओर उसका बहुत कुछ प्रभाव अन्य दोनों भाषाओं पर भी पडा है। स्वयं ब्रज-माषा ही में कभी-क्ी बुंदेलखंडी तथा दूसरी माषाओं का थोडा-बहुत मेल पाया जाता है, जिससे यह कहा जा सकता है कि शुद्ध ब्रजभाषा की कविता प्राय३ बहुत कम मिलती है इस परिशिष्ट में हिंदी कविता की प्राचीन भाषाओं के झब्द-साधन के कई एक नियम संक्षेप में देने का प्रयत्न किया जाता है |

२--गद्य ओर पदथ्व के शब्दों के वण-विन्यास में बहुधा यह अंतर पाया जाता है कि गद्य के ड़, य, छल; थ, भोर क्ष के बदले में पत्म में क्रमशः र, ज, ब, स, और ( अथवा ) जाते हैं, ओर संयुक्त वर्णों के अवयव अलग-अलग ढिखे जाते हे, जेसे, पड़ा >परा, यश जश, पीपछ #पीपर, वन्बन, गील सील, रक्षा रच्छा, साक्षी - साखी, यत्न-न्यतन, घ्ज्घरम |

२--गद्य ओर पद्म की भाषाओं की रूपावली में एक साधारण

: अंतर यह है कि गद्य के अधिकांश जाकारात पुलिंग शब्द पद्म में

ओकारांत रूप में पाए जाते हैं; जेसे,

संज्ञा--सोन+-सोनो, चेरानचेरों, हियाऊ-हियो, नाताःनातो, बसेरान्जसेरो, सपनासपनों;, मायकामस्मायकी, बहाना & बहानो; ( उदूं ) | 5 सर्वनाम>मेराज्सेरी, अपना>अपनो; पराया>परायो, जैसा- जंसो, जितना>"-जितनो

( २४० )

विशेषण+«काला>कारो, पीलात्योरों, ऊँचा ऊँचो, नयात्नयो, बढ़ा & बड़ो, दीघा रू सीधो, तिरछा तिरछो ! हु

क्रिया--गया गयो, देखा देखो, जाऊँगा जाऊंगो, करना- करनो, जाना जान्यो।

लिंग ४०“इस विषय में गद्य और पद्म की भाषाओं में विशेष अंतर हाँ है, छ्लीलिंग बनाने में $ मोर इनि अच्ययी का उपयोग अन्यान्य ग्रत्ययो की अपेक्षा अधिक किया जाता हैं, जले; वरदुलहिन सकुचाहि। दुलही सिय सुंदर | भूछिद्ू कीजे ठकुरायनी इतेक इठ। मिल्लिनि जिनु छॉड़न चाहत वचन

५४--चहुत्व सूचित करने के लिये कविता में गद्य की अपेक्षा कम रुपांतर होते हैं और प्रत्यय की अपेक्षा शब्दों से अधिक काम छिया जाता हैं रामचरितमानस में बहुधा समूह वाचक शब्दों ( गन, बूंद यूथ, निकर आदि ) का विशेष प्रयोग पाया जाता है| उदा०--

जमुना तड कुंज कदब के पुज तरे तिनके नवनीर भरें

लपटी ल्तिका तर जालन सों कुछुमावल्िि तें मकरद मिरें

इन उदाइरणों मे मोटे अक्षरों में दिए, हुए शब्द अथ में बहुवचन हैं; पर उनके रूप दूसरे ही हैं

(क) अविकृत कारकों के बहुवचन के संज्ञा का रूप बहुचा जेंसा का तेसा रहता है, पर कहीं-कहीं उनमें भी विक्ृत कारकों का रूपांतर दिखाई

देता है | आकारांत स्रीलिंग शब्दों के बहुवचन में एँ के बदले बहुधा ए. पाया जाता है। | ;

१३ कु बत्क /> अआ॑ उदा०--मौरा ये दिन कठिन हैं। बिलछोकत ही कछु मोर की भीरनि सिगरे दिन ये ही सुहानी है बाते

( श्र ) विज्षत कारकों के बहुवचन में बहुधा न, नह, अथवा नि

( २४१ )

भाती है; जैसे पूछेसि लोगन काह उछाहू | ज्यों आँखिन सब देखिए दै रहो भँगुरी दोठ कानन में

कारक

६--पत्म में संशाभो के साथ भिन्न-भिन्न कारकों भें नीचे लिखी विभक्तियों का प्रयोग होता है

कर्तो--ने (क्वचित्‌) रामचरितमानस में इसका प्रयोग नही हुक्षा कमन्‍«हिं, थो कहें |

फ्रण--तें, सो

संप्रदान--हिं, कौ, कहूँ

अपादान-*त, सो

संबंधनन्फो, कर, केरा | भेद्य के लिंग भोर वचन के अमसुसार की ओर केरा में विकार होता है

अधिकरण-«में, मा, माहि- मॉझ, महेँ

क्रिया को काल--रचना चकना ( अफमक क्रिया )

क्रियाथक संशा--चलना, चलनौं, चलियो, चलम्न फतृ वाचक संशा--चलन हार |

बतंमानकालिक कृदंत--चलत, चलतु भुतकालिक कदत--चस्यो |

पूर्वकालिक कृदंत--चलि, चलिके

तात्कालिक कृदंत--+चलतवदी |

अपूर्ण क्रियाग्रोतक कद॑त--चछत, चलतु

पूर्ण क्रियायोतक कृर्दत--चलो |

मजे

बे. दो

><६बे!

( दे४ढ

£ | 3 छला5 तू० ( अथवा लामाव्य बतमार |

कत्ता्पुद्धिंग वा साल

एकवचन बहुबचन च्ज ण्ड् ह्टि चली, चलऊँ १, है चल. चलहि - चले, चलछसि चली, चलहु चले, चकछ३, चलनि ' (२) विधि-काल ( प्रत्यक्ष ) कर्ता पुछिंग वा छ्ीलिंग चला, चलऊँ १, $ चछे, चल चल, चले, चलहि चली-चछहु

चले, चलदि ( ) विधिन्काल ( परीक्ष ) चलिए, चलियों तथा चलिक्रों (४) सामान्य भविष्यतू कंत्ता--पुलछिंग वा स्रीलिग

चलिह्टों १, चलिहे, चलन ९, चलिईठ श्र चलिदों

( अथवा ) कर्चा-पुल्लिंग ( ज्लीछिंग 3 चलगो चछांगी ) $, चढेंगे , चढैँगी > ें चढंगो ( चलेग्री ) चल्ंगे ( चल्मेंगी (५ ) सामान्य संकेतार्थ क्ता-- पुह्लिग स्रीलिग ) चलती ( चलता ), १, चलते £ चलती चलत

चलछतेक ( चढतिऊ ) 9 हे चलती चलती ), चलत

९५ रेंढ३ )

, ' (६ ) सामान्य बत्तमान कर्चा--पुर्लिलग (ज्री० | चलत हां ( चलछति हो ) १, ३े जलत हैं ( चकति हैं ) २, ३े चलत दे ( चलति दे ) २, चलत हो ( चलति हो ) ( ) अपूर्ण भूतकाल कर्चा--पुढिंलग ( सत्री० ) चलत रह्यो--रहेऊं-दुगे. २; चलत रहे, हुते (चलत रही-हुतीं: ) ( चलत रहीं--रदिऊँ-हुती ) २, हे चढत रह्यो --हुता ( चढत रही--हुर्ती 3 चलछत रहे-हुते चलत रहीं-हुतीं ) ( ) सामान्य भूत कचो'--पुढिंलग ( स्त्री० )

९००३. चल्‍यो (चली) १--५ चके ( चली ) (६ ) आसन्न-भूत कर्त्ता--पुदिंलग ( स््री० ) चल्‍यो हों ( चली हो ) ९, चले ( चली ) है; रे चल्पो है ( चला दे ) चले हो चली हो )

( १० ) पूर्ण-मूत कर्ता--पुढिलिंग ( त्ती० ) (--$ चल्यों रहयो--हो हे चले रहें-दें -( चढी रहो--ही ) ( चली रहीं-दी ) चले रदे--रही- हे ६०-“.दूसरे रूप इसी आदर्श पर बनते

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